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कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन में अंतर, जानकर करें इस्तेमाल

कीट नियंत्रण एक बार का उपचार है जबकि कीट प्रबंधन कीट के आने से पहले किया जा सकता है। इस लेख में हमने कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन के बीच विस्तार से अंतर बताया है।

pest control and pest management
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खेती-बाड़ी में अक्सर दो शब्द कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन सुनने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते है कि इन दोनों में बहुत ही बड़ा अंतर होता है। कीट से संबंधित इन दोनों ही शब्दों का मतलब इतना बड़ा होता है कि इनके इस्तेमाल से ना सिर्फ आपकी फसलों पर बल्कि आने वाले कृषि क्षेत्र पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। ऐसे में हम आपके लिए इन दोनों में अंतर सहित इनके महत्व पर जानकारी साझा कर रहे हैं।

कीट नियंत्रण

कीट नियंत्रण कीट में शामिल प्रजातियों का प्रबंधन है। यह खेत में मौजूद अवांछित कीड़ों को प्रबंधित करने, नियंत्रित करने, कम करने और हटाने की प्रक्रिया है। कीट नियंत्रण दृष्टिकोण में एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) शामिल हो सकता है। कृषि में कीटों को रासायनिक, यांत्रिक, सांस्कृतिक और जैविक तरीकों से दूर रखा जाता है। बुवाई से पहले खेत की जुताई और मिट्टी की जुताई करने से कीटों का बोझ कम होता है और फसल चक्रण से बार-बार होने वाले कीट प्रकोप को कम करने में मदद मिलती है। कीट नियंत्रण तकनीक में फसलों का निरीक्षण, कीटनाशकों का प्रयोग और सफाई जैसी कई बातें शामिल हैं।

कीट नियंत्रण का महत्व

मानव स्वास्थ्य का संरक्षण: यह मच्छरों, टिक्स और कृन्तकों जैसे कीटों द्वारा होने वाली बीमारियों के प्रसार को कम करके मानव स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करता है।

संपत्ति का संरक्षण: कीटों को नियंत्रित करना संरचनाओं, फसलों और संग्रहीत उत्पादों को नुकसान से बचाता है, संपत्ति को संक्रमण से संबंधित विनाश से बचाता है।

खाद्य सुरक्षा: कृषि सेटिंग्स में फसल उत्पादकता को बनाए रखने और भोजन की सुरक्षा व गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कीट नियंत्रण उपाय आवश्यक हैं।

आर्थिक प्रभाव: प्रभावी कीट नियंत्रण क्षतिग्रस्त फसलों और संपत्ति की क्षति के कारण होने वाली वित्तीय हानियों को रोक सकता है।

कीट प्रबंधन

कीट प्रबंधन को अवांछित कीटों को खत्म करने और हटाने की एक विधि के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें रासायनिक उपचारों का उपयोग शामिल हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। प्रभावी कीट प्रबंधन का उद्देश्य कीटों की संख्या को एक सीमा तक कम करना है।

कीट प्रबंधन का महत्व

रसायनों पर कम निर्भरता: यह जैविक नियंत्रण और सांस्कृतिक प्रथाओं जैसे वैकल्पिक तरीकों के उपयोग पर जोर देता है, रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करता है और उनके संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम करता है।

पर्यावरणीय स्थिरता: कीट प्रबंधन पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और स्थिरता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।

एकीकृत कीट प्रबंधन: कीट प्रबंधन में निगरानी, ​​निवारक उपाय और आवश्यक होने पर कीटनाशकों का लक्षित उपयोग शामिल है, जिससे अधिक प्रभावी और टिकाऊ कीट नियंत्रण होता है।

दीर्घकालिक रोकथाम: कीट प्रबंधन का उद्देश्य कीट समस्याओं के मूल कारणों को दूर करना और भविष्य में होने वाले संक्रमण को कम करने के लिए निवारक उपायों को लागू करना है, जिससे लगातार और गहन कीट नियंत्रण उपचार की आवश्यकता कम हो जाती है।

कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन में अंतर

कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन में अंतर बताने के लिए हमने कुछ प्वाइंट्स पर गौर करते हुए उसमें अंतर बताया है…

लक्ष्य

  • कीट नियंत्रण- विभिन्न तरीकों से कीटों को खत्म करना या कम करना
  • कीट प्रबंधन- पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को कम करते हुए या उनकों ध्यान में रखते हुए कीटों को नियंत्रित करना

दृष्टिकोण

  • कीट नियंत्रण- कीटों के तत्काल उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करना
  • कीट प्रबंधन- दीर्घकालिक रोकथाम और नियंत्रण रणनीतियों पर जोर देना

तरीका

  • कीट नियंत्रण- कीटनाशकों पर बहुत अधिक निर्भरता
  • कीट प्रबंधन- जैविक नियंत्रण, सांस्कृतिक प्रथाओं और रासायनिक नियंत्रण सहित विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल करना

दायरा

  • कीट नियंत्रण- मुख्य रूप से मौजूदा कीट संक्रमणों को कम करना या खत्म करना
  • कीट प्रबंधन- वर्तमान संक्रमण और भविष्य के संभावित खतरों दोनों को खत्म या कम करना.
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Top 5 Expensive Tractors: भारत के 5 सबसे महंगे ट्रैक्टर, अपने दमदार शक्ति और भार क्षमता के लिए लोकप्रिय

ट्रैक्टर अलग-अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न फिचर्स के साथ आता है. इस लेख में हम भारत में वर्ष 2023 के पांच सबसे महंगे ट्रैक्टरों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है. इन ट्रैक्टरों ने अपनी प्रभावशाली विशेषताओं, विश्वसनीयता और प्रतिस्पर्धी कीमतों के कारण लोकप्रियता हासिल की है।

कृषि क्षेत्र सहित विभिन्न कार्यों को करने में ट्रैक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऐसे में हम अपने लेख के जरिए अलग-अलग ट्रैक्टरों की जानकारी लेकर आते रहते हैं. इसी कड़ी में हम आपके लिए इस साल के भारत के 5 सबसे महंगे ट्रैक्टरों की जानकारी लेकर आए हैं. इन ट्रैक्टरों को भारी भार को कुशलतापूर्वक संभालने और बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है. अधिक जानकारी के लिए लेख पढ़ना जारी रखें।

Swaraj 855 FE
Swaraj 855 FE

स्वराज 855 एफई (Swaraj 855 FE)

