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अब आपके घर आयेगी MILK ATM VAN, शुद्धता की गारंटी पर्यावरण की सुरक्षा के साथ, प्लास्टिक पाउच से मुक्ति

लोगों तक पैकेट मुक्त और शुद्ध दूध पहुँचाने के लिए “सहज मिल्क उत्पादक कम्पनी” ने मोबाइल बल्क मिल्क वैंडिंग वैन को लॉन्च किया है..

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Mobile bulk milk vending van launched

कभी आपने सोचा है की आपको पैकेट वालें दूध से मुक्ति मिल जाएँ तो पर्यावरण कितना सुरक्षित हो जायेगा. हम पृथ्वी को काफी हद तक प्लास्टिक मुक्त बना सकेंगे. इतना ही नहीं यदि आपको पैकिंग दूध की जगह फ्रेश और बिना मिलावट का दूध आपके घर के दरवाजें पर मिलने लगे तो फिर तो सोने पर सुहागा। लेकिन क्या ये संभव है? जी हाँ ये बिलकुल संभव है. अब आपको ताज़ा और शुद्ध दूध आपके घर द्वार पर उपलब्ध करवाएगी उत्तर प्रदेश की “सहज मिल्क उत्पादक कम्पनी” जिसने हाल ही में उत्तर प्रदेश के आगरा जिला में एक पायलेट प्रोजेक्ट के तहत मोबाइल बल्क मिल्क वैंडिंग वैन को लॉन्च किया है। जोकि आपको आपके घर के दरवाजे पर शुद्ध और ताजा दूध उपलब्ध करवाएगी।

शुद्धता की गरंटी

इस मिल्क वैडिंग को बेहद ही आधुनिक तरीके से डिजाईन किया गया है। सहज कम्पनी के जनरल मेनेजर डॉ संदीप ने जानकारी देते हुए बताया कि सहज कम्पनी सीधे डेयरी किसानों से सुबह के वक्त फ्रेश दूध एकत्र करती है और उसी दूध को सीधे चिलिंग प्लांट में ठंडा कर वेंडिग मशीन में सुरक्षित कर दिया जाता है। इसके बाद इस मशीन में प्लांट के प्रबंधक द्वारा एक सील को लगा दिया जाता है, जिसे तोड़ा नहीं जा सकता है। यदि इस सील को कोई तोड़ना भी चाहेगा तो उसकी जानकारी एक सन्देश के माध्यम से प्लांट मेनेजर तक पहुँच जाएगी। इसका मतलब है कि किसी भी प्रकार से ग्राहक तक पहुँचने तक दूध के साथ मिलावट नहीं की जा सकती है। इतना ही नहीं इस वेंडिंग मशीन से ग्राहक खुद ही दूध निकालता है और जितना दूध उसे चाहिए वह ले सकता है। ग्राहक राशि का भुगतान QR कोड के माध्यम से करता है। यह मशीन पूरी तरह से सुरक्षित है. इसमें दूध की सेल्फ लाइफ़ 8 घंटे तक की होती है। उन्होंने कहा कि इस मशीन में दूध को प्रिसर्व करने के लिए किसी कैमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

मोबाइल ऐप के माध्यम से कर सकते है आर्डर

आप इस मोबाइल वैन से दूध लेने के लिए सहज कम्पनी की मोबाइल ऐप पर जाकर दूध लेने की डिमांड कर सकते हैं। यह वैन आगरा में 4 से 5 किलोमीटर के रेडियस तक दूध का वितरण करेगी। जिसमे ग्राहक प्रतिदिन दूध लेने के लिए 1 महीने की एडवांस बुकिंग भी कर सकता है। कम्पनी के प्रबंधक डॉ संदीप बतातें है की शुद्धता को बरकार रखने के लिए मोबाइल मिल्क वेंडिग मशीन को ग्राहक के लिए ही तैयार किया गया। ग्राहक का सीधा सपर्क मशीन से रहेगा। इसमें कम्पनी के कर्मचारी द्वारा का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। ग्राहक सीधे अपने बर्तन को मशीन पर रख कर दूध निकाल कर पेमेंट कर सकता है।

आगरा जिला के 4 सेक्टर में करगी दूध का वितरण

इस विषय पर विस्तार से बताते हुए बसंत चौधरी, मुख्य कार्यकारी, सहज ने बताया कि शुरूआत में यह मिल्क वैंडिंग वैन आगरा विकास प्राधिकरण के चार सेक्टरों- सिकंदरा सेक्टर 5, 6, 9 और 10 को अपनी सेवाएं प्रदान करेगी। उम्मीद है कि इस आधुनिक मोबाइल प्लेटफॉर्म के माध्यम से रोज़ाना 700-800 लीटर दूध बेचा जाएगा। आगरा में खुले दूध की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए हमने यह कदम उठाया है। हमने पैकिंग वाले दूध से आगे बढ़कर खुले ठंडे दूध में विस्तार किया है और यह खुला दूध 25 तरह की गुणवत्ता जांच से होकर गुज़रता है ताकि यह पूरी तरह से पोषक एवं हाइजीनिक हो।

गाय और भैंस के दूध का विकल्प भी

इस मशीन में दो सेक्शन बनाये गए हैं जहां  गाय और भैंस का दूध अलग-अलग स्टोर किया जाता है। दूध का मूल्य भी गाय और भैंस के दूध के बाज़ार मूल्य के अनुसार निर्धारित किया गया है। इस दूध को पूरी तरह सुरक्षित रखने के लिए 25 से 32 परीक्षणों के बाद मार्केट में उतारा जाता है।

