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आज नॉर्थईस्ट में होगी झमाझम बारिश, बिहार समेत इन जगहों पर लोग करेंगे लू का सामना

आगामी दिनों में भारत के कई शहरों में हल्की से लेकर भारी बारिश की चेतावनी जारी की गई है। साथ ही मौसम विभाग ने कुछ इलाकों में लू (Loo) चलने की भी संभावना जताई है।

भारत के विभिन्न शहरों में बीते कल यानी रविवार के दिन बारिश होने से गर्मी में राहत देखने को मिली है।वहीं आज की बात करें तो आज देश के कई राज्यों में हल्की बारिश होने के आसार हैं। वहीं, कुछ इलाकों में तापमान में वृद्धि देखी जा सकती है। अनुमान है कि राजस्थान और इसके आसपास के क्षेत्रों में आज चक्रवाती हवाएं चलने की संभावना है। आइए देशभर के विभिन्न इलाकों में मौसम की स्थिति के बारे में विस्तार से जानें।

दिल्ली में लू और गर्मी से राहत

दिल्ली में रात के समय रुक-रुक कर हो रही बारिश से दिल्लीवासियों को जून माह में अभी तक लू व भीषण गर्मी से राहत मिली हुई है। देखा जाए तो कुछ इलाकों में आंधी-बारिश होने से दिल्ली से सटे इलाकों में तापमान 40 डिग्री से नीचे ही बना हुआ है।

मौसम विभाग द्वारा जारी की गई ताजा अपडेट के मुताबिक, दिल्ली में आज भी तापमान 40 डिग्री से नीचे रहने की संभावना है। अनुमान लगाया जा रहा है कि दिल्ली में यह तापमान 6 जून, 2023 तक बने रहने की संभावना है।

देश में बारिश व लू का अलर्ट
देश में बारिश व लू का अलर्ट

अगले 5 दिनों तक इन इलाकों में बारिश का अलर्ट  

मौसम विभाग के पूर्वानुमानों के अनुसार, अगले 5 दिनों तक भारत के अलग-अलग हिस्सों जैसे- केरल, लक्षद्वीप, दक्षिण आंतरिक कर्नाटक में गरज/बिजली/तेज हवाओं के साथ हल्की/मध्यम वर्षा होने की संभावना है।

रिपोर्ट के मुताबिक, आज उत्तर-पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में गरज/बिजली/तेज हवाएं चलने को लेकर अलर्ट जारी किया गया है। तमिलनाडु, पुडुचेरी और कराईकल, केरल और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के अलग-अलग स्थानों पर भारी बारिश की संभावना है।

दक्षिण पूर्व अरब सागर के ऊपर एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र विकसित होने की संभावना है। इसके प्रभाव से अगले 24 घंटों के दौरान उसी क्षेत्र में लो प्रेशर बनने के आसार हैं। साथ ही म्यांमार तट से दूर बंगाल की पूर्वी मध्य खाड़ी के ऊपर चक्रवाती परिसंचरण मध्य क्षोभमंडल स्तरों में बना हुआ है।

इन शहरों में चलेगी लू

आज से लेकर 08 जून, 2023 के दौरान पश्चिम बंगाल, सिक्किम और पूर्वोत्तर झारखंड के अलग-अलग इलाकों में लू की स्थिति जारी रहने की संभावना है। साथ ही तटीय आंध्र प्रदेश और यनम में 6 जून, तेलंगाना में 8 जून और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 07 व 08 जून के दौरान लू चलने की संभावना जताई गई है।

Watering Young Plant - Vintage Effect

World Environment Day : क्यों मनाया जाना चाहिए विश्व पर्यावरण दिवस?

बढ़ते प्रदूषण के चलते पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है, जिसके कारण तापमान में बदलाव देखने को मिल रहा है, विश्व पर्यावरण दिवस के जरिए हम पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ प्रयास कर सकते हैं…

ग्लोबल वार्मिंग के चलते अभी हाल ही में बहुत सी घटनाएं सामने आई थी जिसमें से एक उत्तराखण्ड के चमोली जिले में ग्लेशियर के पिघलने से जान और माल दोनों का बहुत भारी नुकसान होना की थी, वैज्ञानिकों ने इसका कारण ग्लोबल वार्मिंग बताया था, बता दें कि इससे पहले वर्ष 2013 में भी उत्तराखण्ड के कई जिलों में भारी तबाही मची थी, जिसमें केदारनाथ धाम में आई आपदा से आप वाकिफ ही होंगे, जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई थी. एक ही राज्य नहीं आय दिन ग्लोबल वार्मिंग के चलते बहुत से राज्यों में नुकसान देखने को मिलता है।

ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)

आज के आधुनिक युग में हम नईं टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार पर अधिक ध्यान दे रहे हैं, जो कि भारत को उन्नति की ओर ले जा रहा है, मगर विकास के पद पर चलते हुए हम पर्यावरण पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. लोगों को सुविधा हो इसके लिए सरकार द्वारा हर घर, सड़क जैसे योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसके चलते वनों की कटाई भी की जाती है जिसकी वजह से पेड़ों की कमी से भी जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या पैदा हो रही है. फैक्ट्रियों और वाहनों का धुंआ भी पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहा है।

कब हुई विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत (World Environment Day)

5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, इसकी शुरुआत  सबसे पहले स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई थी, वर्ष1972 में स्टॉकहोम में पहली बार पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें 119 देशों में हिस्सा लिया था. बता दें कि इससे पहले पर्यावरण दिवस की नींव संयुक्त राष्ट्र ने रखी थी.

चिपको आन्दोलन

पर्यावरण को बचाने के लिए कई बड़े आन्दोलन भी किए गए जिसमें से एक था चिपको आन्दोलन, जो कि 70 के दशक में शुरू किया गया इसका मुख्य उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना था, चमोली के जंगलों से लगभग 2 हजार से अधिक पेड़ काटने की इजाजत एक कंपनी लेकर आई थी, जिसके विरोध में वहां की महिलाएं पेड़ को गले लगाकर पेड़ ना काटने के लिए आंदोलन करने लगी, फिर बाद में महिलाओं का हौंसला देख गांव वालों ने भी जूलुस निकालकर विरोध किया. अंत में कंपनी वालों को हार मानकर वहां से जाना पड़ा।

विश्व पर्यावरण दिवस क्यों मनाएं (World Environment Day)

जनजीवन के लिए पर्यावरण का होना बेहद जरुरी है, शुद्ध हवा, ताजा पानी हमें कई बीमारियों से निजात दिला सकता है. पर्यावरण को बचाने के लिए हमें कथक प्रयास करने चाहिए. क्योंकि प्रकृति है तो मनुष्य जीवन है. हम विकास के लिए कामों को रोक तो नहीं सकते मगर, पर्यावरण को बचाने के लिए पेड़ लगाकर, कूड़ा ना फैलाकर, सार्वजनिक वाहनों का उपयोग कर, इन छोटे- छोटे प्रयासों से हम पर्यावरण को बचा सकते हैं. यह प्रयास सबको मिलकर करना होगा, क्योंकि एक के करने से क्या फर्क पड़ता है, मगर एक-एक के करने से बहुत फर्क पड़ता है.

