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Goat Farming: इन 3 नस्ल की बकरी का पालन करने से होगा हजारों-लाखों का मुनाफा, जानें इनकी खासियत

अगर आप नौकरी से अच्छा पैसा नहीं कमा पा रहे हैं, तो आज ही इस बेहतरीन बिजनेस (Great business) को शुरु करें। जो आपको साल भर लाखों की कमाई देगा।

बकरी पालन के लिए ये हैं 3 बेहतरीन नस्ल
बकरी पालन के लिए ये हैं 3 बेहतरीन नस्ल

अगर आप अपने कम समय में अधिक लाभ कमाना चाहते हैं, तो आपके लिए पशुपालन अन्य सभी व्यापार या नौकरी से अच्छी है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पिछले कुछ सालों से पशुपालन का बिजनेस (animal husbandry business) बड़े-बड़े शहरों में भी तेजी से फैल रहा है। लोगों को अब इसके व्यापार की अहमियत समझ में आने लगी है। पशुपालन में सबसे अधिक फायदा बकरी पालन के क्षेत्र में लोगों को मिलता है।

देखा जाए तो गाय-भैंस की तुलना में बकरी पालन में कम लागत और हजारों-लाखों का मुनाफा होता है। लेकिन ध्यान रहे इससे अच्छा मुनाफा पाने के लिए आपको अच्छी नस्ल की बकरी का पालन करना चाहिए। तो आइए इस लेख में जानते हैं कि आपको किस नस्ल की बकरी को पालना चाहिए।

बकरी पालन की बेहतरीन नस्लें (best breeds of goat farming)

जानकारी के मुताबिक, भारत में तकरीबन 50 से अधिक बकरी की नस्लों का पालन किया जाता हैं। लेकिन इसमें से कुछ ही बेहतरीन बकरियां व्यावसायिक (best goats commercial) स्तर के लिए बेहतर मानी जाती हैं। इन्हीं में से आज हम आपके लिए कुछ बकरियों की जानकारी लेकर आये हैं, जिनके नाम कुछ इस प्रकार से हैं…गुजरी बकरी, सोजत बकरी, करौली बकरी

गुजरी बकरी (Gujri Goat)

इस नस्ल की बकरी आकार में बड़ी होती है. देखने में यह अन्य बकरियों से बड़ी लगती हैं। गुजरी बकरी को किसान इसलिए सबसे अधिक पालते हैं क्योंकि इसकी दूध उत्पादन की क्षमता बेहद अधिक होती है। साथ ही इस नस्ल के बकरे का मांस भी बाजार में उच्च दाम पर बिकता है। गुजरी बकरी का पालन रेतीले स्थानों पर किया जाता है। जैसे कि अजमेर, टोंक, जयपुर, सीकर और नागौर में इसे सबसे अधिक पाला जाता है।

सोजत बकरी (sojat goat)

यह बकरी देखने में बेहद सुंदर दिखती है, लोग इसकी सुंदरता के चलते इसे अधिक पालते हैं। क्योंकि यह नस्ल पशु मेले या फिर प्रदर्शनियों में आकर्षण का केंद्र बनती हैं। देखा जाए तो सोजत बकरी अधिक मात्रा में दूध नहीं देती है, लेकिन इसके मांस मानव शरीर के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। इसी कारण से बाजार में इसके मांस अच्छी खासी कीमत पर लोग खरीदने को तैयार हो जाते हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, यह बकरी राजस्थान के कई हिस्सों में पाली जाती है।

करौली बकरी (Karauli goat)

यह बकरी दूध और मांस दोनों में बेहद अच्छी मानी जाती है। इसके दूध के सेवन करने से व्यक्ति लंबे समय तक स्वस्थ रह सकता है। वहीं इसके मांस में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। करौली बकरी को भारत के ज्यादातर हिस्सों में पाला जाता है। खासतौर पर इसे मांडरेल, हिंडौन, सपोटरा आदि स्थानों के किसान अधिक पालते हैं। बता दें कि यह बकरी मीणा समुदाय से है।

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खेती के साथ बकरी पालन करके अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं किसान, सरकार भी दे रही है भारी सब्सिडी

किसान खेती के साथ बकरी पालन करके अपनी आय में इजाफा कर सकते हैं। वहीं, सरकार भी इसके लिए भारी सब्सिडी दे रही है। आइये जानें कैसे उठा सकते हैं इसका लाभ।

बकरी पालन पर सब्सिडी दे रही है सरकार
बकरी पालन पर सब्सिडी दे रही है सरकार

किसानों के लिए बकरी पालन कमाई का बेहतर जरिया बन सकता है। सरकार भी इसके लिए कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को प्रेरित कर रही है। सरकार बकरी पालन पर बंपर सब्सिडी देने का ऐलान किया है। किसान अकेले या पार्टनरशिप में भी बकरी पालन करके सरकार की सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं। तो आइये जानें कहां मिल रही है बकरी पालन पर सब्सिडी व कैसे उठा सकते हैं इसका लाभ।

बकरी पालन की यूनिट लगाने पर सब्सिडी

दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत बुंदेलखंड क्षेत्र में 100 से 500 तक बकरी पालन की यूनिट लगाने पर भारी सब्सिडी दे रही है। इस योजना के जरिए यूपी सरकार बकरी नस्ल का सुधार करना चाहती है। वहीं, सरकार की ओर से इसके लिए कुछ उन्नत किस्म के बकरे व बकरी भी दिए जाएंगे। उत्तर प्रदेश में पशुपालन व डेयरी विभाग ने बकरियों की पांच तरह की यूनिट लगाने पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी देने की घोषणा की है।

