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गाय के गोबर से कर सकते हैं ये 30 छोटे बिजनेस, जो देंगे मोटा पैसा

अगर आप छोटा- मोटा बिजनेस (Small Business) करना चाहते हैं तो ऐसे में आपके लिए गाय के गोबर (Cow Dung) से बनने वाली चीजों का बिजनेस एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है…

cow dung business in india
cow dung business in india

वर्तमान समय में गाय के गोबर (Cow Dung) से बनने वाले उत्पादों की डिमांड बढ़ती जा रही है ऐसे में लोगों ने इसे अपनी आमदनी का एक मोटा जरिया बना लिया है क्योंकि पहले गोबर का इस्तेमाल घर लेपने और बायो गैस बनाने के लिए ही होता था लेकिन अब इसका इस्तेमाल बड़े स्तर पर होने लगा है. पशुपालक भी अब पशुपालन के साथ -साथ इसके गोबर को बेचकर भी मोटी कमाई कर रहे हैं. बड़ी -बड़ी कंपनियां पशुपालकों (Animal Breeder) से भारी मात्रा में गोबर को खरीद कर अच्छी रकम दे रहीं  हैं क्योंकि अब इसका इस्तेमाल साज सज्जा से लेकर हैण्ड बैग बनाने तक में होने लगा है.

तो ऐसे में देर न करते हुए आज हम आपको अपने इस ख़ास लेख में बतायेंगे की गोबर से बनने वाली चीजों (Cow Dung Products) की पूरी लिस्ट जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी की गोबर से ये भी बन सकता है….

गोबर से बनने वाली चीजों का बिजनेस

  • गोबर के उपलों का बिजनेस
  • गोबर से बनी मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती का बिजनेस
  • गोबर से बने हैण्ड बैग का बिजनेस
  • गोबर से बनी राखी का बिजनेस
  • गोबर से बना पेंट का बिजनेस
  • गोबर से बनी टाइल्स का बिजनेस
  • गोबर से बनी लकड़ी का बिजनेस
  • गोबर से बने दिये का बिजनेस
  • गोबर से बने कागज का बिजनेस
  • गोबर से बने गत्ते का बिजनेस
  • गोबर से बने वेजिटेबल डाई का बिजनेस
  • गोबर से बने साबुन का बिजनेस
  • गोबर गैस प्लांट का बिजनेस
  • गोबर की राख का बिजनेस
  • गोबर से बनी मच्छर कोइल का बिजनेस
  • गोबर से बनी मूर्तियाँ का बिजनेस
  • गोबर की खाद का बिजनेस
  • गोबर से बने मास्क का बिजनेस
  • गोबर से बने गमलों का बिजनेस
  • गोबर से बनी धुप का बिजनेस
  • गोबर से बनी ईंट का बिजनेस
  • गोबर से सीड बॉल का बिजनेस
  • गोबर से बनी चप्पल का बिजनेस
  • गोबर से पेंटिंग बनाने का बिजनेस
  • गोबर की राख से बना दंत मंजन का बिजनेस
  • गोबर से बने डब्बों का बिजनेस
  • गोबर से बने सीमेंट का बिजनेस
  • गोबर की शीट बनाने का बिजनेस
  • गोबर का घर बनाने का बिजनेस
  • गोबर का चूल्हा बनाने का बिजनेस
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स्थानीय उत्पादों से बनेगा गंगा-तट तीर्थ स्थलों का प्रसाद, 61 मंदिरों को भी बनाया अभियान का हिस्सा

लोकल उत्पादों को पहचान दीलाने को लेकर सरकार की चल रही मुहिम में एक नई योजना को और भी शामिल कर दिया गया है। इस बार सरकार ने इस योजना को आस्था के साथ जोड़ कर लोगों तक पहुंचाने का काम किया है।

Prasad of Ganga-bank pilgrimage sites will be made from local products
Prasad of Ganga-bank pilgrimage sites will be made from local products

भारत में गंगा नदी का आर्थिक और आस्था दोनों ही स्तरों पर बहुत ज्यादा महत्त्व है. सरकार के द्वारा वर्तमान में गंगा की सफाई को लेकर भी बहुत से प्रोजेक्ट लगातार चल रहे हैं। सरकार ने इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए इसमें देश के 61 मंदिरों को भी शामिल किया है। इसमें राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत एक नई पहल की शुरुआत की गई है। जिसके चलते गंगा में दूर-दूर से आए दर्शनार्थियों को उनके शहर के सबसे ख़ास पकवान के बारे में भी जानकारी मिल सकेगी। जी हां अब सरकार गंगा तट के सभी तीर्थ स्थलों पर लोकल में उत्पादित होने वाले ख़ास चीजों से बने पकवानों को दर्शनार्थियों को प्रसाद के रूप में वितरित कराने का प्लान बना रही है।

