अगर आप पेशेवर किसान हैं और धान-गेहूं व फल-सब्जी की खेती से आपको उचित मुनाफा नहीं मिल रहा है तो आपके लिए एक खास तरह की घास की खेती फायदेमंद साबित हो सकती है। वैसे तो यह घास भी साधारण घास की तरह दिखती है लेकिन इसमें कई खासियत हैं। बाजार में यह घास काफी मंहगी बिकती है। वहीं, इनकी खेती के लिए ज्यादा पैसा भी इन्वेस्ट नहीं करना पड़ता है। तो आइये, इस घास के बारे में विस्तार से जानें।
यह है घास का नाम
जिस घास के बारे में हम बात कर रहे हैं, उसका नाम लेमन ग्रास है। यह थोड़ा बहुत नींबू की तरह महकता है।इसलिए इसे लेमन घास का नाम दिया गया है। बाजार में लेमन घास की काफी मांग है। यह लाखों में बिकते हैं। माना जाता है कि यह घास कई बीमारियों को जड़ से उखाड़ फेंकने का भी काम करते हैं। इसकी खेती करने वाले किसान दो तरह से कमाई करते हैं।
तेल निकालकर बेचने से ज्यादा फायदा
पहली कमाई तो सीधे घास बेचकर होती है। वहीं, दूसरी तरफ इसका तेल भी निकालकर बेचा जाता है। एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि किसान इस घास से असली कमाई तेल के माध्यम से ही करते हैं। अगर वह तेल निकालने में सक्षम नहीं होते हैं तो वे घास को बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेच देते हैं। जो उन्हें अच्छा खासा पैसा देती हैं।
यहां भी उगा सकते हैं घास
लेमन घास की खेती के लिए किसान को पूरे खेत की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इसे मेड़ पर भी उगाया जा सकता है. वैसे तो पूरे साल इस घास की खेती होती है लेकिन फरवरी से जुलाई तक का महीना इसके लिए सबसे सही माना जाता है। अगर हर 15 दिन पर इस घास में पानी डाला जाए तो पैदावार भी अच्छी मिल जाती है। इससे तरीके से आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि लेमन घास की खेती में कितना खर्च आ सकता है, व कितना कमाई कर सकते हैं।
हमारे देश में आलू का उत्पादन मुख्यतः सब्जी के लिए होता है। इसके अलावा डॉइस, रवा, आटा, फलेक, चिप्स, फ्रेंच फ्राई, बिस्कुट आदि बनाने में उपयोग किया जाता है। आलू पौष्टिक तत्वों का खजाना है। इसमें सबसे प्रमुख स्टार्क, जैविक प्रोटीन, सोडा, पोटाश और विटामिन ए और डी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। यह मानव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। आलू की सम्भावनाओं को देखते हुए जैविक खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इसकी जैविक खेती से बंपर पैदावार पाने के लिए कुछ मुख्य बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। आज हम अपने इस लेख में आलू की खेती (Potato cultivation) से अधिकतम पैदावार किस तरह प्राप्त कर सकते हैं, इस तकनीक का उल्लेख करने वाले हैं।
हमारे देश में आलू का उत्पादन मुख्यतः सब्जी के लिए होता है। इसके अलावा डॉइस, रवा, आटा, फलेक, चिप्स, फ्रेंच फ्राई, बिस्कुट आदि बनाने में उपयोग किया जाता है. आलू पौष्टिक तत्वों का खजाना है।
इसमें सबसे प्रमुख स्टार्क, जैविक प्रोटीन, सोडा, पोटाश और विटामिन ए और डी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। यह मानव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। आलू की सम्भावनाओं को देखते हुए जैविक खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इसकी जैविक खेती से बंपर पैदावार पाने के लिए कुछ मुख्य बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। आज हम अपने इस लेख में आलू की खेती (Potato cultivation) से अधिकतम पैदावार किस तरह प्राप्त कर सकते हैं, इस तकनीक का उल्लेख करने वाले हैं।
आलू की जैविक खेती के लिए जलवायु (Climate for organic farming of potatoes)
जहां सर्दी के मौसम में पाले का प्रभाव नहीं होता है, वहां आलू की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। इसके कंदों का निर्माण 20 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर सबसे अधिक होता है। जैसे तापमान में वृद्धि होती है, वैसे ही कंदों का निर्माण में भी कम होने लगता है। देश के विभिन्न भागों में उचित जलवायु के अनुसार किसी न किसी भाग में पूरे साल आलू की खेती की जाती है।
आलू की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for organic cultivation of potato)
इसकी खेती क्षारीय भूमि के अलावा सभी प्रकार की भूमि में हो सकती है, लेकिन जीवांशयुक्त रेतीली दोमट या दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है. इसके अलावा भूमि में उचित जल निकास का प्रबंध आवश्यक है।
आलू की उन्नत किस्में (Improved varieties of potatoes)
अगेती किस्में- कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफऱी कुफरी पुखराज, कुफरी अशोका, चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, जवाहर किस्मों के पकने की अवधि 80 से 100 दिन की होती है।