20 लाख सब्सिडी

अगर किसान 100 बकरी पालन का यूनिट तैयार करते हैं तो सरकार की ओर से उन्हें पांच बीजू बकरे मिलेंगे. वहीं, सरकार ने 100 बकरियों की यूनिट तैयार करने की लागत राशि 20 लाख रुपये निर्धारित की है। ऐसे में पशुपालकों को 10 लाख रुपये की सब्सिडी दी जाएगी। वहीं, 200 बकरियों का यूनिट लगाने पर सरकार 10 बीजू बकरे देगी। इसमें लागत 40 लाख रुपये तय की गई है। इसी तरह, 200 बकरियों का यूनिट बैठाने पर सरकार 20 लाख रुपये देगी।

50 लाख तक अनुदान

इसके अलावा, इस योजना के तहत 300 बकरियों और 15 बीजू बकरे की यूनिट लगाने पर सरकार 60 लाख रुपये के हिसाब से 30 लाख रुपये और 400 बकरियों और 20 बीजू बकरे की यूनिट लगाने पर सरकार 80 लाख रुपये (लागत) के हिसाब से 40 लाख रुपये की सब्सिडी देगी। इसके अलावा, 500 बकरियों और 25 बीजू बकरे की यूनिट तैयार करने पर उत्तर प्रदेश में 1 करोड़ रुपये (लागत) के हिसाब से 50 लाख रुपये तक का अनुदान देने का प्रावधान है।

बकरी पालन से जुड़ी खास बात

बकरी पालन की यूनिट किसान अकेले या समूह में भी बना सकते हैं। हर तरह से यूनिट लगाने पर सब्सिडी दी जा रही है। किसानों को इसका लाभ उठाने के लिए जमीन व अन्य चीजों की आवश्यकता होगी। बुंदेलखंड क्षेत्र में पशुपालन विभाग में जाकर किसान इस सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं। इसके लिए उन्हें कुछ कागजातों की भी आवश्यकता पड़ेगी। जिसके बारे में वहीं जानकारी दी जाएगी। बकरी का दूध और बकरे को सीधे बाजार में बेचकर किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं।

एक बकरा बाजार में आसानी से पांच हजार रुपये में बिक जाता है। ऐसे में पांच बकरा बेचकर पशुपालक साल में 25 हजार रुपये की कमाई कर सकते हैं। इसके अलावा बकरी का दूध 100 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बाजार में मिलता है। माना जाता है कि प्लेटलेट्स बढ़ाने में बकरी के दूध की अहम भूमिका होती है। इसी तरह, किसान हर तरह से बकरी पालकर जबरदस्त मुनाफा कमा सकते हैं।

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Medicinal Plants: घर में जरुर लगाएं ये पांच औषधीय पौधे, कई रोगों से मिलेगी मुक्ति

आपको ये पांच औषधीय पौधे घर में जरुर लगाने चाहिए। इससे कई बड़ी बीमारियों से मुक्ति मिल सकती है।

बीमारी से निजात दिलाएंगे ये पांच औषधीय पौधे
बीमारी से निजात दिलाएंगे ये पांच औषधीय पौधे

पुराने जमाने से बड़ी-बड़ी बीमारियों के इलाज के लिए औषधीय पौधों का इस्तेमाल होता रहा है। आज भी कई आयुर्वेदिक दवाइयों में इसका उपयोग किया जाता है। ये हमें कई रोगों से मुक्ति दिलाते हैं। आज हम आपको चार ऐसे खास औषधीय पौधों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनमें डायबिटीज और हृदय रोग जैसी बीमारियों को रोकने की क्षमता है। आइए, उनपर एक नजर डालें।

मेथी का पौधा

मेथी का पौधा

मेथी का पौधा

मेथी के पौधे में ढेर सारे औषधीय गुण होते हैं। इसे कई लोग घर में गमलों में लगाते हैं। सब्जी के रूप में इसकी भाजी को भी खूब पसंद किया जाता है। मेथी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है। इसे खाने से हृदय, पेट, कब्ज, त्वचा और लीवर संबंधित रोग दूर रहते हैं। इसके अलावा, यह ब्लड शुगर को भी कंट्रोल करता है। वहीं, इसका सेवन करके बालों को झड़ने से भी रोका जा सकता है। मेथी को कई आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। अगर शरीर में सूजन हो तो मेथी के पत्तों को पीसकर उसपर लगाने से आराम मिलता है। इसलिए, घर में मेथी के पौधे को जरुर लगाएं।

इंसुलिन का पौधा
इंसुलिन का पौधा

इंसुलिन का पौधा

इंसुलिन का पौधा भी आपके कई काम आ सकता है। इंसुलिन का इस्तेमाल हम डायबिटीज के इलाज के लिए कर सकते हैं। यह इसे जड़ से खत्म करने की भी क्षमता रखता है। हालांकि, यह पौधा आसानी से नहीं मिलता है। लेकिन अपने घर में इसे जरुर लगाना चाहिए।

कढ़ी पत्ता
कढ़ी पत्ता

कढ़ी पत्ता

जब औषधीय पौधों की बात होती है तो कढ़ी पत्ता का नाम भी सबसे ऊपर आता है। ये शरीर में कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। कढ़ी पत्ता आंख, त्वचा, बाल, हृदय और लिवर के लिए लाभदायक होता है। इसका सेवन करके वजन भी घटाया जा सकता है। वहीं, ये डायरिया से भी बचाव करता है। इसलिए, अपने घर में इसे भी जरुर लगाएं।

लैवेंडर का पौधा
लैवेंडर का पौधा

लैवेंडर का पौधा

लैवेंडर के कई फायदे हैं। सबसे पहले ये अनिद्रा की बीमारी को दूर करता है। जिन लोगों को नींद नहीं आती है, वह इसे तकिये के नीचे रखकर सो सकते हैं। इसका फायदा तुरंत देखने को मिलेगा। इसके अलावा, डिप्रेशन के शिकार लोगों के लिए भी लैवेंडर रामबाण है। इसका सेवन करके माइग्रेन व तवचा संबंधित रोगों से निजात पाया जा सकता है।

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हर समस्या का एक ही समाधान, इस औषधीय पौधे की खेती से हो सकते मालामाल !