पर्यावरण सुरक्षा के लिए उठाया कदम

जानकारी देते हुए बसंत चौधरी, मुख्य कार्यकारी, सहज ने कहा कि खुले दूध की बिक्री से हम पैकिंग वालें दूध से मुक्ति पा सकेंगे. यदि यह पायलेट प्रोजेक्ट सफल रहा तो जिला के अन्य इलाकों में इस प्रकार की कई मोबाईल मिल्क वेंडिंग वैन चलवाई जाएगी। विदित हो कि वातावरण में कार्बन के तत्व बढ़ते जा रहे हैं। दूध के पाउच सबसे ज्यादा पर्यावरण को नुक्सान पंहुचा रहे हैं. वर्तमान में गाँव हो या शहर, लगभग सभी घरों में पैकेट का दूध ही आता है। अब आप कल्पना कीजिये कि अगर दूध का ये प्लास्टिक पैकेट का वह छोटा सा टुकड़ा प्रतिदिन घर से बाहर कचरे के रूप में पर्यावरण में जा रहा है तो इसका कितना दुष्प्रभाव पर्यावरण पर पड़ सकता है। कुछ आंकड़ों के अनुसार विश्व में बनने वाला लगभग 79% प्लास्टिक हमारी पृथ्वी को प्रदूषित करता है. जिसमें से मात्र 9% ही रिसाइकल हो पाता है। बात अगर भारत की जाएँ तो भारत में भी प्लास्टिक रीसाइक्लिंग बहुत बड़े स्तर पर नहीं की जाती है। यदि लोग खुले दूध को खरीदते हैं तो बिना पैकेजिंग वाले दूध के खरीद पर हम लगभग 4.2 ग्राम तक प्लास्टिक के प्रभाव को वातावरण से कम कर सकते हैं।

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‘AJAI’ के साथ भारत बना इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एग्रीकल्चरल जर्नलिस्ट्स (IFAJ) का 61वां सदस्य

भारत अब आधिकारिक तौर पर इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एग्रीकल्चरल जर्नलिस्ट्स (आईएफएजे) में शामिल होने वाला दुनिया का 61वां देश बन गया है। एमसी डोमिनिक, जिन्हें एग्रीकल्चर जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित किया गया और साथ ही इस मौके पर उन्हें सम्मान भी प्राप्त हुआ।

India became the 61st member of IFAJ
India became the 61st member of IFAJ

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एग्रीकल्चरल जर्नलिस्ट्स (आईएफएजे) में शामिल होने वाले 61वें सदस्य देश के रूप में खुद को पंजीकृत कर लिया है। एग्रीकल्चर जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एमसी डोमिनिक ने बुधवार को कनाडा के कैलगरी में आईएफएजे द्वारा आयोजित मास्टर क्लास और ग्लोबल कांग्रेस में उन्हें सम्मान प्राप्त हुआ। इस दौरान एमसी डोमिनिक ने मंच पर तिरंगा भी लहराया।

बता दें कि प्रतिष्ठित IFAJ में शामिल होना भारत के लिए वास्तव में गर्व का क्षण है। इस कार्यक्रम में AJAI के अध्यक्ष एमसी डोमिनिक ने कहा- कि ” हम IFAJ के 61वें सदस्य हैं। हम सब लोगों ने इसे मिलकर बनाया ह। पिछले 13 वर्षों से IFAJ की दृढ़ समर्थक कोरटेवा एग्रीसाइंस, वैश्विक कृषि पत्रकारिता को बढ़ाने के लिए मास्टर क्लास कार्यक्रम की शक्ति में विश्वास करती है।

उन्होंने आगे कहा, “हम सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और मुझे यकीन है कि हमारे कृषि क्षेत्र और कृषि अर्थव्यवस्था के बढ़ने के साथ, भारत की कृषि पत्रकारिता भी जल्द ही विश्व स्तर पर एक प्रेरणा बनेगी।” एमसी डोमिनिक ने 24 से 26 जून तक अल्बर्टा, कनाडा में मास्टर क्लास के साथ-साथ ग्लोबल कांग्रेस की बैठक में भाग लिया। यह प्रतिष्ठित सभा, कृषि कंपनियों कॉर्टेवा एग्रीसाइंस और ऑलटेक द्वारा प्रायोजित थी, जिसमें दुनिया भर से 17 असाधारण पत्रकार शामिल हुए जो कृषि समाचारों को कवर करने के लिए समर्पित हैं।

इस दौरान कॉर्टेवा की संचार और मीडिया संबंध टीम से लारिसा कैप्रियोटी ने बताया, “यह साझेदारी वैश्विक कृषि पत्रकारों को आईएफएजे की वार्षिक कांग्रेस में भाग लेने, पेशेवर विकास सत्रों में शामिल होने और दुनिया भर से स्थानीय कृषि प्रथाओं के बारे में जानने में सक्षम बनाती है।”

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केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने “Report Fish Disease” ऐप किया लॉन्च, किसानों को मिलेंगे कई फायदे

Report Fish Disease ऐप का उपयोग करने वाले किसान भाई सीधे जिला मत्स्य अधिकारियों और वैज्ञानिकों से जुड़ सकेंगे।

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Report Fish Disease

भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने आज मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन की उपस्थिति में “रिपोर्ट मछली रोग” के रूप में एक एंड्रॉइड-आधारित मोबाइल ऐप लॉन्च किया।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ‘रिपोर्ट फिश डिजीज’ को आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीएफजीआर), लखनऊ द्वारा विकसित किया गया है जिसके तहत आज जलीय पशु रोगों के लिए इस ऐप को लॉन्च किया गया है। यह किसानों का ऐप राष्ट्रीय निगरानी कार्यक्रम के तहत शुरु किया गया है।

मिली जानकारी के मुताबिक, जे.एन. स्वैन, सचिव, मत्स्य पालन विभाग, डॉ. अभिलक्ष लिखी, विशेष कर्तव्य अधिकारी और ICAR, नई दिल्ली के सचिव, DARE एवं महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने “डिजिटल इंडिया” के दृष्टिकोण में योगदान दिया है, जिसके तहत रिपोर्ट मछली रोग ऐप को तैयार किया गया।

