images

सरकार की ऐसी 5 योजनाएं जो कृषि मशीनों पर देंगी 80% तक सब्सिडी

अगर आप हाल-फिलहाल में खेती करने के लिए कृषि यंत्र (Agricultural machinery) को खरीदने जा रहे हैं, लेकिन आपके पास इन्हें खरीदने के लिए धन नहीं है तो घबराएं नहीं सरकार की इन 5 सरकारी योजनाओं में आवेदन करके कृषि उपकरणों को खरीदने का सपना पूरा कर सकते हैं।

सरकार की 5 कृषि यंत्र योजनाएं
सरकार की 5 कृषि यंत्र योजनाएं

हमारे देश में ज्यादातर लोग खेती-किसानी (Farming) से अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के किसान भाइयों को अच्छी फसल पाने के लिए कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. पहले के समय में किसानों को खेती के लिए अधिक उपकरणों की जरूरत नहीं पड़ती थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है ठीक उसी तरह से किसानों के द्वारा खेती करने के तरीकों में भी बदलाव हो रहा है। इस दौर में किसानों के द्वारा अधिक कमाई के लिए खेतों में आधुनिक खेती (Modern Agriculture) की जा रही है। इसके लिए उन्हें कई तरह के कृषि यंत्रों की जरूरत पड़ती है। लेकिन यह खेती-बाड़ी की मशीनें बाजार में बेहद महंगी आती हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि देश में कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो पैसे की कमी के चलते खेती के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों को नहीं खरीद पाते हैं। इन्हीं किसानों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के छोटे-बड़े कृषि उपकरणों के लिए कई तरह की बेहतरीन योजनाएं चला रखी हैं। ताकि किसान इन योजनाओं में आवेदन करके सरलता से खेती के लिए कृषि मशीनों (Agricultural Machines) को खरीद कर लाभ प्राप्त कर सकें। आज हम आपने इस लेख में सरकार की ऐसी 5 कृषि उपकरणों की बेहतरीन योजनाओं की पूरी जानकारी लेकर आए हैं।

कृषि मशीन की योजनाओं पर एक नजर

  • पीएम किसान ट्रैक्टर योजना
  • हार्वेस्टर सब्सिडी योजना
  • राजस्थान कृषि श्रमिक संबल मिशन योजना
  • कृषि यंत्र अनुदान योजना
  • फसल अवशेष प्रबंधन योजना के अंतर्गत कृषि यंत्रों पर अनुदान

आइए इन सभी सरकारी योजनाओं के बारे में एक-एक करके विस्तार से जानते हैं…

पीएम किसान ट्रैक्टर योजना (PM Kisan Tractor Scheme) – सरकार की इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को खेती से अधिक से अधिक आय कमाकर देना है। सरकार ने इस योजना की शुरुआत साल 2022 में की थी, जिसमें किसानों के द्वारा ट्रैक्टर खरीदने पर सरकार 20 से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी उपलब्ध करवाती है। अगर आप भी हाल फिलहाल में खेती के लिए ट्रैक्टर (Tractor for Farming) खरीदने वाले हैं, तो आप पीएम किसान ट्रैक्टर योजना में आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए आप अपने नजदीकी जन सेवा केंद्र में जाकर संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा कई राज्यों में इस योजना के लिए किसानों के आवेदन ऑनलाइन भी स्वीकार किए जाते हैं। अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं. –

हार्वेस्टर सब्सिडी योजना (Harvester Subsidy Scheme)- जैसा कि आप जानते हैं कि धान-गेहूं कटाई के लिए हार्वेस्टर मशीन की अहम भूमिका होती है। लेकिन यह मशीन बाजार में बेहद उच्च कीमत पर आती है. मिली जानकारी के मुताबिक, भारतीय बाजार में हार्वेस्टर मशीन लगभग 40 लाख रुपए तक है। इतने अधिक दाम होने के चलते कई किसान इसे खरीद नहीं पाते हैं। इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार हार्वेस्टर मशीन (Harvester Machine) पर भारी सब्सिडी देती है।

बता दें कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (National Agriculture Development Plan) के तहत हार्वेस्टर किसानों को करीब 40 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। ऐसे में हिसाब लगाया जाए तो इस मशीन के लिए सरकार से 15 लाख रुपए से भी अधिक अनुदान दिया जाता है। सरकार की इस योजना का लाभ उठाने के लिए आपको अपने नजदीकी जन सेवा केंद्र में जाना होगा। जहां से आप सरलता से आवेदन कर पाएंगे।

राजस्थान कृषि श्रमिक संबल मिशन योजना (Rajasthan Agricultural Workers Sambal Mission Scheme)-यह योजना राजस्थान के किसानों के लिए राज्य सरकार ने अपने स्तर पर शुरू की ताकि प्रदेश के किसान आत्मनिर्भर बन सकें और खेती से अधिक लाभ कमा सकें। बता दें कि इस योजना के तहत किसानों को प्रदेश में कृषि उपकरण खरीदने के लिए 5 हजार रुपए तक की सब्सिडी उपलब्ध करवाई जाती है। अगर आप भी इस योजना में आवेदन करना चाहते हैं, तो इसके लिए आप नजदीकी कृषि केंद्र में या आधिकारिक कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिंक करें।