देश में अब औषधीय पौधों की खेती का चलन बढ़ता ही जा रहा है। इस बीच आपको एक ऐसे औषधीय पौधे की जानकारी दे रहे हैं जो औषधीय गुणों का खजाना है जिसकी वजह से इसकी डिमांड भी ज्यादा है ये पौधा है भृंगराज का। जिसके इस्तेमाल से कई स्वास्थ्य समस्याएं ठीक होती हैं इसलिए इसकी खेती करना लाभदायक माना जाता हैं।

भृंगराज की खेती
भृंगराज की खेती

भृंगराज को हर समस्या का एक समाधान वाला औषधीय पौधा कहा जाता है. इस पौधे का हर भाग मानव शरीर के लिए बेहद उपयोगी होता है. बताया जाता है कि सदियों से भृंगराज से आयुर्वेदिक दवाइयां बनाई जा रही हैं. भृंगराज कई स्वास्थ्य लाभों के लिए काम करता है जैसे- बालों की समस्या के लिए तो चमत्कार से कम नहीं है।

रक्तचाप को नियंत्रित करना, त्वचा की समस्या का इलाज, माइग्रेन के दर्द से राहत देता है. साथ ही पीलिया का इलाज, नेत्र विकारों का भी इलाज करता है इसके अलावा अल्सर का इलाज करने के साथ हैजा में मददगार होता है और बिच्छू के काटने का भी तोड़ है. बता दें भृंगराज भारत और दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका का मूल निवासी पौधा है. औषधीय गुणों की वजह से खेती कर किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।

उपयोगी मिट्टी- यह एक सख्तजान फसल होती है, जो सभी तरह की मिट्टी में हो सकती है. हालांकि नमीयुक्त मिट्टी में अच्छी पैदावार होती है. कार्बनिक पदार्थ वाली  लाल दोमट मिट्टी खेती के लिए सबसे अच्छी मानी होती है।

अनुकूल जलवायु- भृंगराज के लिए सभी तरह की जलवायु अच्छी होती है. हालांकि तापक्रम 25 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए, इससे बढ़ोतरी और उपज ज्यादा होती है. इस फसल को बीज और कटिंग दो तरीके से लगाते हैं।

नर्सरी- नर्सरी तैयार करने के लिए सबसे पहले बेड़ के जगह की मिट्टी एक फीट तक खोदें फिर उसमें गोबर खाद 2 किग्रा प्रति sq ft के हिसाब से देते हैं, कुछ बालू मिट्टी भी मिलाते हैं. 15 सेमी ऊंचा बेड़ तैयार करते हैं, भृंगराज के बीजों को सेमी कतार में बोते हैं. इसके ऊपर बहुत पतली मिट्टी/ खाद की परत बिछाते हैं. स्प्रिंकलर या फिर झारे से पानी देते हैं बीजों की बुवाई डेढ़-दो माह बाद पौधों की प्रिकिंग खेत में लगाते हैं।

कटिंग से पौध तैयारी- इस पौधे के सिरे वाली कटिंग को लिया जाता है जिसमें 5 से 6 नोड्स और 10-15 सेमी लंबाई होना चाहिए. इन कटिंग्स को अच्छी तरह नर्सरी बेड्स या पॉलिथिन बेग्स में लगाते हैं। एक से डेढ़ महीने की अवधि के बीच इसकी जड़ें निकलने का काम पूरा हो जाता है, मुख्य पौधे खेत में तब लगा सकते हैं।

खेत की तैयारी- खेती के लिए खेत की जुताई कर पाटा चला देते हैं. रोपण से पहले खेत में एक बार पानी देते हैं ताकि नमी बने रहे।

पौधारोपण-  भृंगराज के नर्सरी में तैयार पौधों को 15 से 20 सेमी पर खेत में रोपा जाता है।

सिंचाई- रोपण के बाद एक महीने तक सप्ताह में 2 बार सिंचाई करना चाहिए. फिरा बारिश और मृदा में नमी की स्थिति को देखते हुए साप्ताहिक सिंचाई करना चाहिए।

निराई और गुड़ाई- पहली निराई पौधारोपण के 30 से 35 दिन बाद करते हैं, दूसरी खरपतवार की बढ़ोतरी को देखकर करना चाहिए. हर कटा /तुड़ाई के बाद निराई करना चाहिए, ताकि पौधों के बीच में खरपतवार न हो सके।

फसल कटाई- भृंगराज के पौधे को जड़ से उखाड़ा जाता है. फिर पौधे की जड़ को काटकर अलग कर देते हैं हरी पत्तियों को कभी एक जगह इकठ्ठा नहीं करना चाहिए, ना ही उन्हें बोरे में रखना चाहिए, पौधों को उचित साइज के टुकड़ो में काटकर अच्छी तरह दूर-दूर फैलाकर सुखाना चाहिए, इससे कीटाणु नहीं लगते और फसल सड़ती नहीं, फसल कटाई का सबसे अच्छा समय बीज काले होने पर होता है। बीजों को इकठ्ठा कर सुखाया जाता है।

उपज और आमदनी- भृंगराज की खेती से एक एकड़ में 2400 किग्रा सूखे पौधें मिलते हैं, भृंगराज का बाजार भाव 10 से 15 रूपये के बीच रहता है इस तरह प्रति एकड़ 25 हजार रूपये कमाई कर सकते हैं।

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Olea Europaea: आस्था का प्रतीक है मन्द्राक वृक्ष, जानें और किन कामों में आता है यह

विश्व में ऐसे बहुत से वृक्ष हैं जो आज भी लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं। यह पेड़-पौधे केवल आस्था का ही नहीं वरण प्राकृतिक रूप से या जीवों के हित से सम्बंधित बहुत से कामों में यह अग्रणी भूमिका का निर्वहन करते है।

This plant is used for many types of medicines.
This plant is used for many types of medicines.