मत्स्य पालन विभाग ने पीएमएमएसवाई योजना के तहत एनएसपीएएडी के दूसरे चरण के कार्यान्वयन के लिए तीन साल की अवधि के लिए 33.78 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं. इस ऐप के लॉन्च के साथ, NSPAAD पारदर्शी रिपोर्टिंग के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने में सक्षम हो गया। ऐप कनेक्ट करने के लिए एक केंद्रीय मंच होगा और मछली किसानों, क्षेत्र-स्तरीय अधिकारियों और मछली स्वास्थ्य विशेषज्ञों को निर्बाध रूप से एकीकृत करेगा। किसानों के सामने आने वाली बीमारी की समस्या, जिस पर पहले ध्यान नहीं दिया जाता था या रिपोर्ट नहीं की जाती थी, वह विशेषज्ञों तक पहुंच जाएगी और कम समय में समस्या का समाधान कुशल तरीके से किया जाएगा।

इस ऐप के फायदे:

इस ऐप का उपयोग करने वाले किसान सीधे जिला मत्स्य अधिकारियों और वैज्ञानिकों से जुड़ सकेंगे। किसान और हितधारक इस ऐप के माध्यम से अपने खेतों पर फिन फिश, झींगा और मोलस्क की बीमारियों की स्वयं-रिपोर्टिंग कर सकते हैं, जिसके लिए हमारे वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों द्वारा किसानों को उसी ऐप के माध्यम से वैज्ञानिक तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी।

किसानों को प्रदान की जा रही प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और वैज्ञानिक सलाह से किसानों को बीमारियों के कारण होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी।

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किसानों के लिए 3.70 lakh करोड़ रुपये विशेष पैकेज घोषित

2022-23 से 2024-25 तक 3 वर्ष के लिए 3,68,676.7 करोड़ रुपये urea subsidy के लिए आवंटित किए. Wealth from Waste Model के तौर पर Market Development Assistance (MDA) स्कीम हेतु 1451 करोड़ रुपये मंजूर किए गए।

Rs 3.70 lakh crore special package announced for farmers
Rs 3.70 lakh crore special package announced for farmers

Cabinet Committee on Economic Affairs (CCEA) ने किसानों के उत्थान के लिए, भूमि की उत्पादकता को फिर से जीवंत करने और खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाओं को मंजूरी दी है. CCEA ने urea subsidy scheme को जारी रखने को मंजूरी दी; 2022-23 से 2024-25 तक 3 वर्ष के लिए 3,68,676.7 करोड़ रुपये urea subsidy के लिए आवंटित किए. Wealth from Waste Model के तौर पर Market Development Assistance (MDA) स्कीम हेतु 1451 करोड़ रुपये मंजूर किए गए. Soil को समृद्ध करने और पर्यावरण को सुरक्षित एवं स्वच्छ रखने के लिए पराली और गोबरधन संयंत्रों से organic fertilizer का प्रयोग किया जाएगा. Soil की सल्फर की कमी को दूर करने और किसानों के लिए इनपुट लागत को कम करने के लिए ‘Urea Gold’  (Sulphur-Coated Urea) की शुरूआत।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्यक्षता में Cabinet Committee on Economic Affairs (CCEA) ने आज किसानों के उत्थान के लिए 3,70,128.7 करोड़ रुपये के एक विशेष पैकेज को मंजूरी दी. माननीय प्रधानमंत्री जी ने किसानों के समग्र कल्याण और आर्थिक बेहतरी के लिए देश के किसानों को योजनाओं की यह सौगात भेंट की है. इन पहलों से किसानों की आय बढ़ेगी, प्राकृतिक/ ऑर्गेनिक खेती को मजबूती मिलेगी, भूमि की उत्पादकता का कायाकल्प होगा और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी. CCEA ने urea subsidy scheme को जारी रखने को मंजूरी दे दी ताकि किसानों को 266.70 रुपये प्रति 45 किलोग्राम यूरिया की बोरी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके. इस पैकेज में तीन साल तक (2022-23 से 2024-25) के लिए urea subsidy के लिए 3,68,676.7 करोड़ रुपये निर्धारित किये गये हैं।

यह पैकेज हाल ही में अनुमोदित 2023-24 के खरीफ मौसम के लिए 38,000 करोड़ रुपये की NBS के अतिरिक्त है. किसानों को यूरिया की खरीद के लिए अतिरिक्त खर्च करने की आवश्यकता नहीं होगी और इससे उनकी आदान लागत को कम करने में मदद मिलेगी. वर्तमान  में, यूरिया की MRP 266.70 रुपये प्रति 45 किलोग्राम यूरिया की बोरी है जबकि बैग की वास्तविक कीमत लगभग रु. 2200 है. यह योजना पूरी तरह से भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है. urea subsidy scheme को जारी रखने से यूरिया का स्वदेशी उत्पादन भी अधिकतम होगा. लगातार बदलती भू-राजनीतिक स्थिति और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के कारण, वर्षों से इंटरनेशनल लेवल पर फर्टिलाइजर की कीमतें कई गुना बढ़ रही हैं. लेकिन भारत सरकार ने फर्टिलाइजर सब्सिडी बढ़ाकर अपने किसानों को फर्टिलाइजर कीमतों में भारी वृद्धि होने से बचाया है. हमारे किसानों की सुरक्षा के प्रयास में, भारत सरकार ने फर्टिलाइजर सब्सिडी 2014-15 में ₹ 73,067 करोड़ से 2022-23 में ₹ 2,54,799 करोड़ बढ़ाई है।

नैनो यूरिया ecosystem सुदृढ़ीकरण

2025-26 तक, 195 LMT पारंपरिक यूरिया के बराबर 44 करोड़ बोतलों की उत्पादन क्षमता वाले आठ नैनो यूरिया Plant चालू हो जाएंगे।