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इन दस ख़ास पेड़ों की मांग करती है पूरी दुनिया, लाखों रुपये किलो बिकती है लकड़ी

दुनिया में आज पेड़-पौधों पर केवल पशु पक्षी ही नहीं बल्कि मानव जीवन भी पूरी तरह से निर्भर हो चुका है। आज हम आपको दुनिया में फर्नीचर से लेकर अन्य कीमती सामानों के लिए प्रयोग में लायी जा रही सबसे कीमती लकड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं।

आज हमारे जीवन में लकड़ी का उपयोग हर किसी के घर में होता है। शायद लकड़ी नहीं होने पर हमारा जीवन ही बेरंग हो जाता है। आज दुनिया के किसी भी घर की बात कर लें फिर वो किसी गरीब का घर हो या किसी करोड़पती का सभी के घर की रौनक लकड़ी के बने फर्नीचर या अन्य सामानों से होती है। दुनिया में आज कई देश तो ऐसे हैं जिनकी अर्थव्यवस्था ही लकड़ियों पर निर्भर होती है। आज हम आपको कुछ ऐसी लकड़ियों के बारे में बतायेंगे जिनकी कीमत दुनिया में सबसे ज्यादा है।

चंदन का पेड़ (Sandalwood Tree)

भारत में चन्दन की लकड़ी के बारे में तो हम सभी जानते ही हैं। इस लकड़ी से तेल के साथ-साथ कई तरह की दवाइयां बनाई जाती हैं. साथ ही भारत में इसका उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए भी किया जाता है। भारत में इस लकड़ी से इत्र भी तैयार किया जाता है। आज भारत में इस लकड़ी की तस्करी बहुत बड़ी मात्रा में हो रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह पेड़ सबसे पहले भारत में सबसे ज्यादा पाया जाता था लेकिन अब इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश आस्ट्रेलिया बन गया है। बाज़ार में इस लकड़ी की कीमत लाखों रुपये तक होती है। चन्दन के पेड़ की कई किस्में बाज़ार में अलग-अलग रेट में मिलती हैं।

अफ्रीकन ब्लैकवुड (African Blackwood)

इस पेड़ की लकड़ी भी बहुत कीमती होती है. इस पेड़ की लकड़ी बाज़ार में 7 लाख से 9 लाख रुपये प्रति किलो तक बिकती है। यही कारण है कि इस लकड़ी को भी दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी की लिस्ट में शामिल किया गया है. यह पेड़ दुनिया में अफ्रीका के सूखे इलाकों में पाए जाते हैं।

बोकोट ट्री (Bocot Tree)

इस पेड़ की लकड़ी आपको लगभग 2500 रुपये प्रति फीट के हिसाब से मिलती है। यह पेड़ अमेरिका, मैक्सिको जैसे देशों में पाए जाते हैं। इस लकड़ी की सबसे ख़ास बात यह है कि इस लकड़ी के तने को जब हम फर्नीचर या डेकोरेशन के लिए प्रयोग करते हैं तो इस तने में बहुत सी घुमावदार डिजायन सामने आती हैं। जो देखने में बहुत ही ज्यादा आकर्षक लगाती हैं। आप इस लकड़ी की कीमत जितनी सामान्य समझ रहे हैं उतनी है नहीं क्योंकि इसके बने हुए कई आइटम बाज़ार में लाखों की कीमत में बिकते हैं।

लिग्नम विटे (Lignum Vitae)

यह पेड़ अमेरिका के साथ-साथ कैरेबियन देशों में पाया जाता है। इसकी एक फीट लकड़ी की कीमत लगभग 7000 रूपये तक है। इस पेड़ की लकड़ी सबसे ज्यादा सख्त और आकर्षक है. इस लकड़ी की ख़ास बात यह है कि यह न ही जल्दी सड़ती है और न ही इस लकड़ी में किसी प्रकार का कोई कीड़ा लगता है। इस पेड़ की ख़ास बात यह है कि इस पेड़ में एक तरह का आयल होता है जो इस पेड़ को पानी से बचा के रखता है। यही कारण है कि यह पेड़ वाटरप्रूफ भी होता है। यह पेड़ लम्बाई में 6 मीटर से 10 मीटर तक होता है। यह पेड़ फर्नीचर जैसे कामों के साथ ही साथ दवा बनाने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। 

बुबिंगा (Bubinga)

यह पेड़ अंदरूनी तौर रेड कलर का होता है। इसकी एक फुट लकड़ी की कीमत लगभग 1400 रुपये तक होती है. यह पेड़ अफ्रीका में पाए जाते हैं साथ ही इनकी लम्बाई लगभग 100 फुट तक हो सकती है। इसकी लकड़ी को फर्नीचर से लेकर कई तरह के अन्य कामों में भी प्रयोग में लाया जाता है।

एमरंथ या पर्पल हार्ट (Amaranth or Purple Heart)

इस लकड़ी की कीमत भारत में लगभग 1000 रुपये प्रति फुट तक हो सकती है। यह पेड़ अफ्रीका, गुयाना, ब्राजील के साथ कैरेबियन देशों में पाया जाता है। इस पेड़ की लम्बाई की बात करें तो यह पेड़ 100 फीट से 170 फीट तक होती है।इस लकड़ी की सबसे ख़ास बात इसका रंग होता है। यह लकड़ी बैगनी रंग की होती है। इसके रंग के कारण ही यह लकड़ी  दुनियाभर में सबसे ज्यादा ख़ास हो जाती है।

पिंक आइवरी(Pink Ivory)

यह पेड़ साऊथ अफ्रीका के साथ जिम्बाम्बे जैसे देशों में पाया जाता है। इस पेड़ को इसके रंग के कारण सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। इसकी लकड़ी का रंग पिंक ब्राउन होता है साथ ही यह बहुत ही चमकीली होती है। इस लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर के साथ-साथ दैनिक चीजों में प्रयोग होने वाले सामानों के लिए भी किया जाता है। इस पेड़ की लकड़ी से गीटार से लेकर कई अन्य महंगे सामान तैयार किए जाते हैं।

एगरवुड ट्री (Agarwood Tree)

इस पेड़ की लकड़ी की कीम्मत सुन कर तो आपके भी होश उड़ जाएंगे। इसकी एक किलो लकड़ी को आप बाज़ार में 7 से 8 लाख रुपये तक में बेच सकते हैं। यह लकड़ी चीन, म्यामार, बाग्लादेश जैसे कई देशों में पाए जाती हैं. इसका उपयोग कई तरह के परफ्यूम बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही इस पेड़ से कई तरह की दवाइयां भी तैयार की जाती हैं। कई लोगों की माने तो इस पेड़ से तैयार किया तेल सोने से भी ज्यादा कीमती होता है।

एबनी ट्री (Ebony Tree)

