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Beer/Liquor: ऐसे बनती थी महलों में यह शराब, पूरी जानकारी के लिए पढ़ें यह खबर

हम अक्सर दुकानों में मंहगी से मंहगी Beer/शराब को देखते हैं। इन्हीं में से एक ऐसी शराब के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं जिनका सेवन देश के कई बड़े राजा किया करते थे, पढ़ें पूरी खबर।

Beer/Liquor license in india
Beer/Liquor license in india

Beer/Liquor: हम मादक पदार्थों में शराब की सबसे ज्यादा मात्रा में बिक्री को बाज़ार में देख सकते हैं। इसके सेवन का शौक आज से नहीं बल्कि बहुत पुराने समय से होता आ रहा है। बात हमारे देश की हो या किसी अन्य देश की सभी राजाओं के शौक में शराब या मदिरा एक प्रमुख पेय के रूप में उपलब्ध कराई जाती रही है। वर्तमान में यह पूरी तरह से आधुनिक तकनीकों एवं निर्धारित मात्रा के आधार पर तैयार की जाती है. लेकिन आज हम आपको उस पुराने समय में शराब को तैयार की जाने की पूरी विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं कि पहले कैसे बनती थी यह शराब।

गूर से शराब बनाने की विधि

सबसे पहले, पके हुए अंगूरों को ताजगी से चुनें. पके हुए अंगूर मीठे और पके हुए रंग के होते हैं. अंगूरों को धोकर अच्छी तरह से साफ करें।अंगूरों को हल्के हाथों से मसलकर उसमें लगी किसी भी प्रकार की गन्दगी को साफ़ कर लें. अंगूरों के बीज और खाली स्किन को हटा दें। आप इसे कर्पेट रोलर या हाथों से मसलकर कर सकते हैं। इसके बाद आपको एक बड़े प्रेशर कुकर में इसको रख कर 10 से 15 मिनट तक पकाना होगा। अंगूरों को कुकर में कुछ इस तरह से रखना होगा की अंगूर पूरी तरह से पानी में डूब जाएं। कुकर में इनको पकाने के बाद इनका रस आगे बनने वाली वाइन के लिए तैयार हो जाता है। इतनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद अंगूरों को एक साफ़ कपड़े या सूखी जार में छान लें।

अंगूरों का रस किसी बड़े पतीले में ले लें और उसमें चीनी डालें। सामान्य रूप से, 1 किलोग्राम अंगूरों के लिए 500 ग्राम से 1 किलोग्राम चीनी का उपयोग किया जाता है। चीनी को अंगूर रस में घोल दें. अब, अंगूर रस को बड़ी-बड़ी बोतलों में भरा जाना होता है। इन सभी बोतलों को एक अँधेरे और ठंडी जगहों पर रखा जाता है। वैसे तो यह जितनी पुरानी हो जाती है बाज़ार में इसके दाम उतने ही ज्यादा मिलते हैं। लेकिन अगर आप इसे 2 सप्ताह से 2 महीने तक भी बोतलों में बंद करके रखते हैं तो भी आपको इसके स्वाद में कोई कमी नहीं मिलेगी। वाइन के पूरी तरह से तैयार हो जाने के बाद इसको छान कर प्रयोग में ला सकते हैं।

सरकारी तौर पर प्रतिबंधित है यह शराब

आपको जानकारी के लिए बता दें कि यह लेख केवल आपको जानकारी देने मात्र के लिए तैयार किया गया है। सरकार द्वारा इस तरह की शराब का निर्माण करना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। कई बार इसको बनाते समय जब अनुपातिक मात्रा में गड़बड़ी हो जाने पर लोगों की मौत भी हो जाती है। भारत के बिहार राज्य में तो शराब की बिक्री या सेवन पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।

केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा इसके निर्माण को रोकने के लिए कई तरह के क़ानून बनाये गए हैं। जिनमें जुर्माने से लेकर कई वर्षों की जेल तक का प्रावधान है।

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Sarkari Naukri: एलएलबी करने वालों के लिए राजस्थान में निकली है बंपर भर्ती, नोटिफिकेशन पढ़कर तुरंत करें आवेदन

अगर आपने एलएलबी किया है तो राजस्थान सरकार में नौकरी पाने का यह सुनहरा अवसर है। नोटिफिकेशन देखकर इस तारीख से पहले कर लें जॉब के लिए अप्लाई।

एलएलबी करने वालों के लिए राजस्थान में वैकेंसी
एलएलबी करने वालों के लिए राजस्थान में वैकेंसी

अगर आपने एलएलबी किया है या किसी कॉलेज में अभी भी एलएलबी की पढ़ाई कर रहे हैं तो राजस्थान में सरकारी नौकरी पाने का यह सबसे सुनहरा अवसर है। राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) ने अधिसूचना जारी कर जूनियर लीगल ऑफिसर (जेएलओ) पद पर भर्ती के लिए इच्छुक उम्मीदवारों से आवेदन मांगा है। कैंडिडेट नोटिफिकेशन को देखकर तुरंत इस नौकरी के लिए अप्लाई कर सकते हैं। लेकिन आवेदन करने से पहले कुछ जरुरी बातों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। आइये, उनके बारे में जानें।

कुल इतने पद पर वैकेंसी

आरपीएससी ने जेएलओ पद पर कुल 140 भर्तियां निकाली हैं। इच्छुक कैंडिडेट ऑनलइन के माध्यम से इस जॉब के लिए अप्लाई कर सकते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कैंडिडेट को राजस्थानी भाषा या कल्चर की जानकारी होना जरुरी है। उम्मीदवारों का चयन लिखित परीक्षा, योग्यता व अन्य प्रक्रियाओं के बाद होगा। हालांकि, इस पद पर सैलरी कितनी अभी तक इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। वहीं, इस भर्ती के लिए एग्जाम कब होगा, नोटिफिकेशन में यह भी नहीं बताया गया है।