कृषि यंत्र अनुदान योजना (Agricultural Machinery Subsidy Scheme) –  इस योजना के तहत राज्य सरकार अपने-अपने स्तर पर खेती से जुड़े विभिन्न उपकरणों पर सब्सिडी की सुविधा उपलब्ध कराती है. हाल ही में राजस्थान सरकार इस योजना के तहत प्रदेश के किसानों को ड्रोन खरीदने के लिए सब्सिडी दे रही है। इसमें राज्य सरकार ने लगभग 4 लाख रुपए तक की सब्सिडी का प्रावधान तय किया है। साथ ही इस योजना के तहत सरकार भूमिहीन श्रमिकों को भी कृषि यंत्र खरीदने के लिए हर एक परिवार को लगभग 5 हजार रुपए तक का अनुदान देती है। इस योजना से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जाएं. इसमें आवेदन प्रक्रिया व अन्य महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से बताई गई है।

फसल अवशेष प्रबंधन योजना के अंतर्गत कृषि यंत्रों पर अनुदान- इस योजना में सरकार ने कई तरह के कृषि यंत्रों को शामिल किया है, जिनके नाम कुछ इस प्रकार से है। स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर,  सुपर पैडी स्ट्रा चोपर, मल्चर, रोटरी स्लेशर, शर्ब मास्टर, रिवर्सिबल एमबी प्लो, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, रीपर कम बाइंडर, ट्रैक्टर चालित क्राप रिपर और स्वचालित क्रॉप रिपर आदि कृषि उपकरण हैं। इन सभी यंत्रों पर इस योजना के तहत 50 से 80 प्रतिशत तक सब्सिडी की सुविधा दी जाती है। अगर आप भी इसका लाभ उठाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पहले मेरी फसल मेरा ब्योरा (Meri Fasal Mera Byora) पोर्टल में रजिस्ट्रेशन करना होगा. तभी आप इसका लाभ पा सकते हैं।

images

गर्मी और सूखे से फसलों और पशुओं में होने वाले दुष्प्रभाव और उनका निपटान, पढ़ें विस्तार से

अगर आप गर्मी के मौसम (Summer Season) में फसलों और पशुओं को गर्मी और सूखे से बचाना चाहते हैं और अच्छा उत्पादन व लाभ पाना चाहते हैं तो इन तरीकों को अपना सकते हैं….

crop
Effects of heat and drought on crops

गर्मी ने अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया है ऐसे में किसानों और पशुपालकों को अपनी फसलों और पशुओं की चिंता सताने लगी है। क्योंकि ये झुलसाने वाली गर्मी फसलों और पशुओं को नुकसान पहुंचा सकती है. क्योंकि कई अध्ययनों में पाया गया है कि गर्मी और सूखे जैसी मौसम की स्थिति कृषि पर कई नकारात्मक प्रभाव (Negative effects on crops) डालती है। इससे पैदावार कम होने की भी संभावना बढ़ जाती है। तो ऐसे में आइये जानते हैं गर्म मौसम (Hot Climate) की वजह से कृषि में कहा-कहा प्रभाव पड़ता है।

फसलों पर गर्मी और सूखे का प्रभाव

आपको बता दें कि गर्म जलवायु की वजह से मिट्टी शुष्क और कम उपजाऊ हो सकती है, और इसके अलावा गर्मी में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) भी बढ़ती है। जिसकी वजह से कई खरपतवार, कीट और कवक पनपने शुरू हो जाते हैं। जो पौधों की वृद्धि को काफी हद तक प्रभावित करते हैं। जिससे ज्यादातर पौधों की प्रजातियों में प्रोटीन और आवश्यक खनिजों की सांद्रता कम हो सकती है।

animal
Effects of heat and drought on livestock

पशुधन पर गर्मी और सूखे का प्रभाव

अगर हम पशुधन की बात करें, तो गर्मी और सूखे की वजह से पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. क्योंकि गर्मी की वजह से जानवरों में तनाव पैदा हो सकता है जोकि आगे चल कर जानवरों की बीमारी के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है। इससे उनकी प्रजनन क्षमता (Fertility) और दूध उत्पादन की गुणवत्ता (Milk Production Quality) और मात्रा भी कम हो सकती है। इसके अलावा सूखे की वजह से चारागाह और पशुओं के चारे (Animal Fodder)  की आपूर्ति को भी खतरा हो सकता है। क्योंकि यह चरने वाले पशुओं के लिए उपलब्ध गुणवत्तापूर्ण पत्ते की मात्रा को कम कर देता है। जिससे पशुओं को पौष्टिक चारा नहीं मिल पाता है।

crops
Plant heat and drought-tolerant crops in the fields

गर्मी के मौसम में फसलों पर गर्मी और सूखे की मार को कम करने के लिए खेती की ख़ास तकनीकें

1) खेतों में गर्मी और सूखा-सहिष्णु फसलें लगाएं

अगर आप गर्मी के मौसम (Farming in summer season) में खेती करते हैं तो आप गर्मी में ऐसी फसलें का चुनाव (Selection summer crops) करें जो गर्मी और सूखा-सहिष्णु हों. क्योंकि ये फसलें ऐसी होती हैं उच्च तापमान को सहन कर सकती हैं. इनको सिंचाई की ज्यादा जरुरत नहीं होती है. सीमित जल संसाधनों वाले क्षेत्रों में भी इस प्रकार की फसलें वास्तव में काफी उपयोगी मानी जाती हैं