पांच “म” पहल की होगी शुरुआत

सरकार ने इस मिशन की शुरुआत को को लेकर पांच “म” अक्षर पहल योजना की शुरुआत की है. इन पांच “म” में मां गंगा, मंदिर, महिला, मोटा अनाज, और मधु का समावेश होगा। सरकार की यह मुहिम मोटे अनाजों को बढ़ावा देने में भी मददगार साबित होगी. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत सरकार एक साथ कई लक्ष्यों को साधने का काम कर रही है।

61 temples were included
61 temples were included

मोटे अनाजों को प्रोत्साहन देगी सरकार

सरकार इस योजना के तहत बहुत से मोटे स्थानीय मोटे अनाजों को भी प्रोत्साहन प्रदान कर रही है। आपको बता दें कि सरकार पहले से ही मोटे अनाजों के प्रोत्साहन के लिए मिलेट्स योजना को पूरे देश में लागू कर चुकी है। यह योजना भारत सरकार एवं अन्य देशों के सहयोग से पूरे विश्व में खाद्यान्न की पूर्ती हेतु भी संचालित की जा रही है। अब इन्ही को और भी बढ़ावा देने के लिए सरकार इसे गंगा के तटों पर स्थित सभी धार्मिक स्थलों पर इससे बने प्रसाद के वितरण की योजना बना रही है।

वोकल फॉर लोकल को मिलेगी मजबूती

सभी शहरों के ख़ास पकवानों को प्रसाद के रूप में शामिल करने का कारण वहां के उत्पादों को देश में एक अलग पहचान दिलाना भी है। इससे देश में सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना “वोकल फॉर लोकल” को एक नई पहचान दिलाना भी है। सरकार इस तरह की और भी बहुत सी योजनाओं को संचालित कर रही है। इसी प्रकार की एक योजना “एक जिला एक उत्पाद” योजना का भी संचालन सरकार द्वारा किया जा रहा है। इसमें सरकार हर एक जिले में उसकी वहां के ख़ास उत्पाद को एक नई पहचान दिलाने का प्रयास कर रही है।

सरकार गंगा तट पर मिल रहे प्रसादों में अब वहीं के उत्पादों के प्रयोग पर जोर से स्थानीय लोगों ने भी इसकी सराहना की है साथ ही उन्हें इससे व्यावसायिक फायदे के बढ़ने की भी उम्मीद जागी है।

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Bakrid 2023: बाजार में आजकल इस नस्ल के बकरों की जबरदस्त मांग, 55 से 60 किलो तक होता है वजन

आज से कुछ दिन बाद बकरीद मनाया जाएगा। जिसको देखते हुए बाजार में उन नस्ल के बकरों की मांग बढ़ गई है, जिनका वजन 55 से 60 किलोग्राम तक है।

बाजार में 55 से 60 किलोग्राम वाले बकरों की जबरदस्त डिमांड
बाजार में 55 से 60 किलोग्राम वाले बकरों की जबरदस्त डिमांड

आज से कुछ दिन बाद यानि कि 29 जून को देशभर में बकरीद मनाया जाएगा। इस्लाम धर्म में इस पर्व का काफी महत्व है। मुस्लिम समुदाय में बकरीद को सबसे पवित्र त्योहारों में से एक माना जाता है। हर साल लोग इसे धूमधाम से सेलिब्रेट करते हैं। बकरीद में बकरे की भूमिका अहम होती है। क्योंकि इस त्योहार में बकरे की ही कुर्बानी दी जाती है। ऐसे में बाजार में इस वक्त वैसे नस्ल के बकरों की मांग काफी बढ़ गई है। जिनका वजन 55 से 60 किलोग्राम तक होता है। लोग ऐसे बकरों के लिए मुंह मांगी कीमत तक देने को तैयार हैं। तो आइये बकरों के कुछ खास नस्लों पर एक नजर डालें।