मध्यम समय वाली किस्में- कुफरी सतलुज, कुफरी चिप्सोना- 1, कुफरी बादशाह, कुफरी बहार ,कुफरी लालिमा, कुफरी चिप्सोना- 3, कुफरी ज्योति, कुफरी चिप्सोना- 4, कुफरी सदाबहार किस्मों के पकने की अवधि 90 से 110 दिन की होती है।
देर से पकने वाली किस्में– कुफरी सिंधुरी, कुफरी फ़्राईसोना और कुफरी बादशाह किस्मों के पकने की अवधि 110 से 120 दिन की होती है।
संकर किस्में- कुफरी सतुलज (जे आई 5857), कुफरी जवाहर (जे एच- 222), 4486- ई, जे एफ- 5106 आदि।
विदेशी किस्में- अपटूडेट, क्रेग्स डिफाइन्स और प्रेसिडेंट आदि है।
आलू के खेत की तैयारी (Potato field preparation)
आलू के कंद मिट्टी के अन्दर तैयार होते हैं, इसलिए सबसे पहले खेती की मिट्टी को भुरभुरा बना लें. खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद दूसरी और तीसरी जुताई देसी हल या हेरों से करनी चाहिए। अगर खेत में ढेले हैं, तो पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभूरा बना लें। ध्यान रहे कि बुवाई के समय मिट्टी में नमी रहे।
फसल-चक्र
आलू जल्द तैयार होने वाली फसल है। इसकी कुछ किस्में 70 से 90 दिन में पक जाती हैं, इसलिए फसल विविधिकरण के लिए यह एक आदर्श नकदी फसल है। किसान मक्का-आलू-गेहूं, मक्का-आलू-मक्का, भिन्डी-आलू-प्याज, लोबिया आलू-भिन्डी आदि फसल प्रणाली को अपना सकते हैं।
आलू के खेत की बुआई का समय (Sowing time of potato field)
आलू की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है. सालभर में आलू की 3 फसलें प्राप्त की जा सकती है।
आलू की अगेती फसल- यह फसल सितम्बर के तीसरे सप्ताह से अक्टूबर पहले सप्ताह तक प्राप्त की जा सकती है।
मुख्य फसल- यह फसल अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक प्राप्त की जा सकती है।
बसंतकालीन फसल- यह फसल 25 दिसम्बर से 10 जनवरी तक प्राप्त की जा सकती है।
बीज की मात्रा
आलू की खेती में बीज का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसके उत्पादन में कुल लागत का 40 से 50 प्रतिशत खर्च बीज पर आता हैं। बता दें कि आलू के बीज की मात्रा किस्म, आकार, बोने की दूरी और भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है।
बीज उपचार
आलू की जैविक खेती के लिए बीज जनित और मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को जीवामृत और ट्राइकोडर्मा विरीडी 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल के हिसाब से 15 से 20 मिनट के लिए भिगोकर रख दें। इसके साथ ही बुवाई से पहले छांव में सूखा लें। मगर ध्यान दें कि ट्राइकोडर्मा क्षारीय मृदाओं के लिए उपयोगी नहीं होते हैं।
आलू की बुवाई की विधियां (Methods of sowing potatoes)
समतल खेत में आलू बोना
समतल खेत में आलू बोकर मिटटी चढ़ाना
मेंड़ों पर आलू की बुवाई
पोटैटो प्लांटर से बुवाई
दोहरा कूंड़ विधि
आलू की सिंचाई प्रबंधन (Potato Irrigation Management)
आलू एक उथली जड़ वाली फसल है, इसलिए इसकी खेती में बार-बार सिंचाई करनी पड़ती है। सिंचाई की संख्या किस्म और मौसम पर निर्भर करता है। इसकी खेती में बुवाई के 3 से 5 दिन बाद पहली सिंचाई हल्की करनी चाहिए। ध्यान रहे कि खेत की मिटटी हमेशा नम रहे। इसके अलावा जलवायु और किस्म के अनुसार आलू में 5 से 10 सिंचाइयां देने की आवश्यकता होती है।
खरपतवार नियंत्रण
आलू की जैविक फसल के साथ उगे खरपतवार को नष्ट करने के लिए फसल में एक बार ही निंदाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। इसे बुवाई के 20 से 30 दिन बाद कर देना चाहिए। मगर ध्यान दें कि भूमि के भीतर के तने बाहर न आएं।
प्रमुख कीट
माहूं
आलू का पतंगा
कटुआ
कीटों का प्रबंधन
गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें।
आलू की शीघ्र समय से बुवाई करें।
उचित जल प्रबंधन की व्यवस्था रखें।
आलू में येलो स्टीकी ट्रेप का प्रयोग कर सकते हैं।
माहूं के लिए आलू की जैविक खेती में नीम युक्त कीटनाशकों का प्रयोग करें।
आलू की जैविक खेती में जीवामृत के 4 से 5 छिडकाव कर दें।
खेतो में प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर सकते हैं।
प्रमुख रोग
अगेती झुलसा
पछेती झुलसा
रोगों का प्रबंधन
इसके लिए सम्भावित समय से पहले हर 15 दिन के अंतराल पर नीम या गौ मूत्र आधारित कीटनाशक का छिड़काव करते रहें।
फसल की खुदाई
फसल की खुदाई किस्म और उगाये जाने के उद्देश्य पर निर्भर करती है। फसल की खुदाई करते समय ध्यान दें कि कंद पर किसी भी तरह की खरोच न आए, नहीं तो उनके जल्द सड़ने का खतरा बना रहता है। आलू के कंदो की खुदाई के लिए पोटेटो डिगर या मूंगफली हारवेस्टर का उपयोग कर सकते हैं।
आलू की पैदावार (Potato production)