Nano Urea Table

Nano Fertilizer पोषकतत्वों को नियंत्रित तरीके से रिलीज करता है जो उच्च पोषकतत्व उपयोग दक्षता में योगदान करता है और किसानों को कम लागत आती है. नैनो यूरिया के उपयोग से फसल उपज में वृद्धि हुई है. देश 2025-26 तक यूरिया के मामले में आत्मनिर्भर बनने की राह पर वर्ष 2018 से 6 यूरिया उत्पादन यूनिट

  • चंबल फर्टिलाइजर लिमिटेड, कोटा राजस्थान
  • मैटिक्स लिमिटेड पानागढ़, पश्चिम बंगाल,
  • रामागुंडम-तेलंगाना,
  • गोरखपुर-उत्तर प्रदेश,
  • सिंदरी-झारखंड और
  • बरौनी-बिहार

इनकी स्थापना और पुनरुद्धार से देश को यूरिया उत्पादन और उपलब्धता के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिल रही है. यूरिया का स्वदेशी उत्पादन 2014-15 के 225 LMT के स्तर से बढ़कर 2021-22 के दौरान 250 LMT हो गया है. 2022-23 में उत्पादन क्षमता बढ़कर 284 LMT हो गई है. नैनो यूरिया प्लांट के साथ मिलकर ये यूनिट यूरिया में हमारी वर्तमान आयात पर निर्भरता को कम करेंगे और 2025-26 तक हमें आत्मनिर्भर बनाएंगे।

Rs 3.70 lakh crore special package announced for farmers
Rs 3.70 lakh crore special package announced for farmers

धरती माता की उर्वरता की बहालीजागरूकतापोषण और सुधार हेतु प्रधान मंत्री कार्यक्रम (PM-PRANAM)

धरती माता ने हमेशा मानव जाति को भरपूर मात्रा में जीविका के स्रोत प्रदान किए हैं. यह समय की मांग है कि खेती के अधिक प्राकृतिक तरीकों और रासायनिक उर्वरकों के संतुलित/सतत उपयोग को बढ़ावा दिया जाए. प्राकृतिक/ऑर्गेनिक खेती, वैकल्पिक फर्टिलाइजर, नैनो फर्टिलाइजर और जैव फर्टिलाइजर को बढ़ावा देने से हमारी धरती माता की उर्वरता को बहाल करने में मदद मिल सकती है. इस प्रकार, बजट में यह घोषणा की गई थी कि वैकल्पिक फर्टिलाइजर और रासायनिक फर्टिलाइजर के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए “ Promotion of Alternate Nutrients for Agriculture Management Yojana- PM PRANAM” शुरू किया जाएगा. गोबरधन संयंत्रों से organic fertilizers को बढ़ावा देने के लिए Market Development Assistance (MDA) के लिए 1451.84 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं. आज के अनुमोदित पैकेज में धरती माता की उर्वरता की बहाली, पोषण और बेहतरी के लिए गोबरधन पहल के तहत Compressed Bio-Gas (CBG) Plants से organic fertilizers अर्थात Fermented Organic Manure (FOM)/Liquid FOM/Phosphate Enriched Organic Manure (PROM) के लिए 1500 रुपये प्रति मीट्रिक टन के रूप में MDA Scheme शामिल है।

ऐसे ऑर्गेनिक उर्वरकों को भारतीय ब्रांड FOM, LFOM और PROM के नाम से ब्रांड किया जाएगा

यह एक तरफ फसल के बाद बचे अवशेषों का प्रबंध करने और पराली जलाने की समस्‍याओं का समाधान करने में सुविधा प्रदान करेगा, पर्यावरण को स्‍वच्‍छ और सुरक्षित रखने में भी मदद करेगा और साथ ही किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्‍त स्रोत प्रदान करेगा। ये ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर किसानों को कम कीमतों पर मिलेंगे। यह पहल गोबरधन स्‍कीम के तहत 500 नए Waste to Wealth Plants की स्‍थापना की बजट घोषणा के Implementation की सुविधा प्रदान करेगी। कृषि में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से Soil Health बेहतर हो रही है। और किसानों को कृषि में लगने वाली लागत कम हो रही है।

425 कृषि विज्ञान केन्‍द्रों ने प्राकृतिक कृषि पद्धतियों का प्रदर्शन किया है और 6.80 लाख किसानों को शामिल करते हुए 6,777 जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं। जुलाई-अगस्‍त 2023 के शैक्षणिक सत्र से B.SC तथा M.SC में प्राकृतिक खेती के लिए पाठ्यक्रम भी तैयार की गयी है। Soil की सल्‍फर की कमी को दूर करने और किसानों के लिए इनपुट लागत को बचाने के लिए Sulphur Coated Urea (Urea Gold) की शुरूआत. देश में पहली बार सल्‍फर लेपित यूरिया (यूरिया गोल्‍ड) शुरू किया जा रहा है. यह देश में Soil में सल्‍फर की कमी को दूर करेगा।

Comparative Table

  • यह किसानों के लिए इनपुट लागत भी बचाएगा और उत्‍पादन एवं उत्‍पादकता में वृद्धि के साथ किसानों की आय भी बढ़ाएगा।
  • प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केन्‍द्र (PMKSK) ने एक लाख का आंकड़ा छुआ।
  • देश में लगभग एक लाख प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केन्‍द्र (PMKSK) पहले ही लगाए जा चुके हैं।
  • किसानों की सभी जरुरतों के लिए एक ही जगह पर उनकी हर समस्या के स्‍टॉप समाधान के रूप में यह केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।
Rs 3.70 lakh crore special package announced for farmers
Rs 3.70 lakh crore special package announced for farmers