बांटने के लिए ज्यादा वजन वाले बकरों की डिमांड

आम दिनों में बकरे बाजार में 20 से 25 किलोग्राम तक के उपलब्ध होते हैं। लेकिन बकरीद में कुर्बानी के बाद कई लोगों के बीच बकरे की मीट को बांटा जाता है। ऐसे में लोग इस त्योहार में बड़े से बड़ा व मोटा ताजा बकरा खरीदना पसंद करते हैं। ताकि कम खर्च में वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को मीट बांट सकें। वहीं, बकरीद में बकरे की कीमत भी आसमान छूने लगती हैं। बता दें कि बकरे के ऐसे कई नस्ल हैं, जिनका वजन आम तौर पर 40 से 55 किलोग्राम तक होता है। वहीं, दो से तीन नस्ल ऐसे भी होते हैं, जिनका वजन 60 किलो के पार होता है। इस नस्ल के बकरों को बकरीद के मौके पर काफी पसंद किया जाता है।

इस नस्ल के बकरे की खासियत

इस वक्त बाजर में गोहिलवाड़ी नस्ल के बकरों की खूब डिमांड है। क्योंकि इस नस्ल के बकरों का वजन 50 से 55 किलोग्राम तक होता है. यह ज्यादातर गुजरात में पाए जाते हैं। इस नस्ले के बकरों की संख्या काफी कम है. यह काले रंग के होते हैं। खास बात यह है कि इनके सींग देखने में मोटे व मुड़े हुए होते हैं।

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Black Rice: कई गुणा मंहगा बिकता है काला चावल, इसकी खेती से किसान तुरंत हो जाएंगे मालामाल

काले चावल की खेती से किसान अपनी आमदनी को बेहतर कर सकते हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।

काले चावल की खेती किसानों के लिए फायदेमंद
काले चावल की खेती किसानों के लिए फायदेमंद

देश में हर साल किसान बड़े पैमाने पर धान की खेती करते हैं. लेकिन ज्यादातर अन्नदाताओं को साधारण चावल की खेती से उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है. ऐसे में किसानों के लिए काले धान या चावल की खेती फायदेमंद साबित हो सकती है. तो आइए काले चावल की खेती के बारे में विस्तार से जानें।

पोषक तत्वों का खजाना है काला चावल

काले चावल में प्रोटीन, विटामिन बी, विटामिन बी1, बी2, बी3, बी6 और फोलिक एसिड (बी9) मौजूद होते हैं. जो शरीर के लिए आवश्यक होते हैं. इसके अलावा, काले चावल में फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम, आयरन और जिंक जैसे खनिज भी पाए जाते हैं. जो बॉन्स की सुरक्षा, खून का निर्माण, मांसपेशियों के कार्यों का समर्थन और अच्छी सेहत के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. वहीं, इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर भी मौजूद होता है।

इन राज्यों में होता है काला चावल

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर काले चावल की खेती होती है. बता दें कि काला चावल सफेद चावल की तुलना में ज्यादा अच्छा माना जाता है. काले चावल में सफेद चावल से ज्यादा पोषक तत्व मौजूद होते हैं. काला चावल खाने से पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है और कब्ज की समस्या से राहत मिलती है. काले चावल में कार्बोहाइड्रेट्स की अधिक मात्रा होती है. जो शरीर को ऊर्जा उपलब्ध कराने में मदद करती है. काले चावल की खेती किसी भी मिट्टी में संभव है. गर्मी का मौसम इस चावल की खेती के लिए उपयुक्त होता है. खास बात यह है कि फसल लगाने के बाद काले चवाल का उत्पादन सफेद चावल से ज्यादा होता है।

काले चावल से इतनी कमाई

अब अगर काले चावल से कमाई की बात करें तो बाजार में इसकी कीमत लगभग 400 से 500 रुपये प्रति किलो होती है. वहीं, सफेद चावल ज्यादा से ज्यादा 30 से 40 रुपये किलो के हिसाब से बिकते हैं. इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसान काले चावल की खेती से साल में कितनी कमाई कर सकते हैं।

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Health In Rainy Season: बरसात में बीमारी से बचने के लिए अपनाएं ये छह तरीके, सही रहेगा इम्यून सिस्टम

बरसात के मौसम में लोग अक्सर बीमार पड़ जाते हैं। शरीर में इम्यून कमजोर होने के कारण ऐसा होता है. इन छह तरीकों से बरसात के मौसम में सही रख सकते हैं इम्यून।

इन छह तरीकों से सही रख सकते हैं इम्यून
इन छह तरीकों से सही रख सकते हैं इम्यून

बरसात शुरू होने के साथ ही सभी लोगों को सतर्क हो जाना चाहिए। इस मौसम में खांसी, सर्दी, फ्लू और दस्त के साथ डेंगू व मलेरिया जैसी बीमारियां आम हो जाती हैं। भले ही बरसात का मौसम सभी को अच्छा लगता है। लेकिन इस मौसम में खासकर उन लोगों को बचकर रहना चाहिए. जिन्हें पहले से ही हाई ब्लडप्रेशर, पेट दर्द या थायरॉयड संबंधी समस्याएं हैं। बरसात में भीगने के बाद लोग एलर्जी, फ्लू और सर्दी का शिकार हो सकते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बारिश में ज्यादातर बीमारियां शरीर में इम्यून कमजोर होने की वजह से बढ़ती है। ऐसे में हमारे बताए इन छह उपायों को अपनाकर अपना इम्यून सही रख सकते हैं।