आलू की जैविक खेती की पैदावार जलवायु, मिट्टी, खाद का उपयोग, किस्म और फसल की देखभाल आदि पर निर्भर करती है। सामान्य रूप से आलू की अगेती किस्मों से औसतन 250 से 400 क्विंटल पैदावार मिल जाती है। इसके अलावा पिछेती किस्मों से 300 से 600 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
किसानों की आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि अच्छी फसल होने के बाद भी किसी न किसी फसल के रोग के कारण फसल का उत्पादन कम हो जाता है। आज हम आपको आलू में लगने वाले एक ऐसे ही रोग से सुरक्षा के प्रबंधन की जानकारी देगें।
भारत एवं अन्य देशों में भी आलू एक प्रमुख सब्जी के रूप में उत्पादित की जाती है। भारत में आलू की फसल कई राज्यों की अहम फसल होती है। साथ ही उत्तर भारत में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में सबसे ज्यादा उत्पादित की जाने वाली सब्जी के रूप में होती है। आलू के विभिन्न रोगों में से कुछ प्रमुख रोग आलू के दाग रोग (Early Blight), लेटल ब्लाइट (Late Blight), वायरस से होने वाले रोग (Viral Diseases), आलू का रूईदार रोग (Potato Cyst Nematode) आदि होते हैं। आज हम आपको इनमें से आलू की पत्तियों में होने वाले दाग रोग के बारे में बताने जा रहे हैं। आलू के दाग रोग (Early Blight) एक प्रमुख पत्तियों का रोग है ,जो आलू के पौधों को प्रभावित करता है। यह रोग प्रकृति में मौजूद कई प्रकार के फंगस से हो सकता है, जिनमें Alternaria solani और Alternaria alternata फंगस प्रमुख होते हैं। इस रोग के कारण पत्तियों पर गहरे बौने या काले रंग के दाग बन जाते हैं। यह दाग सामान्यतः पत्ती की परिधि से शुरू होते हैं और धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं।
आलू के दाग रोग के प्रमुख लक्षण
पत्तियों पर गहरे बौने या काले रंग के दाग
दागों के आसपास पत्ती की परिधि पर पतला पीला या सफेद रंग का रिंग
पत्तियों की आकार में कमी और सूखे हुए रंग की उपस्थिति
पत्तियों का पतला होना और पत्ती में कटाव की उपस्थिति
आलू के दाग रोग से सुरक्षा के उपाय
स्वच्छ बीज चुनना: स्वच्छता के माध्यम से रोगों का प्रसार कम होता है, इसलिए रोगमुक्त बीजों का उपयोग करना चाहिए।
रोगप्रतिरोधी प्रजातियों का चयन करना: रोगप्रतिरोधी प्रजातियों को चुनकर आलू की खेती करनी चाहिए, जो दाग रोग के प्रति प्रतिरोधी हो सकती हैं।
संक्रमित पौधों का निकालना: जब भी संक्रमित पौधे या पत्तियां होती हुई दिखें तो उन्हे तुरंत निकाल देना चाहिए ताकि रोग का प्रसार रोका जा सके।
कीटनाशकों का उपयोग करना: गंभीर संक्रामण के मामलों में कीटनाशकों का उपयोग करना जरूरी हो सकता है।
किसानों को एक सब्सिडी के तहत 48 हजार रुपये मिल रहे हैं। आइए जानें कैसे अन्नदाता उठा सकते हैं लाभ।
अन्नदाताओं को खुश करने के लिए सरकार आए दिन एक से बढ़कर एक योजनाएं पेश करती है। इस वक्त किसानों के लिए एक और अच्छी खबर सामने आई है। एक राज्य सरकार खास योजना के तहत कृषकों को 48 हजार रुपये तक की सब्सिडी दे रही है। इस अनुदान का लाभ उठाने के लिए किसान तुरंत आवेदन कर सकते हैं। तो आइए जानें किस योजना के तहत कहां मिल रही है किसानों को सब्सिडी और कैसे उठा सकते हैं इसका लाभ।
आवारा पशुओं से बचाव के लिए शुरू की गई योजना
दरअसल, राजस्थान में किसानों को एक खास काम के लिए सब्सिडी देने का ऐलान किया गया है। राज्य सरकार चूरू जिले के कृषकों तारबंदी योजना के तहत अनुदान दे रही है। इसको लेकर अधिकारियों का कहना है कि फसलों को आवारा जानवरों व नीलगाय से हो रहे नुकसान को ध्यान में रखते हुए इस योजना का ऐलान किया गया है। इसका लाभ जिले के लगभग 5800 किसान उठा सकेंगे।
इन किसानों को मिलेगी इतनी सब्सिडी
वैसे तो हर श्रेणी के किसानों को इसका फायदा मिलेगा। लेकिन सामान्य श्रेणी के किसानों को 40 हजार रुपए का अनुदान दिया जाएगा। वहीं, लघु एवं सीमांत श्रेणी के किसानों को इस सब्सिडी के तहत 48 हजार रुपये मिलेंगे। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस योजना का लाभ उन्हीं किसानों को मिलेगा, जो कम से कम 1.5 हैक्टेयर जमीन में तारबंदी कराएंगे।
ऐसे करें आवेदन
राजस्थान सरकार की इस योजना का लाभ उठाने के लिए अन्नदाताओं को राज किसान पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके लिए उन्हें कुछ दस्तावेज भी जमा करने होंगे, जिसके बारे में वेबसाइट पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। बता दें कि राजस्थान के अलावा भारत के अन्य राज्यों में भी तारबंदी को लेकर सरकारें भारी सब्सिडी दे रही हैं। कुछ राज्यों में सरकार किसानों को इसके लिए 60-70 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है।