लाभ

आज की अनुमोदित योजनाएं Chemicals Fertilizers का सही उपयोग करने में मदद करेंगी, जिससे किसानों के लिए खेती की लगने वाली लागत कम हो जाएगी। प्राकृतिक/ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए नैनो फर्टिलाइजर और ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर से हमारी धरती माता की उर्वरता बहाल करने में मदद मिलेगी। बेहतर soil Health से पोषकतत्‍व दक्षता बढ़ती है तथा soil एवं जल प्रदूषण में कमी होने से पर्यावरण भी सुरक्षित होता है। सुरक्षित तथा स्‍वच्‍छ पर्यावरण से मानव स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। फसल के अवशेष जैसे पराली जलाने से वायु प्रदूषण का मसला हल होगा तथा स्‍वच्‍छता में सुधार होगा और पर्यावरण बेहतर होगा तथा साथ ही waste  को wealth में बदलने में भी सहायता मिलेगी। किसान ज्‍यादा लाभ प्राप्‍त करेंगे – यूरिया के लिए उन्‍हें कोई अतिरिक्‍त भुगतान नहीं करना होगा क्‍योंकि कम कीमतों पर उपलब्‍ध होता रहेगा।

Organic Fertilizers  (FOM/PROM) भी सस्‍ती कीमतों पर उपलब्‍ध होंगे। कम कीमत वाली नैनो यूरिया तथा रासायनिक Fertilizers के कम प्रयोग और ऑर्गेनिक Fertilizers के बढ़ते प्रयोग से किसानों के लिए input लागत भी कम हो जाएगी। कम इनपुट लागत के साथ स्‍वस्‍थ soil तथा पानी से फसलों का उत्‍पादन और उत्‍पादकता बढ़ेगी. किसानों को उनके उत्‍पाद के लिए बेहतर लाभ मिलेगा।

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दिल्ली व उतर भारत में 100 रुपये किलो बिक रहा टमाटर, जानें महंगाई का कारण व कहां होता है सबसे ज्यादा उत्पादन

दिल्ली और उत्तर भारत में टमाटर का भाव तेजी से बढ़ा है। इसकी कीमत 100 रुपये किलो तक पहुंच गई है. जानें भारत में सबसे ज्यादा कहां होता है टमाटर का उत्पादन।

जानें आखिर क्यों दिल्ली व उत्तर भारत में महंगा हुआ टमाटर
जानें आखिर क्यों दिल्ली व उत्तर भारत में महंगा हुआ टमाटर

टमाटर की कीमत में अचानक भारी उछाल देखने को मिल रहा है. दिल्ली और उत्तर भारत में इस समय टमाटर ((Tomato) का भाव 80 से 100 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। यह उछाल बीते दो दिनों में देखने को मिला है. इससे पहले, बाजार में टमाटर ((Tomato) की कीमत सिर्फ 25 से 30 रुपये प्रति किलो तक थी। मंडी में बढे भाव को लेकर नोएडा स्थित मंडी के सब्जी व्यापारी लालजी शाह का कहना है कि किसान ही उन्हें टमाटर ((Tomato) ज्यादा दाम में बेच रहे हैं। जिसकी वजह से उन्हें इसे महंगा बेचना पड़ रहा है।

इस साल यहां कम हुआ टमाटर का उत्पादन

वहीं, कृषि क्षेत्र से जुड़े विश्लेषकों ने कहा है कि पिछले दिनों देश के अधिकांश हिस्सों में देरी से बारिश व उच्च तापमान की वजह से टमाटर का उत्पादन बेहद कम हुआ था। जिसके चलते टमाटर की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिल रहा है. दरअसल, हरियाणा और यूपी में हर साल टमाटर का उत्पादन बेहतर होता रहा है। लेकिन इस साल खराब मौसम ने इन राज्यों में टमाटर की उपज को कम कर दिया है। जिसकी वजह से मंडियों में पर्याप्त मात्रा में टमाटर की पूर्ति नहीं हो पा रही है। ऐसे में सब्जी व्यापारी बंगलुरु व अन्य इलाकों से टमाटर मंगाने पर मजबूर हैं। आज हम बताएंगे कि भारत में सबसे ज्यादा टमाटर का उत्पादन कहां होता है।

यहां होता है सबसे ज्यादा उत्पादन

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक, भारत में कुल सात राज्य टमाटर का सबसे अधिक उत्पादन करते हैं। जिनमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा, गुजरात और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। पूरे देश की 75 प्रतिशत टमाटर की उपज इन्हीं राज्यों में होती है। इसमें भी आंध्र प्रदेश नंबर वन पर काबिज है। यह राज्य अकेले लगभग 18 फीसदी टमाटर का उत्पादन करता है।

ऐसे होती है टमाटर की खेती

टमाटर की खेती के लिए भूमि की पीएच मान 6-7 होना चाहिए. इसके बाद, इसके बीजों को कुछ दूरी पर एक-दूसरे से अलग करके लगाएं ताकि पर्याप्त उपज हो सके। टमाटर के पौधों को बढ़ने के लिए उचित प्रकाश और नियमित रूप से पानी की आवश्यता होती है। वहीं, सबसे जरुरी बात यह है कि टमाटर के लिए उच्च तापमान का ध्यान देना आवश्यक है। अगर तापमान 35 डिग्री सेलसियस से अधिक हो जाता है तो इसकी प्रगति कम हो सकती है. ज्यादा तापमान के चलते ज्यादातर मामलों में पौधे खराब हो जाते हैं।

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2025 तक दुनियाभर के दो-तिहाई लोग जल संकट से जूझेंगे

जिस तरह से दुनिया जल संकट की तरफ तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि विश्वभर में साल 2025 तक कई देश जल संकट की परिस्थितियों का सामना कर सकते हैं। इस लेख में पढ़ें पूरी जानकारी।

Many countries will be forced to live in conditions of water crisis
Many countries will be forced to live in conditions of water crisis