संतुलित आहार लें

अपने भोजन में विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियों, साबुत अनाज, लीन प्रोटीन आदि को शामिल करें. यह आपको इम्यून सिस्टम मजबूत करने व आवश्यक पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट प्रदान करने में मदद करेंगे।

हाइड्रेटेड रहें

बरसात में अपने शरीर को हाइड्रेटेड रखने के लिए पूरे दिन खूब पानी पिएं. यह इन्फेक्टेड चीजों को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है और इम्यून सिस्टम को भी मजबूत रखने का काम करता है.

विटामिन सी का सेवन बढ़ाएं

विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे खट्टे फल, जामुन, कीवी और बेल मिर्च का सेवन करें. ये आपके इम्यून सिस्टम को बढ़ा सकते हैं। इन्हें अपने आहार में शामिल करने पर विचार करें।

पर्याप्त नींद लें

हर रात 7-8 घंटे की अच्छी नींद लें. पर्याप्त आराम आपके शरीर को ठीक होने में मदद करता है और आपकी इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करता है। इसके अलावा, सुबह उठने के बाद जॉगिंग या साइकिल चलाने जैसे व्यायाम करें. नियमित शारीरिक गतिविधि से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और संक्रमण का खतरा कम होता है।

स्वच्छ रहें

अपने हाथों को बार-बार साबुन और पानी से कम से कम 20 सेकंड तक धोएं। उचित स्वच्छता कीटाणुओं और संक्रमणों को फैलने से रोकने में मदद करती है। वहीं, बारिश के मौसम में भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाने से बचें. भीड़-भाड़ वाली जगहों पर अपना समय कम से कम बिताने की कोशिश करें।

मच्छरों से रहें सुरक्षित

बारिश के मौसम में मच्छर जनित बीमारियां अधिक होती हैं। मच्छरों के काटने से बचने के लिए मच्छर निरोधकों का प्रयोग करें. वहीं, हमेशा ढके हुए शर्ट व पैंट पहनें। इसके अलावा, मच्छरदानी के नीचे सोएं. अगर बरसात में मच्छरों से सावधानी नहीं बरती तो आप डेंगू व मलेरिया जैसी बीमारियों का शिकार हो सकते हैं।

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नदियां होंगी प्रदूषण मुक्त, Boat को चलाने के लिए नहीं लगेगी बिजली व डीजल, अब ऐसे दौड़ेगी…

धार्मिक तीर्थ स्थानों की नदियों में बोट से यात्रा करने वाले भक्तों के लिए सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। सरकार के इस फैसले से नदियों के साथ-साथ यात्री भी सुरक्षित रहेंगे।

Solar Boat
Solar Boat

नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए सरकार ने एक अहम कदम उठाया है. दरअसल, सरकार प्रदूषण को कम करने के लिए नदियों में सोलर बोट को चलाने की तैयार में तेजी से काम कर रही है। इन बोट की सहायता से पर्यटकों की यात्रा और भी सरल हो जाएगी और साथ ही इन्हें चलाना बहुत ही आसान होगा।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस पहल की शुरुआत उत्तर प्रदेश सरकार ने की है जिसे दो चरणों में शुरु किया जाएगा. पहले चरण में उत्तर प्रदेश के प्रमुख तीर्थ स्थलों को शामिल किया गया है. जिनके नाम कुछ इस प्रकार से हैं. अयोध्या, काशी, मथुरा, प्रयागराज और गढ़मुक्तेश्वर आदि. दूसरे चरण में अन्य शहरों में इसे शुरू किया जाएगा.