आगामी दिनों में भारत के कई शहरों में हल्की से लेकर भारी बारिश की चेतावनी जारी की गई है। साथ ही मौसम विभाग ने कुछ इलाकों में लू (Loo) चलने की भी संभावना जताई है।
भारत के विभिन्न शहरों में बीते कल यानी रविवार के दिन बारिश होने से गर्मी में राहत देखने को मिली है।वहीं आज की बात करें तो आज देश के कई राज्यों में हल्की बारिश होने के आसार हैं। वहीं, कुछ इलाकों में तापमान में वृद्धि देखी जा सकती है। अनुमान है कि राजस्थान और इसके आसपास के क्षेत्रों में आज चक्रवाती हवाएं चलने की संभावना है। आइए देशभर के विभिन्न इलाकों में मौसम की स्थिति के बारे में विस्तार से जानें।
दिल्ली में लू और गर्मी से राहत
दिल्ली में रात के समय रुक-रुक कर हो रही बारिश से दिल्लीवासियों को जून माह में अभी तक लू व भीषण गर्मी से राहत मिली हुई है। देखा जाए तो कुछ इलाकों में आंधी-बारिश होने से दिल्ली से सटे इलाकों में तापमान 40 डिग्री से नीचे ही बना हुआ है।
मौसम विभाग द्वारा जारी की गई ताजा अपडेट के मुताबिक, दिल्ली में आज भी तापमान 40 डिग्री से नीचे रहने की संभावना है। अनुमान लगाया जा रहा है कि दिल्ली में यह तापमान 6 जून, 2023 तक बने रहने की संभावना है।
अगले 5 दिनों तक इन इलाकों में बारिश का अलर्ट
मौसम विभाग के पूर्वानुमानों के अनुसार, अगले 5 दिनों तक भारत के अलग-अलग हिस्सों जैसे- केरल, लक्षद्वीप, दक्षिण आंतरिक कर्नाटक में गरज/बिजली/तेज हवाओं के साथ हल्की/मध्यम वर्षा होने की संभावना है।
रिपोर्ट के मुताबिक, आज उत्तर-पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में गरज/बिजली/तेज हवाएं चलने को लेकर अलर्ट जारी किया गया है। तमिलनाडु, पुडुचेरी और कराईकल, केरल और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के अलग-अलग स्थानों पर भारी बारिश की संभावना है।
दक्षिण पूर्व अरब सागर के ऊपर एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र विकसित होने की संभावना है। इसके प्रभाव से अगले 24 घंटों के दौरान उसी क्षेत्र में लो प्रेशर बनने के आसार हैं। साथ ही म्यांमार तट से दूर बंगाल की पूर्वी मध्य खाड़ी के ऊपर चक्रवाती परिसंचरण मध्य क्षोभमंडल स्तरों में बना हुआ है।
इन शहरों में चलेगी लू
आज से लेकर 08 जून, 2023 के दौरान पश्चिम बंगाल, सिक्किम और पूर्वोत्तर झारखंड के अलग-अलग इलाकों में लू की स्थिति जारी रहने की संभावना है। साथ ही तटीय आंध्र प्रदेश और यनम में 6 जून, तेलंगाना में 8 जून और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 07 व 08 जून के दौरान लू चलने की संभावना जताई गई है।
बढ़ते प्रदूषण के चलते पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है, जिसके कारण तापमान में बदलाव देखने को मिल रहा है, विश्व पर्यावरण दिवस के जरिए हम पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ प्रयास कर सकते हैं…
ग्लोबल वार्मिंग के चलते अभी हाल ही में बहुत सी घटनाएं सामने आई थी जिसमें से एक उत्तराखण्ड के चमोली जिले में ग्लेशियर के पिघलने से जान और माल दोनों का बहुत भारी नुकसान होना की थी, वैज्ञानिकों ने इसका कारण ग्लोबल वार्मिंग बताया था, बता दें कि इससे पहले वर्ष 2013 में भी उत्तराखण्ड के कई जिलों में भारी तबाही मची थी, जिसमें केदारनाथ धाम में आई आपदा से आप वाकिफ ही होंगे, जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई थी. एक ही राज्य नहीं आय दिन ग्लोबल वार्मिंग के चलते बहुत से राज्यों में नुकसान देखने को मिलता है।
ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)
आज के आधुनिक युग में हम नईं टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार पर अधिक ध्यान दे रहे हैं, जो कि भारत को उन्नति की ओर ले जा रहा है, मगर विकास के पद पर चलते हुए हम पर्यावरण पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. लोगों को सुविधा हो इसके लिए सरकार द्वारा हर घर, सड़क जैसे योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसके चलते वनों की कटाई भी की जाती है जिसकी वजह से पेड़ों की कमी से भी जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या पैदा हो रही है. फैक्ट्रियों और वाहनों का धुंआ भी पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहा है।
कब हुई विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत (World Environment Day)
5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, इसकी शुरुआत सबसे पहले स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई थी, वर्ष1972 में स्टॉकहोम में पहली बार पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें 119 देशों में हिस्सा लिया था. बता दें कि इससे पहले पर्यावरण दिवस की नींव संयुक्त राष्ट्र ने रखी थी.