भारत में 9.64 करोड़ क्षेत्र में मरुस्थलीकरण हो रहा है, जो भारत के कुल भूमि क्षेत्र का 30 फीसदी हिस्सा है। देखा जाए तो आने वाले दिनों में मरुस्थलीकरण काफी बड़ी समस्या बन सकती है। यह संयुक्त राष्ट्र के इस अनुमान से समझा जा सकता है कि साल 2025 तक दुनियाभर के दो-तिहाई लोग जल संकट की परिस्थितियों से जूझ सकते हैं, जिससे मरुस्थलीकरण के चलते विस्थापन बढ़ेगा और 13 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ सकता है।

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक विश्व भर के कुल क्षेत्रफल का करीब 20 फीसद भूभाग मरुस्थलीय के रुप में है। जबकि वैश्विक क्षेत्रफल का करीब एक तिहाई भाग सूखाग्रस्त भूमि के रूप में है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार गहन खेती के कारण 1980 से अब तक धरती की एक चौथाई उपजाऊ भूमि नष्ट हो चुकी है और दुनिया भर में रेगिस्तान का दायरा निरंतर विस्तृत हो रहा है इस कारण आने वाले समय में कई चीजों की कमी हो सकती है। विश्व भर में करीब एक सौ तीस लाख वर्ग किलोमीटर भूमि मानवीय क्रियाकलापों के कारण रेगिस्तान में बदल चुकी है। प्रति मिनट करीब 23 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि बंजर भूमि में तब्दील हो रही है। इस कारण खाद्यान्न उत्पादन में प्रतिवर्ष दो करोड़ टन की कमी आ रही है। दुनिया के दो तिहाई हिस्से में भू क्षरण की समस्या गंभीर हो गई है। इस कारण कृषि उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ रहा है, सूखे तथा प्रदूषण की चुनौती भी बढ़ रही है। भूमि में प्राकृतिक कारणों तथा मानवीय गतिविधियों के कारण जैविक या आर्थिक उत्पादन में कमी की स्थिति को भू-क्षरण कहा जाता है। जब यह अपेक्षाकृत सूखे के क्षेत्र में घटित होता है, तो तब इसे मरुस्थलीकरण कहा जाता है। दरअसल इस समय पूरी दुनिया में धरती पर सिर्फ 30 फ़ीसदी हिस्से में ही वन शेष बचे हैं और उसमें से भी प्रतिवर्ष इंग्लैंड के आकार के बराबर हर साल नष्ट हो रहे हैं दुनिया भर में लोगों के लिए खाने-पीने की समुचित उपलब्ध बनाए रखने की खातिर भू-क्षरण रोकना और नष्ट हुई उर्वरक भूमि को उपजाऊ बनाना आवश्यक है।

चीन ने अपने एक बहुत बड़े रेगिस्तान के क्षेत्र को 30 सालों में हरे-भरे मैदान में बदलकर दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की. जहां तक भारत का सवाल है, यहां मरुस्थलीकरण बड़ी समस्या बनता जा रहा है। मरुस्थली क्षेत्र विस्तार भूक्षरण और सूखे पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र के एक उच्च स्तरीय संवाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया था कि भारत अगस्त 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर क्षरित भूमि को उपजाऊ बनाने की दिशा में अग्रसर है जिससे ढाई से तीन अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर कार्बन अवशोषित किया जा सकेगा। भू क्षरण से फिलहाल भारत की करीब 30 फ़ीसदी भूमि प्रभावित है, जो बेहद चिंताजनक है। पर्यावरण क्षति की भरपाई के प्रयासों के तहत पिछले एक दशक में करीब 300000 हेक्टेयर वन क्षेत्र का विस्तार किया गया है।

भारत ने जून 2019 में परीक्षण के तौर पर पांच राज्य हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, नगालैंड, कर्नाटक में वनाच्छादित क्षेत्र बढ़ाने की परियोजना शुरू की थी और अब इस परियोजना को धीरे-धीरे मरुस्थलीकरण से प्रभावित अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जा रहा है। प्रकाशित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि देशभर में 9.64 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में मरुस्थलीकरण हो रहा है, जो भारत के कुल भूमि क्षेत्र का करीब 30 फ़ीसदी हिस्सा है।

इस क्षरित भूमि का 80 फीसदी हिस्सा केवल 9 राज्यों में राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, और तेलंगाना में है। दिल्ली, त्रिपुरा, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश और मिजोरम में मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया काफी तेज है। भारत के कई राज्यों जैसे कि झारखंड, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और गोवा के लगभग 50% से भी अधिक हिस्सों में क्षरण हो रहा है। बड़े पैमाने पर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से मरुस्थलीकरण अर्थात उपजाऊ जमीन के बंजर बन जाने की समस्या विकराल हो रही है। सूखे इलाकों में जब लोग पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का जरूरत से ज्यादा दोहन करते हैं तो वहां पेड़ पौधे खत्म हो जाते हैं और उस क्षेत्र की जमीन बंजर हो जाती है अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से वैश्विक स्तर पर मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए जन जागरूकता का बढ़ावा दिया जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1994 में मरुस्थलीकरण रोकथाम का प्रस्ताव रखा था। भारत में उस पर 14 अक्टूबर 1994 को हस्ताक्षर किए। देश के थार मरुस्थल ने उत्तर भारत के मैदानों को सर्वाधिक प्रभावित किया है। चिंताजनक स्थिति यह है कि थार के मरुस्थल में प्रतिवर्ष 13000 एकड़ से भी अधिक बंजर भूमि को वृद्धि हो रही है।

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ड्रैगन चिकन से बदल जाएगी पशुपालकों की किस्मत, डेढ़ लाख रुपये से भी ज्यादा कीमत में बिकता है एक मुर्गा

खेती के अलावा मुर्गा पालन से किसान अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। एक खास मुर्गे की कीमत बाजार में डेढ़ लाख रुपये है।