सबसे पहले किस नदी में चलेगी सोलर बोट

मिली जानकारी के मुताबिक, सरकार के द्वारा शुरु की गई सोलर बोट पहले सरयू नदी में संचालित होगी। जो कि अयोध्या को सोलर सिटी (Solar City) के रूप में बनाने में मदद करेगी। देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक नाव काशी, प्रयागराज और अयोध्या की नदियों में चलाई जाती है। ताकि श्रद्धालु सरलता से पूजा-अर्चना कर सके।

सोलर बोट (Solar boat)
सोलर बोट (Solar boat)

कब चलेगी सोलर बोट

अनुमान है कि सरकार के द्वारा इस सोलर बोट को मार्च 2024 तक संचालित कर दिया जाएगा। पहले चरण में बताए गए स्थलों के बाद इस बोट को चित्रकूट, आगरा, गोरखपुर, जौनपुर और इन शहरों के आस-पास स्थिति नदियों में भी सोलर बोट (Solar boat) को मंजूरी दी जाएगी. ताकि जितना हो सके नदियों को प्रदूषण से मुक्ति मिल सके।

उत्तर प्रदेश बनेगा पहला राज्य

देशभर में सोलर बोट को शुरु करने वाला उत्तर प्रदेश पहला राज्य बन जाएगा। क्योंकि अभी तक किसी भी राज्य ने नदियों की सुरक्षा को लेकर कोई खास कदम नहीं उठाया है। प्रदूषण से निजात पाने के लिए उत्तर प्रदेश ने यह बेहतरीन कदम उठाया है। देखा जाए तो देश का हर राज्य सोलर उपकरण (Solar Equipment) से कई तरह की तकनीकों को विकसित करता रहता है, लेकिन कभी नदियों की सुरक्षा के लिए ऐसा उपकरण नहीं तैयार किया है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने यह कार्य पूरा करने का लक्ष्य ठाना है।

कितने लोग बैठने की होगी क्षमता

इस सोलर बोट के बनकर पूरी तरह से तैयार होने के बाद इसमें लगभग 15 लोग आसानी से बैठ सकते हैं. इसमें आपको धूप भी नहीं लगेगी. क्योंकि नाव की छत पर ही सोलर पैनल लगा होगा जो इसे चलाने में मदद करेगा।

नाव के लिए बनेगा 40 मेगा वाट का प्लांट

इस सोलर बोट के लिए सरयू किनारे लगभग 40 मेगावाट का एक प्लांट तैयार किया जाएगा जिसे बनाने के लिए सरकार करीब 200 करोड़ रुपए खर्च करेगी।

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ईद से पहले इन राज्यों में भारी बारिश की चेतावनी, जानें अपने शहर का हाल

मौसम विभाग ने बारिश को लेकर विभिन्न राज्यों में पहले ही चेतावनी जारी कर दी है। यह भी अपडेट है कि बारिश का दौर दिल्ली और इसके आसपास सटे इलाके में 29 जून तक बना रह सकता है।

Heavy rain alert till June 29
Heavy rain alert till June 29

भारत के विभिन्न हिस्सों में कहीं बारिश तो कहीं भीषण गर्मी का दौर जारी है। देखा जाए तो बीते दो-तीन दिनों से दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में भी पारा लगातार तेजी से बढ़ रहा है। इस समय दिल्ली में भीषण गर्मी का प्रकोप (Heat Wave) जारी है। ऐसे में IMD ने देशभर के राज्यों को लेकर मौसम से संबंधित गतिविधियों से जुड़ी ताजा अपडेट जारी कर दी है।

दिल्ली में गर्मी का प्रकोप

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में इस समय गर्मी का सितम (Heat stroke) बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन वहीं मौसम विभाग का कहना है कि दिल्ली के कुछ हिस्सों में 29 जून, 2023 तक हल्की बारिश की गतिविधियां की संभावना जताई है। यह भी अनुमान है कि आज और कल दिल्ली में भारी बारिश हो सकती है। वहीं अगर आज के तापमान की बात करें, दिल्ली में न्यनूनत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 39 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया जा सकता है। दोपहर के समय दिल्ली के कुछ इलाकों में गर्म हवाएं भी चलने की संभावना जताई गई है।

29 जून तक इन राज्यों में होगी बारिश

अगले 3 दिनों के दौरान महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार के विभिन्न हिस्सों में मानसून के आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां भी अनुकूल होती जा रही हैं।

आज से पूर्वी भारत में हल्की बारिश के साथ आंधी और बिजली गिरने की संभावना है. इसके अलावा 26 जून के दौरान ओडिशा में भारी बारिश हो सकती है।

यह भी अनुमान है कि 26 से 28 जून के दौरान नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, असम और मेघालय में अलग-अलग स्थानों पर भारी वर्षा होने की भी संभावना है।

मौसम विभाग के द्वारा जारी की गई ताजा अपडेट के मुताबिक, आज से लेकर 28-29 जून तक जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली तथा पूर्वी राजस्थान में भी हल्की से भारी बारिश होने की चेतावनी जारी की गई है।

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राजा जनक ने आखिर खेतों में क्यों चलाया था हल? आज जानिए सही वजह!