mulching
adopt mulching techniques

2) पलवार यानि मल्चिंग तकनीक अपनाएं 

  • मल्चिंग एक ऐसी कृषि तकनीक है जिसके द्वारा मिट्टी की जलधारण क्षमता (water holding capacity )को बेहतर बनाने और प्रतिकूल मौसम की स्थिति से फसलों को बचाने के लिए मिट्टी की सतह को कार्बनिक या अकार्बनिक सामग्री से ढक दिया जाता है. इससे खरपतवार की वृद्धि पर भी रोक लगती है और मिट्टी की पोषण मात्रा में भी सुधार होता है।
  • क्योंकि गर्मी में उच्च तापमान होने की वजह से मिट्टी बहुत जल्दी ही सूखने लगती है. जिससे पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँचता है और पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में भी काफी समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • आपको बता दें कि मल्चिंग तकनीक मिट्टी और सूर्य के बीच एक बाधा के रूप में कार्य करती है. यह मिट्टी द्वारा अवशोषित (Absorbed) की जाने वाली गर्मी की मात्रा को काफी हद तक कम करती है, जिससे पौधों की जड़ों को गर्मी के तनाव से सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • 3) फसलों को छाया प्रदान करें
  • किसान भाई फसलों पर गर्मी के तनाव के प्रभाव को कम करने के लिए पौधों को पर्याप्त छाया प्रदान करें. क्योंकि गर्मी के तनाव से पत्तियां और फूल समय से पहले ही मुरझा सकते हैं उनका  विकास काफी हद तक रुक सकता है और उपज में भी कमी आ सकती है।
  • इसके अलावा लंबे समय तक धूप के संपर्क में रहने की वजह से पौधे की पत्तियां ज्यादा गर्मी की वजह से जल भी सकती हैं। इसलिए छाया प्रदान करके हम पौधे तक पहुँचने वाली सीधी धूप की मात्रा को काफी कम कर सकते हैं, जिससे फसल को पर्यावरणीय तनाव से बचाकर हम फसल की उपज में काफी सुधार कर सकते हैं।
images

किसानों को मिलेंगे निःशुल्क मछली के बीज, जानें कितने होंगे बीज उपलब्ध

प्रदेश के किसानों की भलाई के लिए राजस्थान सरकार ने एक और प्रस्ताव को हाल ही में मंजूरी दे दी है जिसके तहत हजारों की आय में बढ़ोतरी होगी।

Free fish seed will be available to the farmers
Free fish seed will be available to the farmers

राजस्थान सरकार ने राज्य के किसानों की आय को डबल करने के लिए एक नई पहल की शुरुआत की है, जिसके तहत प्रदेश के हजारों किसानों को लाभ दिया जाएगा। दरअसल, राज्य सरकार किसानों को मछली पालन के व्यवसाय (Fishing Business) की तरफ प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए सरकार किसानों को मछली का बीज (Fish Seed) भी नि:शुल्क उपलब्ध करवा रही है। ताकि किसान सरलता से मछली पालन (Fish farming) से जुड़ी अपनी परेशानी को हल कर अच्छा लाभ पा सके।

कितने किसानों को मिलेगी सुविधा

राज्य सरकार के द्वारा जारी की गई सूचना के द्वारा नि:शुल्क मछली का बीज (Free Fish Seed) प्रदेश के 20 हजार किसानों तक पहुंचाया जाएगा। इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2 करोड़ रुपए की राशि व्यय करने की भी मंजूरी दी है।

किसानों को मिलेंगे यह बीज

मत्स्य विभाग के प्रस्ताव के अनुसार राज्य के हर एक किसान भाई को डिग्गी भारतीय मेजर कॉर्प प्रजाति (Diggy Indian Major Corp Species) रोहू, कतला एवं म्रिगल के 1 हजार आंगुलिका (फिंगरलिंग) आकार के मत्स्य बीज (Fish seed) की सुविधा मिलेगी। जैसा कि आप सभी को ऊपर बताया गया कि इस कार्य के लिए कृषक कल्याण कोष से लगभग 2 करोड़ की राशि व्यय की जाएगी। ताकि किसानों तक बीज सरलता से पहुंच सकें।

किसानों को जिला स्तर पर मिलेगा प्रशिक्षण

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट वर्ष 2023-24 में मत्स्य पालन (Fisheries) व अन्य कई योजनाओं की घोषणा की थी। बताया जा रहा है कि सरकार के इस कार्य के लिए चयनित किसानों को जिला स्तर पर प्रशिक्षण भी मिलेगा।

मत्स्य विभाग के जिला स्तरीय अधिकारियों, कृषि विभाग के ब्लॉक स्तरीय अधिकारियों के द्वारा राज्य के किसान भाइयों की समस्याओं के निराकरण और नई आधुनिक तकनीकी को लेकर मार्गदर्शन प्रदान करेंगे. ताकि किसान आत्मनिर्भर के साथ-साथ सशक्त भी बन सकें।

images

उत्तर प्रदेश में पशुपालन का यह सबसे सही मौका, योगी सरकार गाय-भैस खरीदने पर दे रही है 40 हजार

अगर आप गाय-भैस पालने की तैयारी कर रहे हैं तो यह सबसे सही समय है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार एक योजना के तहत गाय-भैस पालने पर 40 हजार रुपये दे रही है।

गाय-भैस पालने पर 40 हजार रुपये दे रही है योगी सरकार
गाय-भैस पालने पर 40 हजार रुपये दे रही है योगी सरकार

किसान गांव में खेती के अलावा पशुपालन करके भी अपनी आमदनी में इजाफा करते हैं। अगर आप उत्तर प्रदेश में रहते हैं और गाय-भैस पालने को लेकर सोच-विचार कर रहे हैं लेकिन आपके पास पर्याप्त पूंजी नहीं है। तो ऐसे में आपको घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। दरअसल, पशुपालकों को उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने एक योजना के तहत गाय-भैस पालने के लिए 40 हजार रुपये देने का फैसला किया है. तो आइए, राज्य सरकार की इस योजना के बारे में विस्तार से जानें।

