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ज्वार की फसल से किसानों को दोहरा लाभ, होगी मानव व पशु आहार की व्यवस्था

अगर आप खेती करने की सोच रहे हैं तो ऐसे में आप ज्वार की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, यह फसल आपको अच्छी सेहत के साथ मोटा मुनाफा भी देगी।

Sorghum crop cultivation in india
Sorghum crop cultivation in india

ज्वार मुख्य रूप से खरीफ की एक प्रमुख मिलैट फसलों में से एक है। जिसे किसान भाई खाने के साथ-साथ चारे एवं दाने के रूप में उगाते हैं तथा ज्वार को मोटे अनाजों का राजा भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में ज्वार की फसल मुख्य रूप से चारे के लिये उगाई जाती है। ज्वार का इस्तेमाल चारे के रूप में किया जाता है। जानवरों को हरे चारे एंव सूखे चारे तथा साइलेज बनाकर खिलाया जाता है। इस प्रकार ज्वार जानवरों का महत्वपूर्ण एंव पौष्टिक चारा है। गेहूं की तरह ज्वार को भी आटे के रूप में प्रयोग करते हैं। ज्वार में शर्करा की काफी मात्रा पाई जाती है तथा ज्वार की अच्छी फसल के लिये मृदा का पी.एच. मान 5.5-8.5 होना चाहिये।

जलवायुः-ज्वार उष्ण जलवायु की फसल है परन्तु शीघ्र पकने वाली जातिया ठंडे प्रदेशों में भी गर्मीं के दिनों में उगाई जा सकती हैं। 25-30 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर उचित नमी की उपस्थिति में ज्वार की वृद्धि सबसे अच्छी होती है। फसल में बाली निकलते समय 30 डिग्री सेल्सियस सें अधिक तापक्रम, फसल के लिये हानिकारक होता है। 

खेत का चुनाव तथा तैयारीः- बलुई दोमट अथवा ऐसी भूमि जहां जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो, ज्वार की खेती के लिये उपयुक्त होती है। मिटृी पलटने वाले हल से पहली जुताई तथा अन्य दो-तीन जुताई देशी हल से करके खेत को भाली भांति तैयार कर लेना चाहियें।

बुवाई का समयः-

  1. खरीफ ज्वारः- ज्वार की बुवाई हेतु जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय अधिक उपयुक्त है।
  2. रबी ज्वारः- रबी के मौसम में ज्वार की खेती महाराष्ट्र, कर्नाटक व आन्ध्रप्रदेश में की जाती है। यहां पर बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर से नवम्बर तक है।

उन्नतशील प्रजातियां:- ज्वार की संकर किस्मों में सी.एस.एच.-1 से सी.एस.एच.-8 तक तथा उच्च उपज वाली किस्में सी.एस.वी.-1 से  सी.एस.एच.-7 तथा उ.प्र. में मऊ टा-1, 2, वर्षा, सी.एस.वी.-13, 15 एंव संकर सी.एस.एच.-9, 14 तथा रबी चारे के लिये एम.35-1 तथा चारे वाली किस्में एम-35-1, पूसा चरी, राजस्थान चरी, एस.एस.जी.-888 मीठी सुडान उपयुक्त किस्म है। 

बीज की मात्राः-दाने के खेत की बुआई के लिए किसान भाईयों को  9-12 किलोग्राम/प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है तथा चारे के खेत की बुवाई के लिये किसान भाईयों को 35-40 किलोग्राम/प्रति हेक्टेयर है।

बीजोपचारः-किसान भाईयों का बोने से पूर्व एक किग्रा0 बीज को एक प्रतिशत पारायुक्त रसायन या थीरम के 2.5 ग्राम से शोधित कर लेना चाहियें। जिससे अच्छा जमाव होता है एवं कंडुवा रोग नहीं लगता है। दीमक के प्रकोप से बचने हेतु 25 मि0लीटर प्रति किग्रा0 बीज की दर से क्लोरोपायरीफास दवा से शोधित करना चाहियें।

पंक्तियों एंव पौधों की दूरीः-ज्वार की फसल की बुआई किसान भाईयों को 45 सेमी0 लाइन से लाइन की दूरी पर हल के पीछे करनी चाहियें। पौधे से पौध की दूरी 15-20 सेमी0 होनी चाहिये।

उर्वरक एंव खाद प्रबन्धः-किसान भाईयों को उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना श्रेयस्कर होगा। उत्तम उपज के लिये संकर प्रजातियों के लिये नत्रजन 80 फॅास्फारेस 40 एवं पोटाश 20 किग्रा0 एवं अन्य प्रजातियों हेतु नत्रजन 40 फास्फारेस 20 एवं पोटाश 20 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिये। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फोस्फोरस एंव पोटाश की पूरी मात्रा खेत में बुवाई के समय कूंडों में  बीज के नीचे डाल देनी चाहियें तथा नत्रजन का शेष भाग बुवाई के लगभग 30-35 दिन बाद खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहियें।

सिंचाई प्रबन्धः-फसल में बाली निकलते समस और दाना भरते समय यदि खेत में नमी कम हो तो सिंचाई अवश्य कर दी जाए अन्यथा इसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव दिखाई पड़ता है।

खरपतवार नियन्त्रणः-ज्वार की फसल में किसान भाईयों को तीन सप्ताह बाद निराई एवं गुडाई कर देनी चाहियें। यदि खेत में पौधों की संख्या अधिक हो तो थिनिंग कर दूरी निश्चित कर ली जाय।

रसायन नियन्त्रण के लिये एट्राजिन 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के तुरन्त बाद 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव कर देना चाहियें।

कीट नियन्त्रणः- ज्वार की प्ररोह मक्खी (शूट फलाई):- यह घरेलू मक्खी से छोटे आकार की होती है।  जिसका शिशु (मैगेट) जमाव के प्ररम्भ होते ही फसल को हानि पहुंचाता  है। इसके उपचार हेतु मिथाइल ओडिमेटान 25 ई.सी. 1 लीटर अथवा मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिडकाव करें।

तनाछेदक कीटः- इस कीट की सुंडियां तनें में छेद करके अन्दर ही अन्दर खाती रहती है। जिससे बीज का गोभ सूख जाता है। इसके उपचार हेतु क्विनालफास 25 प्रतिशत ई.सी. 1.50 लीटर को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।

ईयर हेड मिजः- प्रौढ मिज लाल रंग की होती है और यह पुष्प पत्र पर अण्डे देती है। लाल मैगेट्स दानों के अन्दर रहकर उसका रस चूस लेती है, जिससे दाने सूख जाते हैं। इसके उपचार के लिये किसान भाई इन्डोसल्फान 35 ई.सी. का 1.5 लीटर अथवा कार्बराइल (50 प्रतिशत घूलनशील चूर्ण) 1.25 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।