पौराणिक साहित्यिक लेखों के अनुसार मिथिला नगर के शासक और माता-सीता के पिता राजा जनक एक विदित किसान हुआ करते थे। राजा जनक के समय में खेती मुख्य रूप से वैदिक पद्धतियों और पौराणिक आदान-प्रदान पर आधारित थी।

Raja Janak
Why did King Janak plow the fields?

भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथो में से एक रामायण को हर कोई पढ़ता आ रहा है। रामायण कथा में एक ऐसे राजा का भी जिक्र किया गया है जिसने अपने खेतों में हल चलाया था। उसके बाद ही माता सीता का जन्म हुआ था. जी हाँ हम बात कर रहें है मिथिला शासक राजा जनक की। जिन्हें माता सीता के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि आखिर राजा जनक ने अपने खेतों में हल क्यों चलाया था?  इस लेख में आज हम आपकों यही बताने जा रहें हैं। दरअसल पौराणिक साहित्यिक लेखों के अनुसार मिथिला नगर के शासक और माता सीता के पिता राजा जनक एक विदित किसान हुआ करते थे और वह भी खुद खेती किया करते थे। राजा जनक ने अपने राज्य में कृषि के क्षेत्र को विकसित करने हेतु कई तकनीकें अपनाई और किसानों से व्यक्तिगत रिश्ता बनानें के लिए वे खुद भी खेती किया करते थे।

Why did King Janak plow the fields?
Why did King Janak plow the fields?

अनाजफलसब्जियाँ उगाने में थे माहिर

राजा जनक विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती किया करते थे, जिनमें धान, अनाज, फल, सब्जियाँ आदि शामिल थीं। उन्होंने वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करके उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कृषि के नवाचारों को अपनाया था। इतना ही नहीं उन्होंने खेती की नीव को बड़ी ही बारीकी से समझा और वैदिक युग में कई ऐसी तकनीक ईजाद की जिनसे तत्कालीन किसान अपनी फसलों की रक्षा करने में सक्षम हो चुके थे।

राजा जनक शुद्ध बीज का संग्रह करने में थे माहिर

राजा जनक खेती व्यवस्था में सुगमता और प्रगति को मजबूती से ध्यान में रखा करते थे। वे बेहतरीन बीज उत्पादन तकनीकों को अपनाते थे। इतना ही नहीं वह बीज भण्डारण के लिए पूर्णतः प्राचीन तकनीक अपनाते थे। राजा जनक के समय में खेती मुख्य रूप से वैदिक पद्धतियों और पौराणिक आदान-प्रदान पर आधारित थी। वैदिक युग में धान, गेहूँ, जौ, बार्ली, तिल, मूँगफली, अदद, राजमांग, मूली, गाजर, शाक आदि प्रमुख फसलों की खेती हुआ करती थी।

हल चला कर जीता प्रजा का दिल

प्राचीन काल में किसानों की मुख्य आय स्रोत कृषि होती थी। उन्होंने धान, गेहूं, जौ, बाजरा, मूंगफली, तिल, आदि फसलें उगाई होती थीं. राजा जनक एक प्रभावशाली और बुद्धिमान राजा थे जो अपने राज्य के विकास और सुख-शांति के लिए प्रयासरत थे। हल चलाना एक कृषि प्रथा थी जिसके माध्यम से उन्होंने अपने भूमि को उपयोगी बनाया, जिससे उनके प्रजा को आवश्यक अन्न और संसाधन मिल सकें। इसके अलावा, हल चलाने से राजा जनक ने अपनी प्रजा के साथ सम्बंध भी मजबूत किए, जिससे उनके राज्य में एक अच्छा सामाजिक और आर्थिक संबंध बना रहा और इसी तरह अपने खेत में एक किसान कि भांति हल चलाने से बेटी के रूप में माता सीता की प्राप्ति हुई।

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बुवाई से पहले देवताओं की पूजा का विशेष महत्त्व

राजा जनक ने अपनी कृषि क्षेत्र में विशेष दक्षता और गहरी समझ का उपयोग कर राज्य में कृषि के विकास में बड़ा योगदान दिया था। प्राचीन वैदिक और पौराणिक प्रमाणों के अनुसार राजा जनक के काल में कृषि और खेती संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। वैदिक साहित्य में खेती की शुरुआत करने से पहले देवताओं की पूजा और वृष्टि की जाती थी। इसके अलावा राजा जनक किसानों के लिए उपयुक्त खाद का भण्डारण भी करवाया करते थे। वैदिक काल में आदर्श समय पर सिंचाई को महत्वपूर्ण माना जाता था। इसके आलावा राजा जनक ने कीट-रोग नियंत्रण को लेकर औषधीय पौधों के उपयोग के बारे में किसानों को ज्ञान भी दिया था। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाता था कि उत्पादकता बढ़े और फसलों की गुणवत्ता उच्च हो।