चिपको आन्दोलन
पर्यावरण को बचाने के लिए कई बड़े आन्दोलन भी किए गए जिसमें से एक था चिपको आन्दोलन, जो कि 70 के दशक में शुरू किया गया इसका मुख्य उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना था, चमोली के जंगलों से लगभग 2 हजार से अधिक पेड़ काटने की इजाजत एक कंपनी लेकर आई थी, जिसके विरोध में वहां की महिलाएं पेड़ को गले लगाकर पेड़ ना काटने के लिए आंदोलन करने लगी, फिर बाद में महिलाओं का हौंसला देख गांव वालों ने भी जूलुस निकालकर विरोध किया. अंत में कंपनी वालों को हार मानकर वहां से जाना पड़ा।
विश्व पर्यावरण दिवस क्यों मनाएं (World Environment Day)
जनजीवन के लिए पर्यावरण का होना बेहद जरुरी है, शुद्ध हवा, ताजा पानी हमें कई बीमारियों से निजात दिला सकता है. पर्यावरण को बचाने के लिए हमें कथक प्रयास करने चाहिए. क्योंकि प्रकृति है तो मनुष्य जीवन है. हम विकास के लिए कामों को रोक तो नहीं सकते मगर, पर्यावरण को बचाने के लिए पेड़ लगाकर, कूड़ा ना फैलाकर, सार्वजनिक वाहनों का उपयोग कर, इन छोटे- छोटे प्रयासों से हम पर्यावरण को बचा सकते हैं. यह प्रयास सबको मिलकर करना होगा, क्योंकि एक के करने से क्या फर्क पड़ता है, मगर एक-एक के करने से बहुत फर्क पड़ता है.
हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है।
विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) हर साल 5 जून को मनाया जाता है। यह एक वैश्विक पर्यावरण संरक्षण अभियान है, जो पर्यावरण संरक्षण के महत्व को उजागर करने और लोगों को उसकी रक्षा करने के लिए जागरूक करता है। यह दिवस हर साल एक नए थीम के साथ मनाया जाता है।
विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम
हर साल विश्व पर्यावरण दिवस की एक अलग थीम होती है, जो वैश्विक महत्व के लिए महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दे पर प्रकाश डालती है। इस बार विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम “#BeatPlasticPollution अभियान के तहत प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान” है।
विश्व पर्यावरण दिवस का मुख्य उद्देश्य
विश्व पर्यावरण दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों को पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूक करना है। जैसे प्रदूषण, जलसंकट, वनों का अपघात, जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या आदि के बारे में बताना है। इसके साथ ही व्यापक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के महत्व को उजागर करना है। इस दिन के माध्यम से लोगों को पर्यावरण की रक्षा के लिए जागरूक करके उन्हें उसकी रक्षा और सुरक्षा के लिए सक्रिय बनाने का प्रयास किया जाता है।
इस दिन पर्यावरण संरक्षा से सम्बंधित संदेशों को जनसंचार करने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए इस दिन विभिन्न संगठन, सरकारी निकाय, शैक्षिक संस्थान, गैर सरकारी संगठन आदि द्वारा कई पर्यावरणीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में जंगल संरक्षण, पौधरोपण, सफाई अभियान, जल संरक्षण, जैव विविधता की संरक्षा, पर्यावरण संबंधित शिक्षा आदि शामिल होते हैं। इससे लोगों को इस मुद्दे के बारे में जागरूकता प्राप्त होती है और वे अपने हर रोज के जीवन में पर्यावरण की रक्षा करने में सहयोग करने के लिए प्रेरित होते हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास
विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास 1972 से शुरू होता है, जब संयुक्त राष्ट्र ने स्टॉकहोम, स्वीडन में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCHE) का आयोजन किया था। यह सम्मेलन उस समय के पर्यावरणीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए विश्व नेताओं और पर्यावरण विशेषज्ञों की पहली वैश्विक सभा थी। सम्मेलन का उद्देश्य वायु और जल प्रदूषण, वनों की कटाई और जैव विविधता के नुकसान जैसी तत्काल पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करना था।