ईयर हेड कैटर पिलरः-इसकी गिडारें मुलायम दाने को खाकर नष्ट कर देती हैं तथा भुटृों में जाला बना देती है। इस रोग के उपचार के लिये इन्डोसल्फान 35 ई.सी का 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का घोल बनाकर छिडकाव करें।

ज्वार का माइटः-यह बहुत ही छोटा होता है, जो पत्तियों की निचली सतह पर जाले बुनकर उन्ही के अन्दर रहकर रस चूसता रहता है। ग्रसित पत्ति लाल रंग की दिखाई पडनें लगती है तथा सूख जाती है। इस रोग के रोकथाम के लिये किसान भाईयों को डाइमेथोएट 30 ई.सी. का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा डायजिनान 20 ई.सी का 1.5 लीटर से 2 लीटर प्रति हेक्टेयर छिडकाव करें।

फसल की कटाईः-ज्वार के पौधे 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है। जब पौधों पर लगी पत्तिया सूखी दिखाई देने लगे उस दौरान पौधों की कटाई कर लें। इसके फसल की कटाई दो से तीन बार तक की जा सकती है। ज्वार के पौधों को भूमि की सतह के पास से काटा जाता है तथा फसल कटाई के पश्चात्  दानों को अलग कर लिया जाता है, और उन्हें ठीक से सूखा लिया जाता है। इसके बाद मशीन के माध्यम से दानों को अलग कर लें।

फसल की पैदावार और लाभः-एक हेक्टेयर के खेत से हरे चारे के रूप में 600 से 700 क्विंटल तक फसल प्राप्त हो जाती है, तथा सूखे चारे के रूप में 100 से 150 क्विंटल का उत्पादन मिल जाता है जिसमे से 25 क्विंटल तक ज्वार के दाने मिल जाते है। ज्वार के दानों का बाजारी भाव ढाई हजार रूपए प्रति क्विंटल होता है। इस हिसाब से किसान भाई ज्वार की एक बार की फसल से 60 हजार रूपए तक की कमाई प्रति हेक्टेयर के खेत से कर सकते हैं।

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Olea Europaea: आस्था का प्रतीक है मन्द्राक वृक्ष, जानें और किन कामों में आता है यह

विश्व में ऐसे बहुत से वृक्ष हैं जो आज भी लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं। यह पेड़-पौधे केवल आस्था का ही नहीं वरण प्राकृतिक रूप से या जीवों के हित से सम्बंधित बहुत से कामों में यह अग्रणी भूमिका का निर्वहन करते है।

This plant is used for many types of medicines.
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मन्द्राक वृक्ष (Olea europaea), जिसे आमतौर पर “काले बेर” के नाम से जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण पौधा है जो मेदितेरेनियन क्षेत्र के लोगों के लिए प्राचीन समय से ही महत्वपूर्ण है। इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Olea europaea है और यह खाद्य, औषधीय और सामाजिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है. यहां हम आपको मन्द्राक वृक्ष के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे। तो आइये जानें कि क्यों ख़ास है यह पेड़।

This plant is associated with religious sentiments.
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मन्द्राक वृक्ष (Olea europaea) एक प्राचीन पौधा

मन्द्राक वृक्ष (Olea europaea) ज्यादातर दक्षिण यूरोप, आफ्रीका और एशिया के मेदितेरेनियन क्षेत्रों में पाया जाता है. यह एक छोटा वृक्ष होता है जिसकी ऊंचाई 8-15 मीटर तक होती है, लेकिन कई स्थानों पर इसकी ऊंचाई 20 मीटर तक भी हो सकती है. इसकी पत्तियां सफेद, चमकदार हरे रंग की होती है और इसके फूल चमकदार श्वेत होते हैं जिनमें बहुत ही प्यारी खुशबू आती है।

प्राचीनता में महत्वपूर्णता

मन्द्राक वृक्ष प्राचीनकाल से ही मानव समाज के लिए महत्वपूर्ण रहा है. इसकी पत्तियों और फलों से निकाले जाने वाले तेल का उपयोग खाद्य और औषधीय उद्देश्यों के लिए किया जाता है. मन्द्राक वृक्ष के तेल में विभिन्न पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं. इसका उपयोग खाद्य बनाने, सलादों में ड्रेसिंग के रूप में और विभिन्न पकवानों में तेल के रूप में किया जाता है।

This plant found in many countries is also a symbol of Indian faith.
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औषधीय गुणों का स्रोत

मन्द्राक वृक्ष के फल, पत्तियां और तनों में विभिन्न औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसका तेल मसाज तेल के रूप में, त्वचा की देखभाल में और बालों के लिए उपयोग किया जाता है. इसका तेल त्वचा को मोइस्चराइज़ करता है, रुखी और तैलीय त्वचा को संतुलित करता है और उम्र के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

धार्मिक और सामाजिक महत्व

मन्द्राक वृक्ष को धार्मिक और सामाजिक महत्व के कारण भी माना जाता है. कई धार्मिक परंपराओं में इसे पवित्र माना जाता है और इसकी पत्तियां, फूल और तेल का उपयोग पूजा और अनुष्ठानों में किया जाता है. इसके बारे में कई कथाएं और लोक-परंपराएं भी हैं, जो इसे समृद्धि, सौभाग्य और आशीर्वाद का प्रतीक मानती हैं।

You can also do gardening at home
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मन्द्राक वृक्ष का संरक्षण

मन्द्राक वृक्ष को उचित संरक्षण की आवश्यकता है, क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधन के रूप में महत्वपूर्ण है और इसकी प्रजातियां कुछ स्थानों पर अत्यंत संकट में हैं। जीवनकारी की आवश्यकताओं के कारण और बढ़ती वाणिज्यिक मांग के कारण, कई स्थानों पर वृक्षों को नुकसान पहुंचाने वाली विधाएं बढ़ रही हैं। वन्यजीवों, पर्यावरण और मानवीय समुदाय के हित में मन्द्राक वृक्ष का संरक्षण महत्वपूर्ण है।

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Agriculture Machinery Subsidy: भारत में कृषि मशीनरी के लिए विभिन्न राज्यों में मिलने वाली सब्सिडी

किसानों की सुविधा और उनकी उन्नति के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर कृषि मशीनें खरीदने पर सब्सिडी उपलब्ध करवाती हैं। इस लेख में हम अलग-अलग राज्यों द्वारा कृषि यंत्र पर मिलने वाली सब्सिडी पर चर्चा करेंगे और बतायेंगे कि किसानों को किस राज्य में कितने प्रतिशत सब्सिडी उपलब्ध करवाई जाती है।

Agricultural machinery subsidies in India
Agricultural machinery subsidies in India