इस पेड़ को मिलियन डॉलर ट्री भी कहा जाता है। इस पेड़ की खासियत घने काले और भूरे रंग की डिज़ाइन. यह पेड़ दुनिया में बहुत ही कम स्थानों पर पाया जाता है। यह लकड़ी शतरंज, गिटार जैसी चीजों के साथ सभी डेकोरेशन वाली चीजों को तैयार करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन पेड़ों का अस्तित्व खतरे में है। आज इन पेड़ों की तस्करी भी बड़ी मात्रा में की जा रही है। आपको बता दे कि यह पेड़ अफ्रीका के साथ भारत और श्रीलंका के कुछ सथानों पर भी पाए जाते हैं।

डालबर्गीया लैटिफ़ोलिया (Dalbergia Latifolia)

यह पेड़ दुनिया भर में पाया जाता है. 1500 रुपये प्रति फीट तक बिकने वाली यह लकड़ी आपको अपने देश में भी आसानी से मिल जाएगी. यह पेड़ फर्नीचर के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इस पेड़ की लकड़ी बहुत ही ज्यादा कठोर होती है यही कारण है कि इसको काटने में बहुत ही ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है।

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हर खेत तक पहुंचेगा पानी, सरकार सिंचाई पर दे रही है भारी सब्सिडी, ऐसे उठायें लाभ

किसानों के लिए सरकार हर दिन कोई नया कदम उठाती है, अब कृषकों को सिंचाई पर भी बंपर सब्सिडी देने का ऐलान किया गया है.लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सहित तमाम राज्यों की सरकारें अन्नदाताओं को खुश करने की कवायद में जुट गई हैं. वह आए दिन कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए नई योजनाओं का ऐलान कर रही हैं. अगर खेती की बात करें तो कुछ ही समय बाद खरीफ फसलों की बुवाई होगी. ऐसे में किसान इसकी तैयारी में लग गए हैं. खरीफ फसलों को सिंचाई की ज्यादा जरुरत होती है. ऐसे में पानी की खपत भी बढ़ जाती है. जिससे किसान को अपनी जेब ज्यादा करनी पड़ती है. इस समस्या को देखते हुए एक राज्य सरकार ने सिंचाई पर बड़ी सब्सिडी देने का ऐलान किया है.

आइए, जानें किस राज्य में मिल रही है सिंचाई पर सब्सिडी।कम खर्च में ज्यादा उत्पादन :- बिहार सरकार सूक्ष्म सिंचाई पर किसानों को इन दिनों अनुदान दे रही है. दरअसल, इस तकनीक से सिंचाई करने पर फसलों को जरुरत के हिसाब से पानी मिलता है. माना जाता है कि सूक्ष्म सिंचाई में खर्च कम व उत्पादन ज्यादा होता है. जिससे किसानों की आमदनी बढ़ जाती है. इसके अलावा, इस तकनीक से खेती करने में भारी मात्रा में पानी की भी बचत होती है. सूक्ष्म सिंचाई में ड्रिप व स्प्रिंकल इरिगेशन शामिल होते हैं।

पानी की भारी बचत :- कृषि विभाग राज्य में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर दोनों ही सिंचाई के लिए 90 प्रतिशत का अनुदान दे रहा है. बता दें कि इस तकनीक से सिंचाई करने पर लगभग 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है. इसमें किसानों का समय व मेहनत दोनों बचता है. इसके अलावा, स्प्रिंकलर सिंचाई से लंबे दिनों तक मिट्टी में नमी बनी रही है. जिससे फसल खराब नहीं होती.इस सब्सिडी को पाने के लिए किसानों को आवेदन करना होगा. उससे पहले कृषि विभाग के ऑफिशियल साइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन करना होगा. इसके अलावा, किसान सिंचाई उपकरणों को भी खरीदने के लिए सरकार की सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं. वहीं, दस्तावेज व प्रक्रिया से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विभाग में संपर्क किया जा सकता है

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Drip Irrigation: स्मार्ट सिंचाई और सुंदर उत्पादन के लिए करें टपक सिंचाई का प्रयोग

हमारे ग्रह पर 10 अरब लोग रहेंगे, और पर्याप्त कैलोरी उगाने के लिए प्रति व्यक्ति 20% कम कृषि योग्य भूमि होगी. पानी की कमी के कारण हमें कृषि उत्पादकता और संसाधन दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता है।टपक सिंचाई एक प्रकार की सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली है, जिसमें जल को मंद गति से बूँद-बूँद के रूप में फसलों के जड़ क्षेत्र में प्रदान किया जाता है।

इस सिंचाई विधि का आविष्कार सर्वप्रथम इसराइल में हुआ था जिसका प्रयोग आज दुनिया के अनेक देशों में हो रहा है।इस विधि में जल का उपयोग अल्पव्ययी तरीके से होता है जिससे सतह वाष्पन एवं भूमि रिसाव से जल की हानि कम से कम होती है।

ड्रिप इरिगेशन को कभी-कभी ट्रिकल इरिगेशन कहा जाता है, और इसमें एमिटर या ड्रिपर्स नामक आउटलेट से लगे छोटे व्यास के प्लास्टिक पाइप की एक प्रणाली से बहुत कम दरों (2-20 लीटर / घंटा) पर मिट्टी पर टपकता पानी शामिल होता है।दुनिया को ड्रिप सिंचाई की आवश्यकता क्यों है2050 तक, हमारे ग्रह पर 10 अरब लोग रहेंगे, और पर्याप्त कैलोरी उगाने के लिए प्रति व्यक्ति 20% कम कृषि योग्य भूमि होगी. पानी की कमी के कारण हमें कृषि उत्पादकता और संसाधन दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता है. यहीं पर ड्रिप सिंचाई फिट बैठती है, जिससे किसानों को प्रति हेक्टेयर और घन मीटर पानी में अधिक कैलोरी का उत्पादन किया जा सकता है.

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित फायदे तथा उपयोग है-

•खाद्य उत्पादन पर सूखे और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना•उर्वरक लीचिंग के कारण भूजल और नदियों के दूषित होने से बचेंग्रामीण समुदायों का समर्थन करें,

•गरीबी कम करें, शहरों की ओर पलायन कम करेंउपयोग

•ड्रिप सिंचाई का उपयोग खेतों, वाणिज्यिक ग्रीनहाउस और आवासीय उद्यानों में किया जाता है।

पानी की तीव्र कमी वाले क्षेत्रों में और विशेष रूप से नारियल, कंटेनरीकृत लैंडस्केप पेड़, अंगूर, केला, बेर, बैंगन, साइट्रस, स्ट्रॉबेरी, गन्ना, कपास, मक्का और टमाटर जैसे फसलों और पेड़ों के लिए ड्रिप सिंचाई को बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है।

•घर के बगीचों के लिए ड्रिप सिंचाई किट लोकप्रिय हैं और इसमें टाइमर, नली और एमिटर शामिल हैं।

4 मिमी (0.16 इंच) व्यास वाले होसेस का उपयोग फूलों की सिंचाई के लिए किया जाता है।टपक सिंचाई के लाभ हैं:

•स्थानीय अनुप्रयोग और लीचिंग कम होने के कारण उर्वरक और पोषक तत्वों की हानि कम से कम होती है।•मिट्टी का कटाव कम होता है।

•पत्ते सूखे रहते हैं, जिससे बीमारी का खतरा कम हो जाता है।

•आमतौर पर अन्य प्रकार की दबाव वाली सिंचाई की तुलना में कम दबाव पर संचालित होता है, जिससे ऊर्जा लागत कम होती है।