मन्द्राक वृक्ष (Olea europaea), जिसे आमतौर पर “काले बेर” के नाम से जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण पौधा है जो मेदितेरेनियन क्षेत्र के लोगों के लिए प्राचीन समय से ही महत्वपूर्ण है। इस पौधे का वैज्ञानिक नाम Olea europaea है और यह खाद्य, औषधीय और सामाजिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है. यहां हम आपको मन्द्राक वृक्ष के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे। तो आइये जानें कि क्यों ख़ास है यह पेड़।

This plant is associated with religious sentiments.
This plant is associated with religious sentiments.

मन्द्राक वृक्ष (Olea europaea) एक प्राचीन पौधा

मन्द्राक वृक्ष (Olea europaea) ज्यादातर दक्षिण यूरोप, आफ्रीका और एशिया के मेदितेरेनियन क्षेत्रों में पाया जाता है. यह एक छोटा वृक्ष होता है जिसकी ऊंचाई 8-15 मीटर तक होती है, लेकिन कई स्थानों पर इसकी ऊंचाई 20 मीटर तक भी हो सकती है. इसकी पत्तियां सफेद, चमकदार हरे रंग की होती है और इसके फूल चमकदार श्वेत होते हैं जिनमें बहुत ही प्यारी खुशबू आती है।

प्राचीनता में महत्वपूर्णता

मन्द्राक वृक्ष प्राचीनकाल से ही मानव समाज के लिए महत्वपूर्ण रहा है. इसकी पत्तियों और फलों से निकाले जाने वाले तेल का उपयोग खाद्य और औषधीय उद्देश्यों के लिए किया जाता है. मन्द्राक वृक्ष के तेल में विभिन्न पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं. इसका उपयोग खाद्य बनाने, सलादों में ड्रेसिंग के रूप में और विभिन्न पकवानों में तेल के रूप में किया जाता है।

This plant found in many countries is also a symbol of Indian faith.
This plant found in many countries is also a symbol of Indian faith.

औषधीय गुणों का स्रोत

मन्द्राक वृक्ष के फल, पत्तियां और तनों में विभिन्न औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसका तेल मसाज तेल के रूप में, त्वचा की देखभाल में और बालों के लिए उपयोग किया जाता है. इसका तेल त्वचा को मोइस्चराइज़ करता है, रुखी और तैलीय त्वचा को संतुलित करता है और उम्र के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

धार्मिक और सामाजिक महत्व

मन्द्राक वृक्ष को धार्मिक और सामाजिक महत्व के कारण भी माना जाता है. कई धार्मिक परंपराओं में इसे पवित्र माना जाता है और इसकी पत्तियां, फूल और तेल का उपयोग पूजा और अनुष्ठानों में किया जाता है. इसके बारे में कई कथाएं और लोक-परंपराएं भी हैं, जो इसे समृद्धि, सौभाग्य और आशीर्वाद का प्रतीक मानती हैं।

You can also do gardening at home
You can also do gardening at home

मन्द्राक वृक्ष का संरक्षण

मन्द्राक वृक्ष को उचित संरक्षण की आवश्यकता है, क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधन के रूप में महत्वपूर्ण है और इसकी प्रजातियां कुछ स्थानों पर अत्यंत संकट में हैं। जीवनकारी की आवश्यकताओं के कारण और बढ़ती वाणिज्यिक मांग के कारण, कई स्थानों पर वृक्षों को नुकसान पहुंचाने वाली विधाएं बढ़ रही हैं। वन्यजीवों, पर्यावरण और मानवीय समुदाय के हित में मन्द्राक वृक्ष का संरक्षण महत्वपूर्ण है।

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कभी सुना है जुकिनी सब्जी का नाम, अगर नहीं तो यहां जानें इसकी खासियत

अगर आप बाजार में मिलने वाली तोरी, भिंडी और लौकी आदि सब्जियों को खाकर बोर हो गए हैं, तो आज इस बेहतरीन व विटामिन से भरपूर जुकिनी सब्जी का सेवन जरूर करें।

विटामिन व खनिज का पावर हाउस जुकिनी सब्जी
विटामिन व खनिज का पावर हाउस जुकिनी सब्जी

घरों में अक्सर कहा जाता है कि अच्छी व ताजा सब्जियां खाओं और अपनी सेहत बनाओं. देखा जाए तो यह एक दम सच भी है. दरअसल, डॉक्टरों का भी यह कहना है कि शरीर को लंबे समय तक स्वस्थ बनाए रखने के लिए सब्जियों का सेवन करना बहुत ही जरूरी है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सब्जियां मानव शरीर और मानसिक विकास (Mental Development) के लिए बेहद मददगार हैं. आज हम अपने इस लेख में आपके लिए ऐसी ही एक सब्जी की जानकारी लेकर आए हैं, जिसे शायद ही आपने खाया होगा. जी हां इस सब्जी का नाम जुकिनी है. अब आप सोच रहे होंगे कि यह किस तरह की सब्जी है जिसका नाम ही इतना अजीब है. दरअसल, यह एक तरह की तोरी है, जो रंगीन है।

जुकिनी तोरी क्या है?