इस योजना के तहत सब्सिडी

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नंद बाबा मिशन की शुरुआत की है। सीएम ऑफिस की तरफ से जारी आधिकारिक बयानों में कहा गया है कि नन्द बाबा दुग्ध मिशन के अंतर्गत स्वदेशी ‘गौ संवर्धन योजना‘ शुरू की गई है। जिसके तहत पशुपालक गुजरात से गिर गाय, पंजाब से साहिवाल, राजस्थान से थारपारकर गाय आसानी से खरीद सकेंगे। सरकार की तरफ से इन गायों की खरीद पर 40 हजार रुपये की सब्सिडी दी जाएगी. इसके साथ अधिकारियों ने यह भी कहा कि इस योजना की शुरुआत किसानों की आय बढ़ाने के नजरिए से की गई है। इससे अन्नदाताओं को काफी लाभ होगा।

आय बढ़ाने के लिए योजना की शुरुआत

सरकारी बयानों में कहा गया है कि इससे किसानों की आय के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ेगी। पशुपालन के प्रति किसानों का रुझान बढ़ेगा। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह अनुदान पशुपालकों को अधिकतम दो स्वदेशी नस्ल की गायों को खरीदने पर मिलेगा। इसके अलावा, राज्य सरकार नंद बाबा मिशन के तहत बाहरी राज्य से गाय लाने पर परिवहन, यात्रा के दौरान गाय का बीमा और यूपी में गाय डेयरी किसान के पास आने के बाद गाय का बीमा कराने में भी जो पैसा खर्च होगा, वह भी पैसा उत्तर प्रदेश सरकार देगी।

गाय पालने पर भी सब्सिडी

वहीं, डेयरी किसानों को मुख्यमंत्री प्रगतिशील पशुपालक प्रोत्साहन योजना के तहत अलग से भी प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। यह पैसा भी अधिकतम दो स्वदेशी नस्ल की गायों पर दिया जाएगा। बता दें कि इस योजना के तहत अभी भी डेयरी किसानों को देसी गाय पालने पर 10 से 20 हजार रुपये तक प्रोत्साहन राशि दी जाती है। हालांकि, यह पैसा भी अधिकतम दो गाय पालने पर दिया जाता है। किसान इस सब्सिडी के बारे में ज्यादा जानकारी अपने नजदीकी पशुपालन विभाग में जाकर हासिल कर सकते हैं।

download (6)

Black Rice Benefits: जानिए काले चावल के सेवन से होने वाले फायदे और बनाने की प्रक्रिया

प्राचीन चीन में काले चावल को खाने में मनाही थी। लेकिन चीन के कुछ लोग इसका सेवन गुर्दे, पेट सम्बंधित बीमारियों को ठीक करने के लिए करते थे।

Black Rice
Black Rice

प्राचीन चीन में काले चावल को खाने में मनाही थी। लेकिन चीन के कुछ लोग इसका सेवन गुर्दे, पेट सम्बंधित बीमारियों को ठीक करने के लिए करते थे. जब इसके सेवन से शरीर को लाभ मिलने लगा तो कुछ महान चीनी पुरुषों ने इस चावल को अनाज में शामिल कर लिया और इसकी सार्वजनिक खपत को रोक दिया.जिसके बाद से, काले  चावल केवल अमीर और कुलीन वर्गों की संपत्ति बन गया,वह भी सीमित मात्रा में और जांच के दायरे में। आम लोगों को इसका उपभोग करने की अनुमति नहीं थी। लेकिन अब समय के साथ, काले चावल का सेवन सभी लोग करने लगे हैं।

भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर पूर्व क्षेत्र और दक्षिणी भागों में की जाती है. यह चावल औषधीय गुणों से पूरी तरह भरपूर हैं। इसकी खुशबू झारसुगुड़ा तक पहुंच गई है.ओडिशा में इस प्रजाति के धान की खेती संबलपुर, सुंदरगढ़, और कंधमाल, कोरापुट आदि जिलों में की जाती है।

काले चावल क्या है ?  (What is Black Rice?)

काले चावल सामान्य रूप से आम चावल की तरह ही होता है। इसकी शुरूआत में  खेती चीन में हुई थी और फिर इसकी खेती भारत के असम और मणिपुर में शुरू हुई।

पौष्टिक तत्वों से भरपूर

इस धान से निकले चावल में भरपूर मात्रा में विटामिन बी, ई के अलावा कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन तथा जिंक आदि तत्व शामिल होते है। जोकि मानव शरीर में जाकर एंटी ऑक्सीडेंट का काम करते है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह चावल कैंसर व डायबिटीज रोगियों के लिए काफी उपयोगी होता है। इसका सेवन करने से रक्त शुद्ध होता है और साथ ही चर्बी कम कर ये आपके पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है।

काले  चावल खाने के फायदे (Benefits of Black Rice)

1) मोटापे को दूर रखता है

2) पाचन तंत्र मजबूत बनाता है

3) डायबिटीज में फायदेमंद

4)हृदय सम्बंधित समस्या में सहायक

5)शारीरिक कमजोरी को दूर करता है

6)एंटी-ऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर

ब्लैक राइस सलाद बनाने की विधि:

  • सबसे पहले पैन में पानी गर्म करें फिर उसमें चावल, अदरक के छोटे टुकड़े डाले और अच्छे से उबाल ले जब तक अच्छे से चावल पक न जाए।
  • एक बार पक जाने के बाद, थोड़ी देर ठंडा होने के लिए छोड़ दें. एक मापने वाले कप में नींबू,अदरक और सिरके को अच्छे से मिलाए.यह सब मिश्रण करने के लिए स्टिक ब्लेंडर का उपयोग करें।
  • फिर एक कटोरे में चावल, आम, तुलसी और लाल मिर्च को एक साथ रखें. उसके बाद सिरके वाले मिश्रण को चावलों के ऊपर डाले. अब आपका ब्लैक राइस खाने के लिए तैयार है।
moringa leaf and powder capsule on  a wooden background