•उर्वरकों की न्यूनतम बर्बादी के साथ फर्टिगेशन को आसानी से शामिल किया जा सकता है।

खरपतवार की वृद्धि कम होती है.जल वितरण अत्यधिक समान है, प्रत्येक नोजल के आउटपुट द्वारा नियंत्रित किया जाता है.अन्य सिंचाई विधियों की तुलना में श्रम लागत कम होती है.वाल्व और ड्रिपर्स को विनियमित करके आपूर्ति में बदलाव को नियंत्रित किया जा सकता है.यदि सही तरीके से प्रबंधित किया जाए तो जल अनुप्रयोग दक्षता अधिक होती है.फील्ड लेवलिंग जरूरी नहीं है.अनियमित आकार वाले खेतों को आसानी से समायोजित किया जा सकता है.पुनर्नवीनीकरण गैर-पीने योग्य पानी का सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा सकता है.ड्रिप सिंचाई के नुकसान हैं:-

•यदि पानी को ठीक से फ़िल्टर नहीं किया जाता है तो उपकरण को ठीक से बनाए नहीं रखा जा सकता है.प्रारंभिक लागत ओवरहेड सिस्टम से अधिक हो सकती है.

•सूरज की रोशनी ड्रिप सिंचाई के लिए उपयोग की जाने वाली नलियों को प्रभावित कर सकता है, जिससे उनका जीवनकाल छोटा हो जाता है.

•यदि जड़ी-बूटियों या शीर्ष ड्रेसिंग उर्वरकों को सक्रियण के लिए छिड़काव सिंचाई की आवश्यकता होती है तो ड्रिप सिंचाई असंतोषजनक हो सकती है.

•ड्रिप टेप फसल के बाद, अतिरिक्त सफाई लागत का कारण बनती है.

•उपयोगकर्ताओं को ड्रिप टेप वाइंडिंग, निपटान, पुनर्चक्रण या पुन: उपयोग की योजना बनाने की आवश्यकता होती है.

•इन प्रणालियों में भूमि स्थलाकृति, मिट्टी, पानी, फसल और कृषि-जलवायु परिस्थितियों, और ड्रिप सिंचाई प्रणाली और इसके घटकों की उपयुक्तता जैसे सभी प्रासंगिक कारकों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने की आवश्यकता होती है.हल्की मिट्टी में उपसतह ड्रिप अंकुरण के लिए मिट्टी की सतह को गीला करने में असमर्थ हो सकती है.

•स्थापना गहराई पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है.

•अधिकांश ड्रिप सिस्टम उच्च दक्षता के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, जिसका अर्थ है कि बहुत कम या कोई लीचिंग अंश नहीं है.

•पर्याप्त लीचिंग के बिना, सिंचाई के पानी के साथ लगाए गए लवण जड़ क्षेत्र में जमा हो सकते हैं.ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग रात के पाले से होने वाले नुकसान को नियंत्रित करने के लिए नहीं किया जा सकता है (जैसे स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली के मामले में)

सिस्टम डैमेज से बचें :- ड्रिप सिंचाई सीमाओं से अवगत होने के कारण आप कई वर्षों तक अपने सिस्टम को संरक्षित कर सकते हैं. अपने ड्रिप टयूबिंग के आसपास बिजली उपकरण, जैसे कि एडगर और लॉनमूवर का उपयोग न करेंटयूबिंग को लगातार गीली घास से ढंकने पर इसकी उम्र भी बढ़ जाती है. सूर्य के प्रकाश से उसका जीवनकाल लगभग पांच वर्ष तक कम हो जाता है. हालाँकि, ढकी हुई टयूबिंग 20 साल तक चल सकती है

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नारियल पाम बीमा योजना

नारियल की खेती बारहमासी है, और इसमें जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, कीट और कीटों के हमले जैसे कई जोखिम शामिल हैं। कई बार यह प्रभावित क्षेत्र में खेती को पूरी तरह से मिटा सकता है और किसानों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा गठित एक सांविधिक निकाय, नारियल विकास बोर्ड, छोटे और मध्यम नारियल उत्पादकों को नुकसान से उबरने में मदद करने के लिए बीमा योजनाओं को लागू कर रहा है। इस लेख में, आइए नारियल ताड़ बीमा योजना (सीपीआईएस) के लाभों पर एक नजर डालते हैं।

योजना का उद्देश्ययोजना का उद्देश्य है:• प्राकृतिक और जलवायु संबंधी आपदाओं के खिलाफ नारियल उत्पादकों को उनके नारियल ताड़ के बीमा के लिए वित्तीय सहायता देना।• विशेष रूप से विनाशकारी वर्षों के दौरान नारियल उत्पादकों की आय को स्थिर करने में मदद करें।• जोखिम न्यूनीकरण सुनिश्चित करेंकिसानों के बीच नारियल ताड़ के पुनर्रोपण को प्रोत्साहित करें• नारियल की खेती को पुनर्स्थापित करें।

पात्रता की शर्तेंमानदंड जिसके आधार पर बीमा कवर किया जाता है ।

योजना के तहत हैं।

1. नारियल उत्पादकों के पास किसी भी संक्रामक क्षेत्र में कम से कम पाँच स्वस्थ अखरोट वाले ताड़ होने चाहिए

2. बौने और संकर खजूर के पेड़ जो 4-60 वर्ष की आयु वर्ग ।

3. 7-60 वर्ष की आयु के अंतर्गत आने वाले ताड़ के लंबे पेड़ कवरेज के लिए पात्र हैं।

4. अस्वस्थ व वृद्धावस्था के पात्र नहीं होंगेकवरेज।

5. आयु वर्ग के भीतर सभी स्वस्थ हथेलियां हैंबीमा के लिए पात्र।

6. संक्रामक क्षेत्र में वृक्षारोपण के आंशिक बीमा की अनुमति नहीं है।

7. बीमा कवरेज चौथे/सातवें वर्ष से 60वें वर्ष तक है।प्रीमियम और बीमित राशि तय करने के लिए बीमा को दो आयु समूहों में विभाजित किया गया है जो चार से पंद्रह वर्ष और सोलह और साठ वर्ष के बीच आते हैं।

योजना के अंतर्गत आने वाले जोखिमयोजना में शामिल जोखिम हैं:• तूफ़ान, ओलावृष्टि, आंधी, चक्रवात, बवंडर,बाढ़ और भारी बारिश• कीट का हमला जिसके कारण नारियल ताड़ को अपूरणीय क्षति होती है• जंगल की आग, झाड़ी की आग, आकस्मिक आग और बिजली जो हथेली को पूरी तरह से नष्ट कर देती हैभूकंप, सुनामी और भूस्खलन• गंभीर सूखा जो मृत्यु का कारण बन सकता है, हथेली को अनुत्पादक बना देता है• चोरी, युद्ध, विद्रोह क्रांति, प्राकृतिक विनाश या अपरो के कारण हुए नुकसान योजना के तहत कवर नहीं किए गए हैं।