कृषि मशीनरी किसानों के लिए काम का बोझ कम करने और उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन मशीनों के महत्व को देखते हुए भारत के कई राज्यों में किसानों को कृषि यंत्र खरीदने पर सब्सिडी दी जाती है। यहां हम विभिन्न राज्यों में कृषि मशीनरी पर दी जा रही सब्सिडी की जानकारी दे रहे हैं। जिससे किसानों को आधुनिक तकनीकों को अपनाने और उनकी फसल की खेती को बढ़ाने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है।

कृषि यंत्र पर राज्यवार सब्सिडी इस प्रकार हैं-

1. तमिलनाडु

तमिलनाडु का कृषि मशीनीकरण कार्यक्रम विभिन्न मशीनों के लिए सब्सिडी प्रदान करता है. जिसमें पावर टिलर, धान ट्रांस-प्लांटर्स, रोटावेटर, सीड-ड्रिल, जीरो-टिल सीड फर्टिलाइजर ड्रिल, पावर स्प्रेयर और ट्रैक्टर द्वारा संचालित मशीनें जैसे स्ट्रॉ बेलर, पावर वीडर और ब्रशकटर्स शामिल हैं. सामान्य किसानों को 40% सब्सिडी मिलती है, जबकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसानों को 50% सब्सिडी मिलती है।

2. तेलंगाना

तेलंगाना की यंत्र लक्ष्मी योजना ट्रैक्टर खरीद पर 50% सब्सिडी प्रदान करती है. कृषि मशीनीकरण योजना के तहत, यह अन्य कृषि उपकरण खरीदने के लिए भी सहायता प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसान 100% सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं. योग्य स्नातक बीमा और संपार्श्विक सुरक्षा (collateral security) के साथ एसबीआई से ऋण के लिए आवेदन कर सकते हैं।

3. महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में फार्म मशीनीकरण योजना के तहत छोटे, सीमांत और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसानों को ट्रैक्टर के लिए 35% और अन्य मशीनों के लिए 50% सब्सिडी प्रदान किया जाता है. सामान्य श्रेणी के किसानों को ट्रैक्टर के लिए 25% और अन्य मशीनों के लिए 40% अनुदान मिलता है. ऋण 5-9 वर्ष की पुनभुगतान अवधि के साथ सावधि ऋण के रूप में उपलब्ध हैं और 1 लाख रुपये से कम के ऋण के लिए किसी मार्जिन की आवश्यकता नहीं है।

4. उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश की कृषि यंत्र योजना ट्रैक्टर खरीद के लिए लागत का 25% या 45,000 रुपये (जो भी कम हो) की सब्सिडी प्रदान करता है. इसके लिए प्रथमा बैंक महिंद्रा, स्वराज और सोनालिका के सहयोग से ट्रैक्टर ऋण प्रदान करता है।

5. राजस्थान और हरियाणा

राजस्थान और हरियाणा दोनों ही फार्म मशीनीकरण योजना के तहत काम करते हैं. इसके लिए हरियाणा में सर्व हरियाणा बैंक और राजस्थान में एयू बैंक ऋण प्रदान करते हैं. योजनाएं उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाने को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।

6. गुजरात

गुजरात में सरकार सामान्य श्रेणी के लिए 25% से अधिक और विशेष श्रेणियों के लिए 35% की ट्रैक्टर सब्सिडी प्रदान करती है. कृषि मशीनरी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं. इसके लिए गुजरात ग्रामीण बैंक से ऋण आसानी से मिलती हैं।

7. कर्नाटक

कर्नाटक राज्य सरकार का उद्देश्य खेती में समयबद्धता, उत्पादकता और कम श्रम को बढ़ावा देना है. इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, सरकार “उबर फॉर एग्रीकल्चर सर्विसेज” योजना के माध्यम से किराये के आधार पर आवश्यक मशीनरी प्रदान करने की योजना बना रही है. किसान वीएसटी टिलर्स, जॉन डीरे और महिंद्रा जैसे सहयोगी ऑटोमोबाइल निर्माताओं से मशीनरी तक पहुंच सकते हैं. ऋण 9 वर्ष तक की चुकौती अवधि के साथ, कृषि सावधि ऋणों के समान ब्याज दर पर उपलब्ध हैं।

8. केरल

केरल सरकार ने फार्म मशीनीकरण प्रणाली (FMS) की शुरुआत की है, एक सॉफ्टवेयर प्रणाली जो मशीनरी वितरण में पारदर्शिता सुनिश्चित करती है. ट्रैक्टर की खरीद 25% सब्सिडी के लिए पात्र हैं, जबकि अन्य उपकरण जैसे कि टिलर और रोटावेटर के लिए ऋण उपलब्ध हैं. गर्भावस्था अवधि को छोड़कर, ऋण चुकौती अवधि 5 से 10 वर्ष तक होती है।

9. आंध्र प्रदेश

आंध्र प्रदेश में ट्रैक्टरों का वितरण रायथु राधम योजना के तहत किया जाता है. योग्यता मानदंड के लिए किसान कम से कम एक एकड़ जमीन का मालिक होना चाहिए. इसके लिए आईसीआईसीआई बैंक 5 साल की चुकौती समय सीमा के साथ ऋण प्रदान करता है।

10. मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश मैक्रो-मैनेजमेंट स्कीम के माध्यम से छोटे ट्रैक्टरों के लिए सब्सिडी प्रदान करता है. यह योजना, राज्य और केंद्र सरकारों के सहयोग से किसानों को उनकी मशीनरी खरीद में सहायता करने के लिए ऋण भी उपलब्ध कराता हैं।

11. असम

असम में मुख्यमंत्री समग्र ग्राम्य उन्नयन योजना (CMSGUY) ट्रैक्टरों के लिए 70% (5.5 लाख रुपये तक) की सब्सिडी प्रदान करती है. पात्र किसानों के पास न्यूनतम 2 एकड़ भूमि होनी चाहिए. इसका 8-10 किसानों के समूह भी लाभ उठा सकते हैं. एसबीआई मशीनों की खरीद के लिए ऋण प्रदान करता है।

12. ओडिशा

ओडिशा की पूंजी निवेश और फार्म मशीनीकरण योजनाएं टिलर के लिए 50% सब्सिडी और ट्रैक्टर के लिए 40% सब्सिडी प्रदान करती हैं. ओडिशा ग्राम्य बैंक कृषि वाहनों की खरीद के लिए ऋण प्रदान करता है, जो 15% मार्जिन के साथ लागत का 85% कवर करता है।

13. पंजाब

पंजाब में पंजाब नेशनल बैंक से ऋण उपलब्ध होने के साथ-साथ किसान दोस्त वित्त योजना (Kisan Dost Finance scheme) भी चलाई जा रही है. इन पहलों का उद्देश्य पंजाब में किसानों को कृषि मशीनरी और उपकरण खरीदने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

14. पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल एक एचडीएफसी ऋण और एक ट्रैक्टर प्लस सुरक्षा योजना प्रदान करता है. ये कार्यक्रम पश्चिम बंगाल में ट्रैक्टर और अन्य कृषि मशीनरी की खरीद के लिए किसानों को वित्तीय सहायता और बीमा कवरेज प्रदान करते हैं।

15. अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश कृषि मशीनरी की खरीद में किसानों का समर्थन करने के लिए आईसीआईसीआई बैंक के माध्यम से ऋण प्रदान करता है. ये ऋण राज्य में किसानों को उपकरणों की खरीद के लिए आवश्यक धन का उपयोग करने में सक्षम बनाते हैं, जिससे यंत्रीकृत कृषि पद्धतियों की सुविधा मिलती है।

16. हिमाचल प्रदेश और मेघालय

हिमाचल प्रदेश और मेघालय भी कृषि मशीनीकरण योजना और एसएमएएम (कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन) योजना का पालन करते हैं. इन पहलों का उद्देश्य कृषि में आधुनिक मशीनरी और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देना है, जिससे इन राज्यों में किसानों को अपनी कृषि पद्धतियों और उत्पादकता को बढ़ाने में सक्षम बनाया जा सके।

इन राज्यों की पहल कृषि क्षेत्र में उन्नत मशीनरी और प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता और समर्थन प्रदान करती हैं। इन सब्सिडी और ऋणों का लाभ उठाकर, देश भर के किसान अपने कृषि कार्यों को आसानी से कर सकते हैं। साथ ही कृषि में उत्पादकता और स्थिरता बढ़ाने में योगदान कर सकते हैं।

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Pet Insurance: पालतू जानवरों का करवाएं बीमा, मिलेगी कई तरह की खास सुविधाएं

अब इंसानों की तरह पालतू जानवरों का भी इंश्योरेंस किया जाएगा। जिसमें बीमा कंपनी की तरफ से कई सुविधाएं दी जाएंगी।

पालतू जानवरों के लिए खरीदें बीमा पॉलिसी
पालतू जानवरों के लिए खरीदें बीमा पॉलिसी

अगर आप भी पालतू जानवरों को पालना पसंद करते हैं, तो इनसे जुड़ी कुछ जरूरी बातों का आपको ध्यान रखना चाहिए। जिस तरह से इंसानों के बेहतर भविष्य व परिवार के लिए इंश्योरेंस यानि की बीमा किया जाता है। ठीक उसी तरह से पालतू जानवरों का भी बीमा किया जाता है। लेकिन यह बात कुछ ही लोगों को पता होती है। इसलिए ज्यादातर लोग अपने जानवरों का बीमा नहीं करवा पाते हैं और फिर वह भविष्य में हानि का सामना करते हैं। तो आइए आज हम आपको पालतू जानवरों की बीमा पॉलिसी (Insurance Policy) के बारे में विस्तार से बताते हैं..

पेट इंश्योरेंस में मिलती हैं कई सुविधाएं

जैसे इंसानों की पॉलिसी में कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं, ठीक उसी तरह से जानवरों की पॉलसी (Animal Policy) में भी कई तरह की खास सुविधाएं दी जाती हैं। इसमें पेट के एक्सिडेंट से लेकर बीमारी और अन्य कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं।

बताया जा रहा है कि पेट इंश्योरेंस (Pet Insurance) में जानवर चोरी होने पर भी मालिक को लाभ दिया जाता है। इसके लिए बस पेट के मालिक को इंश्योरेंस प्लान की कुछ शर्तों का पालन करना होता है। साथ ही प्लान के बेहतर विकल्पों का चयन करना होता है। क्योंकि इंश्योरेंस में कई तरह के प्लान मौजूद हैं, उसी के मुताबिक आपको लाभ दिया जाता है।

पेट इंश्योरेंस से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

  • ध्यान रहे कि इंश्योरेंस2 महीने के पेट से लेकर 10 साल तक के लिए किया जाता है।
  • बीमा प्लान में गर्भावस्था या बच्चे के जन्म, ग्रूमिंग और कॉस्मेटिक सर्जरी की भी सुविधा है।
  • इसके लिए पेट के मालिक को हर महीने तय की गई प्रीमियम जो प्लान के मुताबिक बनती है। उसे भरना होगा।

कहां से मिलेगा पेट इंश्योरेंस प्लान

अगर आप भी अपने पेट का बीमा (Pet Insurance) करवाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको कहीं भी भटकने की जरूरत नहीं है। यह सभी प्लान के बीमा आपको न्यू इंडिया एश्योरेंस (New India Assurance), बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस (Bajaj Allianz General Insurance) और गो डिजिट जनरल इंश्योरेंस (Go Digit General Insurance) जैसी बीमा कंपनियां में मिल जाएगा। जहां से आप सरलता से आवेदन कर सकते हैं।

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World Day Against Child Labour 2023: बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस मनाने का उद्देश्य, इस बार की थीम और महत्व

World Day Against Child Labor 2023
World Day Against Child Labor 2023

बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस (World Day Against Child Labour) जागरूकता बढ़ाने और बाल श्रम के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए हर साल 12 जून को मनाया जाता है। यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक पहल है और दुनिया भर के विभिन्न संगठनों, सरकारों और व्यक्तियों द्वारा समर्थित है।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का उद्देश्य

बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस (विश्व बाल श्रम निषेध दिवस) का प्राथमिक उद्देश्य बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करना और विश्व स्तर पर बाल श्रम को खत्म करने के प्रयासों को बढ़ावा देना है। बाल श्रम से तात्पर्य ऐसे काम से है जो बच्चों के लिए मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या नैतिक रूप से हानिकारक हो और उनकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न करता हो। यह बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता और उनकी गरिमा से वंचित करता है और इसे उनके अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है।

इसलिए इस दिन बाल श्रम के परिणामों के बारे में जागरूकता फैलाने और बच्चों के अधिकारों की वकालत करने के लिए विभिन्न अभियान और  कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। गरीबी, शिक्षा की कमी और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा सहित बाल श्रम के मूल कारणों को दूर करने के लिए सरकारें, गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और कार्यकर्ता मिलकर काम करते हैं।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का महत्व

बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस व्यक्तियों, समुदायों और सरकारों को बच्चों की रक्षा करने और एक ऐसी दुनिया बनाने की उनकी जिम्मेदारी के लिए याद दिलाने का काम करता है, जहां हर बच्चा एक सुरक्षित और पोषण वाले वातावरण में विकसित हो सकता है। यह बाल श्रम को खत्म करने के लिए सहयोग और सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल देता है और बच्चों को वे अवसर प्रदान करता है जिससे वे बेहतर भविष्य के हकदार बन सकें।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 2023 की थीम