मुर्गा पालन से किसानों की बढ़ सकती है आमदनी
मुर्गा पालन से किसानों की बढ़ सकती है आमदनी

देश में ज्यादातर किसान संसाधनों की कमी के कारण खेती से उचित मुनाफा हासिल नहीं कर पाते हैं. ऐसे में वह पशुपालन के जरिए भी अपनी आमदनी को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। आपने कई गांवों में किसानों को मुर्गी या मुर्गा पालन करते हुए देखा होगा। जिससे महीने में अच्छी खासी कमाई हो जाती है। आज हम ऐसे मुर्गे के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसकी कीमत बाजार में डेढ़ लाख रुपये से अधिक है. इसका पालन करके किसान चंद दिनों में मालामाल बन सकते हैं। तो आइये उनपर एक नजर डालें।

यहां होता है ड्रैगन मुर्गे का पालन

आज हम जिस मुर्गे को पालने की बात कर रहे हैं. उसका नाम ‘डॉन्ग टाओ’ या ‘ड्रैगन चिकन’ है। दुनिया का सबसे महंगे मुर्गे में इसकी गिनती होती है। इस वक्त ये मुर्गे केवल वियतनाम में मिलते हैं। लेकिन दुनिया भर में इस मुर्गे की डिमांड है। इसकी मांग को देखते हुए वियतनाम के अलावा कुछ अन्य देशों में भी इसका पालन किया जाने लगा है। वहीं, भारत में फिलहाल कई लोगों को इस मुर्गे के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

इतनी है कीमत

अगर बाजार में इस मुर्गे की कीमत के बारे में बात करें तो एक ड्रैगन चिकन लगभग 2000 डॉलर में बिकता है। इंडियन करेंसी में इसकी वैल्यू 1.63 लाख रुपये है. हालांकि, विएतनाम में भी इसे महंगा होने के कारण लोग ज्यादा नहीं खाते हैं। इसे वहां केवल लूनर न्यू ईयर के अवसर पर खाया जाता है। वहीं, भारत में भी इस मुर्गे को पालकर किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जो लोग ड्रैगन चिकन का पालन करना चाहते हैं। उन्हें सबसे पहले वियतनाम से इसके बच्चे को मंगवाना पड़ेगा।

पालने के लिए खुले जगह की आवश्यकता

वैसे तो ड्रैगन चिकन का पालन भी अन्य साधारण मुर्गों की तरह ही होता है. लेकिन इनकी खुराक थोड़ी ज्यादा होती है। इन्हें बंद जगहों पालना मुश्किल है। इससे उनकी जान को खतरा रहता है। ऐसे में इन मुर्गों को पालने के लिए बड़े व खुले जगह की आवश्यकता होगी। इस व्यवसाय से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि ड्रैगन चिकन को बढ़ने में लगभग एक साल या उससे अधिक भी समय लग सकता है। ऐसे में किसान अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए खेती के अलावा ड्रैगन मुर्गा पालने पर विचार कर सकते हैं।

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IMD का अलर्ट, 30 जून तक इन राज्यों में होगी भारी बारिश

मौसम विभाग ने इस महीने की आखरी तारीख यानी की 30 जून तक बारिश से संबंधित अपडेट देशभर के लिए जारी कर दी है।

IMD का अलर्ट
IMD का अलर्ट

भारत के विभिन्न राज्यों में बीते कुछ दिनों से हल्की से भारी बारिश का सिलसिला जारी है. अनुमान है कि भारी बारिश का यह दौर जून महीने की आखरी तारिख तक रहने वाला है. ऐसे में IMD ने मौसम से जुड़ी भविष्यवाणी पहले ही जारी कर दी है।

दिल्ली का मौसम

बीते कल दिल्ली के कुछ हिस्सों में हल्की बारिश की गतिविधियां देखी गई हैं। वहीं अगर हम आज की बात करें, तो IMD की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के कुछ इलाकों में आज हल्की से भारी बारिश होने की संभावना जाताई है। यह भी अनुमान है कि आज दिल्ली में हल्के बादल छाए रह सकते हैं। वहीं सुबह के समय दिल्ली का तापमान 31 डिग्री सेल्सियस से लेकर 35 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया जा सकता है। दोपहर के समय यह तापमान 39 से 44 डिग्री सेल्सियस तक होने की संभावना है। इसके अलावा IMD का पूर्वअनुमान है कि  आज दिल्ली में हवाओं की रफ्तार 6-7KM/h तक हो सकती है।

मानसून की गतिविधियां

मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण-पश्चिम मॉनसून उत्तरी अरब सागर के कुछ हिस्सों की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। जिसके चलते गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के शेष हिस्सों में आज भारी बारिश देखने को मिल सकती है। असम, मेघालय, अरुणाचल और ओडिशा में भारी बारिश की चेतावनी मौसम विभाग ने 30 जून तक जारी कर दी है। इसके अलावा इन इलाकों में आंधी और बिजली गिरने की संभावना है।

अगले 5 दिनों के दौरान पश्चिमी हिमालय क्षेत्र और उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में भारी बारिश की चेतावनी जारी की गई है।

IMD के अनुसार, अगले 3-4 दिनों के दौरान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और विदर्भ में आंधी और बिजली गिरने को लेकर लोगों को सुरक्षित रहने की सलाह जारी की गई है।

कोंकण और गोवा, गुजरात राज्य और मध्य के घाट क्षेत्रों में भारी वर्षा होने की संभावना है। बारिश का यह दौर अगले 5 दिनों तक बना रहने की पूरी संभावना है।

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Nutmeg: शरीर की झाइयों को ख़त्म करना चाहते हैं, तो करें इस औषधि का सेवन