योजना के तहत बीमा राशिहथेलियों के लिए बीमित राशि और देय प्रीमियम नीचे सूचीबद्ध आयु समूह के अनुसार अलग-अलग होते हैं।• 4 से 15 वर्ष के ताड़ के आयु वर्ग के लिए, बीमित राशि प्रति ताड़ 900 होगी और प्रति पौधा प्रति वर्ष देय प्रीमियम 9 रुपये है।16 से 60 वर्ष के बीच की आयु वर्ग के लिए, बीमित राशि प्रति पेड़ 1750 होगी और प्रति पौधा प्रति वर्ष देय प्रीमियम 14 रुपये है।

1.आवंटित बीमा राशि में से प्रीमियम आवंटनयोजना, प्रीमियम सब्सिडी साझा की जाएगी औरनिम्नानुसार भुगतान किया गया:नारियल विकास बोर्ड (सीडीबी) द्वारा 1.50%,

2. राज्य सरकार द्वारा 25%

3. किसान/उत्पादक शेष 25% का भुगतान करेंगे

4. प्रीमियम सब्सिडी राशि जारी की जाएगीभारतीय कृषि बीमा निगम लिमिटेड (एआईसी) को अग्रिम रूप से, जिसे तिमाही/वार्षिक आधार पर भर दिया जाएगा/समायोजित किया जाएगा।

किसी भी विवाद की स्थिति में और यदि राज्य सरकार प्रीमियम का 25% हिस्सा वहन करने के लिए सहमत नहीं है, तो किसानों/उत्पादकों को बीमा योजना में उनके ब्याज पर प्रीमियम का 10% भुगतान करना चाहिए।बीमा अवधिबोर्ड बीमा के प्रायोगिक चरण के दौरान सालाना प्रीमियम का संवितरण करता है। सभी पात्र किसान/किसान हर साल 31 मार्च तक नामांकन कर सकते हैं। मार्च के दौरान नामांकन विफल होने पर बाद के महीनों के दौरान साइन अप कर सकते हैं और योजना से लाभान्वित हो सकते हैं। जोखिम के मामले में, बीमा अगले महीने के पहले दिन से कवर किया जाएगा।

नियम और शर्तें :-

बोर्ड नारियल ताड़ के नुकसान का आकलन करता है और दावा जारी करने से पहले इसे रिकॉर्ड करता है। यदि किसी सन्निकट क्षेत्र में बीमित ताड़ की संख्या खतरों के कारण क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो सूचीबद्ध मानदंडों के तहत अनुमति दी जाएगी,• बीमित योजना के लिए दस से तीस खजूर के बीच के वृक्षों के लिए एक ताड़ के दावे की अनुमति होगी।• इकतीस और के बीच बीमित योजना के लिएसौ खजूर के पेड़, दो खजूर होंगेदावे के लिए अनुमत।• बीमित योजना के लिए सौ से अधिक, तो तीन ताड़ के दावे की अनुमति होगी।

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मौसम आधारित फसल बीमा योजना

मौसम आधारित फसल इंश्योरेंस की जानकारीमौसम आधारित फसल इंश्योरेंस स्कीम (डब्ल्यूबीसीआईएस) का मकसद इंश्योर्ड किसानों को फसल नुकसान के कारण होने वाले फाइनेंशियल नुकसान संबंधी परेशानियों को कम करना है, जो प्रतिकूल मौसम की स्थितियों, जैसे कि बारिश, तापमान, हवा, आर्द्रता आदि की वजह से होती हैं। (डब्ल्यूबीसीआईएस )फसल की पैदावार के लिए “प्रॉक्सी” के रूप में मौसम मानदंडों का इस्तेमाल करता है, ताकि किसानों को फसल के नुकसान की भरपाई की जा सके. पेआउट स्ट्रक्चर को मौसम ट्रिगर का उपयोग करके होने वाले नुकसान की सीमा तक के लिए विकसित किया गया हैं। :-फसलों के लिए कवरेज खाद्य फसलें (अनाज, बाजरा और दालें)तिलहन व्यावसायिक/बागवानी वाली फसल।

कवर किए गए किसान:- क्षेत्रों में अधिसूचित फसलों को उगाने वाले बटाईदार और काश्तकार किसानों सहित सभी किसान इस स्कीम के तहत कवरेज के लिए पात्र हैं, हालांकि, इंश्योर्ड फसल पर इंश्योरेंस लेने के लिए किसानों में रुचि होनी चाहिए. गैर-लोन लेने वाले किसानों को डॉक्यूमेंट के रूप में आवश्यक सबूत, जैसे भूमि संबंधी रिकॉर्ड और/या लागू कॉन्ट्रैक्ट/एग्रीमेंट विवरण (फसल बटाईदार/काश्तकार किसानों के मामले में) सबमिट करना होगा।अधिसूचित फसलों के लिए, फाइनेंशियल संस्थानों (लोनी किसानों) से मौसमी कृषि संचालन (एसएओ) लोन लेने वाले सभी किसानों को अनिवार्य रूप से कवर किया जाता है।

यह स्कीम नॉन-लोनी किसानों के लिए वैकल्पिक है,वे डब्ल्यूबीसीआईएस और पीएमएफबीवाई के बीच चुन सकते हैं, और अपनी आवश्यकताओं के आधार पर इंश्योरेंस कंपनी भी चुन सकते हैं। कवर किए जाने वाले मौसम संबंधी खतरे इस स्कीम में उन प्रमुख मौसम संबंधी खतरों को कवर किया जाएगा, जिनसे “प्रतिकूल मौसम म वाली घटना” होती है, जो फसल हानि की वजह बनती है: –

✓ बारिश – कम बारिश, ज़्यादा बारिश, बेमौसम बारिश, बारिश के दिन, शुष्क मौसम, शुष्क दिन

✓ तापमान – उच्च तापमान (गर्मी), कम तापमान

✓ उमस

✓ हवा की गति

✓ ऊपर दी गई सभी चीज़ों का मेल

✓ ओला-वृष्टि, बादल फटने को भी उन किसानों के लिए ऐड-ऑन/इंडेक्स-प्लस प्रॉडक्ट के रूप में भी कवर किया जा सकता है, जिन्होंने डब्ल्यूबीसीआईएस के तहत पहले से ही बेसिक कवरेज लिया हो ।

मौसम संबंधी आपदाएं मौसम आधारित फसल बीमा के अंतर्गत आती हैं मौसम आधारित फसल बीमा का उद्देश्य प्रतिकूल मौसम की स्थिति से होने वाले वित्तीय नुकसान से किसानों की रक्षा करना है। इस प्रकार के बीमा के अंतर्गत आमतौर पर निम्नलिखित खतरे कवर किए जाते हैं:

वर्षा – कम वर्षा, अधिक वर्षा, बेमौसम वर्षा, वर्षा के दिन, शुष्क-काल, और शुष्क दिन।सापेक्ष आर्द्रता – हवा में नमी की मात्रा का फसल की पैदावार पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, और बीमा कवरेज उच्च या निम्न आर्द्रता से जुड़े वित्तीय जोखिमों को कम करने में मदद कर सकता है।