इतनी है आवेदन की फीस

इस पद के लिए उम्र की सीमा 21-40 वर्ष रखी गई है। सामान्य और अन्य राज्यों के युवाओं के लिए आवेदन की फीस 600 रुपये रखी गई है। वहीं, ओबीसी/बीसी/ एससी/एसटी कैटगरी के कैंडिडेट को आवेदन की फीस 400 रुपये देनी है। आवेदन की प्रक्रिया 10 जुलाई, 2023 से शुरू होगी। फॉर्म भरने की आखिरी तारीख 9 अगस्त है।

अगर फॉर्म में किसी प्रकार की गलती हो जाती है तो करेक्शन का शुल्क 500 रुपये रखा गया है. ऐसे में युवाओं को ध्यान से फॉर्म भरना होगा। इससे अधिक जानकारी के लिए हमारे द्वारा दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।

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Tobacco Business: तंबाकू का बिजनेस ऐसे करें शुरू, जानें लाइसेंस की फीस और आवेदन प्रक्रिया।

आज हम आपके लिए तंबाकू के व्यवसाय से जुड़ी सभी जानकारी लेकर आए हैं। इस लेख में आपको इसके लाइसेंस फीस से लेकर जुर्माने तक की संपूर्ण सूचना मिलेगी।

Tobacco Business
Tobacco Business

आज के समय में ज्यादातर व्यक्ति नौकरी के साथ अपना खुद का बिजनेस भी शुरु करना चाहते हैं। ताकि वह कम समय में अधिक आय कमा सकें। इसी कड़ी में आज हम आपके लिए एक ऐसा व्यवसाय लेकर आए हैं, जिसे शुरु करके आप कुछ ही दिनों में हजारों-लाखों रुपए सरलता से कमा सकते हैं।दरअसल, जिस बिजनेस की हम बात कर रहे हैं वह तंबाकू का बिजनेस (Tobacco Business) है जिसे शुरु करने के लिए आपको कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना होता है। तो आइए आज के इस लेख में तंबाकू (Tobacco) के बिजनसे से जु़ड़ी सभी जानकारियों को विस्तार से जानते हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पुराने समय से ही गांव व शहर में बुजर्गों के द्वारा हुक्के या फिर चिल्म में तंबाकू को डालकर पीने की आदत है। आज के इस दौर में भी लोगों के द्वारा इसका सेवन किया जाता है और साथ ही तंबाकू का इस्तेमाल अन्य कई तरह के कार्य में भी किया जाता है, जैसे कि पूजा सामाग्री और कई तरह की औषधि दवाईयाँ बनाई जाती हैं।

तंबाकू का व्यवसाय शुरू करने के लिए आपको सरकार से लाइसेंस की आवश्यकता होती है. इसके लिए वाणिज्य और उघोग मंत्रालय के तहत ही तंबाकू बोर्ड से इसका लाइसेंस जारी किया जाता है. विभाग के द्वारा तंबाकू व्यवसाय के लाइसेंस की प्रक्रियाओं को आसान व सुविधाजनक बनाने के लिए एक देशव्यापी पोर्टल भी शुरु किया हुआ है, जिसके चलते तंबाकू का लाइसेंस लेने के लिए व्यक्ति को अधिक इंतजार न करना पड़े और इससे जुड़ी सभी जानकारी भी सरलता से मिल सके।

क्यों जारी किया जाता है तंबाकू का लाइसेंस

सरकार के द्वारा इस लाइसेंस को जारी करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि देशभर में कितनी संख्या में तंबाकू की बिक्री (Sale of Tobacco) व खरीद होती है। इसके हिसाब-किताब से लेकर अन्य जरूरी जानकारी जैसे कि- तंबाकू उत्पादों के निर्यातक, तंबाकू के निर्यातक, तंबाकू के विक्रेता, वर्जीनिया तंबाकू के प्रोसेसर, निर्माता वर्जीनिया तंबाकू, तंबाकू के पैकर्स आदि की सूचना मिल सके।

तंबाकू लाइसेंस के लिए जरूरी कागजात

  • बैंक खाता नंबर
  • GST नंबर
  • पैन कार्ड, आधार कार्ड आदि सरकारी आईडी
  • निवास प्रमाण पत्र
  • गोदाम के कागजात
  • मोबाइल नंबर

ऐसे बनवाएं तंबाकू का लाइसेंस

बता दें कि तंबाकू का लाइसेंस नगर पालिका, नगर निगम या नगर परिषद के द्वारा जारी किया जाता है। इसलिए ऊपर बताए गए इन सभी कागजात की फोटो कॉपी अपने नजदीकी नगर निगम में जमा करवाएं, ताकि वह इस बात की सुनिच्ति कर सकें कि आप जिस क्षेत्र में तंबाकू की दुकान या फिर फार्म को खोलने वाले हैं, वह उचित स्थान पर है कि नहीं। जांच पड़ताल होने के बाद ही विभाग के द्वारा ही आपको तंबाकू का बिजनेस शुरू करने के लिए लाइसेंस (License to start Tobacco Business) दिया जाएगा।

तंबाकू लाइसेंस के लिए आवेदन फीस

अगर आप तंबाकू की दुकानदार (Tambako Shop) फेरी के लिए ही लाइसेंस चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पंजीकरण के दौरान 7200 रुपए तक आवेदन शुल्क का भुगतान करना होगा।