स्वराज 855 एफई एक शक्तिशाली ट्रैक्टर है जो एक मजबूत इंजन और उन्नत सुविधाओं से लैस है. यह एक 3-सिलेंडर इंजन द्वारा संचालित है, जो विभिन्न कृषि कार्यों के लिए कुशल प्रदर्शन और विश्वसनीय बिजली उत्पादन प्रदान करता है. स्वराज ट्रैक्टर के अटैचमेंट्स को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है, जो किसानों के उत्पादकता बढ़ाने के लिए कल्टीवेटर, हल और हार्वेस्टर जैसे उपकरणों को आसानी से जोड़ने और उपयोग करने में मददगार है. अगर इसके वजन की बात करें तो स्वराज 855 एफई का कुल वजन 2440 किलोग्राम है जो भारी भरकम वजन उठाने में भी सक्षम है. ट्रैक्टर में 8 आगे और 2 रिवर्स गियर हैं, जो कई दिशाओं में घूमने के लिए सक्षम है. इसके अलावा इसमें पावर स्टीयरिंग की सुविधा है, जो सहज गतिशीलता प्रदान करता है और लंबे समय तक उपयोग के दौरान थकान को कम करता है. भारत में स्वराज 855 FE की कीमत 7.90-8.40 लाख रुपये के बीच है।

Swaraj 744 FE
Swaraj 744 FE

स्वराज 744 एफई (Swaraj 744 FE)

स्वराज 744 एफई तेल में डूबे ब्रेक वाला 48 एचपी ट्रैक्टर है. स्वराज 744 FE ट्रैक्टर को विभिन्न अटैचमेंट्स को समायोजित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो इसे विभिन्न कृषि कार्यों के लिए बहुमुखी बनाता है।

इस स्वराज ट्रैक्टर का अधिकतम कुल वजन 2345 किलोग्राम है जो संचालन के दौरान स्थिरता प्रदान करता है और विभिन्न इलाकों में आसानी से नेविगेट करने के लिए पर्याप्त फुर्तीला रहता है. ये ट्रैक्टर 8F+2R के साथ आता है, जिससे ऑपरेटर आसानी से कई दिशाओं में जा सकते हैं. इसमें 3 चरणों वाले वेट एयर क्लीनर के साथ 2000 इंजन रेटेड RPM है. स्वराज 744 एफई ट्रैक्टर में पावर स्टीयरिंग है, जो सटीक और सहज चालन को सक्षम बनाता है. भारत में स्वराज 744 FE की कीमत 6.90-7.40 लाख रुपये के बीच है।

Kubota MU 4501 2WD

कुबोटा एमयू 4501 2डब्ल्यूडी (Kubota MU 4501 2WD)

Kubota MU 4501 2WD ट्रैक्टर एक विश्वसनीय और कुशल मशीन है जिसे विभिन्न कृषि कार्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक शक्तिशाली इंजन है जो असाधारण प्रदर्शन और ईंधन दक्षता सुनिश्चित करता है. ट्रैक्टर में 4-सिलेंडर इंजन है. इस Kubota ट्रैक्टर मॉडल को आसानी से हल, कल्टीवेटर, लोडर जैसे उपकरणों के साथ लगाया जा सकता है, जिससे खेत में इसकी बहुमुखी प्रतिभा और उत्पादकता का विस्तार होता है।

अगर इसके वजन की बात करें तो ट्रैक्टर 1850 किलोग्राम के कुल वजन के साथ शक्ति और गतिशीलता के बीच संतुलन बनाता है. ट्रैक्टर क्रमशः 8 और 4 के फॉरवर्ड और रिवर्स गियर के साथ आता है जो कई दिशाओं में घूमने के लिए सक्षम है. इसमें 5000 घंटे या 5 साल की वारंटी के साथ तेल में डूबे हुए डिस्क ब्रेक हैं. भारत में Kubota MU 4501 2WD की कीमत 7.69-7.79 लाख रुपये के बीच है।

Powertrac Euro 50
Powertrac Euro 50

पॉवरट्रैक यूरो 50 (Powertrac Euro 50)

पॉवरट्रैक यूरो 50 ट्रैक्टर एक मजबूत और कुशल मशीन है जिसे कृषि कार्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक उच्च-प्रदर्शन इंजन है जो विश्वसनीय शक्ति और ईंधन दक्षता प्रदान करता है. ट्रैक्टर में 3-सिलेंडर इंजन है, जो खेती के विभिन्न कार्यों के लिए सुचारू और कुशल संचालन सुनिश्चित करता है।

यह पॉवरट्रैक मॉडल आसानी से हल, कल्टीवेटर, हैरो आदि जैसे उपकरणों से जुड़ सकता है, जिससे खेत में इसकी बहुमुखी प्रतिभा और उत्पादकता में वृद्धि होती है. इस ट्रैक्टर में 50 एचपी है और यह मल्टी प्लेट तेल में डूबे डिस्क ब्रेक के साथ आता है. इसका कुल वजन 2140 किलोग्राम और 2040 एमएम का कुल व्हीलबेस है. पॉवरट्रैक यूरो 50 ट्रैक्टर एक विश्वसनीय और बहुमुखी मशीन है, जो विभिन्न कृषि अनुप्रयोगों में किसानों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शक्ति, दक्षता और आराम का संयोजन करती है. भारत में पॉवरट्रैक यूरो 50 की कीमत 7.31-7.75 लाख रुपये के बीच है।

John Deere 5050 D
John Deere 5050 D

जॉन डीरे 5050 डी (John Deere 5050 D)

जॉन डियर 5050 डी एक उच्च प्रदर्शन वाला ट्रैक्टर है जो अपनी गुणवत्ता और टिकाऊपन के लिए जाना जाता है. यह एक मजबूत इंजन से लैस है जो उत्कृष्ट शक्ति और दक्षता प्रदान करता है. ट्रैक्टर में 3-सिलेंडर इंजन है, जो कृषि कार्यों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए बेहतर प्रदर्शन और विश्वसनीय संचालन प्रदान करता है.