तापमान – उच्च तापमान (गर्मी) और कम तापमान दोनों फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं या मार सकते हैं, और बीमा कवरेज अत्यधिक तापमान के कारण फसल खराब होने की स्थिति में किसानों को उनके नुकसान की भरपाई करने में मदद कर सकता है।

हवा की गति – तेज हवाएं फसलों को नुकसान पहुंचा सकती हैं, और बीमा कवरेज तेज हवा की गति के कारण फसल खराब होने की स्थिति में किसानों को उनके नुकसान की भरपाई करने में मदद कर सकता है।

उपर्युक्त का एक संयोजन – प्रतिकूल मौसम की घटनाएं जिनमें उपरोक्त खतरों का एक संयोजन शामिल है, को भी मौसम आधारित फसल बीमा के तहत कवर किया जा सकता है।एड-ऑन/इंडेक्स-प्लस उत्पाद – उन किसानों के लिए ऐड-ऑन/इंडेक्स-प्लस उत्पादों के रूप में ओलावृष्टि और बादल फटने को भी कवर किया जा सकता है, जिन्होंने पहले ही WBCIS के तहत सामान्य कवरेज ले लिया है।

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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

किसानों की फसल के संबंध में अनिश्चितताओं को दूर करने के लिये नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट ने 18 फरवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को मंजूरी दे दी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसानों की फसल को प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुयी हानि को किसानों के प्रीमियम का भुगतान देकर एक सीमा तक कम करायेगी।इस योजना के लिये 8,800 करोड़ रुपयों को खर्च किया जायेगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अन्तर्गत, किसानों को बीमा कम्पनियों द्वारा निश्चित, खरीफ की फसल के लिये 2% प्रीमियम और रबी की फसल के लिये 1.5% प्रीमियम का भुगतान करेगा।इसमें प्राकृतिक आपदाओं के कारण खराब हुई फसल के खिलाफ किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली बीमा की किस्तों को बहुत नीचा रखा गया है, जिनका प्रत्येक स्तर का किसान आसानी से भुगतान कर सके। ये योजना न केवल खरीफ और रबी की फसलों को बल्कि वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए भी सुरक्षा प्रदान करती है, वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिये किसानों को 5% प्रीमियम (किस्त) का भुगतान करना होगा।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत पैसे कैसे मिलेगा ?:- संपादित करेंप्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत आप सभी पैसा लेना चाहते हैं, जैसे कि आपको पैसा आपको कांच में आपके चेहरे की तरह दिख रहा है जी हां अगर आप सही में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से पैसे कमाना चाहते हो तो इसके लिए आपको क्लेम करना होगा जिसको बोलते हैं बीमा का क्लेम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को सबसे पहले 72 घंटे के भीतर क्लेम करना होगा ।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना सूची संपादित करें विशेषकर इस योजना के अंतर्गत अगर प्राकृतिक आपदाएं के रोगों के कारण अगर आप की फसल बर्बाद हो जाती हैं, तो सरकार के द्वारा आप का भुगतान किया जाएगा जितने आप का नुकसान हुआ है।कृषि में किसानों को सुनिश्चित करने के लिए बीज का भी पैसा मिलेगा आपको।और साथ में दोस्तों इसका उद्देश्य यह भी है, कि किसान विशेषकर कर्ज के कारण आत्महत्या कर लेते हैं, तो उससे भी आपको छुटकारा मिलेगा।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) की विशेषताएं व लाभ – प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत किसानों को यदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण आर्थिक हानि होती है तो इस हानि को सरकार द्वारा कुछ हद तक कवर करने की कोशिश किया जाता है।इस योजना के तहत किसानों के द्वारा भुगतान की जाने वाली बीमा की प्रीमियम राशि को बहुत ही कम रखा गया है जिससे छोटा किसान भी इस योजना का लाभ उठा सकें ।सभी खरीफ फसलों के लिए किसानों को केवल 2% और सभी रबी फसलों के लिए 1.5% की प्रीमियम राशि का भुगतान करना होगा।वार्षिक वाणिज्यिक बागवानी फसलों के मामले में किसानों द्वारा भुगतान किया जाने वाला प्रीमियम राशि केवल 5% होगा।पहले यह योजना सभी ऋणी किसानों के लिए अनिवार्य था, लेकिन 2020 के बाद केंद्र ने ऐसे सभी किसानों के लिए वैकल्पिक कर दिया हैइस योजना के तहत post-harvest (फसल कटाई के बाद) नुकसान को भी शामिल किया गया है । फसल काटने के 14 दिन तक यदि फसल खेत में है और उस दौरान कोई आपदा के कारण फसल नुकसान हो जाता है तो किसानों को दावा राशि प्राप्त हो सकेगी ।इस योजना में टेक्नोलॉजी का भी उपयोग किया जाएगा जिससे नुकसान का आकलन शीघ्र और सही हो सके ।यह योजना कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है।बीमा राशि सीधे किसान के बैंक खाते में ऑनलाइन रूप से जमा की जाती है।

मुख्य तथ्यइस फसल बीमा योजना में शामिल किये गये मुख्य तथ्य निम्नलिखित हैं: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की भुगतान की जाने वाली प्रीमियम (किस्तों) दरों को किसानों की सुविधा के लिये बहुत कम रखा गया है ताकि सभी स्तर के किसान आसानी से फसल बीमा का लाभ ले सकें।इसके अन्तर्गत सभी प्रकार की फसलों (रबी, खरीफ, वाणिज्यिक और बागवानी की फसलें) को शामिल किया गया है। खरीफ (धान या चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, गन्ना आदि) की फसलों के लिये 2% प्रीमियम का भुगतान किया जायेगा। रबी (गेंहूँ, जौ, चना, मसूर, सरसों आदि) की फसल के लिये 1.5% प्रीमियम का भुगतान किया जायेगा। वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों बीमा के लिये 5% प्रीमियम का भुगतान किया जायेगा।सरकारी सब्सिडी पर कोई ऊपरी सीमा नहीं है। यदि बचा हुआ प्रीमियम 90% होता है तो ये सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।शेष प्रीमियम बीमा कम्पनियों को सरकार द्वारा दिया जायेगा। ये राज्य तथा केन्द्रीय सरकार में बराबर-बराबर बाँटा जायेगा।ये योजना राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एन.ए.आई.एस.) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एम.एन.ए.आई.एस.) का स्थान लेती है।इसकी प्रीमियम दर एन.ए.आई.एस. और एम.एन.ए.आई.एस. दोनों योजनाओं से बहुत कम है साथ ही इन दोनों योजनाओं की तुलना में पूरी बीमा राशि को कवर करती है।इससे पहले की योजनाओं में प्रीमियम दर को ढकने का प्रावधान था जिसके परिणामस्वरुप किसानों के लिये भुगतान के कम दावे पेश किये जाते थे। ये कैपिंग सरकारी सब्सिडी प्रीमियम के खर्च को सीमित करने के लिये थी, जिसे अब हटा दिया गया है और किसान को बिना किसी कमी के दावा की गयी राशी के खिलाफ पूरा दावा मिल जायेगा।प्रधानमंत्री फसल योजना के अन्तर्गत तकनीकी का अनिवार्य प्रयोग किया जायेगा, जिससे किसान सिर्फ मोबाईल के माध्यम से अपनी फसल के नुकसान के बारें में तुरंत आंकलन कर सकता है।प्रधानमंत्री फसल योजना के अन्तर्गत आने वाले 3 सालों के अन्तर्गत सरकार द्वारा 8,800 करोड़ खर्च करने के साथ ही 50% किसानों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है।मनुष्य द्वारा निर्मित आपदाओं जैसे; आग लगना, चोरी होना, सेंध लगना आदि को इस योजना के अन्तर्गत शामिल नहीं किया जाता है।प्रीमियम की दरों में एकरुपता लाने के लिये, भारत में सभी जिलों को समूहों में दीर्घकालीन आधार पर बांट दिया जायेगा।ये नयी फसल बीमा योजना ‘एक राष्ट्र एक योजना’ विषय पर आधारित है। ये पुरानी योजनाओं की सभी अच्छाईयों को धारण करते हुये उन योजनाओं की कमियों और बुराईयों को दूर करता है।