इसके अलावा थोक दुकानदारों के लिए यह शुल्क 5,000 रुपए तय किया गया है।

मिली जानकारी के मुताबिक, इस लाइसेंस के लिए अस्थाई दुकान को हर साल पंजीकरण के लिए 200 रुपए का भुगतान करना होगाा और वहीं स्थाई दुकान के लिए हर साल 1000 रुपए है।

लाइसेंस न होने पर इतना देना होगा जुर्माना

अगर बाजार में किसी भी दुकानदार के पास तंबाकू बेचने का लाइसेंस (Tambaku Bechne ka licence) नहीं पाया जाता है, तो उसे कम से कम 2000 रुपए तक का जुर्माना देना होगा। वहीं दूसरे बार पकड़े जाने पर जुर्माने की राशि 5000 रुपए होगी और तीसरी बार पकड़े जाने पर राशि दूसरे जुर्माने की ही रहेगी और साथ ही तंबाकू की सभी सामाग्री भी जब्त कर ली जाएगी। इसके अलााव दुकानदार के खिलाफ केस भी दर्ज किया जाएगा।

अगर आप अपना तंबाकू का बिजनेस सुचारु रुप से चलाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको तंबाकू बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट पर हमेशा अपडेट रहना होगा। क्योंकि सरकार के द्वारा इस व्यवसाय के लिए नियम में बदलाव भी किए जाते रहते हैं।

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Bone Problem: अगर हड्डी की समस्या से हैं परेशान तो अपने डाइट में तुरंत शामिल करें ये चीजें।

अगर इस भाग दौड़ भरी जीवन में आप हड्डी संबंधित समस्याओं को दूर रखना चाहते हैं तो यह खबर आपके लिए है। आज हम आपको हड्डी मजबूत रखने के उपाय बताने जा रहे है।

हड्डी की समस्या दूर रखने के लिए करें इन चीजों का सेवन
हड्डी की समस्या दूर रखने के लिए करें इन चीजों का सेवन

आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में भारी संख्या में लोग हड्डी संबंधित समस्याओं से परेशान हैं। उन्हें इस रोग को दूर रखने के लिए विभिन्न दवाओं का सहारा लेना पड़ता है। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए कहीं से भी सही नहीं है। हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए ऐसे संतुलित आहार का सेवन करना महत्वपूर्ण है जिसमें पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल हों। आज हम आपको ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं. जिनका सेवन करके हड्डी को मजबूत बनाया जा सकता है. तो आइये उनपर एक नजर डालें।

कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थों का करें सेवन

डॉक्टर सोनाली बताती हैं कि हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए शरीर में कैल्शियम की मात्रा भरपूर रहनी चाहिए। इसलिए कैल्शियम बढ़ाने के लिए नियमित रूप से डेयरी उत्पाद (दूध, पनीर, दही), पत्तेदार हरी सब्जियां, टोफू और बादाम का सेवन करना जरुरी है।

विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थ का करें सेवन

शरीर में कैल्शियम के अवशोषण के लिए विटामिन डी महत्वपूर्ण है। विटामिन डी का सबसे अच्छा प्राकृतिक स्रोत सूरज की रोशनी को माना जाता है। लेकिन कई बार केवल सूरज की रोशनी से पर्याप्त मात्रा में शरीर में विटामिन डी नहीं पहुंच पाता है। ऐसे में फोर्टिफाइड डेयरी उत्पाद, अंडे की जर्दी और फोर्टिफाइड अनाज के माध्यम से शरीर में विटामिन डी को बढ़ाया जा सकता है।

मैग्नीशियम और फॉस्फोरस युक्त प्रोडक्ट का करें सेवन

मैग्नीशियम और फॉस्फोरस भी हड्डियों को मजबूत रखने का काम करते हैं। मैग्नीशियम के अच्छे खाद्य स्रोतों में नट्स (बादाम और काजू), बीज (कद्दू के बीज और अलसी के बीज), फलियां (काली बीन्स और छोले), पत्तेदार हरी सब्जियां, साबुत अनाज (जई और ब्राउन चावल) और डार्क चॉकलेट शामिल हैं। वहीं फॉस्फोरस डेयरी उत्पादों, पोल्ट्री, मछली जैसे खाद्य पदार्थों में पाया जाता है।

फल और सब्जियों का करें सेवन

फलों और सब्जियों से भरपूर आहार शरीर में विभिन्न प्रकार के विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सिडेंट प्रदान करते हैं। जो हड्डियों सहित समस्त स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। इसलिए अपने भोजन और नाश्ते में ज्यादा से ज्यादा फलों व सब्जियों को शामिल करने का लक्ष्य रखें।

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Rose Apple से हर साल किसान कर सकते हैं मोटी कमाई, जानें किन-किन कामों में होता है इसका उपयोग

रोज एप्पल से किसान जबरदस्त कमाई कर सकते हैं. आइये इसके बारे में विस्तार से जानें.

रोज एप्पल से अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं किसान
रोज एप्पल से अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं किसान

रोज एप्पल दुनिया के चर्चित फलों में से एक है. इसका पेड़ 15 मीटर (50 फीट) तक ऊंचा होता है. इसमें सुगंधित फूल होते हैं जो आमतौर पर हल्के हरे या सफेद रंग के होते हैं. रोज एप्पल दिखने में बेल या नाशपाती के आकार के होते हैं. इसकी त्वचा पतली और मोमी होती है. रोज एप्पल रसदार और थोड़ा मीठा होता है. खास बात यह है कि इसकी बनावट तरबूज के समान होती है. इसे खाने पर ऐसा महसूस होता है जैसे कि हम नाशपाती, सेब और गुलाब जल को एकसाथ मिलाकर खा रहे हैं. रोज एप्पल किसानों के लिए आर्थिक रूप से काफी फायदेमंद साबित हो सकता है. तो आइये इसके बारे में विस्तार से जानें.