इस साल विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की थीम “सभी के लिए सामाजिक न्याय, बाल श्रम का खात्मा!”(Social Justice for All, End Child Labour!) है।

बाल श्रम कम करने के लिए निम्न पॉइंट्स पर गौर करने की जरूरत

बाल श्रम का मुकाबला करने के प्रयासों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच को बढ़ावा देना।

बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाले कानूनों और नीतियों को लागू करना।

श्रम मानकों में सुधार करना।

कमजोर परिवारों को सामाजिक सहायता प्रदान करना।

बाल श्रम से मुक्त नैतिक आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करने के लिए उपभोक्ताओं और व्यवसायों के बीच जागरूकता बढ़ाना।

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Top 5 Expensive Tractors: भारत के 5 सबसे महंगे ट्रैक्टर, अपने दमदार शक्ति और भार क्षमता के लिए लोकप्रिय

ट्रैक्टर अलग-अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न फिचर्स के साथ आता है. इस लेख में हम भारत में वर्ष 2023 के पांच सबसे महंगे ट्रैक्टरों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है. इन ट्रैक्टरों ने अपनी प्रभावशाली विशेषताओं, विश्वसनीयता और प्रतिस्पर्धी कीमतों के कारण लोकप्रियता हासिल की है।

कृषि क्षेत्र सहित विभिन्न कार्यों को करने में ट्रैक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऐसे में हम अपने लेख के जरिए अलग-अलग ट्रैक्टरों की जानकारी लेकर आते रहते हैं. इसी कड़ी में हम आपके लिए इस साल के भारत के 5 सबसे महंगे ट्रैक्टरों की जानकारी लेकर आए हैं. इन ट्रैक्टरों को भारी भार को कुशलतापूर्वक संभालने और बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है. अधिक जानकारी के लिए लेख पढ़ना जारी रखें।

Swaraj 855 FE
Swaraj 855 FE

स्वराज 855 एफई (Swaraj 855 FE)

स्वराज 855 एफई एक शक्तिशाली ट्रैक्टर है जो एक मजबूत इंजन और उन्नत सुविधाओं से लैस है. यह एक 3-सिलेंडर इंजन द्वारा संचालित है, जो विभिन्न कृषि कार्यों के लिए कुशल प्रदर्शन और विश्वसनीय बिजली उत्पादन प्रदान करता है. स्वराज ट्रैक्टर के अटैचमेंट्स को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है, जो किसानों के उत्पादकता बढ़ाने के लिए कल्टीवेटर, हल और हार्वेस्टर जैसे उपकरणों को आसानी से जोड़ने और उपयोग करने में मददगार है. अगर इसके वजन की बात करें तो स्वराज 855 एफई का कुल वजन 2440 किलोग्राम है जो भारी भरकम वजन उठाने में भी सक्षम है. ट्रैक्टर में 8 आगे और 2 रिवर्स गियर हैं, जो कई दिशाओं में घूमने के लिए सक्षम है. इसके अलावा इसमें पावर स्टीयरिंग की सुविधा है, जो सहज गतिशीलता प्रदान करता है और लंबे समय तक उपयोग के दौरान थकान को कम करता है. भारत में स्वराज 855 FE की कीमत 7.90-8.40 लाख रुपये के बीच है।

Swaraj 744 FE
Swaraj 744 FE

स्वराज 744 एफई (Swaraj 744 FE)

स्वराज 744 एफई तेल में डूबे ब्रेक वाला 48 एचपी ट्रैक्टर है. स्वराज 744 FE ट्रैक्टर को विभिन्न अटैचमेंट्स को समायोजित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो इसे विभिन्न कृषि कार्यों के लिए बहुमुखी बनाता है।

इस स्वराज ट्रैक्टर का अधिकतम कुल वजन 2345 किलोग्राम है जो संचालन के दौरान स्थिरता प्रदान करता है और विभिन्न इलाकों में आसानी से नेविगेट करने के लिए पर्याप्त फुर्तीला रहता है. ये ट्रैक्टर 8F+2R के साथ आता है, जिससे ऑपरेटर आसानी से कई दिशाओं में जा सकते हैं. इसमें 3 चरणों वाले वेट एयर क्लीनर के साथ 2000 इंजन रेटेड RPM है. स्वराज 744 एफई ट्रैक्टर में पावर स्टीयरिंग है, जो सटीक और सहज चालन को सक्षम बनाता है. भारत में स्वराज 744 FE की कीमत 6.90-7.40 लाख रुपये के बीच है।

Kubota MU 4501 2WD

कुबोटा एमयू 4501 2डब्ल्यूडी (Kubota MU 4501 2WD)

Kubota MU 4501 2WD ट्रैक्टर एक विश्वसनीय और कुशल मशीन है जिसे विभिन्न कृषि कार्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक शक्तिशाली इंजन है जो असाधारण प्रदर्शन और ईंधन दक्षता सुनिश्चित करता है. ट्रैक्टर में 4-सिलेंडर इंजन है. इस Kubota ट्रैक्टर मॉडल को आसानी से हल, कल्टीवेटर, लोडर जैसे उपकरणों के साथ लगाया जा सकता है, जिससे खेत में इसकी बहुमुखी प्रतिभा और उत्पादकता का विस्तार होता है।

अगर इसके वजन की बात करें तो ट्रैक्टर 1850 किलोग्राम के कुल वजन के साथ शक्ति और गतिशीलता के बीच संतुलन बनाता है. ट्रैक्टर क्रमशः 8 और 4 के फॉरवर्ड और रिवर्स गियर के साथ आता है जो कई दिशाओं में घूमने के लिए सक्षम है. इसमें 5000 घंटे या 5 साल की वारंटी के साथ तेल में डूबे हुए डिस्क ब्रेक हैं. भारत में Kubota MU 4501 2WD की कीमत 7.69-7.79 लाख रुपये के बीच है।

Powertrac Euro 50
Powertrac Euro 50

पॉवरट्रैक यूरो 50 (Powertrac Euro 50)

पॉवरट्रैक यूरो 50 ट्रैक्टर एक मजबूत और कुशल मशीन है जिसे कृषि कार्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक उच्च-प्रदर्शन इंजन है जो विश्वसनीय शक्ति और ईंधन दक्षता प्रदान करता है. ट्रैक्टर में 3-सिलेंडर इंजन है, जो खेती के विभिन्न कार्यों के लिए सुचारू और कुशल संचालन सुनिश्चित करता है।