सहजन जूस पीने के हैं अद्भुत फायदे, पढ़ें पूरी विधि

अगर आप बार-बार पेट की परेशानी का सामना करते रहते हैं, तो एक बार यह लेख जरूर पढ़ें। ताकि आप इस दिक्कत से मुक्ति पा सकें।

This disease will stay away from drinking drumstick juice
This disease will stay away from drinking drumstick juice

अक्सर शादी व पार्टी में अधिक खाना खाने के बाद कुछ लोगों के पेट खराब हो जाता है. कुछ लोगों को तो कब्ज जैसी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है. कब्ज की दिक्कत के चलते लोगों का बैठना व उठना तक मुश्किल हो जाता हैं।

ऐसे में व्यक्ति इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए दवा व अन्य कई चीजों का सेवन करता है, जो बाजार में उपलब्ध होती हैं. लेकिन फिर भी उन्हें इससे पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिलती है. लेकिन आज हम जिस चीज के बारे में बताने जा रहे हैं, उसका सेवन करने मात्र से ही आपको कब्ज से व पेट की जलन से पूरी तरह से मुक्ति मिल जाएगी।

सहजन का जूस (Drumstick juice)

सहजन के नाम से तो ज्यादातर लोग प्रचित होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे खाने से जितने फायदे मिलते हैं, ठीक उसी तरह से इसके जूस पीने से भी व्यक्ति के पेट से संबंधित कई बीमारी दूर हो जाती हैं. सहजन की फली का जूस जिद्दी से जिद्दी कब्ज की परेशानी से मिनटों में मुक्ति दिलाता है. आइए अब इसके जूस के फायदे के बारे में भी थोड़ा जान लेते हैं।

सहजन जूस बनाने की विधि (Drumstick juice recipe)

सबसे पहले आप सहजन की फलियों को सही तरीके से तोड़ लें और फिर इसे अच्छे से पानी से साफ करें. फिर आपको इसे गर्म पानी में बोइल करना है. इसके बाद आपको इसे मिक्सी मशीन में डालकर जूस बना लेना है. आप चाहे तो इसमें अपने स्वाद के अनुसार कुछ चीजों को भी शामिल कर सकते हैं. जैसे कि चीनी, नमक और पानी आदि लेकिन यह सब आपको बहुत ही थोड़ी मात्रा में डालनी हैं।

कब्ज से छुटकारा

अगर आप सहजन का जूस पीते हैं, तो आपको बार-बार होने वाली कब्ज की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। ताकि आप शादी-पार्टी में बने खाने का आनंद आसानी से उठा पाएं।

डायबिटीज (Diabetes)

यह जूस किसी आयुर्वेदिक औषधि से कम नहीं है। दरअसल, डॉक्टर भी सहजन की फली का जूस पीने की सलाह देते हैं, क्योंकि इसे डायबिटीज के रोगियों को लाभ मिलता है. यह शरीर में ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखने में मदद करता है।

हड्डियां मजबूत

इस जूस को नियमित रुप से पीने से शरीर की हड्डियां मजबूत बनती हैं। अगर किसी व्यक्ति की हड्डिया कमजोर हैं, तो वह इस जूस का सेवन जरूर करें. क्योंकि इस जूस में एंटी-इंफ्लामेंट्री गुण व अन्य कई प्रोटीन पाएं जाते हैं।

download (8)

Black Rice: कई गुणा मंहगा बिकता है काला चावल, इसकी खेती से किसान तुरंत हो जाएंगे मालामाल

काले चावल की खेती से किसान अपनी आमदनी को बेहतर कर सकते हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।

काले चावल की खेती किसानों के लिए फायदेमंद
काले चावल की खेती किसानों के लिए फायदेमंद

देश में हर साल किसान बड़े पैमाने पर धान की खेती करते हैं. लेकिन ज्यादातर अन्नदाताओं को साधारण चावल की खेती से उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है. ऐसे में किसानों के लिए काले धान या चावल की खेती फायदेमंद साबित हो सकती है. तो आइए काले चावल की खेती के बारे में विस्तार से जानें।

पोषक तत्वों का खजाना है काला चावल

काले चावल में प्रोटीन, विटामिन बी, विटामिन बी1, बी2, बी3, बी6 और फोलिक एसिड (बी9) मौजूद होते हैं. जो शरीर के लिए आवश्यक होते हैं. इसके अलावा, काले चावल में फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम, आयरन और जिंक जैसे खनिज भी पाए जाते हैं. जो बॉन्स की सुरक्षा, खून का निर्माण, मांसपेशियों के कार्यों का समर्थन और अच्छी सेहत के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. वहीं, इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर भी मौजूद होता है।

इन राज्यों में होता है काला चावल

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर काले चावल की खेती होती है. बता दें कि काला चावल सफेद चावल की तुलना में ज्यादा अच्छा माना जाता है. काले चावल में सफेद चावल से ज्यादा पोषक तत्व मौजूद होते हैं. काला चावल खाने से पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है और कब्ज की समस्या से राहत मिलती है. काले चावल में कार्बोहाइड्रेट्स की अधिक मात्रा होती है. जो शरीर को ऊर्जा उपलब्ध कराने में मदद करती है. काले चावल की खेती किसी भी मिट्टी में संभव है. गर्मी का मौसम इस चावल की खेती के लिए उपयुक्त होता है. खास बात यह है कि फसल लगाने के बाद काले चवाल का उत्पादन सफेद चावल से ज्यादा होता है।