स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है रोज एप्पल

रोज एप्पल आम तौर पर ताजा खाया जाता है. इनका उपयोग जैम, जेली और डेजर्ट बनाने में भी किया जा सकता है. कुछ क्षेत्रों में, इसका रस निकालकर लिक्विड आइटम भी बनाने में उपयोग किया जाता है. रोज एप्पल विटामिन ए और सी के साथ-साथ फाइबर से भी भरपूर होते हैं. माना जाता है कि रोज एप्पल कई तरह से स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाते हैं. यह इम्यून सिस्टम और पाचन स्वास्थ्य को बेहतर करने में भी मदद करते हैं.

इन इलाकों में दिखते हैं रोज एप्पल के पेड़

भारत में रोज एप्पल मुख्य रूप से देश के दक्षिणी और उत्तरपूर्वी हिस्सों में पाए जाते हैं. जहां की जलवायु इनके विकास के लिए उपयुक्त है. इसका पेड़ ज्यादातर कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और केरल में नजर आते हैं. रोज एप्पल के पेड़ उष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपते हैं. वे 15 से 38 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान को झेल सकते हैं. इसके पेड़ अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी को पसंद करते हैं. रोज एप्पल के पेड़ों को धूप वाले जगहों पर लगाया जाना चाहिए. जहां पेड़ों के बीच पर्याप्त दूरी हो. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि रोज एप्पल की कटाई आम तौर पर तब की जाती है जब वे पूरी तरह से पक जाते हैं. क्योंकि तोड़ने के बाद वे आगे नहीं पकते हैं.

हर साल मिलता है इतना उत्पादन

रोज एप्पल के पेड़ों की उपज उम्र, विविधता और प्रबंधन जैसे कई कारकों पर निर्भर होती है. आम तौर पर, एक परिपक्व पेड़ हर साल लगभग 150 से 300 किलोग्राम फल दे सकता है. कहा जाता है कि पौधा लगाने के बाद लगभग एक साल बाद रोज एप्पल का पेड़ फल देने के लिए तैयार हो जाता है. इसका इस्तेमाल पहले तो फल के रूप में किया जाता है. इसके अलावा, इसे मिठाई, जैम और जेली जैसे विभिन्न प्रोडक्टस बनाने में किया जाता है. इसका रस वाइन या सिरके बनाने में भी उपयोग होता है.

वहीं, रोज एप्पल से निकाले रस की सुगंध काफी अच्छी होती है, जो गुलाबों की याद दिलाता है. इसे सुगंधित चिकित्सा, परफ्यूम और सुगंधित उत्पादों में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा, इस फल का इस्तेमाल कुछ दवाओं को बनाने में भी किया जाता है. रोज एप्पल के पेड़ की लकड़ी काफी मजबूत होती है. इसलिए इन्हें भी कई उपयोग में लाया जाता है. बाजार में एक किलोग्राम रोज एप्पल की कीमत लगभग 200 रुपये होती है. जिससे यह अंदाजा लगा सकते हैं कि इसके एक पेड़ से साल में कितनी कमाई हो सकती है.

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Weather Update: देश के सभी हिस्सों में भारी बारिश का अलर्ट, जाने अपने प्रदेश का हाल

देश के सभी प्रदेशों में बारिश के चलते गर्मी से जहां एक ओर राहत है तो वहीं ज्यादा बारिश के कारण भी लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अपने प्रदेश के मौसम की ताज़ा अपडेट जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर।

Weather Update
Weather Update

पूरे देश में हो रही बारिश के चलते जहां सावन में एक ओर गर्मी से राहत के आसार हैं तो वहीं लगातार हो रही बारिश के कारण जगह-जगह जलभराव जैसी स्थितियां बनती जा रही हैं। देश की राजधानी दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से अलग-अलग स्थानों पर हल्की से भारी बारिश हो रही है। मौसम विभाग की मानें तो आज दिल्ली में कई स्थानों पर बारिश होने की संभावना है। वहीं देश के अन्य प्रदेशों में अलग-अलग स्थानों पर भी हल्की से भारी बारिश हो सकती है। तो आइये जानते हैं अपने प्रदेश के मौसम का हाल।

देश के इन क्षेत्रों में होगी भारी बारिश

कोंकण और गोवा में अलग-अलग स्थानों पर भारी वर्षा होने की संभावना है। वहीं महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, उत्तराखंड, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, ओडिशा, झारखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश, विदर्भ, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, यनम, तमिलनाडु, पुडुचेरी, कराईकल, केरल और माहे के कुछ जगहों पर भी भारी बारिश हो सकती है।

तूफानी हवाओं के चलते जारी किया गया अलर्ट

पूर्वमध्य अरब सागर के निकटवर्ती इलाकों में तूफानी मौसम की गति 40-45 किलोमीटर प्रति घंटे तक पहुंच रह सकती है। वहीं केरल-कर्नाटक-महाराष्ट्र-गुजरात के तटीय इलाकों में 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलने की संभावना है।

जिस कारण मछुआरों को इन क्षेत्रों में न जाने की सलाह दी गई है।

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Cordyceps Benefits: एक ऐसा कवक जिसमें हैं मानव जीवन को निरोगी रखने के कई औषधीय गुण

कॉर्डिसेप्स या कीड़ाजड़ी एक ऐसा कवक है जो मानव जीवन के स्वास्थ्य के कई सुधारों के लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी है। तो आइये जानते हैं कि क्यों इतना उपयोगी है यह पौधा।