यह पॉवरट्रैक मॉडल आसानी से हल, कल्टीवेटर, हैरो आदि जैसे उपकरणों से जुड़ सकता है, जिससे खेत में इसकी बहुमुखी प्रतिभा और उत्पादकता में वृद्धि होती है. इस ट्रैक्टर में 50 एचपी है और यह मल्टी प्लेट तेल में डूबे डिस्क ब्रेक के साथ आता है. इसका कुल वजन 2140 किलोग्राम और 2040 एमएम का कुल व्हीलबेस है. पॉवरट्रैक यूरो 50 ट्रैक्टर एक विश्वसनीय और बहुमुखी मशीन है, जो विभिन्न कृषि अनुप्रयोगों में किसानों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शक्ति, दक्षता और आराम का संयोजन करती है. भारत में पॉवरट्रैक यूरो 50 की कीमत 7.31-7.75 लाख रुपये के बीच है।

John Deere 5050 D
John Deere 5050 D

जॉन डीरे 5050 डी (John Deere 5050 D)

जॉन डियर 5050 डी एक उच्च प्रदर्शन वाला ट्रैक्टर है जो अपनी गुणवत्ता और टिकाऊपन के लिए जाना जाता है. यह एक मजबूत इंजन से लैस है जो उत्कृष्ट शक्ति और दक्षता प्रदान करता है. ट्रैक्टर में 3-सिलेंडर इंजन है, जो कृषि कार्यों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए बेहतर प्रदर्शन और विश्वसनीय संचालन प्रदान करता है.

यह आसानी से हल, कल्टीवेटर, सीडर्स जैसे अन्य उपकरणों से जुड़ सकता है, जिससे किसानों को अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक करने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है. इसका वजन लगभग 1870 किलोग्राम है जो ऑपरेशन के दौरान स्थिरता सुनिश्चित करता है और विभिन्न इलाकों में आसानी से नेविगेट करने के लिए फुर्तीला है. ये 8 आगे और 4 रिवर्स गियर के साथ आता है, जिससे ऑपरेटर आसानी से कई दिशाओं में जा सकते हैं. यह तेल में डूबे हुए डिस्क ब्रेक के साथ 60 लीटर की ईंधन टैंक क्षमता के साथ आता है. भारत में जॉन डीरे 5050 डी की कीमत 7.99-8.70 लाख रुपये के बीच है।

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Farm Business: तुरंत शुरू करें खेती से जुड़े यह तीन व्यवसाय, चंद दिनों में बन जाएंगे करोड़पति

आजकल सभी किसान अपनी आय को बढ़ाने के लिए धान, गेहूं के साथ अन्य फसलों की खेती भी कर रहे हैं। कई लोगों को इससे बड़ा मुनाफा हुआ है। आज हम आपको खेती की तीन ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं। जो आपको चंद दिनों में करोड़पति बना देंगी।

एक्जोटिक वेजिटेबल की खेती
एक्जोटिक वेजिटेबल की खेती

आज के समय में लगभग सभी किसान अपनी आय को मजबूत करने के लिए खेतों में धान-गेहूं के अलावा भारी मात्रा में अन्य फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। जिनमें कई किसान बढ़िया मुनाफा कमाने में भी सफल हैं। वैसे तो खेती से जुड़े व्यवसाय के बारे में हम आपको पहले भी बता चुके हैं। लेकिन आज जिन फसलों व खेती से जुड़े व्यापार के बारे में बताने जा रहे हैं। उससे किसान चंद दिनों में करोड़पति बन सकते हैं। वहीं, उनमें लागत भी बहुत कम है. तो आइए खेती से जुड़े चार व्यवसाय पर एक नजर डालें।

मशरूम की खेती
मशरूम की खेती

मशरूम की खेती

मशहूर की खेती से किसान जबरदस्त कमाई कर सकते हैं। भारत में मुख्य तौर पर तीन तरह के मशरूम की खेती होती है. जिनमें बटन मशरूम, ओएस्टर मशरूम व मिल्की मशरूम शामिल हैं। इनमें भी बटन मशरूम का उत्पादन सबसे अधिक होता है। अगर एक एकड़ बटन मशरूम की खेती की बात करें तो उसमें लागत कम से कम 70 हजार रुपये आता है। जिससे महज तीन महीने में लगभग तीन लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। बता दें कि बटन मशरूम की खेती सितंबर व अक्टूबर में होती है। वहीं, यह महज एक महीने में तैयार हो जाते हैं। इसकी खेती के लिए शेड की व्यवस्था करना बहुत जरूरी है। क्योंकि तैयार होने के बाद खुले में मशरूम खराब होने लगते हैं।

मधुमक्खी पालन
मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी पालन

अगर कम लागत में खेती से जुड़े व्यवसाय करके ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं तो मधुमक्खी पालन भी बढ़िया ऑप्शन है। इस बिजनेस को शुरू करने से पहले ट्रेनिंग लेना बहुत जरुरी है। इसकी ट्रेनिंग लगभग 30 दिनों तक होती है। इस व्यवसाय को शुरू करने में किसानों को लगभग दो लाख रुपये तक खर्च करना पड़ सकता है। वहीं, शहद बेचकर साल में इससे पांच से छह लाख रुपये तक कमाई आसानी से हो सकती है।

इन तीन खेती से करोड़पति बन जाएंगे किसान
इन तीन खेती से करोड़पति बन जाएंगे किसान

एक्जोटिक वेजिटेबल की खेती

गांव से लेकर शहरों तक एक्जोटिक वेजिटेबल की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है। इनमें चेरी टमाटर, लाल शिमला मिर्च, धनिया, लाल गोभी आदि शामिल हैं। बाजार में इन सब्जियों का भाव भी काफी अच्छा मिलता है। वहीं, इनकी खेती में लागत भी बहुत कम आती है। किसान बताते हैं कि इन सब्जियों को उगाने में एक से दो महीने का समय लगता है। वहीं, साल भर में इन सब्जियों से लगभग पांच लाख रुपये तक का फायदा मिल जाता है।

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Weather Today: लगातार 8वें दिन जारी रहा लू का कहर, आज भी इन इलाकों में पड़ेगी भीषण गर्मी

आज देश के कई राज्यों में भीषण गर्मी पड़ने के आसार हैं। आइये जानें कैसा रहेगा आज मौसम का हाल।

कई जगहों पर पड़ेगी भीषण गर्मी
कई जगहों पर पड़ेगी भीषण गर्मी

दिल्ली और आसपास के इलाकों में कुछ दिन पहले तक बारिश के चलते मौसम सुहाना रहा। लोगों को गर्मी से राहत मिली। लेकिन अब फिर उन्हें भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। मौसम विभाग द्वारा जारी किए गए पूर्वानुमानों में बताया गया है कि अगले पांच दिनों तक दक्षिण भारत के कई इलाकों में बारिश हो सकती है। अगर आज की बात करें तो केरल, लक्षद्वीप, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में छिटपुट बारिश का अनुमान है। वहीं, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कुछ जगहों पर आज भारी बारिश हो सकती है।