किसानों के लिए विकसित किए कृषि संसाधन

राजा जनक ने जल संचय तकनीकों का उपयोग करके राज्य की सिंचाई व्यवस्था को विकसित किया। जिनमें तालाब, कुआं, बांध, नाले आदि का निर्माण करवाया गया था। राजा जनक जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए उचित खेती तकनीकों का उपयोग करते थे. किसानों की फसलों की सुरक्षा के लिए राजा जनक खेती में प्राकृतिक उपचार का प्रयोग करवाते थे। जो बीमारियों और कीटों के खिलाफ संघर्ष करने में मदद करते थे।

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Why did King Janak plow the fields?

किसानों को मिलती थी बाज़ार की सुविधा 

राजा जनक के शासन काल में बाजार व्यवस्था स्थानीय बाजारों पर आधारित हुआ करती थी. ये छोटे-मोटे बाजार शहरों या गांवों में स्थापित होते थे और विभिन्न फसलों और उत्पादों की व्यापारिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण होते थे। बाजार में व्यापारी की भूमिका महत्वपूर्ण थी। वे फसलों और उत्पादों को खरीदते और इसे उपभोक्ता तक पहुंचाते थे। व्यापारी बाजार में उत्पादों की खरीद-बिक्री करके लाभ कमाते थे। प्राचीन काल में व्यापार के माध्यम कच्चे और पके हुए उत्पादों की व्यापारिक आवश्यकताओं के आधार पर लेते थे। इसमें वस्त्र, खाद्य पदार्थ, गहने, सोने-चांदी, औषधियाँ, और अन्य आवश्यक वस्तुएं शामिल हो सकती थीं। व्यापारिक गतिविधियों के लिए मुख्य रूप से व्यापारिक मण्डल, हाट, या विशेष व्यापारिक स्थानों का उपयोग किया जाता था।

इस तरह, राजा जनक ने अपने समय में उत्पादक और पर्यावरण संरक्षण खेती की प्रगति के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया. राजा जनक किसान के महत्व की गहराई से अवगत थे, और वे उनके अनुभवों और दुःखों को समझते थे। इतना ही नहीं वह किसानों से जुड़ने के लिए स्वंय खेती किया करते थे और विभिन्न प्रयोग भी किया करते थे. उनकी खेती में रूचि और स्वयं खेती करना अति महत्वपूर्ण माना जाता था, जो वर्तमान में आधुनिक कृषि के नए आयामों की प्रेरणा देते हैं।

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World Rainforest Day 2023: विश्व वर्षावन दिवस मनाने का उद्देश्य, इतिहास, महत्व और इस बार की थीम

हर साल 22 जून को विश्व वर्षावन दिवस मनाया जाता है. ये दिन वर्षावनों के महत्व और उनके संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाने वाला एक वार्षिक उत्सव है।

World Rainforest Day 2023
World Rainforest Day 2023

विश्व वर्षावन दिवस एक वार्षिक कार्यक्रम है जो पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में वर्षावनों की महत्वपूर्ण भूमिका का जश्न मनाता है और उनके संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाता है. यह प्रत्येक वर्ष 22 जून को मनाया जाता है।

विश्व वर्षावन दिवस का इतिहास

विश्व वर्षावन दिवस की शुरुआत रेनफॉरेस्ट पार्टनरशिप द्वारा की गई थी, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है जो उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की सुरक्षा और पुनर्जनन के लिए समर्पित है. उद्घाटन विश्व वर्षावन दिवस 22 जून, 2017 को हुआ था. तब से इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई है और इसे हर साल 22 जून को वर्षावनों से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए मनाया जाने लगा।

विश्व वर्षावन दिवस का महत्त्व और उद्देश्य

वर्षावन लाखों पौधों और जानवरों की प्रजातियों का घर हैं, जिनमें से कई पृथ्वी पर और कहीं नहीं पाए जाते हैं. वे पृथ्वी की जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उन्हें अक्सर “ग्रह के फेफड़े” के रूप में जाना जाता है, क्योंकि वे दुनिया के लिए महत्वपूर्ण मात्रा में ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं. वर्षावन कार्बन सिंक के रूप में भी कार्य करते हैं, जो वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करते हैं।