इस योजना के कुछ अन्य लाभ – प्रधानमंत्री फसल बिमा योजना के माध्यम से किसान को होने वाले नुकसान के लिए सरकार द्वारा बिमा प्रदान किया जायेगा |इस योजना का लाभ वही किसान ले सकते है जिनका किसी प्राकृतिक आपदा के कारन नुकसान हुआ है |अन्य किसी कारन से नुकसान होने पर इस योजना का लाभ नहीं ले सकते है |योजना का लाभ लेने के लिए लाभार्थी किसान ऑनलाइन आवेदन कर सकते है |

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भारत में कृषि से जुड़ी पांच सबसे बड़ी समस्याएं और उनके समाधान।

भारत में कृषि की उपयोगिता और व्यापकता सभी जानते है, भारत की संस्कृति और अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव है वो भी सभी जानते है। सभी लोग कृषि क्षेत्र में तरक्की और किसानों की खुशहाली की बात करते है, हालाकि आज कृषि के हालात किस तरह के है यह भी स्पष्ट है। अब सवाल यह है कि कृषि के विकास को लेकर जब सभी वांछित है तो ऐसे हालात क्यों है। इसलिए हम आज 5 ऐसी समस्याओं के बारे में बात कर रहे है जो कृषि के व्यवसाय में अवरोध बनी हुई हैं।

1. सिंचाई के लिए पानी की कमी:- भारत में जिस तरह की फसलें बोई जाती है उनके के लिए पानी बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन खरीफ में अनियमित बारिश की समस्या हो या रबी फसलों के लिए पानी की कमी की समस्या हो किसानों को हर वक्त पानी परेशान करता रहता है। आज के दौर में जहां जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है, भू जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है ये समस्या भयानक होने की तरफ बढ़ रही है। लेकिन अब इसके जवाब में ऐसे बीज जिनमें पानी की कम जरूरत पड़े, सिंचाई के उन्नत तकनीक और जल संरक्षण के प्रति जागरूकता सामने आ रहे है।

2. छोटी और बिखरी हुई भूमि:- आज कृषि की सबसे बड़ी समस्या यही है किसानों के सबसे बड़े हिस्से के पास सबसे कम जमीन है। भारत में लघु व सीमांत किसान 86% है लेकिन उनके अधिकार में 50% से भी कम भूमि है। भूमि के असमान वितरण और छोटे किसानों की अधिक संख्या एक ऐसी समस्या है जिसका जवाब ढूंढना बहुत कठिन है। हां पर अगर किसान एक साथ मिलकर सामूहिक रूप से बड़ी भूमि पर वैज्ञानिक तरह से खेती करें तो इसका भी समाधान हो सकता है।

3. कृषि के प्रति नई पीढ़ी में रुचि का अभाव:- किसान पर किए कई सर्वो में यह सामने आया है कि 50% किसान अपने बच्चों को किसानी नहीं करवाना चाहते, साथ ही नई पीढ़ी में किसानी नहीं करना चाहती। हालाकि आज भी कृषि से देश का 49% रोजगार उपलब्ध होता है पर आने वाले समय में यह बड़ी समस्या हो सकती है। कृषि मशीनीकरण को इसके समाधान के तौर पर देखा जा सकता है, साथ ही पढ़ी-लिखी नई पीढ़ी की जैविक खेती में रुचि और उनके वैज्ञानिक तरह से कृषि का लाभ उठाने वाले किस्से नई आस जगाते हैं।

4. मृदा अपरदन:- उपजाऊ भूमि के बड़े भाग हवा और पानी द्वारा मिट्टी के क्षरण से पीड़ित हैं। इस क्षेत्र को ठीक से इलाज किया जाना चाहिए और इसकी मूल प्रजनन क्षमता को बहाल करना चाहिए, जिसके लिए पेड़ों को लगाना एक अच्छा उपाय है।

5. सरकारी योजनाओं का असफल क्रियान्वयन:- सरकारें कई योजनाएं बनाती हैं पर उनका पूरा लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाता। पहले तो किसानों में योजनाओं के प्रति जागरूकता की कमी है अगर जागरूकता हो भी तो सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार और काग़ज़ी झंझटो का सामना करना पड़ता है। समस्या गंभीर है पर जैसे जैसे किसान शिक्षित होते जाएंगे और सरकारी संस्थाओं का डिजिटलाइजेशन होगा इस समस्या का भी समाधान हो जाएगा।समस्याएं और भी लेकिन सबके इलाज मिल सकते है, जरूरी है किसान समस्याओं से अधिक समाधान के बारे में सोचें और जागरूक बने। अगर आप भी किसानों से जुड़ी कोई भी समस्या सामने लाना चाहते हैं या किसी समस्या के समाधान बताना चाहते हैं तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

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भारतीय कृषि: समस्याएँ और समाधान ।

Leave a Comment / By Abhinagya Tiwari / May 26, 2023

भारत की स्वतंत्रता को कई दशक बीत चुके हैं, हाल ही में हमने 74वाँ गणतंत्र दिवस मनाया है। 1947 से अब तक देश के हर क्षेत्र ने पर्याप्त विकास किया है। आज भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम विश्व के सफलतम अंतरिक्ष कार्यक्रमों में शामिल है, भारतीय सेना विश्व की सबसे ताकतवर सेनाओं में सम्मिलित है तथा भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पाँच सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। अन्य क्षेत्रों में भी भारत नियमित रूप से विकास की नई कहानियाँ लिख रहा है।इन उपलब्धियों के बावजूद एक ऐसा क्षेत्र भी है जो आज भी विकास की दौड़ में कहीं पीछे रह गया है। खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला कृषि क्षेत्र आज भी उस स्थिति में नहीं पहुँच पाया है जिसे संतोषजनक माना जा सके। इसका परिणाम यह हुआ है कि कृषि पर निर्भर देश के करोड़ों लोग आज भी बेहद अभावों में जीवन जीने को विवश हैं और कई बार ये कृषि के माध्यम से अपनी बुनियादी जरूरतें भी नहीं पूरी कर पाते हैं।भारतीय कृषि के अपर्याप्त विकास के मूल में कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जिन्हें दूर किये बिना कृषि का विकास संभव नहीं है, ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं..