यह आसानी से हल, कल्टीवेटर, सीडर्स जैसे अन्य उपकरणों से जुड़ सकता है, जिससे किसानों को अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक करने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है. इसका वजन लगभग 1870 किलोग्राम है जो ऑपरेशन के दौरान स्थिरता सुनिश्चित करता है और विभिन्न इलाकों में आसानी से नेविगेट करने के लिए फुर्तीला है. ये 8 आगे और 4 रिवर्स गियर के साथ आता है, जिससे ऑपरेटर आसानी से कई दिशाओं में जा सकते हैं. यह तेल में डूबे हुए डिस्क ब्रेक के साथ 60 लीटर की ईंधन टैंक क्षमता के साथ आता है. भारत में जॉन डीरे 5050 डी की कीमत 7.99-8.70 लाख रुपये के बीच है।

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राष्ट्रीय कृषि इन्फ्रा वित्तपोषण सुविधा :- (नेशनल एग्रीकल्चर इंफ्रा फाइनेंसिंग फैसिलिटी)

इस वित्तपोषण सुविधा के अंतर्गत सभी ऋणों पर 3% प्रति वर्ष का ब्याज अनुदान प्रदान किया जाएगा, जिसकी अधिकतम लिमिट रू. 2 करोड़ होगी। यह अनुदान अधिकतम 7 साल की अवधि के लिए उपलब्ध होगीI

मुख्य विशेषताएं

  • केंद्र या राज्य सरकार की सभी योजनाओं के साथ अभिसरण।
  • भाग लेने वाले ऋणदाता संस्थानों के सहयोग से ऑनलाइन सिंगल विंडो सुविधा।
  • परियोजना तैयार करने सहित परियोजनाओं के लिए सहायता प्रदान करने के लिए परियोजना प्रबंधन इकाई।
  • वित्तपोषण सुविधा का आकार – ₹ 1 लाख करोड़।
  • ₹ 2 करोड़ तक के ऋण के लिए क्रेडिट गारंटी।
  • 3% प्रति वर्ष का ब्याज सबवेंशन, एक स्थान पर ₹ 2 करोड़ प्रति परियोजना तक सीमित है, हालांकि ऋण राशि अधिक हो सकती है।
  • उधार दर पर कैप, ताकि ब्याज सब्सिडी का लाभ लाभार्थी तक पहुंचे और किसानों को सेवाएं सस्ती रहें।
  • वाणिज्यिक बैंकों, सहकारी बैंकों, आरआरबी, लघु वित्त बैंकों, एनसीडीसी, एनबीएफसी आदि सहित कई उधार देने वाले संस्थान।
  • एक पात्र संस्था विभिन्न स्थानों पर परियोजनाएँ लगाती है तो ऐसी सभी परियोजनाएँ योजना के तहत ₹ 2 करोड़ तक के ऋण के लिए पात्र होंगी।
  • एक निजी क्षेत्र की संस्था, जैसे कि किसान, कृषि उद्यमी, स्टार्ट-अप के लिए अधिकतम 25 ऐसी परियोजनाओं की सीमा होगी।
  • 25 परियोजनाओं की सीमा राज्य एजेंसियों, सहकारी समितियों के राष्ट्रीय और राज्य संघों, एफपीओ के संघों और स्वयं सहायता समूहों के संघों पर लागू नहीं होगी।

नेशनल एग्रीकल्चर इंफ्रा फाइनेंसिंग फैसिलिटी

कृषि विकास और उत्पादन की गतिशीलता को अगले स्तर तक ले जाने के लिए बुनियादी ढांचे की भूमिका महत्वपूर्ण है। केवल बुनियादी ढाँचे के विकास के माध्यम से, विशेष रूप से कटाई के बाद के चरण में, मूल्य संवर्धन और किसानों के लिए उचित सौदे के अवसर के साथ उत्पाद का इष्टतम उपयोग किया जा सकता है। इस तरह के बुनियादी ढांचे के विकास से प्रकृति की विषमताओं, क्षेत्रीय विषमताओं, मानव संसाधन के विकास और हमारे सीमित भूमि संसाधनों की पूरी क्षमता का एहसास भी होगा।

उपरोक्त को देखते हुए, माननीय वित्त मंत्री ने 15.05.2020 को किसानों के लिए फार्म-गेट इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 1 लाख करोड़ के एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की घोषणा की। रुपये की वित्तपोषण सुविधा। फार्म-गेट और एकत्रीकरण बिंदुओं (प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों, कृषि उद्यमियों, स्टार्ट-अप, आदि) पर कृषि अवसंरचना परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए 1,00,000 करोड़ रुपये प्रदान किए जाएंगे। फार्म गेट और एग्रीगेशन पॉइंट के विकास के लिए प्रोत्साहन, किफायती और आर्थिक रूप से व्यवहार्य पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर।

तदनुसार, डीए एंड एफडब्ल्यू ने प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता के माध्यम से पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर और सामुदायिक कृषि संपत्तियों से संबंधित व्यवहार्य परियोजनाओं में निवेश के लिए एक मध्यम-दीर्घावधि ऋण वित्तपोषण सुविधा जुटाने के लिए केंद्रीय क्षेत्र की योजना तैयार की है।

इसके बाद, 01.02.2021 को की गई बजट घोषणा में, योजना का लाभ एपीएमसी को देने का निर्णय लिया गया। तदनुसार, योजना को और अधिक समावेशी बनाने के लिए मंत्रिमंडल के अनुमोदन से इसमें संशोधन किए गए।

माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (CGTMSE) योजना के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट के तहत 2 करोड़ रुपये तक के ऋण के लिए इस वित्तपोषण सुविधा से पात्र उधारकर्ताओं के लिए क्रेडिट गारंटी कवरेज उपलब्ध होगा। इस कवरेज के लिए शुल्क का भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा। एफपीओ के मामले में डीए एंड एफडब्ल्यू की एफपीओ प्रोत्साहन योजना के तहत बनाई गई सुविधा से क्रेडिट गारंटी का लाभ उठाया जा सकता है।

इस वित्तपोषण सुविधा के तहत सभी ऋणों में ₹ 2 करोड़ की सीमा तक 3% प्रति वर्ष का ब्याज सबवेंशन होगा। यह आर्थिक सहायता अधिकतम 7 वर्ष की अवधि के लिए उपलब्ध होगी। 2 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण के मामले में, ब्याज अनुदान 2 करोड़ रुपये तक सीमित होगा। कुल वित्त पोषण सुविधा में से निजी उद्यमियों को वित्त पोषण की सीमा और प्रतिशत राष्ट्रीय निगरानी समिति द्वारा तय किया जा सकता है।

योजना 2020-21 से 2032-33 तक चालू रहेगी। योजना के तहत ऋण वितरण छह साल में पूरा होगा।

लाभार्थी

79529

आवेदनों की संख्या

65253

ऋण राशि प्राप्त आवेदनों की।

₹ 36,049 करोड़

उपयोगकर्ता

162903

राज्य/संघ राज्य क्षेत्र

34

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Farm Business: तुरंत शुरू करें खेती से जुड़े यह तीन व्यवसाय, चंद दिनों में बन जाएंगे करोड़पति