यह सब्जी एक दम कद्दू की तरह दिखाई देती है. लेकिन यह कद्दू नहीं है। इसका रंग, आकार और बाहरी छिलका बेसक कद्दू जैसा हो लेकिन खाने और बनाने में यह तोरी जैसी है। विभिन्न इलाकों में यह अलग-अलग रंग की होती है कुछ इलाकों में यह पीले व हरे रंग की होती है। इसे अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। जैसे कि तोरी, तुरई और नेनुआ आदि।

विटामिन व खनिज का पावरहाउस

इस सब्जी में कई तरह के पोषण तत्व पाए जाते हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, इसमें लगभग सभी तरह के विटामिन व खनिजों का मिश्रण पाया जाता है। विटामिन ए, सी, के , फाइबर, पोटेशियम आदि की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती हैं। ऐसे में अगर आप इस जुकिनी सब्जी (Zucchini Vegetable) का सेवन करते हैं, तो आप कई तरह की बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं।

एक पौधे से मिलते हैं इतने फल

अगर आप इस जुकिनी सब्जी की खेती (Cultivation of Zucchini Vegetable) करते हैं, तो आप इससे अच्छा मुनाफा पा सकते हैं. क्योंकि इसे एक पौधे से करीब 12 किलो तक फल प्राप्त होते हैं।

लेकिन ध्यान रहे कि इसकी खेती सितंबर और नवंबर के माह में की जाती है. देखा जाए तो इसकी खेती से 25 से 30 दिन के अंदर भी फल आना शुरू हो जाते हैं और फिर 40 से 45 दिनों के अंदर ही इसके फलों की तुड़ाई शुरू कर दी जाती है।

बाजार में इस सब्जी की कीमत

मार्केट में जुकिनी सब्जी की कीमत (Cost of Zucchini Vegetable) लगभग 25 से 30 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती है।

जुकिनी सब्जी के फायदे (Benefits of Zucchini vegetable)

इस सब्जी को खाने से लोगों के शरीर के अंदर की कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे कि हड्डियां मजबूत करना, बीपी नियंत्रित रखना, ब्लड फ्लो को भी बनाए रखना आदि कई तरह की बीमारियों से लड़ने में मदद करता है।

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Agriculture Machinery Subsidy: भारत में कृषि मशीनरी के लिए विभिन्न राज्यों में मिलने वाली सब्सिडी

किसानों की सुविधा और उनकी उन्नति के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर कृषि मशीनें खरीदने पर सब्सिडी उपलब्ध करवाती हैं। इस लेख में हम अलग-अलग राज्यों द्वारा कृषि यंत्र पर मिलने वाली सब्सिडी पर चर्चा करेंगे और बतायेंगे कि किसानों को किस राज्य में कितने प्रतिशत सब्सिडी उपलब्ध करवाई जाती है।

Agricultural machinery subsidies in India
Agricultural machinery subsidies in India

कृषि मशीनरी किसानों के लिए काम का बोझ कम करने और उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन मशीनों के महत्व को देखते हुए भारत के कई राज्यों में किसानों को कृषि यंत्र खरीदने पर सब्सिडी दी जाती है। यहां हम विभिन्न राज्यों में कृषि मशीनरी पर दी जा रही सब्सिडी की जानकारी दे रहे हैं। जिससे किसानों को आधुनिक तकनीकों को अपनाने और उनकी फसल की खेती को बढ़ाने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है।

कृषि यंत्र पर राज्यवार सब्सिडी इस प्रकार हैं-

1. तमिलनाडु

तमिलनाडु का कृषि मशीनीकरण कार्यक्रम विभिन्न मशीनों के लिए सब्सिडी प्रदान करता है. जिसमें पावर टिलर, धान ट्रांस-प्लांटर्स, रोटावेटर, सीड-ड्रिल, जीरो-टिल सीड फर्टिलाइजर ड्रिल, पावर स्प्रेयर और ट्रैक्टर द्वारा संचालित मशीनें जैसे स्ट्रॉ बेलर, पावर वीडर और ब्रशकटर्स शामिल हैं. सामान्य किसानों को 40% सब्सिडी मिलती है, जबकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसानों को 50% सब्सिडी मिलती है।

2. तेलंगाना

तेलंगाना की यंत्र लक्ष्मी योजना ट्रैक्टर खरीद पर 50% सब्सिडी प्रदान करती है. कृषि मशीनीकरण योजना के तहत, यह अन्य कृषि उपकरण खरीदने के लिए भी सहायता प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसान 100% सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं. योग्य स्नातक बीमा और संपार्श्विक सुरक्षा (collateral security) के साथ एसबीआई से ऋण के लिए आवेदन कर सकते हैं।

3. महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में फार्म मशीनीकरण योजना के तहत छोटे, सीमांत और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसानों को ट्रैक्टर के लिए 35% और अन्य मशीनों के लिए 50% सब्सिडी प्रदान किया जाता है. सामान्य श्रेणी के किसानों को ट्रैक्टर के लिए 25% और अन्य मशीनों के लिए 40% अनुदान मिलता है. ऋण 5-9 वर्ष की पुनभुगतान अवधि के साथ सावधि ऋण के रूप में उपलब्ध हैं और 1 लाख रुपये से कम के ऋण के लिए किसी मार्जिन की आवश्यकता नहीं है।

4. उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश की कृषि यंत्र योजना ट्रैक्टर खरीद के लिए लागत का 25% या 45,000 रुपये (जो भी कम हो) की सब्सिडी प्रदान करता है. इसके लिए प्रथमा बैंक महिंद्रा, स्वराज और सोनालिका के सहयोग से ट्रैक्टर ऋण प्रदान करता है।

5. राजस्थान और हरियाणा

राजस्थान और हरियाणा दोनों ही फार्म मशीनीकरण योजना के तहत काम करते हैं. इसके लिए हरियाणा में सर्व हरियाणा बैंक और राजस्थान में एयू बैंक ऋण प्रदान करते हैं. योजनाएं उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाने को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।