1- भारत के ज्यादातर किसानों के पास कृषि में निवेश के लिये पूँजी का अभाव/ कमी है। आज भी देश के ज्यादातर किसानों को व्यावहारिक रूप में संस्थागत ऋण सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता। कई बार किसानों के पास इतनी भी पूँजी नहीं होती कि वे बीज, खाद, सिंचाई जैसी बुनियादी चीजों का भी प्रबंध कर सकें। इसका परिणाम यह होता है कि किसान समय से फसलों का उत्पादन नहीं कर पाते अथवा अपर्याप्त पोषक तत्वों के कारण फसलें पर्याप्त गुणवत्ता की नहीं हो पाती हैं। इसके साथ ही पूंजी के अभाव में किसान को निजी व्यक्तियों से ऊँची ब्याज दर पर ऋण लेना पड़ता है जिससे उसकी समस्याएँ कम होने की जगह बढ़ जाती हैं। इस संबंध में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई किसान सम्मान निधि योजना किसानों के लिये काफी मददगार साबित हो रही है। इससे किसानों की कृषि संबंधी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति करने में काफी हद तक सहायता मिल जाती है।

2- भारत के अधिकांश हिस्सों में आज भी सिंचाई सुविधाओं की कमी है। निजी तौर पर सिंचाई सुविधाओं का प्रबंध वही किसान कर पाते हैं जिनके पास पर्याप्त पूँजी उपलब्ध है क्योंकि सिंचाई उपकरणों जैसे ट्यूबवेल स्थापित करने की लागत इतनी होती है कि गरीब किसानों के लिये उसे वहन कर पाना संभव नहीं है। इस प्रकार अधिकांश किसान मानसून पर निर्भर हो जाते हैं और समय पर वर्षा न होने पर उनकी फसलें खराब हो जाती हैं और कई बार निर्वाह लायक भी उत्पादन नहीं हो पाता। इसी तरह अधिक वर्षा होने पर या विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी फसलें खराब हो जाती हैं और किसान गरीबी के दलदल में फंसता जाता है।

3- भारतीय किसानों की एक बड़ी आबादी के पास बहुत कम मात्रा में कृषि योग्य भूमि उपलब्ध है। इसका एक बड़ा कारण बढ़ती हुई जनसंख्या भी है। इसके परिणामस्वरूप कृषि किसानों के लिये लाभ कमाने का माध्यम न होकर महज निर्वाह करने का माध्यम बन गई है जिसमें वे किसी तरह अपना और अपने परिवार का निर्वाह कर पाते हैं। भारतीय कृषि क्षेत्र प्रछन्न बेरोजगारी की भी समस्या से जूझने वाला क्षेत्र है।

4- किसानों को अक्सर उनकी उपज की पर्याप्त कीमत नहीं मिलती है, इसका एक बड़ा कारण यह है कि वे अपनी फसलों को विभिन्न कारणों से जैसे ऋण चुकाने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम कीमतों पर ही बेंच देते हैं। जिसके कारण उन्हें काफी हानि का सामना करना पड़ता है।

5- कुछ अन्य कारणों में कृषि में आधुनिक उपकरणों और तकनीकों का प्रयोग न कर पाना, परिवहन सुविधाओं की कमी, भंडारण सुविधाओं में कमी, परिवहन की सुविधाओं में कमी, अन्य आधारभूत सुविधाओं का अभाव तथा मिट्टी की गुणवत्ता में कमी के कारण उपज में आती कमी इत्यादि समस्याएँ शामिल हैं।भारत सरकार इस क्षेत्र में सुधारों और किसानों की आय दोगुनी करने के लिये 7 सूत्रीय रणनीति पर काम कर रही है।

1- प्रति बूंद-अधिक फसल रणनीति (Per Drop More Crop)- इस रणनीति के तहत सूक्ष्म सिंचाई पर बल दिया जा रहा है। इससे कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले पानी की मात्रा में कमी आएगी, इससे जल संरक्षण के साथ ही सिंचाई की लागत में भी कमी आएगी। ये रणनीति पानी की कमी वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से लाभदायक है।

2- कृषि क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग करने पर बल दिया जा रहा है साथ ही खेतों में उर्वरकों की उतनी ही मात्रा का प्रयोग करने करने के लिये जागरूकता का प्रसार किया जा रहा है जितनी मात्रा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार प्रयोग करना उचित है। इससे मृदा की गुणवत्ता में सुधार होगा साथ ही उर्वरकों पर होने वाले खर्च में भी प्रभावी कमी आएगी। इससे मृदा और जल प्रदूषण में भी कमी आएगी।

3- कृषि उपज को नष्ट होने से बचाने के लिये गोदामों और कोल्ड स्टोरेज पर निवेश को बढ़ाया जा रहा है। इससे उपज की बर्बादी रुकेगी, खाद्य सुरक्षा की स्थिति और मजबूत होगी तथा शेष उपज का अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में निर्यात भी किया जा सकता है।

4- खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से कृषि क्षेत्र में मूल्यवर्धन को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अपार संभावनाएँ निहित है।

5- उपज का सही मूल्य दिलाने के लिये राष्ट्रीय कृषि बाजार के निर्माण पर बल दिया गया है। इससे देशभर में कीमतों में समानता आएगी और किसानों को पर्याप्त लाभ मिल सकेगा।

6- भारत में हर साल अलग-अलग क्षेत्रों में सूखे, अग्नि, चक्रवात, अतिवृष्टि, ओले जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इन जोखिमों को कम करने के लिये वहनीय कीमतों पर फसल बीमा उपलब्ध कराया गया है। हालाँकि इसका वास्तविक लाभ अब तक पर्याप्त किसानों को नहीं मिल पाया है, इसका लाभ अधिकांश लोगों तक पहुँचे इसके लिये उपाय किये जाने चाहिये।

7- विभिन्न योजनाओं के माध्यम से डेयरी, पशुपालन, मधुमक्खी पालन, पोल्ट्री, मत्स्य पालन इत्यादि कृषि सहायक क्षेत्रों के विकास पर बल दिया जा रहा है। चूंकि देश के अधिकांश कृषक इन चीजों से पहले से ही जुड़े हुए हैं अत: इसका सीधा लाभ उन्हें मिल सकता है। आवश्यकता है जागरूकता, पशुओं की नस्ल सुधार जैसे कारकों पर प्रभावी तरीके से काम किया जाए।चूंकि देश की अधिकांश आबादी कृषि पर ही निर्भर है अत: देश में गरीबी उन्मूलन, रोजगार में वृद्धि, भुखमरी उन्मूलन इत्यादि तभी संभव है जब कृषि और किसानों की हालत में सुधार किया जाए। उपरोक्त उपायों को यदि प्रभावी तरीके से लागू किया जाए तो निश्चित तौर पर कृषि की दशा में सुधार आ सकता है। इससे इस क्षेत्र में व्याप्त निराशा में कमी आएगी, किसानों की आत्महत्या रुकेगी, और खेती छोड़ चुके लोग फिर से इस क्षेत्र में रुचि लेने लगेंगे।