Cordyceps
Cordyceps

कॉर्डिसेप्स या कीड़ाजड़ी, एक अद्वितीय और दिलचस्प औषधीय कवक है जो पारंपरिक चीनी और तिब्बती चिकित्सा में सदियों से प्रयोग होता रहा है। यह उल्लेखनीय जीव Cordyceps genus से संबंधित है और इसमें शक्तिशाली उपचार गुणों वाली विभिन्न प्रजातियां शामिल हैं। एक समृद्ध इतिहास और बहुत सारे स्वास्थ्य लाभों के साथ, कॉर्डिसेप्स ने आधुनिक समय में महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है। इस लेख का उद्देश्य कॉर्डिसेप्स की दुनिया को गहराई से जानने के साथ में इसकी उत्पत्ति, पारंपरिक उपयोग और इसके संभावित चिकित्सीय अनुप्रयोगों का समर्थन करने वाले वैज्ञानिक प्रमाणों की खोज करना है।

उत्पत्ति और आवास

कॉर्डिसेप्स मुख्य रूप से हिमालय, तिब्बत और एशिया के अन्य हिस्सों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। यह ठंडे, पहाड़ी वातावरण में पनपता है, जहां यह कुछ कीड़ों, विशेषकर कैटरपिलर के लार्वा को बसाता है। यह ऊतकों को खाता है। इसके अनूठे जीवन चक्र के परिणामस्वरूप विशिष्ट फलने वाले शरीर का निर्माण होता है जिसे कॉर्डिसेप्स के नाम से जाना जाता है।

कॉर्डिसेप्स की प्रजातियां

कॉर्डिसेप्स की कई प्रजातियों के माध्यम से आज वैश्विक स्तर पर कई औषधियों का निर्माण हो रहा है। जिनमें से कुछ प्रमुख प्रजातियां निम्न हैं।

  • कॉर्डिसेप्स सिनेंसिस (Cordyceps sinensis)
  • कॉर्डिसेप्स मिलिटेरिस (Cordyceps militaris)
  • कॉर्डिसेप्स सिंगलीनसिस (Cordyceps militaris)
  • कॉर्डिसेप्स सुपरबा (Cordyceps superba)
Cordyceps
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पारंपरिक उपयोग

कॉर्डिसेप्स का पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में उपयोग का एक लंबा इतिहास है। प्राचीन चिकित्सकों ने जीवन शक्ति बढ़ाने, सहनशक्ति में सुधार करने और दीर्घायु को बढ़ावा देने की क्षमता के लिए इसे महत्व दिया जाता था। चीनी और तिब्बती चिकित्सा में, कॉर्डिसेप्स को गुर्दे और फेफड़ों के लिए एक शक्तिशाली टॉनिक के रूप में प्रयोग किया गया था, माना जाता है कि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है, ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है और समग्र कल्याण को बढ़ाता है। इसका उपयोग श्वसन स्वास्थ्य का ध्यान रखने, थकान को ख़त्म करने और यौन क्रिया में सुधार के लिए भी किया जाता था।

वैज्ञानिक अनुसंधान और स्वास्थ्य लाभ

हाल के वर्षों में, कॉर्डिसेप्स ने महत्वपूर्ण वैज्ञानिक रुचि को आकर्षित किया है, जिससे इसकी चिकित्सीय क्षमता पर व्यापक शोध हुआ है। कॉर्डिसेप्स से जुड़े कुछ प्रमुख स्वास्थ्य लाभ यहां दिए गए हैं:-

प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करना: कॉर्डिसेप्स विभिन्न प्रतिरक्षा कोशिकाओं के उत्पादन और गतिविधि को उत्तेजित करके प्रतिरक्षा कार्य को बढ़ाने के लिए जाना जाता है, जिससे संक्रमण और बीमारियों के खिलाफ शरीर की रक्षा होती है।

ऊर्जा और सहनशक्ति में वृद्धि: कॉर्डिसेप्स सेलुलर स्तर पर ऊर्जा उत्पादन में सुधार करता है, जिससे सहनशक्ति और व्यायाम प्रदर्शन में वृद्धि होती है। शारीरिक प्रदर्शन को बढ़ाने की अपनी क्षमता के कारण इसने एथलीटों और फिटनेस उत्साही लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल की है।

श्वसन स्वास्थ्य: कॉर्डिसेप्स का उपयोग पारंपरिक रूप से श्वसन संबंधी बीमारियों के लिए किया जाता रहा है, और वैज्ञानिक अध्ययनों ने फेफड़ों के स्वास्थ्य में सुधार करने और श्वसन क्रिया में सुधार करने में इसको प्रयोग किया जाता है। यह अस्थमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अन्य श्वसन स्थितियों से जुड़े लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

सूजनरोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुण: कॉर्डिसेप्स शक्तिशाली सूजनरोधी और एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव प्रदर्शित करता है, जो इसकी चिकित्सीय क्षमता में योगदान देता है। ये गुण ऑक्सीडेटिव तनाव से निपटने, सूजन को कम करने और विभिन्न पुरानी बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं।

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मधुमेह के इलाज में: शोध से पता चलता है कि कॉर्डिसेप्स इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार और ग्लूकोज के पाचन को बढ़ाकर रक्त शर्करा के स्तर को विनियमित करने में मदद करता है। इसे मधुमेह वाले व्यक्तियों या इस स्थिति से गुजरने वाले लोगों के लिए संभावित रूप से जरुरी उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।

यौन स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता: कॉर्डिसेप्स का उपयोग पारंपरिक रूप से यौन स्वास्थ्य का समर्थन करने और प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है। अध्ययनों ने यौन रोग को कम करने और प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में इसका उपयोग किया जाता है।