6. गुजरात

गुजरात में सरकार सामान्य श्रेणी के लिए 25% से अधिक और विशेष श्रेणियों के लिए 35% की ट्रैक्टर सब्सिडी प्रदान करती है. कृषि मशीनरी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं. इसके लिए गुजरात ग्रामीण बैंक से ऋण आसानी से मिलती हैं।

7. कर्नाटक

कर्नाटक राज्य सरकार का उद्देश्य खेती में समयबद्धता, उत्पादकता और कम श्रम को बढ़ावा देना है. इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, सरकार “उबर फॉर एग्रीकल्चर सर्विसेज” योजना के माध्यम से किराये के आधार पर आवश्यक मशीनरी प्रदान करने की योजना बना रही है. किसान वीएसटी टिलर्स, जॉन डीरे और महिंद्रा जैसे सहयोगी ऑटोमोबाइल निर्माताओं से मशीनरी तक पहुंच सकते हैं. ऋण 9 वर्ष तक की चुकौती अवधि के साथ, कृषि सावधि ऋणों के समान ब्याज दर पर उपलब्ध हैं।

8. केरल

केरल सरकार ने फार्म मशीनीकरण प्रणाली (FMS) की शुरुआत की है, एक सॉफ्टवेयर प्रणाली जो मशीनरी वितरण में पारदर्शिता सुनिश्चित करती है. ट्रैक्टर की खरीद 25% सब्सिडी के लिए पात्र हैं, जबकि अन्य उपकरण जैसे कि टिलर और रोटावेटर के लिए ऋण उपलब्ध हैं. गर्भावस्था अवधि को छोड़कर, ऋण चुकौती अवधि 5 से 10 वर्ष तक होती है।

9. आंध्र प्रदेश

आंध्र प्रदेश में ट्रैक्टरों का वितरण रायथु राधम योजना के तहत किया जाता है. योग्यता मानदंड के लिए किसान कम से कम एक एकड़ जमीन का मालिक होना चाहिए. इसके लिए आईसीआईसीआई बैंक 5 साल की चुकौती समय सीमा के साथ ऋण प्रदान करता है।

10. मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश मैक्रो-मैनेजमेंट स्कीम के माध्यम से छोटे ट्रैक्टरों के लिए सब्सिडी प्रदान करता है. यह योजना, राज्य और केंद्र सरकारों के सहयोग से किसानों को उनकी मशीनरी खरीद में सहायता करने के लिए ऋण भी उपलब्ध कराता हैं।

11. असम

असम में मुख्यमंत्री समग्र ग्राम्य उन्नयन योजना (CMSGUY) ट्रैक्टरों के लिए 70% (5.5 लाख रुपये तक) की सब्सिडी प्रदान करती है. पात्र किसानों के पास न्यूनतम 2 एकड़ भूमि होनी चाहिए. इसका 8-10 किसानों के समूह भी लाभ उठा सकते हैं. एसबीआई मशीनों की खरीद के लिए ऋण प्रदान करता है।

12. ओडिशा

ओडिशा की पूंजी निवेश और फार्म मशीनीकरण योजनाएं टिलर के लिए 50% सब्सिडी और ट्रैक्टर के लिए 40% सब्सिडी प्रदान करती हैं. ओडिशा ग्राम्य बैंक कृषि वाहनों की खरीद के लिए ऋण प्रदान करता है, जो 15% मार्जिन के साथ लागत का 85% कवर करता है।

13. पंजाब

पंजाब में पंजाब नेशनल बैंक से ऋण उपलब्ध होने के साथ-साथ किसान दोस्त वित्त योजना (Kisan Dost Finance scheme) भी चलाई जा रही है. इन पहलों का उद्देश्य पंजाब में किसानों को कृषि मशीनरी और उपकरण खरीदने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

14. पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल एक एचडीएफसी ऋण और एक ट्रैक्टर प्लस सुरक्षा योजना प्रदान करता है. ये कार्यक्रम पश्चिम बंगाल में ट्रैक्टर और अन्य कृषि मशीनरी की खरीद के लिए किसानों को वित्तीय सहायता और बीमा कवरेज प्रदान करते हैं।

15. अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश कृषि मशीनरी की खरीद में किसानों का समर्थन करने के लिए आईसीआईसीआई बैंक के माध्यम से ऋण प्रदान करता है. ये ऋण राज्य में किसानों को उपकरणों की खरीद के लिए आवश्यक धन का उपयोग करने में सक्षम बनाते हैं, जिससे यंत्रीकृत कृषि पद्धतियों की सुविधा मिलती है।

16. हिमाचल प्रदेश और मेघालय

हिमाचल प्रदेश और मेघालय भी कृषि मशीनीकरण योजना और एसएमएएम (कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन) योजना का पालन करते हैं. इन पहलों का उद्देश्य कृषि में आधुनिक मशीनरी और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देना है, जिससे इन राज्यों में किसानों को अपनी कृषि पद्धतियों और उत्पादकता को बढ़ाने में सक्षम बनाया जा सके।

इन राज्यों की पहल कृषि क्षेत्र में उन्नत मशीनरी और प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता और समर्थन प्रदान करती हैं। इन सब्सिडी और ऋणों का लाभ उठाकर, देश भर के किसान अपने कृषि कार्यों को आसानी से कर सकते हैं। साथ ही कृषि में उत्पादकता और स्थिरता बढ़ाने में योगदान कर सकते हैं।

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Farming Idea: आधुनिक तरीके से खेती कर किसान कमा रहा 80 लाख सालाना,