इस सम्मेलन के दौरान, पर्यावरण के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित एक विशेष दिवस की स्थापना के लिए एक प्रस्ताव रखा गया था। परिणामस्वरूप, सम्मेलन के अंतिम दिन, 5 जून, 1972 को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में नामित किया गया। जिसके बाद पहला विश्व पर्यावरण दिवस 1974 में मनाया गया था और तब से प्रतिवर्ष इसे मनाया जाता है।
दुनिया में आज पेड़-पौधों पर केवल पशु पक्षी ही नहीं बल्कि मानव जीवन भी पूरी तरह से निर्भर हो चुका है। आज हम आपको दुनिया में फर्नीचर से लेकर अन्य कीमती सामानों के लिए प्रयोग में लायी जा रही सबसे कीमती लकड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं।
आज हमारे जीवन में लकड़ी का उपयोग हर किसी के घर में होता है। शायद लकड़ी नहीं होने पर हमारा जीवन ही बेरंग हो जाता है। आज दुनिया के किसी भी घर की बात कर लें फिर वो किसी गरीब का घर हो या किसी करोड़पती का सभी के घर की रौनक लकड़ी के बने फर्नीचर या अन्य सामानों से होती है। दुनिया में आज कई देश तो ऐसे हैं जिनकी अर्थव्यवस्था ही लकड़ियों पर निर्भर होती है। आज हम आपको कुछ ऐसी लकड़ियों के बारे में बतायेंगे जिनकी कीमत दुनिया में सबसे ज्यादा है।
चंदन का पेड़ (SandalwoodTree)
भारत में चन्दन की लकड़ी के बारे में तो हम सभी जानते ही हैं। इस लकड़ी से तेल के साथ-साथ कई तरह की दवाइयां बनाई जाती हैं. साथ ही भारत में इसका उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए भी किया जाता है। भारत में इस लकड़ी से इत्र भी तैयार किया जाता है। आज भारत में इस लकड़ी की तस्करी बहुत बड़ी मात्रा में हो रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह पेड़ सबसे पहले भारत में सबसे ज्यादा पाया जाता था लेकिन अब इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश आस्ट्रेलिया बन गया है। बाज़ार में इस लकड़ी की कीमत लाखों रुपये तक होती है। चन्दन के पेड़ की कई किस्में बाज़ार में अलग-अलग रेट में मिलती हैं।
अफ्रीकन ब्लैकवुड (AfricanBlackwood)
इस पेड़ की लकड़ी भी बहुत कीमती होती है. इस पेड़ की लकड़ी बाज़ार में 7 लाख से 9 लाख रुपये प्रति किलो तक बिकती है। यही कारण है कि इस लकड़ी को भी दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी की लिस्ट में शामिल किया गया है. यह पेड़ दुनिया में अफ्रीका के सूखे इलाकों में पाए जाते हैं।
बोकोट ट्री (BocotTree)
इस पेड़ की लकड़ी आपको लगभग 2500 रुपये प्रति फीट के हिसाब से मिलती है। यह पेड़ अमेरिका, मैक्सिको जैसे देशों में पाए जाते हैं। इस लकड़ी की सबसे ख़ास बात यह है कि इस लकड़ी के तने को जब हम फर्नीचर या डेकोरेशन के लिए प्रयोग करते हैं तो इस तने में बहुत सी घुमावदार डिजायन सामने आती हैं। जो देखने में बहुत ही ज्यादा आकर्षक लगाती हैं। आप इस लकड़ी की कीमत जितनी सामान्य समझ रहे हैं उतनी है नहीं क्योंकि इसके बने हुए कई आइटम बाज़ार में लाखों की कीमत में बिकते हैं।
लिग्नम विटे (LignumVitae)
यह पेड़ अमेरिका के साथ-साथ कैरेबियन देशों में पाया जाता है। इसकी एक फीट लकड़ी की कीमत लगभग 7000 रूपये तक है। इस पेड़ की लकड़ी सबसे ज्यादा सख्त और आकर्षक है. इस लकड़ी की ख़ास बात यह है कि यह न ही जल्दी सड़ती है और न ही इस लकड़ी में किसी प्रकार का कोई कीड़ा लगता है। इस पेड़ की ख़ास बात यह है कि इस पेड़ में एक तरह का आयल होता है जो इस पेड़ को पानी से बचा के रखता है। यही कारण है कि यह पेड़ वाटरप्रूफ भी होता है। यह पेड़ लम्बाई में 6 मीटर से 10 मीटर तक होता है। यह पेड़ फर्नीचर जैसे कामों के साथ ही साथ दवा बनाने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।
बुबिंगा (Bubinga)
यह पेड़ अंदरूनी तौर रेड कलर का होता है। इसकी एक फुट लकड़ी की कीमत लगभग 1400 रुपये तक होती है. यह पेड़ अफ्रीका में पाए जाते हैं साथ ही इनकी लम्बाई लगभग 100 फुट तक हो सकती है। इसकी लकड़ी को फर्नीचर से लेकर कई तरह के अन्य कामों में भी प्रयोग में लाया जाता है।
एमरंथ या पर्पल हार्ट (AmaranthorPurpleHeart)