इन इलाकों में भारी बारिश

वहीं, अगर पूर्वोत्तर भारत की बात करें तो आज मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय में अलग-अलग जगहों पर भारी बारिश हो सकती है। बुधवार को बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के अलग-अलग इलाकों में लू की गंभीर स्थिति बनी रही। इन क्षेत्रों में लगातार 8वें दिन लू का कहर जारी रहा। वहीं, आज भी मौसम विभाग ने बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, आंध्र प्रदेश, यनम, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के अधिकांश इलाकों में लू चलने की संभावना जताई है।

यहां चलेगी आंधी

आज राजस्थान के कई जगहों पर गरज-चमक के साथ धुल भरी आंधी चलने की संभावना है। वहीं, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में तापमान सामान्य रहने का अनुमान है। इसके अलावा, आज गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मौसम साफ रहने वाला है। इन राज्यों के लोग आज भीषण गर्मी का सामना कर सकते हैं।

वहीं, आज अरब सागर और आस-पास के क्षेत्रों में 170 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलने की संभावना है। ऐसे में मछुआरों को अरब सागर से सटे इलाकों से दूर रहने की सलाह दी गई है।

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Organic Potato Farming: आलू की जैविक तरीके से खेती करने का तरीका, उन्नत किस्में, उपज और फसल प्रबंधन

हमारे देश में आलू का उत्पादन मुख्यतः सब्जी के लिए होता है। इसके अलावा डॉइस, रवा, आटा, फलेक, चिप्स, फ्रेंच फ्राई, बिस्कुट आदि बनाने में उपयोग किया जाता है। आलू पौष्टिक तत्वों का खजाना है। इसमें सबसे प्रमुख स्टार्क, जैविक प्रोटीन, सोडा, पोटाश और विटामिन ए और डी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। यह मानव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। आलू की सम्भावनाओं को देखते हुए जैविक खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इसकी जैविक खेती से बंपर पैदावार पाने के लिए कुछ मुख्य बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। आज हम अपने इस लेख में आलू की खेती (Potato cultivation) से अधिकतम पैदावार किस तरह प्राप्त कर सकते हैं, इस तकनीक का उल्लेख करने वाले हैं।

Potato Varieties
Potato Varieties

हमारे देश में आलू का उत्पादन मुख्यतः सब्जी के लिए होता है। इसके अलावा डॉइस, रवा, आटा, फलेक, चिप्स, फ्रेंच फ्राई, बिस्कुट आदि बनाने में उपयोग किया जाता है. आलू पौष्टिक तत्वों का खजाना है।

इसमें सबसे प्रमुख स्टार्क, जैविक प्रोटीन, सोडा, पोटाश और विटामिन ए और डी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। यह मानव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। आलू की सम्भावनाओं को देखते हुए जैविक खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इसकी जैविक खेती से बंपर पैदावार पाने के लिए कुछ मुख्य बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। आज हम अपने इस लेख में आलू की खेती (Potato cultivation) से अधिकतम पैदावार किस तरह प्राप्त कर सकते हैं, इस तकनीक का उल्लेख करने वाले हैं।

आलू की जैविक खेती के लिए जलवायु (Climate for organic farming of potatoes)

जहां सर्दी के मौसम में पाले का प्रभाव नहीं होता है, वहां आलू की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। इसके कंदों का निर्माण 20 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर सबसे अधिक होता है। जैसे तापमान में वृद्धि होती है, वैसे ही कंदों का निर्माण में भी कम होने लगता है। देश के विभिन्न भागों में उचित जलवायु के अनुसार किसी न किसी भाग में पूरे साल आलू की खेती की जाती है।

आलू की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for organic cultivation of potato)

इसकी खेती क्षारीय भूमि के अलावा सभी प्रकार की भूमि में हो सकती है, लेकिन जीवांशयुक्त रेतीली दोमट या दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है. इसके अलावा भूमि में उचित जल निकास का प्रबंध आवश्यक है।

आलू की उन्नत किस्में (Improved varieties of potatoes)

अगेती किस्में- कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफऱी कुफरी पुखराज, कुफरी अशोका, चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, जवाहर किस्मों के पकने की अवधि 80 से 100 दिन की होती है।

मध्यम समय वाली किस्में- कुफरी सतलुज, कुफरी चिप्सोना- 1, कुफरी बादशाह, कुफरी बहार ,कुफरी लालिमा, कुफरी चिप्सोना- 3, कुफरी ज्योति, कुफरी चिप्सोना- 4, कुफरी सदाबहार किस्मों के पकने की अवधि 90 से 110 दिन की होती है।

देर से पकने वाली किस्में– कुफरी सिंधुरी, कुफरी फ़्राईसोना और कुफरी बादशाह किस्मों के पकने की अवधि 110 से 120 दिन की होती है।

संकर किस्में- कुफरी सतुलज (जे आई 5857), कुफरी जवाहर (जे एच- 222), 4486- ई, जे एफ- 5106 आदि।

विदेशी किस्में- अपटूडेट, क्रेग्स डिफाइन्स और प्रेसिडेंट आदि है।

आलू के खेत की तैयारी (Potato field preparation)

आलू के कंद मिट्टी के अन्दर तैयार होते हैं, इसलिए सबसे पहले खेती की मिट्टी को भुरभुरा बना लें. खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद दूसरी और तीसरी जुताई देसी हल या हेरों से करनी चाहिए। अगर खेत में ढेले हैं, तो पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभूरा बना लें। ध्यान रहे कि बुवाई के समय मिट्टी में नमी रहे।

फसल-चक्र

आलू जल्द तैयार होने वाली फसल है। इसकी कुछ किस्में 70 से 90 दिन में पक जाती हैं, इसलिए फसल विविधिकरण के लिए यह एक आदर्श नकदी फसल है। किसान मक्का-आलू-गेहूं, मक्का-आलू-मक्का, भिन्डी-आलू-प्याज, लोबिया आलू-भिन्डी आदि फसल प्रणाली को अपना सकते हैं।

आलू के खेत की बुआई का समय (Sowing time of potato field)

आलू की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है. सालभर में आलू की 3 फसलें प्राप्त की जा सकती है।

आलू की अगेती फसल- यह फसल सितम्बर के तीसरे सप्ताह से अक्टूबर पहले सप्ताह तक प्राप्त की जा सकती है।

मुख्य फसल- यह फसल अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक प्राप्त की जा सकती है।

बसंतकालीन फसल- यह फसल 25 दिसम्बर से 10 जनवरी तक प्राप्त की जा सकती है।

बीज की मात्रा

आलू की खेती में बीज का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसके उत्पादन में कुल लागत का 40 से 50 प्रतिशत खर्च बीज पर आता हैं। बता दें कि आलू के बीज की मात्रा किस्म, आकार, बोने की दूरी और भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है।