काले चावल से इतनी कमाई

अब अगर काले चावल से कमाई की बात करें तो बाजार में इसकी कीमत लगभग 400 से 500 रुपये प्रति किलो होती है. वहीं, सफेद चावल ज्यादा से ज्यादा 30 से 40 रुपये किलो के हिसाब से बिकते हैं. इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसान काले चावल की खेती से साल में कितनी कमाई कर सकते हैं।

images (26)

Milking Machine से डेयरी उद्योग को मिलती है तेज़ी, कई लोगों का काम मिनटों में करती है यह मशीन

आज हम हर क्षेत्र में तकनीक का उपयोग करके जीवन में सरलता और काम को आसान बना रहे हैं। डेयरी क्षेत्र की एक ऐसी उपयोगी तकनीक के बारे में बताने जा रहे हैं जो एक साथ कई व्यक्तियों का काम कुछ ही देर में कर देती है।

Milking Machine
Milking Machine

वर्तमान में दूध का व्यवसाय भारत में छोटे से लेकर बड़े स्तर तक होता है. कृषि से जुड़ा यह व्यवसाय आज की आधुनिक मशीनों ने और भी आसान बना दिया है. हम इन्हीं मशीनों के माध्यम से दूध को कुछ देर की जगह कई दिनों तक संरक्षित रख सकते हैं. साथ ही बहुत से अन्य उत्पाद भी इन्हीं मशीनों के माध्यम से ही बनते हैं. आज हम आपको इन्ही से जुड़ी एक मशीन के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका प्रयोग हम गाय या भैंस का दूध निकालने के लिए करते हैं। तो आइये जानते हैं कि कैसे करते हैं इसका उपयोग।

दूध दूहने वाली मशीन, जिसे अंग्रेजी में “Milking Machine” कहा जाता है, गाय, भैंस और अन्य दूध देने वाले पशुओं से दूध निकालने के लिए उपयोग होती है. यह व्यवसायिक दूध उत्पादन के क्षेत्र में उपयोग होती है, जहां अधिक संख्या में पशुओं से दूध को सुरक्षित और अधिक संगठित ढंग से निकालने की आवश्यकता होती है. दूध निकालने वाली मशीन को उपयोग में लाने के लिए हम निम्न प्रकार की व्यवस्था कर सकते हैं।

Milking Machine लगाने की सही जगह: मशीन को पशु के आसपास स्थापित किया जाता है और इसके लिए उचित सुविधाएं तैयार की जाती हैं. मशीन में दूध निकालने के लिए एक सीधी कनेक्शन या पाइपलाइन को लगाया जाता है जो दूध इकठ्ठा करने के लिए उपयोगी होता है।

थनों की साफ़ सफाई: थनों को साफ़ करने के लिए पहले तैयारी की जाती है. इसमें थनों को गर्म पानी और दूध से साफ़ करने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है. इससे थनों पर मौजूद जीवाणु, कीटाणु और किसी अन्य पदार्थों को साफ करके दूध के गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जाता है।

थनों को स्थिर करना: पशु को थनों को ज्यादा हिलने से बचाने के लिए उपयोगी आयामों और विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है. इससे दूध निकालने की प्रक्रिया को आसानी से संचालित किया जा सकता है।

ऐसे निकलेगा दूध: मशीन के द्वारा थनों को गाय या भैंस के दूध संकलित करने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण थनों को संपीड़ित करके दूध को निकालते हैं और उसको इकठ्ठा करने के लिए उपयोगी निकासी पाइपलाइन या किसी अन्य बर्तन के माध्यम से उसे रखते हैं।

कैसे खरीदें यह मशीन

आप इन मशीनों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह से खरीद सकते हैं। ऑनलाइन बाज़ार में इस मशीन की कीमत आपको 10 हजार से शुरू हो जाती है. इनकी कीमत आपके दुग्ध उत्पादन पर भी निर्भर करती है. आपको यह मशीन Amazon, Flipkart जैसे पोर्टल पर मिल जाती है।

यह मशीन डेयरी धारकों के लिए बहुत ही काम की होती है। इसका कारण यह भी है कि उनको एक साथ कई जानवरों का दूध निकाल कर समय पर लोगों को भेजना होता है। इसके लिए यह मशीन काम को बहुत ही आसान बना देती है। आज कल इन मशीनों को बहुत सी कंपनियां बना कर बाज़ार में बेच रही हैं जैसे DeLaval, GEA Farm Technologies, Lely, BouMatic, Fullwood Packo, Milkline आदि कंपनियां इन मशीनों का निर्माण करती हैं।

images (24)

Aaksmik Fasal Yojana: किसानों की सहायता के लिए आगे आई सरकार, आवेदन कर तुरंत उठाएं इस योजना का लाभ

किसानों की मदद के लिए सरकार हमेशा कोई नया कदम उठाती है. इस समय कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए आकस्मिक फसल योजना की शुरुआत की गई है। आइए, इसके बारे में विस्तार से जानें।

आकस्मिक फसल योजना की शुरुआत
आकस्मिक फसल योजना की शुरुआत

अन्नदाताओं की सहायता के लिए सरकार आए दिन नई योजनाओं के साथ आगे आती है। जलवायु प्रवर्तन व बिपोरजॉय के चलते इस साल मॉनसून आने में देरी कर रहा है। जिसके चलते भारत के कई इलाकों में सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न गई है। उन जगहों पर किसानों की फसल लगभग खराब होने की कगार पर है। इसी बीच, गर्मियों में सूखे जैसी स्थिति को देखते हुए एक राज्य सरकार ने आकस्मिक फसल योजना की शुरूआत की है। जिसके तहत किसानों को नुकसान से काफी राहत मिलेगी। तो आइये जानें किस राज्य में किसानों के लिए शुरू हुई है यह योजना। वहीं, इसका लाभ उठाने के लिए कैसे कर सकते हैं आवेदन।