जायफल फूलदार, सुंदर और मसालेदार खुशबू देने वाली एक मसाला है जिसे भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है।

helps to keep the body young
helps to keep the body young

जायफल (Nutmeg) एक मसाले से संबंधित वनस्पति है जिसे वैज्ञानिक भाषा में “Myristica fragrans” के नाम से जाना जाता है। यह एक छोटा सा गोल फल होता है जिसका वानस्पतिक नाम उसके बीजों की आकृति से लिया गया है। यह फल प्रमुख रूप से इंडोनेशिया, इंडिया, श्रीलंका, मलेशिया और ब्राज़ील जैसे देशों में पाया जाता है। जायफल का उपयोग व्यंजनों, मिठाइयों, चाय, अचार और धूप में भी किया जाता है।

Consumption of nutmeg removes body stains
Consumption of nutmeg removes body stains

भारत में जायफल की कई किस्में पाई जाती हैं जिनमें कुछ प्रमुख किस्में निम्न हैं:-

  • Myristica malabarica (मालाबार जायफल)
  • Myristica argentea (चांदीवर्ण वाली जायफल)
  • Myristica insipida (नामी जायफल)
  • Myristica montana (पहाड़ी जायफल)
  • Myristica pyrifolia (नाशपाती जायफल)

शरीर के कई रोगों में है लाभकारी

जायफल में कई स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किए जाते हैं. इसमें एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं जो शरीर को संक्रमण से बचाते हैं। इसके अलावा, जायफल में एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो रोग प्रतिरोध को मजबूत करते हैं। जायफल में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, मिनरल्स और फैट्स मौजूद होते हैं। यह मूत्रनाली को स्वस्थ रखने, पाचन को सुधारने और गैस की समस्या को दूर करने में मदद करता है। जायफल धातुओं को शरीर में स्थिरता प्रदान करने में भी मदद करता है।

Nutmeg has many benefits
Nutmeg has many benefits

दाग और झाइयों का करता है सफाया  

हालांकि, जायफल को मात्रात्मक रूप से उपभोग करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि अधिक मात्रा में उपभोग करने से उल्टी, दस्त, मतली और चक्कर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। अतः, यदि आप जायफल का उपयोग करना चाहते हैं, तो इसे मात्रात्मक रूप से और अनुशासित रूप से प्रयोग करें। त्वचा रोगों के लिए भी यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। जायफल एक्ने के इलाज में मदद कर सकता है। इसमें विशेष एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो बैक्टीरिया के विकास को रोकने में मदद कर सकते हैं।

इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट और एन्टीइनफ्लेमेट्री गुण त्वचा के दाग और झाइयों को कम करने में मदद कर सकते हैं। जायफल में मौजूद तेल और मूल्यवान पोषक तत्व त्वचा को मोइस्चराइज करने में मदद कर सकते हैं।

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Kuchla: वात रोगों को जड़ से ख़त्म करती है यह बूटी, शरीर में खून की कमी होती है पूरी

आज हम आपको एक ऐसे पौधे के बारे में बताने जा रहे हैं जो किसी भी तरह के संक्रामक रोग के साथ ही अन्य बहुत से रोगों के इलाज में बहुत लाभकारी होती है। तो चलिए जानते हैं इस पौधे के बारे में पूरी जानकारी।

This herb fulfills the deficiency of blood in the body.
This herb fulfills the deficiency of blood in the body.

बहुत से औषधीय पौधों के बारे में तो हम सभी जानते हैं। लेकिन आज भी बहुत से पौधे ऐसे हैं जिनमें हजारों औषधीय गुण होने के बाद भी हम उनके बारे में या उनके प्रयोग के बारे में अंजान हैं। इन्हीं पौधों में एक नाम कुचिला (Kuchla) के पौधे का भी आता है। हममें से बहुत ही कम लोगों ने इस पौधे का नाम सुना है। लेकिन इसमें हमारे शरीर के कई रोगों को ख़त्म करने की ताकत होती है। तो चलिए जानते हैं कि यह पौधा कैसे उपयोगी होता है हमारे लिए।

दक्षिण एशिया वनों में मिलती है यह औषधि

कुचिला (Kuchla) पौधा, जिसका वैज्ञानिक नाम “Strychnos nux-vomica” है, यह उच्च औषधीय महत्व वाला एक प्रमुख औषधीय पौधा है। यह एक छोटा सा पेड़ है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के वनों में पाया जाता है। कुचिला पौधे की बीजें औषधीय गुणों के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं। इसके बीजों में विभिन्न औषधीय तत्वों की मात्रा होती है, जिन्हें यूनानी चिकित्सा में “नक्स वोमिका” कहा जाता है।

दो ख़ास औषधीय तत्व होते हैं इसमें

कुचिला के बीजों में स्ट्रिक्नीन (Strychnine) और ब्रुसीन (Brucine) नामक दो मुख्य औषधीय तत्व होते हैं. इन तत्वों के कारण कुचिला पौधा तीव्र विषैला भी होता है, और इसे सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए. इन बीजों के उपयोग से बनाए जाने वाली औषधि से अनेक रोगों का इलाज किया जाता है, जैसे कि वातरोग (रीमैटॉयड आर्थराइटिस), जीर्ण खांसी, आर्थराइटिस, यकृत रोग, रक्ताल्पता, मलेरिया, दुर्बलता, जैसे अन्य रोग।

संक्रामक रोगों में भी है कारगर

कुचिला संक्रामक रोगों के इलाज में भी उपयोगी होता है. यह पौधा कठोर, बिंदुपुष्टि वाला होता है, और इसकी तने की रंगत हरे और बैंगनी होती है. कुचिला के बीजों का पाउडर, तेल, अवशोषित रस के रूप में प्रयोग किया जाता है।

हमने आपको शुरुआत में ही बताया है कि यह पौधा विषाक्त भी होता है. तो इसका उपयोग बहुत ही सावधानी पूर्वक करना चाहिए. अगर आप इसका प्रयोग पहली बार कर रहे हैं तो आपको किसी अनुभवी या वैद्य की सलाह ले लेनी चाहिए।