आजकल सभी किसान अपनी आय को बढ़ाने के लिए धान, गेहूं के साथ अन्य फसलों की खेती भी कर रहे हैं। कई लोगों को इससे बड़ा मुनाफा हुआ है। आज हम आपको खेती की तीन ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं। जो आपको चंद दिनों में करोड़पति बना देंगी।

एक्जोटिक वेजिटेबल की खेती
एक्जोटिक वेजिटेबल की खेती

आज के समय में लगभग सभी किसान अपनी आय को मजबूत करने के लिए खेतों में धान-गेहूं के अलावा भारी मात्रा में अन्य फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। जिनमें कई किसान बढ़िया मुनाफा कमाने में भी सफल हैं। वैसे तो खेती से जुड़े व्यवसाय के बारे में हम आपको पहले भी बता चुके हैं। लेकिन आज जिन फसलों व खेती से जुड़े व्यापार के बारे में बताने जा रहे हैं। उससे किसान चंद दिनों में करोड़पति बन सकते हैं। वहीं, उनमें लागत भी बहुत कम है. तो आइए खेती से जुड़े चार व्यवसाय पर एक नजर डालें।

मशरूम की खेती
मशरूम की खेती

मशरूम की खेती

मशहूर की खेती से किसान जबरदस्त कमाई कर सकते हैं। भारत में मुख्य तौर पर तीन तरह के मशरूम की खेती होती है. जिनमें बटन मशरूम, ओएस्टर मशरूम व मिल्की मशरूम शामिल हैं। इनमें भी बटन मशरूम का उत्पादन सबसे अधिक होता है। अगर एक एकड़ बटन मशरूम की खेती की बात करें तो उसमें लागत कम से कम 70 हजार रुपये आता है। जिससे महज तीन महीने में लगभग तीन लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। बता दें कि बटन मशरूम की खेती सितंबर व अक्टूबर में होती है। वहीं, यह महज एक महीने में तैयार हो जाते हैं। इसकी खेती के लिए शेड की व्यवस्था करना बहुत जरूरी है। क्योंकि तैयार होने के बाद खुले में मशरूम खराब होने लगते हैं।

मधुमक्खी पालन
मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी पालन

अगर कम लागत में खेती से जुड़े व्यवसाय करके ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं तो मधुमक्खी पालन भी बढ़िया ऑप्शन है। इस बिजनेस को शुरू करने से पहले ट्रेनिंग लेना बहुत जरुरी है। इसकी ट्रेनिंग लगभग 30 दिनों तक होती है। इस व्यवसाय को शुरू करने में किसानों को लगभग दो लाख रुपये तक खर्च करना पड़ सकता है। वहीं, शहद बेचकर साल में इससे पांच से छह लाख रुपये तक कमाई आसानी से हो सकती है।

इन तीन खेती से करोड़पति बन जाएंगे किसान
इन तीन खेती से करोड़पति बन जाएंगे किसान

एक्जोटिक वेजिटेबल की खेती

गांव से लेकर शहरों तक एक्जोटिक वेजिटेबल की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है। इनमें चेरी टमाटर, लाल शिमला मिर्च, धनिया, लाल गोभी आदि शामिल हैं। बाजार में इन सब्जियों का भाव भी काफी अच्छा मिलता है। वहीं, इनकी खेती में लागत भी बहुत कम आती है। किसान बताते हैं कि इन सब्जियों को उगाने में एक से दो महीने का समय लगता है। वहीं, साल भर में इन सब्जियों से लगभग पांच लाख रुपये तक का फायदा मिल जाता है।

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किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है यह घास, खेती से होगी लाखों में कमाई, जानें कैसे

घास की खेती से होगी बंपर कमाई
घास की खेती से होगी बंपर कमाई

अगर आप पेशेवर किसान हैं और धान-गेहूं व फल-सब्जी की खेती से आपको उचित मुनाफा नहीं मिल रहा है तो आपके लिए एक खास तरह की घास की खेती फायदेमंद साबित हो सकती है। वैसे तो यह घास भी साधारण घास की तरह दिखती है लेकिन इसमें कई खासियत हैं। बाजार में यह घास काफी मंहगी बिकती है। वहीं, इनकी खेती के लिए ज्यादा पैसा भी इन्वेस्ट नहीं करना पड़ता है। तो आइये, इस घास के बारे में विस्तार से जानें।

यह है घास का नाम

जिस घास के बारे में हम बात कर रहे हैं, उसका नाम लेमन ग्रास है। यह थोड़ा बहुत नींबू की तरह महकता है।इसलिए इसे लेमन घास का नाम दिया गया है। बाजार में लेमन घास की काफी मांग है। यह लाखों में बिकते हैं। माना जाता है कि यह घास कई बीमारियों को जड़ से उखाड़ फेंकने का भी काम करते हैं। इसकी खेती करने वाले किसान दो तरह से कमाई करते हैं।

तेल निकालकर बेचने से ज्यादा फायदा

पहली कमाई तो सीधे घास बेचकर होती है। वहीं, दूसरी तरफ इसका तेल भी निकालकर बेचा जाता है। एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि किसान इस घास से असली कमाई तेल के माध्यम से ही करते हैं। अगर वह तेल निकालने में सक्षम नहीं होते हैं तो वे घास को बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेच देते हैं। जो उन्हें अच्छा खासा पैसा देती हैं।

यहां भी उगा सकते हैं घास

लेमन घास की खेती के लिए किसान को पूरे खेत की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इसे मेड़ पर भी उगाया जा सकता है. वैसे तो पूरे साल इस घास की खेती होती है लेकिन फरवरी से जुलाई तक का महीना इसके लिए सबसे सही माना जाता है। अगर हर 15 दिन पर इस घास में पानी डाला जाए तो पैदावार भी अच्छी मिल जाती है। इससे तरीके से आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि लेमन घास की खेती में कितना खर्च आ सकता है, व कितना कमाई कर सकते हैं।

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Organic Potato Farming: आलू की जैविक तरीके से खेती करने का तरीका, उन्नत किस्में, उपज और फसल प्रबंधन