ये होगा फायदा 

मॉनसून व सूखे जैसी समस्या पर गौर फरमाते हुए बिहार सरकार ने अपने राज्य के किसानों के लिए आकस्मिक फसल योजना शुरू की है। इसके तहत सरकार प्रभावित जिलों के किसानों को मुफ्त में वैकल्पिक फसलों का बीज मुहैया कराएगी। किसानों को कुल 15 विभिन्न फसलों के बीज दिए जाएंगे। ऐसे में अगर आप बिहार में खेती किसानी करते हैं तो तुरंत आवेदन करके इसका लाभ उठा सकते हैं। हालांकि, बिहार सरकार की तरफ से यह साफ कर दिया गया है कि इस योजना का लाभ उन्हीं किसानों को मिलेगा, जो सूखाग्रस्त इलाकों से होंगे।

 

इन फसलों के मिलेंगे बीज

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस योजना के तहत प्रभावित गांव, पंचायत और प्रखंड के हर एक किसान को अधिकतम दो एकड़ खेत के लिए दो वैकल्पिक फसल के बीज दिए जाएंगे। इस योजना के तहत जिन फसलों के बीज दिए जाएंगे, उनमें धान (प्रमाणित), मक्का (संकर), अरहर, उड़द, तोरिया, सरसों (अगात), मगर (अगात), भिन्डी, मूली, कुल्थी, मडुआ, सांवा, कोदो, ज्वार और बरसीम शामिल हैं।

इस योजना का लाभ उठाने के लिए प्रभावित गांव के किसानों को नजदीकी कृषि केंद्र में जाना होगा। जहां आवेदन करने के लिए जमीन के कागजात, आधार कार्ड, पैन कार्ड, फोटो, मोबाइल नंबर आदि मांगे जा सकते हैं।

paddy-1

धान में पानी बचाने के बेहतरीन तरीके, फसल में भी होगी वृद्धि 

अगर आप धान की फसल में अधिक पानी का इस्तेमाल करते हैं, तो यह लेख आप एक बार जरूर पढ़े. ताकि आप धन की फसल में पानी बचाने के तरीके को जानकर लाभ पा सके. बता दें इन तरीकों से आप पानी की बचत तो करेंगे ही साथ ही फसल में भी तेजी से वृद्धि होगी.

How to save water in paddy?
How to save water in paddy?

हरियाणा के कुल भौगोलिक क्षेत्र में से, 80 % भू-भाग पर खेती की जाती है और उसमे से 84% क्षेत्र सिंचित खेती के अंदर आता है। राज्य की फसल गहनता 181 % है और कुल खाद्यान्न उत्पादन 13.1 मिलियन टन है। प्रमुख फसल प्रणालियां चावल-गेहूं, कपास-गेहूं और बाजरा-गेहूं हैं। राज्य का लगभग 62% क्षेत्र खराब गुणवत्ता वाले पानी से सिंचित किया जाता है। इसके बावजूद भी किसान धान की खेती करता है।  राज्य में चावल की खेती के तहत लगभग 1 मिलियन हेक्टेयर है, जो ज्यादातर सिंचित है। राज्य की औसत उत्पादकता लगभग 3.1 टन/हेक्टेयर है। धान की लगातार खेती और इसमें सिंचाई के लिए पानी के इस्तेमाल से लगातार भूजल का स्तर गिरता जा रहा है। धान के उत्पादन में प्रमुख बाधाएं हैं. पानी की कमी, मिट्टी की लवणता क्षारीयता, जिंक की कमी और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट। इस लेख में धान की खेती में पानी की बचत करने के बारे में बताया गया है।

कम अवधि वाली किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (SAU) ने पूसा बासमती 1509 (115 दिन), पूसा बासमती 1692 (115 दिन) और पूसा बासमती 1847 (125 दिन) और पूसा बासमती 1847 (125 दिन) सहित उच्च उपज वाली कम अवधि वाली बासमती चावल की किस्में विकसित की हैं। गैर-बासमती श्रेणी में सुगंधित चावल की किस्में PR 126 (120-125 दिन), पूसा एरोमा 5 (125 दिन) और पूसा 1612 (120 दिन) आती है। जल्दी पकने वाली ये किस्में लगभग 20-25 दिन पहले परिपक्व हो जाती हैं जो किसानों को पुआल प्रबंधन के लिए समय देती है इसके साथ गेहूं की बुवाई के लिए खेतों की तैयार करने का भी समय मिल जाता है। दो से पांच सप्ताह कम समय की वजह से पानी की लागत भी कम हो जाती है।

प्रत्यारोपण का समय

उच्च बाष्पीकरणीय मांग की अवधि (जून) के दौरान चावल की रोपाई के परिणामस्वरूप बहुत अधिक भूजल का खनन हो सकता है। भारतीय राज्य हरियाणा, पंजाब, दिल्ली में जल स्तर वर्तमान में 0.5-1.0 मीटर प्रति वर्ष की दर से गिर रहा है। अनाज की पैदावार बढ़ाने और पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए पानी की बचत की तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है। धान की रोपाई जून के आखिरी सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह में करनी चाहिए।  ऐसा करने से वाष्पीकरण से उड़ने वाले पानी की बचत होती है और पैदावार का भी ज्यादा नुकसान नहीं होता।  

वैकल्पिक गीली सूखी विधि (AWD)