इस लकड़ी की कीमत भारत में लगभग 1000 रुपये प्रति फुट तक हो सकती है। यह पेड़ अफ्रीका, गुयाना, ब्राजील के साथ कैरेबियन देशों में पाया जाता है। इस पेड़ की लम्बाई की बात करें तो यह पेड़ 100 फीट से 170 फीट तक होती है।इस लकड़ी की सबसे ख़ास बात इसका रंग होता है। यह लकड़ी बैगनी रंग की होती है। इसके रंग के कारण ही यह लकड़ी दुनियाभर में सबसे ज्यादा ख़ास हो जाती है।
पिंक आइवरी(PinkIvory)
यह पेड़ साऊथ अफ्रीका के साथ जिम्बाम्बे जैसे देशों में पाया जाता है। इस पेड़ को इसके रंग के कारण सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। इसकी लकड़ी का रंग पिंक ब्राउन होता है साथ ही यह बहुत ही चमकीली होती है। इस लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर के साथ-साथ दैनिक चीजों में प्रयोग होने वाले सामानों के लिए भी किया जाता है। इस पेड़ की लकड़ी से गीटार से लेकर कई अन्य महंगे सामान तैयार किए जाते हैं।
एगरवुड ट्री (AgarwoodTree)
इस पेड़ की लकड़ी की कीम्मत सुन कर तो आपके भी होश उड़ जाएंगे। इसकी एक किलो लकड़ी को आप बाज़ार में 7 से 8 लाख रुपये तक में बेच सकते हैं। यह लकड़ी चीन, म्यामार, बाग्लादेश जैसे कई देशों में पाए जाती हैं. इसका उपयोग कई तरह के परफ्यूम बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही इस पेड़ से कई तरह की दवाइयां भी तैयार की जाती हैं। कई लोगों की माने तो इस पेड़ से तैयार किया तेल सोने से भी ज्यादा कीमती होता है।
एबनी ट्री (EbonyTree)
इस पेड़ को मिलियन डॉलर ट्री भी कहा जाता है। इस पेड़ की खासियत घने काले और भूरे रंग की डिज़ाइन. यह पेड़ दुनिया में बहुत ही कम स्थानों पर पाया जाता है। यह लकड़ी शतरंज, गिटार जैसी चीजों के साथ सभी डेकोरेशन वाली चीजों को तैयार करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन पेड़ों का अस्तित्व खतरे में है। आज इन पेड़ों की तस्करी भी बड़ी मात्रा में की जा रही है। आपको बता दे कि यह पेड़ अफ्रीका के साथ भारत और श्रीलंका के कुछ सथानों पर भी पाए जाते हैं।
डालबर्गीया लैटिफ़ोलिया (DalbergiaLatifolia)
यह पेड़ दुनिया भर में पाया जाता है. 1500 रुपये प्रति फीट तक बिकने वाली यह लकड़ी आपको अपने देश में भी आसानी से मिल जाएगी. यह पेड़ फर्नीचर के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इस पेड़ की लकड़ी बहुत ही ज्यादा कठोर होती है यही कारण है कि इसको काटने में बहुत ही ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है।
खरीफ सीजन की सबसे मुख्य फसल धान की खेती का समय आ गया है। लेकिन उससे पहले किसान धान की नर्सरी तैयार कर रहे हैं। ऐसे में उनके लिए इस लेख में कुछ विशेष सलाह दी गई है।
भारत दुनिया का एक ऐसा देश है जहां सबसे बड़े क्षेत्रफल में धान की खेती की जाती है। धान की खेती बीजाई और पौधरोपण के जरिए की जाती है। लेकिन ज्यादातर किसान धान की खेती पौध तैयार करके करते हैं। इसके लिए किसान सबसे पहले धान की नर्सरी तैयार करते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं किसानों को धान की नर्सरी तैयार करते वक्त किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
जून महीने में किसान करें धान की नर्सरी की तैयारी
जैसा की खरीफ सीजन चल रहा है और इसी सीजन में धान की खेती की जाती है। लेकिन किसान धान की खेती के पहले इसकी नर्सरी की तैयारी करते हैं। जून के महीने की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में किसानों के लिए धान की खेती में नर्सरी तैयार करने का समय आ चुका है। बता दें कि जून महीने के पहले सप्ताह से लेकर अंतिम सप्ताह तक धान की नर्सरी के लिए बीज की बुवाई की जाती है। आमतौर पर धान की नर्सरी 21 से लेकर 25 दिनों में तैयार हो जाती है।
धान की नर्सरी तैयार करने के वक्त ध्यान रखने योग्य बातें
धान की नर्सरी के लिए दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।नर्सरी लगाने के पहले खेत की दो से तीन जुताई करके मिट्टी को समतल और भुरभुरा बना लें. ध्यान रहें खेत में पानी की निकासी के लिए उचित व्यवस्था हो। धान की नर्सरी क्यारियां बनाकर तैयार की जाती हैं। इसके लिए लगभग एक से डेढ़ मीटर चौड़ी क्यारियां बनानी चाहिए। धान की नर्सरी क्यारियां बनाकर तैयार की जाती हैं। इसके लिए लगभग एक से डेढ़ मीटर चौड़ी क्यारियां बनानी चाहिए।