हमारे देश में आलू का उत्पादन मुख्यतः सब्जी के लिए होता है। इसके अलावा डॉइस, रवा, आटा, फलेक, चिप्स, फ्रेंच फ्राई, बिस्कुट आदि बनाने में उपयोग किया जाता है। आलू पौष्टिक तत्वों का खजाना है। इसमें सबसे प्रमुख स्टार्क, जैविक प्रोटीन, सोडा, पोटाश और विटामिन ए और डी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। यह मानव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। आलू की सम्भावनाओं को देखते हुए जैविक खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इसकी जैविक खेती से बंपर पैदावार पाने के लिए कुछ मुख्य बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। आज हम अपने इस लेख में आलू की खेती (Potato cultivation) से अधिकतम पैदावार किस तरह प्राप्त कर सकते हैं, इस तकनीक का उल्लेख करने वाले हैं।

Potato Varieties
Potato Varieties

हमारे देश में आलू का उत्पादन मुख्यतः सब्जी के लिए होता है। इसके अलावा डॉइस, रवा, आटा, फलेक, चिप्स, फ्रेंच फ्राई, बिस्कुट आदि बनाने में उपयोग किया जाता है. आलू पौष्टिक तत्वों का खजाना है।

इसमें सबसे प्रमुख स्टार्क, जैविक प्रोटीन, सोडा, पोटाश और विटामिन ए और डी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। यह मानव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। आलू की सम्भावनाओं को देखते हुए जैविक खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इसकी जैविक खेती से बंपर पैदावार पाने के लिए कुछ मुख्य बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। आज हम अपने इस लेख में आलू की खेती (Potato cultivation) से अधिकतम पैदावार किस तरह प्राप्त कर सकते हैं, इस तकनीक का उल्लेख करने वाले हैं।

आलू की जैविक खेती के लिए जलवायु (Climate for organic farming of potatoes)

जहां सर्दी के मौसम में पाले का प्रभाव नहीं होता है, वहां आलू की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। इसके कंदों का निर्माण 20 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर सबसे अधिक होता है। जैसे तापमान में वृद्धि होती है, वैसे ही कंदों का निर्माण में भी कम होने लगता है। देश के विभिन्न भागों में उचित जलवायु के अनुसार किसी न किसी भाग में पूरे साल आलू की खेती की जाती है।

आलू की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for organic cultivation of potato)

इसकी खेती क्षारीय भूमि के अलावा सभी प्रकार की भूमि में हो सकती है, लेकिन जीवांशयुक्त रेतीली दोमट या दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है. इसके अलावा भूमि में उचित जल निकास का प्रबंध आवश्यक है।

आलू की उन्नत किस्में (Improved varieties of potatoes)

अगेती किस्में- कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफऱी कुफरी पुखराज, कुफरी अशोका, चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, जवाहर किस्मों के पकने की अवधि 80 से 100 दिन की होती है।

मध्यम समय वाली किस्में- कुफरी सतलुज, कुफरी चिप्सोना- 1, कुफरी बादशाह, कुफरी बहार ,कुफरी लालिमा, कुफरी चिप्सोना- 3, कुफरी ज्योति, कुफरी चिप्सोना- 4, कुफरी सदाबहार किस्मों के पकने की अवधि 90 से 110 दिन की होती है।

देर से पकने वाली किस्में– कुफरी सिंधुरी, कुफरी फ़्राईसोना और कुफरी बादशाह किस्मों के पकने की अवधि 110 से 120 दिन की होती है।

संकर किस्में- कुफरी सतुलज (जे आई 5857), कुफरी जवाहर (जे एच- 222), 4486- ई, जे एफ- 5106 आदि।

विदेशी किस्में- अपटूडेट, क्रेग्स डिफाइन्स और प्रेसिडेंट आदि है।

आलू के खेत की तैयारी (Potato field preparation)

आलू के कंद मिट्टी के अन्दर तैयार होते हैं, इसलिए सबसे पहले खेती की मिट्टी को भुरभुरा बना लें. खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद दूसरी और तीसरी जुताई देसी हल या हेरों से करनी चाहिए। अगर खेत में ढेले हैं, तो पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभूरा बना लें। ध्यान रहे कि बुवाई के समय मिट्टी में नमी रहे।

फसल-चक्र

आलू जल्द तैयार होने वाली फसल है। इसकी कुछ किस्में 70 से 90 दिन में पक जाती हैं, इसलिए फसल विविधिकरण के लिए यह एक आदर्श नकदी फसल है। किसान मक्का-आलू-गेहूं, मक्का-आलू-मक्का, भिन्डी-आलू-प्याज, लोबिया आलू-भिन्डी आदि फसल प्रणाली को अपना सकते हैं।

आलू के खेत की बुआई का समय (Sowing time of potato field)

आलू की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है. सालभर में आलू की 3 फसलें प्राप्त की जा सकती है।

आलू की अगेती फसल- यह फसल सितम्बर के तीसरे सप्ताह से अक्टूबर पहले सप्ताह तक प्राप्त की जा सकती है।

मुख्य फसल- यह फसल अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक प्राप्त की जा सकती है।

बसंतकालीन फसल- यह फसल 25 दिसम्बर से 10 जनवरी तक प्राप्त की जा सकती है।

बीज की मात्रा

आलू की खेती में बीज का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसके उत्पादन में कुल लागत का 40 से 50 प्रतिशत खर्च बीज पर आता हैं। बता दें कि आलू के बीज की मात्रा किस्म, आकार, बोने की दूरी और भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है।

बीज उपचार

आलू की जैविक खेती के लिए बीज जनित और मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को जीवामृत और ट्राइकोडर्मा विरीडी 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल के हिसाब से 15 से 20 मिनट के लिए भिगोकर रख दें। इसके साथ ही बुवाई से पहले छांव में सूखा लें। मगर ध्यान दें कि ट्राइकोडर्मा क्षारीय मृदाओं के लिए उपयोगी नहीं होते हैं।

आलू की बुवाई की विधियां (Methods of sowing potatoes)

  • समतल खेत में आलू बोना
  • समतल खेत में आलू बोकर मिटटी चढ़ाना
  • मेंड़ों पर आलू की बुवाई
  • पोटैटो प्लांटर से बुवाई
  • दोहरा कूंड़ विधि

आलू की सिंचाई प्रबंधन (Potato Irrigation Management)

आलू एक उथली जड़ वाली फसल है, इसलिए इसकी खेती में बार-बार सिंचाई करनी पड़ती है। सिंचाई की संख्या किस्म और मौसम पर निर्भर करता है। इसकी खेती में बुवाई के 3 से 5 दिन बाद पहली सिंचाई हल्की करनी चाहिए। ध्यान रहे कि खेत की मिटटी हमेशा नम रहे। इसके अलावा जलवायु और किस्म के अनुसार आलू में 5 से 10 सिंचाइयां देने की आवश्यकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण

आलू की जैविक फसल के साथ उगे खरपतवार को नष्ट करने के लिए फसल में एक बार ही निंदाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। इसे बुवाई के 20 से 30 दिन बाद कर देना चाहिए। मगर ध्यान दें कि भूमि के भीतर के तने बाहर न आएं।

प्रमुख कीट

  • माहूं
  • आलू का पतंगा
  • कटुआ

कीटों का प्रबंधन

  • गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें।
  • आलू की शीघ्र समय से बुवाई करें।
  • उचित जल प्रबंधन की व्यवस्था रखें।
  • आलू में येलो स्टीकी ट्रेप का प्रयोग कर सकते हैं।
  • माहूं के लिए आलू की जैविक खेती में नीम युक्त कीटनाशकों का प्रयोग करें।
  • आलू की जैविक खेती में जीवामृत के 4 से 5 छिडकाव कर दें।
  • खेतो में प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कर सकते हैं।

प्रमुख रोग

  • अगेती झुलसा
  • पछेती झुलसा

रोगों का प्रबंधन

इसके लिए सम्भावित समय से पहले हर 15 दिन के अंतराल पर नीम या गौ मूत्र आधारित कीटनाशक का छिड़काव करते रहें।

फसल की खुदाई

फसल की खुदाई किस्म और उगाये जाने के उद्देश्य पर निर्भर करती है। फसल की खुदाई करते समय ध्यान दें कि कंद पर किसी भी तरह की खरोच न आए, नहीं तो उनके जल्द सड़ने का खतरा बना रहता है। आलू के कंदो की खुदाई के लिए पोटेटो डिगर या मूंगफली हारवेस्टर का उपयोग कर सकते हैं।

आलू की पैदावार (Potato production)

आलू की जैविक खेती की पैदावार जलवायु, मिट्टी, खाद का उपयोग, किस्म और फसल की देखभाल आदि पर निर्भर करती है। सामान्य रूप से आलू की अगेती किस्मों से औसतन 250 से 400 क्विंटल पैदावार मिल जाती है। इसके अलावा पिछेती किस्मों से 300 से 600 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

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Early Blight: जानें आलू की फसल में लगने वाली बीमारियां, आलू के दाग रोग के लिए अपनाएं यह तरीके

किसानों की आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि अच्छी फसल होने के बाद भी किसी न किसी फसल के रोग के कारण फसल का उत्पादन कम हो जाता है। आज हम आपको आलू में लगने वाले एक ऐसे ही रोग से सुरक्षा के प्रबंधन की जानकारी देगें।

Beware of diseases in crops
Beware of diseases in crops

भारत एवं अन्य देशों में भी आलू एक प्रमुख सब्जी के रूप में उत्पादित की जाती है। भारत में आलू की फसल कई राज्यों की अहम फसल होती है। साथ ही उत्तर भारत में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में सबसे ज्यादा उत्पादित की जाने वाली सब्जी के रूप में होती है। आलू के विभिन्न रोगों में से कुछ प्रमुख रोग आलू के दाग रोग (Early Blight), लेटल ब्लाइट (Late Blight), वायरस से होने वाले रोग (Viral Diseases), आलू का रूईदार रोग (Potato Cyst Nematode) आदि होते हैं। आज हम आपको इनमें से आलू की पत्तियों में होने वाले दाग रोग के बारे में बताने जा रहे हैं। आलू के दाग रोग (Early Blight) एक प्रमुख पत्तियों का रोग है ,जो आलू के पौधों को प्रभावित करता है। यह रोग प्रकृति में मौजूद कई प्रकार के फंगस से हो सकता है, जिनमें Alternaria solani और Alternaria alternata फंगस प्रमुख होते हैं। इस रोग के कारण पत्तियों पर गहरे बौने या काले रंग के दाग बन जाते हैं। यह दाग सामान्यतः पत्ती की परिधि से शुरू होते हैं और धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं।

आलू के दाग रोग के प्रमुख लक्षण

  • पत्तियों पर गहरे बौने या काले रंग के दाग
  • दागों के आसपास पत्ती की परिधि पर पतला पीला या सफेद रंग का रिंग
  • पत्तियों की आकार में कमी और सूखे हुए रंग की उपस्थिति
  • पत्तियों का पतला होना और पत्ती में कटाव की उपस्थिति
  • आलू के दाग रोग से सुरक्षा के उपाय
  • स्वच्छ बीज चुनना: स्वच्छता के माध्यम से रोगों का प्रसार कम होता है, इसलिए रोगमुक्त बीजों का उपयोग करना चाहिए।
  • रोगप्रतिरोधी प्रजातियों का चयन करना: रोगप्रतिरोधी प्रजातियों को चुनकर आलू की खेती करनी चाहिए, जो दाग रोग के प्रति प्रतिरोधी हो सकती हैं।
  • संक्रमित पौधों का निकालना: जब भी संक्रमित पौधे या पत्तियां होती हुई दिखें तो उन्हे तुरंत निकाल देना चाहिए ताकि रोग का प्रसार रोका जा सके।
  • कीटनाशकों का उपयोग करना: गंभीर संक्रामण के मामलों में कीटनाशकों का उपयोग करना जरूरी हो सकता है।
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किसानों को इस काम के लिए मिल रही है 48 हजार रुपये तक सब्सिडी, तुरंत उठाएं लाभ

किसानों को एक सब्सिडी के तहत 48 हजार रुपये मिल रहे हैं। आइए जानें कैसे अन्नदाता उठा सकते हैं लाभ।

किसानों को इस काम के लिए मिल रही है बड़ी सब्सिडी
किसानों को इस काम के लिए मिल रही है बड़ी सब्सिडी

अन्नदाताओं को खुश करने के लिए सरकार आए दिन एक से बढ़कर एक योजनाएं पेश करती है। इस वक्त किसानों के लिए एक और अच्छी खबर सामने आई है। एक राज्य सरकार खास योजना के तहत कृषकों को 48 हजार रुपये तक की सब्सिडी दे रही है। इस अनुदान का लाभ उठाने के लिए किसान तुरंत आवेदन कर सकते हैं। तो आइए जानें किस योजना के तहत कहां मिल रही है किसानों को सब्सिडी और कैसे उठा सकते हैं इसका लाभ।