कॉर्डिसेप्स, औषधीय कवक, शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है। इसका समृद्ध पारंपरिक उपयोग, उभरते वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ मिलकर, कई प्रकार के  स्वास्थ्य के लिए एक प्राकृतिक उपचार के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। चल रहे अनुसंधान के साथ, कॉर्डिसेप्स और भी अधिक चिकित्सीय अनुप्रयोगों को खोल सकता है, जो मानव स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार के लिए आशाजनक संभावनाएं प्रदान करता है।

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भांग की खेती किसानों के लिए फायदेमंद, जानें कैसे मिलेगा लाइसेंस

भांग की खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। आइए जानें कैसे मिलेगा, इसके लिए लाइसेंस।

भांग की खेती से किसानों की जबरदस्त कमाई
भांग की खेती से किसानों की जबरदस्त कमाई

धान-गेहूं व फल-फूल की खेती से किसानों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है। ऐसे में भांग की खेती अन्नदाताओं के लिए लाभदायक साबित हो सकती है. लेकिन भांग व गांजा की खेती के लिए राज्य में प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है। सरकार की तरफ से लाइसेंस मिलने के बाद ही किसान भांग की खेती कर सकते हैं। तो आइए जानें भारत में बड़े पैमाने पर कहां-कहां होती है भांग की खेती व कैसे मिलता है लाइसेंस और कितना होता है मुनाफा।

कई राज्यों में भांग की खेती वैध

पहले पूरे देश में भांग की खेती पर प्रतिबंध था. हाल ही में कई राज्यों में भांग की खेती को वैध कर दिया गया है। फिर भी, इसकी खेती के लिए प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य है। लाइसेंस को लेकर हर राज्य में अलग-अलग नियम हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भांग की खेती शुरू करते समय स्थानीय समाचारों पर गौर करना आवश्यक है, क्योंकि प्रशासन आए दिन इसको लेकर नियम में बदलाव करता रहता है।

ऐसे मिलती है अनुमति

उत्तराखंड के किसान चंदन बताते हैं कि उनके राज्यों में भांग की खेती के लिए किसानों को सबसे पहले खेत का विवरण, क्षेत्रफल व भंडारण की व्यवस्था के बारे में लिखित रूप से डीएम को बताना होता है। उत्तराखंड में प्रति हेक्टेयर लाइसेंस शुल्क एक हजार रुपये है। वहीं, अगर दूसरे जिले से भांग का बीज लाना है, तब भी किसान को डीएम से अनुमति लेनी पड़ती है।

।अधिकारी को कभी-कभी फसल का सैंपल भी देना होता है. इसके अलावा, अगर भांग की फसल तय जमीन से ज्यादा इलाके में लगाई गई तो प्रशासन की तरफ से उस फसल को नष्ट कर दिया जाता है। वहीं, मानकों का उल्लघंन करने पर भी फसल को तबाह कर दिया जाता है। सरकार की तरफ से इसके लिए कोई मुआवजा भी नहीं मिलता है।

यहां होती है बड़े पैमाने पर खेती

बता दें कि भारत में बड़े पैमाने पर भांग की खेती उत्तर प्रदेश (मुरादाबाद, मथुरा, आगरा, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी, फैजाबाद और बहराइच), मध्य प्रदेश (नीमच, उज्जैन, मांडसौर, रतलाम और मंदल), राजस्थान (जयपुर, अजमेर, कोटा, बीकानेर और जोधपुर), हरियाणा (रोहतक, हिसार, जींद, सिरसा और करनाल) और उत्तराखंड (देहरादून, नैनीताल, चमोली और पौड़ी) में होती है।

भांग का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। इससे कई दवाइयां बनाई जाती हैं। इसे मस्तिष्क संबंधी विकारों, निद्रा विकारों और श्वसन संबंधी समस्याओं का इलाज करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा भांग को पारंपरिक औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसे जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर दवा तैयार किया जाता है। जिसका अलग-अलग रोगों के इलाज में प्रयोग होता है। इससे आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि भांग की खेती किसानों के लिए कितनी फायदेमंद साबित हो सकती है।

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पशुपालकों को हो रही बड़ी समस्या और उनके समाधान

पशुपालक किसानों के लिए अच्छी नस्ल के गाय-भैंस का व्यवसाय करना बेहद मुश्किल है। इसलिए कई बारपालकों को इसका नुकसान भी झेलना पड़ता है। ऐसे में हम इस लेख के माध्यम से पशुपालकों को हो रही सबसे बड़ी समस्याओं और उनके समाधान पर चर्चा करेंगे।

डेयरी फार्मिंग व्यवसाय
डेयरी फार्मिंग व्यवसाय

फर्म एक ऐसा सेक्टर है, जो भारत के 8 करोड़ परिवारों को डायरेक्ट और शोरूम के रूप में बनाती है। यही नहीं नामित क्षेत्र देश की जाति में लगभग पांच प्रतिशत योगदान देता है।

दुग्ध उत्पाद में भारत ग्लोबल लीडर

देश में ग्लोबल प्रोडक्शन का एक बड़ा कारण यह भी है कि भारत में ग्लोबल प्रोडक्शन के मामले में यह एक बड़ा कारण है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में विश्व में कुल दुग्ध उत्पादन 24 प्रतिशत प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर है। ये तो पहले नाम का क्षेत्र होने वाले फायदे हैं, लेकिन नामचीन क्षेत्र का एक और नाम है जिस पर शायद किसी का ध्यान जाता है।