विश्व वर्षावन दिवस का उद्देश्य वर्षावनों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनकी सुरक्षा और संरक्षण के लिए कार्रवाई को प्रेरित करना है. यह व्यक्तियों, समुदायों, संगठनों और सरकारों को वर्षावनों को संरक्षित करने और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है. दुर्भाग्य से, वनों की कटाई,अवैध कटाई, कृषि विस्तार, खनन और अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण दुनिया भर में वर्षावन खतरे में हैं. वर्षावनों के नष्ट होने से पर्यावरण और स्थानीय समुदायों दोनों के लिए विनाशकारी परिणाम होते हैं जो अपनी आजीविका के लिए इन पारिस्थितिक तंत्रों पर निर्भर हैं. इसलिए वर्षावनों के महत्व को देखते हुए इसके लिए एक दिन समर्पित किया गया है।

विश्व वर्षावन दिवस 2023 की थीम

विश्व वन्यजीव दिवस 2023 की थीम “संरक्षित करें, पुनर्स्थापित करें, पुनर्जीवित करें” रखा गया है।

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Yoga Day 2023: अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की इस बार की थीम, महत्व और इतिहास

हर साल 21 जून को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। यह दिन योग के अभ्यास और महत्व के लिए समर्पित है। इस बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023 ‘वसुधैव कुटुंबकम के लिए योग’ के थीम पर मनाया जा रहा है. ऐसे में चलिए जानते हैं इस बार के थीम का मतलब, योग दिवस का इतिहास और महत्व…

योग केवल एक शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि इससे हमारा मन, शरीर और आत्मा सभी स्वस्थ और शांत रहता है। साथ ही योग तनाव को कम करने और मानसिक स्पष्टता को बढ़ावा देने का काम भी करता है। यही वजह है कि योग के लिए पूरे विश्व में एक दिन को समर्पित किया गया है। ये दिन 21 जून है, हर साल 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day 2023) मनाया जाता है। ऐसे में चलिए इस दिन के महत्व, इतिहास और इस बार के थीम के बारे में जानते हैं।

योग क्या है?

योग एक प्राचीन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी। इसमें विभिन्न आसन, श्वास अभ्यास, ध्यान तकनीक और नैतिक सिद्धांत शामिल हैं।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का इतिहास

यह पहली बार भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 27 सितंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन के दौरान प्रस्तावित किया गया था. प्रस्ताव को सदस्य देशों से जबरदस्त समर्थन मिला और 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया। तब से हर साल 21 जून के दिन पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का उद्देश्य

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का उद्देश्य योग का अभ्यास करने के कई लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। साथ ही लोगों तक इस बात को पहुंचाना है कि योग ना सिर्फ हमारे स्वास्थ्य कल्याण के लिए जरूरी है बल्कि ये हमारे मन को शांत कर समाज में भी परिवर्तन लाने का काम कर सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का महत्व

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस एक वैश्विक आंदोलन बन गया है, जो शारीरिक फिटनेस बनाए रखने, तनाव कम करने और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने में योग के महत्व पर प्रकाश डालता है। यही नहीं शारीरिक और मानसिक लाभों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस व्यक्तियों और समुदायों के बीच सद्भाव, एकता और शांति को बढ़ावा देने के लिए योग के आध्यात्मिक पहलू पर जोर देता है। यह दिन योग के प्राचीन ज्ञान और जीवन को सकारात्मक रूप से बदलने की इसकी क्षमता की याद दिलाता है।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023 की थीम

हर साल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है। ऐसे में इस बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023 की थीम ‘वसुधैव कुटुंबकम के लिए योग’ (Yoga for Vasudhaiva Kutumbakam) रखा गया है। वसुधैव कुटुंबकम का मतलब होता है- पृथ्वी एक कुटुंब(परिवार) के समान है। इस थीम से तात्पर्य पृथ्वी पर मौजूद सभी लोगों के स्वास्थ्य के लिए योग करने के महत्व से है।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कैसे मनाया जाता है?

अपनी स्थापना के बाद से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ने दुनिया भर में अपार लोकप्रियता हासिल की है। इस दिन विभिन्न क्षेत्रों के लोग योग सत्रों, कार्यशालाओं और प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए एक साथ आते हैं। विभिन्न शहरों और समुदायों में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें सार्वजनिक पार्क, स्टेडियम, स्कूल और योग स्टूडियो शामिल हैं। समारोह में अक्सर सामूहिक योग सत्र, चर्चा, सांस्कृतिक प्रदर्शन और योग से संबंधित प्रदर्शनियां शामिल होती हैं।