आवारा पशुओं से बचाव के लिए शुरू की गई योजना

दरअसल, राजस्थान में किसानों को एक खास काम के लिए सब्सिडी देने का ऐलान किया गया है। राज्य सरकार चूरू जिले के कृषकों तारबंदी योजना के तहत अनुदान दे रही है। इसको लेकर अधिकारियों का कहना है कि फसलों को आवारा जानवरों व नीलगाय से हो रहे नुकसान को ध्यान में रखते हुए इस योजना का ऐलान किया गया है। इसका लाभ जिले के लगभग 5800 किसान उठा सकेंगे।


इन किसानों को मिलेगी इतनी सब्सिडी

वैसे तो हर श्रेणी के किसानों को इसका फायदा मिलेगा। लेकिन सामान्य श्रेणी के किसानों को 40 हजार रुपए का अनुदान दिया जाएगा। वहीं, लघु एवं सीमांत श्रेणी के किसानों को इस सब्सिडी के तहत 48 हजार रुपये मिलेंगे। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस योजना का लाभ उन्हीं किसानों को मिलेगा, जो कम से कम 1.5 हैक्टेयर जमीन में तारबंदी कराएंगे।

ऐसे करें आवेदन

राजस्थान सरकार की इस योजना का लाभ उठाने के लिए अन्नदाताओं को राज किसान पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके लिए उन्हें कुछ दस्तावेज भी जमा करने होंगे, जिसके बारे में वेबसाइट पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। बता दें कि राजस्थान के अलावा भारत के अन्य राज्यों में भी तारबंदी को लेकर सरकारें भारी सब्सिडी दे रही हैं। कुछ राज्यों में सरकार किसानों को इसके लिए 60-70 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है।

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इन दस ख़ास पेड़ों की मांग करती है पूरी दुनिया, लाखों रुपये किलो बिकती है लकड़ी

दुनिया में आज पेड़-पौधों पर केवल पशु पक्षी ही नहीं बल्कि मानव जीवन भी पूरी तरह से निर्भर हो चुका है। आज हम आपको दुनिया में फर्नीचर से लेकर अन्य कीमती सामानों के लिए प्रयोग में लायी जा रही सबसे कीमती लकड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं।

आज हमारे जीवन में लकड़ी का उपयोग हर किसी के घर में होता है। शायद लकड़ी नहीं होने पर हमारा जीवन ही बेरंग हो जाता है। आज दुनिया के किसी भी घर की बात कर लें फिर वो किसी गरीब का घर हो या किसी करोड़पती का सभी के घर की रौनक लकड़ी के बने फर्नीचर या अन्य सामानों से होती है। दुनिया में आज कई देश तो ऐसे हैं जिनकी अर्थव्यवस्था ही लकड़ियों पर निर्भर होती है। आज हम आपको कुछ ऐसी लकड़ियों के बारे में बतायेंगे जिनकी कीमत दुनिया में सबसे ज्यादा है।

चंदन का पेड़ (Sandalwood Tree)

भारत में चन्दन की लकड़ी के बारे में तो हम सभी जानते ही हैं। इस लकड़ी से तेल के साथ-साथ कई तरह की दवाइयां बनाई जाती हैं. साथ ही भारत में इसका उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए भी किया जाता है। भारत में इस लकड़ी से इत्र भी तैयार किया जाता है। आज भारत में इस लकड़ी की तस्करी बहुत बड़ी मात्रा में हो रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह पेड़ सबसे पहले भारत में सबसे ज्यादा पाया जाता था लेकिन अब इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश आस्ट्रेलिया बन गया है। बाज़ार में इस लकड़ी की कीमत लाखों रुपये तक होती है। चन्दन के पेड़ की कई किस्में बाज़ार में अलग-अलग रेट में मिलती हैं।

अफ्रीकन ब्लैकवुड (African Blackwood)

इस पेड़ की लकड़ी भी बहुत कीमती होती है. इस पेड़ की लकड़ी बाज़ार में 7 लाख से 9 लाख रुपये प्रति किलो तक बिकती है। यही कारण है कि इस लकड़ी को भी दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी की लिस्ट में शामिल किया गया है. यह पेड़ दुनिया में अफ्रीका के सूखे इलाकों में पाए जाते हैं।

बोकोट ट्री (Bocot Tree)

इस पेड़ की लकड़ी आपको लगभग 2500 रुपये प्रति फीट के हिसाब से मिलती है। यह पेड़ अमेरिका, मैक्सिको जैसे देशों में पाए जाते हैं। इस लकड़ी की सबसे ख़ास बात यह है कि इस लकड़ी के तने को जब हम फर्नीचर या डेकोरेशन के लिए प्रयोग करते हैं तो इस तने में बहुत सी घुमावदार डिजायन सामने आती हैं। जो देखने में बहुत ही ज्यादा आकर्षक लगाती हैं। आप इस लकड़ी की कीमत जितनी सामान्य समझ रहे हैं उतनी है नहीं क्योंकि इसके बने हुए कई आइटम बाज़ार में लाखों की कीमत में बिकते हैं।

लिग्नम विटे (Lignum Vitae)

यह पेड़ अमेरिका के साथ-साथ कैरेबियन देशों में पाया जाता है। इसकी एक फीट लकड़ी की कीमत लगभग 7000 रूपये तक है। इस पेड़ की लकड़ी सबसे ज्यादा सख्त और आकर्षक है. इस लकड़ी की ख़ास बात यह है कि यह न ही जल्दी सड़ती है और न ही इस लकड़ी में किसी प्रकार का कोई कीड़ा लगता है। इस पेड़ की ख़ास बात यह है कि इस पेड़ में एक तरह का आयल होता है जो इस पेड़ को पानी से बचा के रखता है। यही कारण है कि यह पेड़ वाटरप्रूफ भी होता है। यह पेड़ लम्बाई में 6 मीटर से 10 मीटर तक होता है। यह पेड़ फर्नीचर जैसे कामों के साथ ही साथ दवा बनाने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। 

बुबिंगा (Bubinga)

यह पेड़ अंदरूनी तौर रेड कलर का होता है। इसकी एक फुट लकड़ी की कीमत लगभग 1400 रुपये तक होती है. यह पेड़ अफ्रीका में पाए जाते हैं साथ ही इनकी लम्बाई लगभग 100 फुट तक हो सकती है। इसकी लकड़ी को फर्नीचर से लेकर कई तरह के अन्य कामों में भी प्रयोग में लाया जाता है।

एमरंथ या पर्पल हार्ट (Amaranth or Purple Heart)