बीज उपचार

आलू की जैविक खेती के लिए बीज जनित और मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को जीवामृत और ट्राइकोडर्मा विरीडी 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल के हिसाब से 15 से 20 मिनट के लिए भिगोकर रख दें। इसके साथ ही बुवाई से पहले छांव में सूखा लें। मगर ध्यान दें कि ट्राइकोडर्मा क्षारीय मृदाओं के लिए उपयोगी नहीं होते हैं।

आलू की बुवाई की विधियां (Methods of sowing potatoes)

  • समतल खेत में आलू बोना
  • समतल खेत में आलू बोकर मिटटी चढ़ाना
  • मेंड़ों पर आलू की बुवाई
  • पोटैटो प्लांटर से बुवाई
  • दोहरा कूंड़ विधि

आलू की सिंचाई प्रबंधन (Potato Irrigation Management)

आलू एक उथली जड़ वाली फसल है, इसलिए इसकी खेती में बार-बार सिंचाई करनी पड़ती है। सिंचाई की संख्या किस्म और मौसम पर निर्भर करता है। इसकी खेती में बुवाई के 3 से 5 दिन बाद पहली सिंचाई हल्की करनी चाहिए। ध्यान रहे कि खेत की मिटटी हमेशा नम रहे। इसके अलावा जलवायु और किस्म के अनुसार आलू में 5 से 10 सिंचाइयां देने की आवश्यकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण

आलू की जैविक फसल के साथ उगे खरपतवार को नष्ट करने के लिए फसल में एक बार ही निंदाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। इसे बुवाई के 20 से 30 दिन बाद कर देना चाहिए। मगर ध्यान दें कि भूमि के भीतर के तने बाहर न आएं।

प्रमुख कीट

  • माहूं
  • आलू का पतंगा
  • कटुआ

कीटों का प्रबंधन

  • गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें।
  • आलू की शीघ्र समय से बुवाई करें।
  • उचित जल प्रबंधन की व्यवस्था रखें।
  • आलू में येलो स्टीकी ट्रेप का प्रयोग कर सकते हैं।
  • माहूं के लिए आलू की जैविक खेती में नीम युक्त कीटनाशकों का प्रयोग करें।
  • आलू की जैविक खेती में जीवामृत के 4 से 5 छिडकाव कर दें।
  • खेतो में प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर सकते हैं।

प्रमुख रोग

  • अगेती झुलसा
  • पछेती झुलसा

रोगों का प्रबंधन

इसके लिए सम्भावित समय से पहले हर 15 दिन के अंतराल पर नीम या गौ मूत्र आधारित कीटनाशक का छिड़काव करते रहें।

फसल की खुदाई

फसल की खुदाई किस्म और उगाये जाने के उद्देश्य पर निर्भर करती है। फसल की खुदाई करते समय ध्यान दें कि कंद पर किसी भी तरह की खरोच न आए, नहीं तो उनके जल्द सड़ने का खतरा बना रहता है। आलू के कंदो की खुदाई के लिए पोटेटो डिगर या मूंगफली हारवेस्टर का उपयोग कर सकते हैं।

आलू की पैदावार (Potato production)

आलू की जैविक खेती की पैदावार जलवायु, मिट्टी, खाद का उपयोग, किस्म और फसल की देखभाल आदि पर निर्भर करती है। सामान्य रूप से आलू की अगेती किस्मों से औसतन 250 से 400 क्विंटल पैदावार मिल जाती है। इसके अलावा पिछेती किस्मों से 300 से 600 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

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Early Blight: जानें आलू की फसल में लगने वाली बीमारियां, आलू के दाग रोग के लिए अपनाएं यह तरीके

किसानों की आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि अच्छी फसल होने के बाद भी किसी न किसी फसल के रोग के कारण फसल का उत्पादन कम हो जाता है। आज हम आपको आलू में लगने वाले एक ऐसे ही रोग से सुरक्षा के प्रबंधन की जानकारी देगें।

Beware of diseases in crops
Beware of diseases in crops

भारत एवं अन्य देशों में भी आलू एक प्रमुख सब्जी के रूप में उत्पादित की जाती है। भारत में आलू की फसल कई राज्यों की अहम फसल होती है। साथ ही उत्तर भारत में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में सबसे ज्यादा उत्पादित की जाने वाली सब्जी के रूप में होती है। आलू के विभिन्न रोगों में से कुछ प्रमुख रोग आलू के दाग रोग (Early Blight), लेटल ब्लाइट (Late Blight), वायरस से होने वाले रोग (Viral Diseases), आलू का रूईदार रोग (Potato Cyst Nematode) आदि होते हैं। आज हम आपको इनमें से आलू की पत्तियों में होने वाले दाग रोग के बारे में बताने जा रहे हैं। आलू के दाग रोग (Early Blight) एक प्रमुख पत्तियों का रोग है ,जो आलू के पौधों को प्रभावित करता है। यह रोग प्रकृति में मौजूद कई प्रकार के फंगस से हो सकता है, जिनमें Alternaria solani और Alternaria alternata फंगस प्रमुख होते हैं। इस रोग के कारण पत्तियों पर गहरे बौने या काले रंग के दाग बन जाते हैं। यह दाग सामान्यतः पत्ती की परिधि से शुरू होते हैं और धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं।

आलू के दाग रोग के प्रमुख लक्षण

  • पत्तियों पर गहरे बौने या काले रंग के दाग
  • दागों के आसपास पत्ती की परिधि पर पतला पीला या सफेद रंग का रिंग
  • पत्तियों की आकार में कमी और सूखे हुए रंग की उपस्थिति
  • पत्तियों का पतला होना और पत्ती में कटाव की उपस्थिति
  • आलू के दाग रोग से सुरक्षा के उपाय
  • स्वच्छ बीज चुनना: स्वच्छता के माध्यम से रोगों का प्रसार कम होता है, इसलिए रोगमुक्त बीजों का उपयोग करना चाहिए।
  • रोगप्रतिरोधी प्रजातियों का चयन करना: रोगप्रतिरोधी प्रजातियों को चुनकर आलू की खेती करनी चाहिए, जो दाग रोग के प्रति प्रतिरोधी हो सकती हैं।
  • संक्रमित पौधों का निकालना: जब भी संक्रमित पौधे या पत्तियां होती हुई दिखें तो उन्हे तुरंत निकाल देना चाहिए ताकि रोग का प्रसार रोका जा सके।
  • कीटनाशकों का उपयोग करना: गंभीर संक्रामण के मामलों में कीटनाशकों का उपयोग करना जरूरी हो सकता है।