नई दिल्ली: देश के किसानों की बदहाली और आत्महत्या की खबरें आप बहुत पढ़ते होंगे। हम आपको अपनी खेती किसानी सीरीज में उन किसानों के बारे में बता रहे हैं जो अपने इनोवेटिव आइडिया और आधुनिक तकनीक की मदद से काफी कमाई कर रहे हैं। आज हम आपको बिहार के समस्तीपुर के एक किसान सुधांशु कुमार की कहानी बता रहे हैं। सुधांशु कुमार अपने आसपास के ही नहीं बल्कि देश के करोड़ों किसानों के लिए एक मिसाल बन गए हैं।

सुधांशु आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए देश भर में मशहूर हैं।

अपने तकनीक की मदद से सुधांशु अपने बगीचे में तापमान नियंत्रित रखने में मदद हासिल करते हैं। 70 बीघे में लगे फसल की निगरानी, सिंचाई और खेत में लगे पौधों तक पानी-खाद पहुंचाने के लिए सुधांशु कुमार ने अपने खेत को वायरलेस ब्रॉडबैंड इंटरनेट से जोड़ दिया है।

खेत में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं जिसे स्मार्ट फोन और लैपटॉप से जोड़कर सिंचाई प्रणाली को कहीं से भी नियंत्रित किया जा सकता है। अपने खेत में समय पर सिंचाई और आधुनिक तकनीक से खाद देकर इलाके के किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं।

सुधांशु कुमार आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए देश भर में मशहूर हो रहे हैं। 70 बीघे के खेत में उन्होंने 27000 फलों के पेड़ लगाए हैं। इनमें आम, लीची, अमरूद, केला, मौसमी, शरीफा और नींबू के पेड़ शामिल है।

प्रयोग के रूप में सुधांशु में जामुन, बेर, बेल, कटहल, चीकू और मीठी इमली की भी खेती कर रहे हैं। लीची की बिक्री से सुधांशु 22 लाख रुपए सालाना कमाते हैं. आम का बाग उन्होंने 13 लाख रुपए में बेचा है। इसी तरह 16 बीघा में केले लगाए थे। छठ पूजा से ठीक पहले 35 लाख रुपए के केले की बिक्री हुई थी। कुल मिलाकर देखा जाए तो आधुनिक तकनीक से फल की खेती करने में किसान को काफी कमाई हो सकती है।

किसान सुधांशु कुमार ने खेती के साथ ही कड़कनाथ मुर्गी पालन शुरू किया है। इसके अलावा वे डेरी का भी कारोबार करते हैं. अपने खेत में ही कुमार ने कड़कनाथ मुर्गे के 500 चूजे पाले हैं। अलग-अलग नस्ल की गाय को पाल कर वे डेयरी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।

सुधांशु कुमार को उन्नत खेती के लिए कई अवार्ड मिल चुके हैं। सुधांशु कुमार ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद केरल में टाटा टी के गार्डन में असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी की, लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और नौकरी छोड़कर गांव चले आए। इसके बाद उन्होंने आधुनिक तरीके से खेती शुरू की। सुधांशु साल 1990 से खेती कर रहे हैं और आर्थिक लाभ बढ़ाने के लिए सुधांशु हमेशा वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।

KENNEDY SPACE CENTER, FLA.  -  In a plant growth chamber in the KSC Space Life Sciences Lab,  plant physiologist Ray Wheeler checks onions being grown using hydroponic techniques.  The other plants are Bibb lettuce (left) and radishes (right).  Wheeler and other colleagues are researching plant growth under different types of light, different CO2 concentrations and temperatures.  The Lab is exploring various aspects of a bioregenerative life support system. Such research and technology development will be crucial to long-term habitation of space by humans.

Hydroponic Farming: सुबह लगाते हैं सब्जी और शाम को छापते हैं नोट, बिना मिट्टी की खेती करने वाले इस किसान की जानिए कहानी

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के विशाल माने रोज सुबह अपने हाइड्रो पोनिक फार्म में सब्जियां लगाते नजर आते हैं। सब्जियों के पौधे को विशाल बिना मिट्टी वाली खेती के जरिए एक ग्रीन हाउस में उगाते हैं। विशाल ने अपने छोटे से हाइड्रो पोनिक फार्म में 50 अलग-अलग तरह की पत्तियों वाली सब्जी लगाई हुई है। विशाल माने ने अपने अपने साथ देश दुनिया के तमाम किसानों को हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के लिए ट्रेन करने के हिसाब से जगदंबा हाइड्रोपोनिक्स नाम की एक कंपनी बनाई है।

सब्जियों के पौधे को विशाल बिना मिट्टी वाली खेती के जरिए एक ग्रीन हाउस में उगाते हैं।

जगदंबा हाइड्रोपोनिक्स एंड एग्रीकल्चर सिस्टम नाम की यह कंपनी देश के किसी भी हिस्से में किसानों को बिना मिट्टी की खेती से संबंधित तकनीक, उपकरण और पूरा सेटअप लगाने में मदद करती है।

बिना मिट्टी के की जा रही खेती देश के कई इलाके के किसानों के लिए अब भी एक कौतूहल की तरह है। विशाल माने लोगों के पास जाकर ग्रीन हाउस और हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के फायदे समझा कर उन्हें अपना सेटअप बनाने में मदद करते हैं।

हाइड्रोपोनिक खेती या हाइड्रोकल्चर तरीके से खेती करके तेलंगाना के किसान हरिशचंद्र रेड्डी आज करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं। शुरुआत में उन्होंने हाइड्रोपोनिक खेती का प्रशिक्षण लिया और इसकी तकनीक का गहन अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने छह माह तक हाइड्रोपोनिक खेती के तरीके को समझा और इसके बाद हाइड्रोपोनिक तरीके से खेती करना शुरू किया।

किसान हरिशचंद्र रेड्डी ने कहा कि वह सस्ती कीमत पर लोगों को फल-सब्जियां खिलाना चाहते थे। बाजार में सब्जियों की मांग को देखते हुए उनका ध्यान हाइड्रोपोनिक खेती की ओर गया। उन्होंने कई जगह पर जाकर इसके बारे में जानकारी और प्रशिक्षण लेकर हाइड्रोपोनिक खेती करना शुरू किया।