इस लकड़ी की कीमत भारत में लगभग 1000 रुपये प्रति फुट तक हो सकती है। यह पेड़ अफ्रीका, गुयाना, ब्राजील के साथ कैरेबियन देशों में पाया जाता है। इस पेड़ की लम्बाई की बात करें तो यह पेड़ 100 फीट से 170 फीट तक होती है।इस लकड़ी की सबसे ख़ास बात इसका रंग होता है। यह लकड़ी बैगनी रंग की होती है। इसके रंग के कारण ही यह लकड़ी  दुनियाभर में सबसे ज्यादा ख़ास हो जाती है।

पिंक आइवरी(Pink Ivory)

यह पेड़ साऊथ अफ्रीका के साथ जिम्बाम्बे जैसे देशों में पाया जाता है। इस पेड़ को इसके रंग के कारण सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। इसकी लकड़ी का रंग पिंक ब्राउन होता है साथ ही यह बहुत ही चमकीली होती है। इस लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर के साथ-साथ दैनिक चीजों में प्रयोग होने वाले सामानों के लिए भी किया जाता है। इस पेड़ की लकड़ी से गीटार से लेकर कई अन्य महंगे सामान तैयार किए जाते हैं।

एगरवुड ट्री (Agarwood Tree)

इस पेड़ की लकड़ी की कीम्मत सुन कर तो आपके भी होश उड़ जाएंगे। इसकी एक किलो लकड़ी को आप बाज़ार में 7 से 8 लाख रुपये तक में बेच सकते हैं। यह लकड़ी चीन, म्यामार, बाग्लादेश जैसे कई देशों में पाए जाती हैं. इसका उपयोग कई तरह के परफ्यूम बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही इस पेड़ से कई तरह की दवाइयां भी तैयार की जाती हैं। कई लोगों की माने तो इस पेड़ से तैयार किया तेल सोने से भी ज्यादा कीमती होता है।

एबनी ट्री (Ebony Tree)

इस पेड़ को मिलियन डॉलर ट्री भी कहा जाता है। इस पेड़ की खासियत घने काले और भूरे रंग की डिज़ाइन. यह पेड़ दुनिया में बहुत ही कम स्थानों पर पाया जाता है। यह लकड़ी शतरंज, गिटार जैसी चीजों के साथ सभी डेकोरेशन वाली चीजों को तैयार करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन पेड़ों का अस्तित्व खतरे में है। आज इन पेड़ों की तस्करी भी बड़ी मात्रा में की जा रही है। आपको बता दे कि यह पेड़ अफ्रीका के साथ भारत और श्रीलंका के कुछ सथानों पर भी पाए जाते हैं।

डालबर्गीया लैटिफ़ोलिया (Dalbergia Latifolia)

यह पेड़ दुनिया भर में पाया जाता है. 1500 रुपये प्रति फीट तक बिकने वाली यह लकड़ी आपको अपने देश में भी आसानी से मिल जाएगी. यह पेड़ फर्नीचर के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इस पेड़ की लकड़ी बहुत ही ज्यादा कठोर होती है यही कारण है कि इसको काटने में बहुत ही ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है।

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धान की नर्सरी लगाते वक्त रखें इन खास बातों का ध्यान, बाद में नहीं उठाना पड़ेगा नुकसान

खरीफ सीजन की सबसे मुख्य फसल धान की खेती का समय आ गया है। लेकिन उससे पहले किसान धान की नर्सरी तैयार कर रहे हैं। ऐसे में उनके लिए इस लेख में कुछ विशेष सलाह दी गई है।

भारत दुनिया का एक ऐसा देश है जहां सबसे बड़े क्षेत्रफल में धान की खेती की जाती है। धान की खेती बीजाई और पौधरोपण के जरिए की जाती है। लेकिन ज्यादातर किसान धान की खेती पौध तैयार करके करते हैं। इसके लिए किसान सबसे पहले धान की नर्सरी तैयार करते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं किसानों को धान की नर्सरी तैयार करते वक्त किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

जून महीने में किसान करें धान की नर्सरी की तैयारी

जैसा की खरीफ सीजन चल रहा है और इसी सीजन में धान की खेती की जाती है। लेकिन किसान धान की खेती के पहले इसकी नर्सरी की तैयारी करते हैं। जून के महीने की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में किसानों के लिए धान की खेती में नर्सरी तैयार करने का समय आ चुका है। बता दें कि जून महीने के पहले सप्ताह से लेकर अंतिम सप्ताह तक धान की नर्सरी के लिए बीज की बुवाई की जाती है। आमतौर पर धान की नर्सरी 21 से लेकर 25 दिनों में तैयार हो जाती है।

धान की नर्सरी तैयार करने के वक्त ध्यान रखने योग्य बातें

धान की नर्सरी के लिए दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।नर्सरी लगाने के पहले खेत की दो से तीन जुताई करके मिट्टी को समतल और भुरभुरा बना लें. ध्यान रहें खेत में पानी की निकासी के लिए उचित व्यवस्था हो। धान की नर्सरी क्यारियां बनाकर तैयार की जाती हैं। इसके लिए लगभग एक से डेढ़ मीटर चौड़ी क्यारियां बनानी चाहिए। धान की नर्सरी क्यारियां बनाकर तैयार की जाती हैं। इसके लिए लगभग एक से डेढ़ मीटर चौड़ी क्यारियां बनानी चाहिए।

धान की नर्सरी में खोखले बीजों को बाहर निकाल लें

धान की बीजों की बुवाई करने से पहले खोखले बीजों को बाहर निकाल लें। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका बीजों को 2 प्रतिशत नमक के घोल में डालकर उसे अच्छी तरह हिला लें। इससे खोखले बीज ऊपर तैरने लगेंगे और आप इसकी आसानी से छटाई कर सकते हैं। खोखले बीज की बुवाई करने से अच्छे पौध तैयार नहीं होंगे। इससे बाद में आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए खोखले बीजों को बाहर निकाल कर अच्छे बीजों की बुवाई करना उचित रहता है।

बीजों को उपचारित करना आवश्यक

जैसा की हमने बताया कि अच्छे बीजों से ही अच्छे पौध तैयार होते हैं। ऐसे में बीजों की बुवाई से पहले उसे उपचारित करना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। धान के बीज उपचारित करने के लिए आप फफूंदीनाशक दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए केप्टान, थाइरम, मेंकोजेब, कार्बंडाजिम और टाइनोक्लोजोल में से किसी एक दवा का इस्तेमाल किया जा सकता हैं।