नामांकित क्षेत्र में होने वाले नुकसान के बड़े का

देश के किसान  बिजनेस  से जुड़े फायदे की वजह से इस ओर सबसे ज्यादा रुझान है। लेकिन हाल के दिनों में डेनमार्क क्षेत्र से होने वाले उत्पादन में काफी हद तक कमी देखी जा रही है, जिससे कई पशुपालकों को नुकसान भी झेलना पड़ रहा है। हम अक्सर किसानों की कहानियां सुनाते हैं लेकिन ऐसे कई किसान भी नुकसान झेलना पड़ रहे हैं या पड़ रहे हैं। इसका समाधान हम इसी लेख में आपके साथ साझा करेंगे लेकिन पहले नुकसान के बड़े पहलुओं पर नजर डालते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

उत्पादन बढ़ाने के लिए सरल पशुधन का ना मिलना

अच्छी नस्ल की गाय-भैंस की कमी की समस्या

पशुधन व्यापार में सीमन भ्रूणहत्या की समस्या

गार्बहिन शटर की सही तरीके से देखभाल नहीं हो पाती

पशुओं में होने वाले जानवरों का सही तरीके से इलाज नहीं हो पाना

जैसे सभी को पता है कि अच्छी नस्ल के गाय-भैंस अधिक मात्रा में दुग्ध उत्पादन करते हैं। लेकिन देश के किसानों को अच्छी नस्ल की दुधारू पशुओं की कमी के कारण काफी नुकसान हुआ है। क्योंकि आकडों को देखने के लिए भारतीय दुधारू पत्थरों की श्रृंखला दुनिया के सबसे अधिक उत्पादक देशों की तुलना में कम है। कम डेज़ी के कारण किसानों को दूधारू पालने से आय नहीं हो रही है। जब देश में ही दुधारू जनजाति की दुकानें कम होती हैं तो यहां के किसानों के लिए अच्छी नस्ल और ज्यादा दूध देने वाली गाय-भाइयों को खरीदना बेहद मुश्किल हो जाता है। किसानों को इसके लिए अपने क्षेत्र में जानवरों के लिए लाईव वाले मेले का इंतजार करना पड़ता है और इसमें भी किसानों को बढ़िया नस्ल और अच्छी नस्ल के जानवर ही मिले इसकी कोई सार्थकता नहीं है।

जैसे कि अगर कोई किसान बिहार का है और हरियाणा से अच्छी नस्ल का कोई गाय-भैंस खरीदना चाहता है तो उसके लिए पहले वहां जाना बेहद मुश्किल होगा और अगर वह भी चला गया, तो वहां से सबसे अच्छा पैसा खर्च कर ऐसे जानवरों को दूर ले जाना बेहद मुश्किल और महंगा होगा। ऐसा ही है दुधारू उद्योग को बेचने वाले किसानों के साथ भी। अगर कोई किसान अपने जानवर को बेचकर पैसा कमाना चाहता है तो उसे भी इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पशुपालक किसानों को सीमन भ्रूणहत्या की चोरी और भी बिल्कुल ऐसी ही आशंकाओं से जूझना है। अच्छी नस्ल के सीमन और भ्रूण भ्रूण हत्या क्षेत्र के विस्तार के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं। हालाँकि सभी इंडस्ट्रीज़ के समाधान हमारे पास हैं।

पशुपालकों की ऑनलाइन समाधान

असल में, केंद्र सरकार पशुधन व्यापार से जुड़े किसानों को हो रही कठिनाई के परिदृश्य को देखते हुए ऑफ़लाइन पोर्टल और ऑफ़लाइन ऐप चलाती है। ये पोर्टल और ऐप सीताफल के पशुपालक किसानों के लिए किसी भी तरह की चमक से कम नहीं है, क्योंकि इसका इस्तेमाल कर किसान घर बैठे दूधारू की खरीद और ब्रिकी कर सकते हैं। ना सिर्फ किराए को बल्कि सीमन, भ्रूण हत्या पशुधन की सभी जरूरी चीजों को भी खरीद और बेच सकते हैं। ऐसे में आइए इस ऑनलाइन पोर्टल और ऐप के बारे में जानते हैं-

ई-पशु हाट पोर्टल (ई-पशु हाट पोर्टल)

ई-गोपाला ऐप (ई-गोपाला ऐप)

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सरकार की ऐसी 5 योजनाएं जो कृषि मशीनों पर देंगी 80% तक सब्सिडी

अगर आप हाल-फिलहाल में खेती करने के लिए कृषि यंत्र (Agricultural machinery) को खरीदने जा रहे हैं, लेकिन आपके पास इन्हें खरीदने के लिए धन नहीं है तो घबराएं नहीं सरकार की इन 5 सरकारी योजनाओं में आवेदन करके कृषि उपकरणों को खरीदने का सपना पूरा कर सकते हैं।

सरकार की 5 कृषि यंत्र योजनाएं
सरकार की 5 कृषि यंत्र योजनाएं

हमारे देश में ज्यादातर लोग खेती-किसानी (Farming) से अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के किसान भाइयों को अच्छी फसल पाने के लिए कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. पहले के समय में किसानों को खेती के लिए अधिक उपकरणों की जरूरत नहीं पड़ती थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है ठीक उसी तरह से किसानों के द्वारा खेती करने के तरीकों में भी बदलाव हो रहा है। इस दौर में किसानों के द्वारा अधिक कमाई के लिए खेतों में आधुनिक खेती (Modern Agriculture) की जा रही है। इसके लिए उन्हें कई तरह के कृषि यंत्रों की जरूरत पड़ती है। लेकिन यह खेती-बाड़ी की मशीनें बाजार में बेहद महंगी आती हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि देश में कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो पैसे की कमी के चलते खेती के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों को नहीं खरीद पाते हैं। इन्हीं किसानों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के छोटे-बड़े कृषि उपकरणों के लिए कई तरह की बेहतरीन योजनाएं चला रखी हैं। ताकि किसान इन योजनाओं में आवेदन करके सरलता से खेती के लिए कृषि मशीनों (Agricultural Machines) को खरीद कर लाभ प्राप्त कर सकें। आज हम आपने इस लेख में सरकार की ऐसी 5 कृषि उपकरणों की बेहतरीन योजनाओं की पूरी जानकारी लेकर आए हैं।