धान की नर्सरी में खोखले बीजों को बाहर निकाल लें
धान की बीजों की बुवाई करने से पहले खोखले बीजों को बाहर निकाल लें। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका बीजों को 2 प्रतिशत नमक के घोल में डालकर उसे अच्छी तरह हिला लें। इससे खोखले बीज ऊपर तैरने लगेंगे और आप इसकी आसानी से छटाई कर सकते हैं। खोखले बीज की बुवाई करने से अच्छे पौध तैयार नहीं होंगे। इससे बाद में आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए खोखले बीजों को बाहर निकाल कर अच्छे बीजों की बुवाई करना उचित रहता है।
बीजों को उपचारित करना आवश्यक
जैसा की हमने बताया कि अच्छे बीजों से ही अच्छे पौध तैयार होते हैं। ऐसे में बीजों की बुवाई से पहले उसे उपचारित करना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। धान के बीज उपचारित करने के लिए आप फफूंदीनाशक दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए केप्टान, थाइरम, मेंकोजेब, कार्बंडाजिम और टाइनोक्लोजोल में से किसी एक दवा का इस्तेमाल किया जा सकता हैं।
मौसम विभाग ने आगामी मौसम को लेकर बिहार के किसानों के लिए जरूरी कृषि एडवाइजरी जारी की है। इसमें मौसम के मद्देनजर फसलों की सुरक्षा कैसे करें, इसकी बेहतरीन जानकारी दी गई है।
देशभर के कई हिस्सों में इन दिनों मौसम बदल रहा है। अचानक से हो रही बारिश सें जहां गर्मी से राहत मिल रही है, तो वहीं किसानों के लिए ये मौसम कई मायनों में अच्छा तो कई मायनों में बुरा साबित हो रहा है। ऐसे में किसानों के लिए मौसम से जुड़े सभी अपडेट जानना बेहद जरूरी हो जाता है। तो चलिए मौसम विभाग द्वारा बिहार के किसानों के लिए जारी मौसम एडवाइजरी और कृषि एडवाइजरी दोनों इस लेख में जानते हैं।
बिहार के किसानों के लिए मौसम अपडेट
आगामी पांच दिनों के दौरान आसमान साफ रहेगा और बारिश की कोई संभावना नहीं है। इस दौरान हवा की गति लगभग 12-16 किमी/घंटा रहने का अनुमान है।
किसानों को चारे के लिए बुवाई करने की दी गई सलाह
किसानों को सलाह दी जाती है कि ज्वार (पीसी 6, पीसी 23, एमपी चरी, एसएसजी 998, 898, 555), मक्का (अफ्रीकन टॉल, विजय, मोती, जवाहर), लोबिया (यूपीसी 5287, 8705), बाजरा (एल 274, जायंट बाजरा), ग्वार (बुंदेल ग्वार1, 2, 3) की चारे के लिए बुवाई करें।
किसानों को सिंचाई के लिए दी गई ये सलाह :- खड़ी फसलों में हल्की और बार-बार सिंचाई करें। केवल शाम या सुबह के समय सिंचाई करें।
धान की खेती को लेकर सलाह जारी धान के किसानों को खरीफ चावल की किस्मों राजेंद्र श्वेता, राजेंद्र मसूरी-1, एमटीयू-709, स्वर्ण सब-1 आदि के प्रमाणित बीज बोने का सुझाव दिया जाता है। बीज का उपचार बाविस्टिन @ 2 ग्राम/किलोग्राम से किया जाना चाहिए। बीज दर @ 20 किग्रा/हेक्टेयर होना चाहिए। 100 वर्ग मीटर बीज क्यारी के लिए 1kg N, P और K का प्रयोग करें।
आम और लीची के किसानों के लिए सलाह आम और लीची उत्पादक किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अधिक मूल्य प्राप्त करने के लिए जल्द से जल्द परिपक्व फलों को तोड़ें और बाजार में बेचने जाएं।
किसानों को दी गई पौध संरक्षण की सलाह
कद्दू वर्गीय फसल में फल मक्खी के प्रकोप की निगरानी करने की सलाह दी जाती है। यदि इसका संक्रमण पाया जाता है, तो डाइमेथोएट 30 ईसी @ 2 मिली + 10 ग्राम चीनी/लीटर पानी का छिड़काव, साफ धूप वाले दिनों में करने की सलाह दी जाती है। Disclaimer– इस लेख में दी गई जानकारी मौसम विज्ञान केंद्र, पटना और आरएयू-पूसा (समस्तीपुर), एएमएफयू-अगवानपुर (सहरसा) एएमएफयू-सबौर (भागलपुर) के सहयोग से जारी कृषि एडवाइजरी द्वारा ली गई है। ये कृषि विशेष सलाह 31 मई 2023 से लेकर 4 जून 2023 तक के मौसम के मद्देनजर जारी की गई है। आपको यहां बता दें कि मौसम विभाग समय-समय पर अलग-अलग राज्यों के लिए कृषि विशेष सलाह जारी करता रहता है। इस कृषि विशेष सलाह से किसानों की फसलों को मौसम से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। हम आपके लिए मौसम विभाग द्वारा जारी कृषि एडवाइजरी की जानकारी और हर अपडेट लेकर आते रहते हैं। ऐसे में आप कृषि जागरण के साथ जुड़कर समय-समय पर कृषि विशेष सलाह की जानकारी ले सकते हैं।