वैकल्पिक गीली सूखी (AWD) विधि धान की खेती में जल को बचाने के साथ-साथ मीथेन के उत्सृजन को भी नियंत्रित करती है। इस विधि का उपयोग तराई में रहने वाले किसान सिंचित क्षेत्रों में अपने पानी की खपत को कम करने के लिए कर सकते हैं। इस तकनीक का उपयोग करने वाले चावल के खेतों को बारी-बारी से पानी से भरा जाता है और सुखाया जाता है। AWD में मिट्टी को सुखाने के दिनों की संख्या मिट्टी के प्रकार और धान की किस्म के अनुसार 1 दिन से लेकर 10 दिनों से अधिक तक हो सकती है।

कृषि से 10 % ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए चावल की खेती जिम्मेदार है।  AWD को नियंत्रित सिंचाई भी कहा जाता है। सुखी और कठोर मिट्टी में सिंचाई के दिनों की संख्या 1 से 10 दिनों से अधिक हो सकती है। AWD तकनीक को लागू करने का एक व्यावहारिक तरीका एक साधारण वॉटर ट्यूब का उपयोग करके क्षेत्र में जल स्तर की गहराई का ध्यान रखना पड़ता है। जब पानी का स्तर मिट्टी की सतह से 15 से0मी0 नीचे होता है, लगभग 5 से0मी0 तक सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। ऐसा हमे धान में फ्लॉवरिंग के समय करना चाहिए। पानी की कमी से बचने के लिए चावल के खेत में पानी की गहराई 5 सें0मी0 होनी चाहिए, जिससे चावल के दाने की उपज को नुकसान नहीं होता। 15 सें0मी0 के जल स्तर को ‘सुरक्षित AWD‘ कहा जाता है, क्योंकि इससे उपज में कोई कमी नहीं आएगी। चावल के पौधों की जड़ें तर बतर मिट्टी से पानी लेने में सक्षम होती है।

धान की सीधी बिजाई (डीएसआर)

यहां पहले से अंकुरित बीजों को ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन द्वारा सीधे खेत में डाला जाता है। इस पद्धति में कोई नर्सरी तैयार करने या रोपाई शामिल नहीं है। किसानों को केवल अपनी भूमि को समतल करना है और बिजाई से पहले एक सिंचाई करनी होती है।

यह पारंपरिक पद्धति से किस प्रकार भिन्न है?

धान की रोपाई में, किसान नर्सरी तैयार करते हैं जहाँ धान के बीजों को पहले बोया जाता है और पौधों में खेतों में रोपाई की जाती है। नर्सरी बीज क्यारी प्रतिरोपित किए जाने वाले क्षेत्र का 5-10% है। फिर इन पौधों को उखाड़कर 25-35 दिन बाद पानी से भरे खेत में लगा दिया जाता है।

डीएसआर का लाभः

  • पानी की बचत:डीएसआर के तहत पहली सिंचाई बुवाई के 21 दिन बाद ही आवश्यक है। इसके विपरीत रोपित धान में, जहां पहले तीन हफ्तों में जलमग्न/बाढ़ की स्थिति सुनिश्चित करने के लिए व्यावहारिक रूप से रोजाना पानी देना पड़ता है।
  • कम श्रम:एक एकड़ धान की रोपाई के लिए लगभग 2,400 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से तीन मजदूरों की आवश्यकता होती है। डीएसआर में इस श्रम की बचत हो जाती है।  
  • डीएसआर के तहत खरपतवार नाशी की लागत 2,000 रुपये प्रति एकड़ से अधिक नहीं होगी।
  • खेत के कम जलमग्न होने के कारण मीथेन उत्सर्जन को कम होता है और चावल की रोपाई की तुलना में मिट्टी के साथ ज्यादा झेडझाड़ भी नहीं होती।

रिज बेड ट्रांसप्लांटिंग

कठोर बनावट वाली मिट्टी में सिंचाई के पानी को बचाने के लिए धान को मेड़ों/क्यारियों पर लगाया जा सकता है। खेत की तैयारी के बाद (बिना पडलिंग किए), उर्वरक की एक बेसल खुराक डालें और रिजर गेहूँ की क्यारी बोने की मशीन से मेड़ों/क्यारियों तैयार करें। रिज में सिंचाई करें और मेड़ों/क्यारियों के ढलानों (दोनों तरफ) के मध्य में पौधे से पौधे की दूरी 9 सें.मी. प्रति वर्ग मीटर 33 अंकुरों को सुनिश्चित करके रोपाई करे।  

लेजर भूमि समतल

धान की रोपाई के बाद स्थापित होने के लिए पहले 15 दिनों के लिए धान के खेत को जलमग्न रखने की आवश्यकता होती है। अधिकतर नर्सरी के पौधे या तो खेत में पानी की कमी या अधिकता के कारण मर जाते हैं। इस प्रकार, उचित पौधे के खड़े होने और अनाज की उपज के लिए भूमि का समतलीकरण करना बहुत आवश्यक है। अध्ययनों ने संकेत दिया है कि खराब फार्म डिजाइन और खेतों की असमानता के कारण खेत में सिंचाई के दौरान पानी की 20-25 % मात्रा बर्बाद हो जाती है।

लेजर लेवेलर के फायदे निम्नलिखित हैः

  • सिंचाई के पानी की बचत करता है।
  • खेती योग्य क्षेत्र में लगभग 3 से 5% की वृद्धि होती है।
  • फसल स्थापना में सुधार होता है।
  • फसल परिपक्वता की एकरूपता में सुधार होता है।
  • जल अनुप्रयोग दक्षता को 50% तक बढ़ाता है।
  • फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती है (गेहूं 15%, गन्ना 42%, चावल 61% और कपास 66% )
  • खरपतवार की समस्या कम होती है और खरपतवार नियंत्रण दक्षता में सुधार होता है।