कृषि मशीन की योजनाओं पर एक नजर

  • पीएम किसान ट्रैक्टर योजना
  • हार्वेस्टर सब्सिडी योजना
  • राजस्थान कृषि श्रमिक संबल मिशन योजना
  • कृषि यंत्र अनुदान योजना
  • फसल अवशेष प्रबंधन योजना के अंतर्गत कृषि यंत्रों पर अनुदान

आइए इन सभी सरकारी योजनाओं के बारे में एक-एक करके विस्तार से जानते हैं…

पीएम किसान ट्रैक्टर योजना (PM Kisan Tractor Scheme) – सरकार की इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को खेती से अधिक से अधिक आय कमाकर देना है। सरकार ने इस योजना की शुरुआत साल 2022 में की थी, जिसमें किसानों के द्वारा ट्रैक्टर खरीदने पर सरकार 20 से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी उपलब्ध करवाती है। अगर आप भी हाल फिलहाल में खेती के लिए ट्रैक्टर (Tractor for Farming) खरीदने वाले हैं, तो आप पीएम किसान ट्रैक्टर योजना में आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए आप अपने नजदीकी जन सेवा केंद्र में जाकर संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा कई राज्यों में इस योजना के लिए किसानों के आवेदन ऑनलाइन भी स्वीकार किए जाते हैं। अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं. –

हार्वेस्टर सब्सिडी योजना (Harvester Subsidy Scheme)- जैसा कि आप जानते हैं कि धान-गेहूं कटाई के लिए हार्वेस्टर मशीन की अहम भूमिका होती है। लेकिन यह मशीन बाजार में बेहद उच्च कीमत पर आती है. मिली जानकारी के मुताबिक, भारतीय बाजार में हार्वेस्टर मशीन लगभग 40 लाख रुपए तक है। इतने अधिक दाम होने के चलते कई किसान इसे खरीद नहीं पाते हैं। इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार हार्वेस्टर मशीन (Harvester Machine) पर भारी सब्सिडी देती है।

बता दें कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (National Agriculture Development Plan) के तहत हार्वेस्टर किसानों को करीब 40 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। ऐसे में हिसाब लगाया जाए तो इस मशीन के लिए सरकार से 15 लाख रुपए से भी अधिक अनुदान दिया जाता है। सरकार की इस योजना का लाभ उठाने के लिए आपको अपने नजदीकी जन सेवा केंद्र में जाना होगा। जहां से आप सरलता से आवेदन कर पाएंगे।

राजस्थान कृषि श्रमिक संबल मिशन योजना (Rajasthan Agricultural Workers Sambal Mission Scheme)-यह योजना राजस्थान के किसानों के लिए राज्य सरकार ने अपने स्तर पर शुरू की ताकि प्रदेश के किसान आत्मनिर्भर बन सकें और खेती से अधिक लाभ कमा सकें। बता दें कि इस योजना के तहत किसानों को प्रदेश में कृषि उपकरण खरीदने के लिए 5 हजार रुपए तक की सब्सिडी उपलब्ध करवाई जाती है। अगर आप भी इस योजना में आवेदन करना चाहते हैं, तो इसके लिए आप नजदीकी कृषि केंद्र में या आधिकारिक कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिंक करें।

कृषि यंत्र अनुदान योजना (Agricultural Machinery Subsidy Scheme) –  इस योजना के तहत राज्य सरकार अपने-अपने स्तर पर खेती से जुड़े विभिन्न उपकरणों पर सब्सिडी की सुविधा उपलब्ध कराती है. हाल ही में राजस्थान सरकार इस योजना के तहत प्रदेश के किसानों को ड्रोन खरीदने के लिए सब्सिडी दे रही है। इसमें राज्य सरकार ने लगभग 4 लाख रुपए तक की सब्सिडी का प्रावधान तय किया है। साथ ही इस योजना के तहत सरकार भूमिहीन श्रमिकों को भी कृषि यंत्र खरीदने के लिए हर एक परिवार को लगभग 5 हजार रुपए तक का अनुदान देती है। इस योजना से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जाएं. इसमें आवेदन प्रक्रिया व अन्य महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से बताई गई है।

फसल अवशेष प्रबंधन योजना के अंतर्गत कृषि यंत्रों पर अनुदान- इस योजना में सरकार ने कई तरह के कृषि यंत्रों को शामिल किया है, जिनके नाम कुछ इस प्रकार से है। स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर,  सुपर पैडी स्ट्रा चोपर, मल्चर, रोटरी स्लेशर, शर्ब मास्टर, रिवर्सिबल एमबी प्लो, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, रीपर कम बाइंडर, ट्रैक्टर चालित क्राप रिपर और स्वचालित क्रॉप रिपर आदि कृषि उपकरण हैं। इन सभी यंत्रों पर इस योजना के तहत 50 से 80 प्रतिशत तक सब्सिडी की सुविधा दी जाती है। अगर आप भी इसका लाभ उठाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पहले मेरी फसल मेरा ब्योरा (Meri Fasal Mera Byora) पोर्टल में रजिस्ट्रेशन करना होगा. तभी आप इसका लाभ पा सकते हैं।