शुरुआत में हाइड्रोपोनिक या प्राकृतिक खेती करने में लागत काफी आई, लेकिन उसके बाद लागत कम होती गई और उपज बढ़ती रही। इसका परिणाम यह हुआ कि आज वे इस प्रकार की खेती करके करीब 3 करोड़ तक की कमाई कर रहे हैं। ग्रीन हाउस हाइड्रोपोनिक तकनीक स्थापित करने में प्रति एकड़ के क्षेत्र में करीब 50 लाख रुपए तक का खर्च आता है।

हाइड्रोपोनिक एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब है बिना मिट्टी के सिर्फ पानी के जरिए खेती। यह एक आधुनिक खेती है, जिसमें पानी का इस्तेमाल करते हुए जलवायु को नियंत्रित करके खेती की जाती है। पानी के साथ थोड़े बालू या कंकड़ की जरूरत पड़ सकती है। इसमें तापमान 15-30 डिग्री के बीच रखा जाता है और आर्द्रता को 80-85 फीसदी रखा जाता है। पौधों को पोषक तत्व भी पानी के जरिए ही दिए जाते हैं।

हाइड्रोपोनिक फ़ार्मिंग में खेती पाइपों के जरिए होती है. इनमें ऊपर की तरफ से छेद किए जाते हैं और उन्हीं छेदों में पौधे लगाए जाते हैं. पाइप में पानी होता है और पौधों की जड़ें उसी पानी में डूबी रहती हैं। इस पानी में वह हर पोषक तत्व घोला जाता है, जिसकी पौधे को जरूरत होती है।

यह तकनीक छोटे पौधों वाली फसलों के लिए बहुत अच्छी है. इसमें गाजर, शलजम, मूली, शिमला मिर्च, मटर, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूजा, अनानास, अजवाइन, तुलसी, टमाटर, भिंडी जैसी सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं।

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मानसून में सब्जियां उगाने के लिए अपनाएं वर्टिकल फार्मिंग तकनीक, बारिश से नहीं होगी फसल खराब

किसान बहुत बेसब्री से मानसून का इंताजर करते हैं, ताकि वह पानी वाली फसलों की खेती आसानी से कर पाएं. मानसून सीजन खरीफ फसलों के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता है. इस दौरान किसान मुख्य रूप से धान की खेती को प्रमुखता देते हैं. धान के साथ-साथ सोयाबीन, मक्का, अरहर, दलहन-तिलहन फसलों की बुवाई करते हैं।

किसान बहुत बेसब्री से मानसून का इंताजर करते हैं, ताकि वह पानी वाली फसलों की खेती आसानी से कर पाएं. मानसून सीजन खरीफ फसलों के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता है. इस दौरान किसान मुख्य रूप से धान की खेती को प्रमुखता देते हैं. धान के साथ-साथ सोयाबीन, मक्का, अरहर, दलहन-तिलहन फसलों की बुवाई करते हैं. मगर कई बार कम या अधिक बारिश से सब्जियों की फसल में  रोग और कीट का प्रकोप हो जाता है. इस कारण किसानों को सब्जियों की खेती में भारी नुकसान उठाना पड़ता है. शायद यही वजह है कि किसान धान, मक्का. सोयाबीन जैसी फसलों की तरफ ज्यादा रूख करते हैं. ऐसे में आज कृषि जागरण अपने किसान भाईयों के लिए इस समस्या का समाधान लेकर आया है।

दरअसल, देश के अधिकतर राज्यों के बागवानी विभाग द्वारा सब्जियों की खेती के लिए कई उन्नत तकनीक को विकसित किया जा रहा है. इसमें वर्टिकल फार्मिंग तकनीक का नाम भी शमिल है. आजकल खेती में यह तकनीक वरदान बनती जा रही है. किसान इस तकनीक को अपनाकर खेती में काफी लाभ उठा रहे हैं. इसके तहत किसान खीरा, घीया, टमाटर, शिमला मिर्च, तोरई, करेला, सादा मिर्च और ऑफ सीजन धनिया भी उगा सकते हैं।

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क्या है वर्टिकल फार्मिंग  (What is vertical farming)

इस तकनीक में सब्जियों के पौधों को पॉली हाउस में ऊपर बांध दिया जाता है. इसके बाद बांस और बल्लियों के सहारे बेल को उपर चढ़ा देते हैं. इस तरह सब्जियां जमीन पर नहीं टिक पाती हैं औऱ पौधे ऊपर की तरफ बढ़ते रहते हैं. इस तरह सब्जियों की फसल बारिश, कीट, रोग आदि के प्रकोप से बची रहती हैं, साथ ही इससे उत्पादन भी अधिक मिलता है।

वर्टिकल फार्मिंग से फायदा (Benefit from vertical farming)

इस तकनीक में सब्जियों की फसलें जमीन को नहीं छू नहीं पाती हैं. इस कारण उनका आकार और रंग काफी साफ प्राप्त होता हैं. साफ शब्दों में कहें, तो फसल की गुणवत्ता काफी अच्छी मिलती है और बाजार में अच्छी कीमत में बिकती हैं।

वर्टिकल फार्मिंग पर सब्सिडी (Subsidy on vertical farming)

किसानों को इस तकनीक से सब्जियां उगाने पर बागवानी विभाग द्वारा सब्सिडी भी उपलब्ध कराई जाती है. राज्य सरकार अपने-अपने अनुसार इस तकनीक पर सब्सिडी देती हैं. इसको अपनाकर किसान फसलों का दोगुना उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. देश के कई राज्यों के किसान इसका लाभ उठा रहे हैं।