आज हम आपके लिए तंबाकू के व्यवसाय से जुड़ी सभी जानकारी लेकर आए हैं। इस लेख में आपको इसके लाइसेंस फीस से लेकर जुर्माने तक की संपूर्ण सूचना मिलेगी।
आज के समय में ज्यादातर व्यक्ति नौकरी के साथ अपना खुद का बिजनेस भी शुरु करना चाहते हैं। ताकि वह कम समय में अधिक आय कमा सकें। इसी कड़ी में आज हम आपके लिए एक ऐसा व्यवसाय लेकर आए हैं, जिसे शुरु करके आप कुछ ही दिनों में हजारों-लाखों रुपए सरलता से कमा सकते हैं।दरअसल, जिस बिजनेस की हम बात कर रहे हैं वह तंबाकू का बिजनेस (Tobacco Business) है जिसे शुरु करने के लिए आपको कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना होता है। तो आइए आज के इस लेख में तंबाकू (Tobacco) के बिजनसे से जु़ड़ी सभी जानकारियों को विस्तार से जानते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पुराने समय से ही गांव व शहर में बुजर्गों के द्वारा हुक्के या फिर चिल्म में तंबाकू को डालकर पीने की आदत है। आज के इस दौर में भी लोगों के द्वारा इसका सेवन किया जाता है और साथ ही तंबाकू का इस्तेमाल अन्य कई तरह के कार्य में भी किया जाता है, जैसे कि पूजा सामाग्री और कई तरह की औषधि दवाईयाँ बनाई जाती हैं।
तंबाकू का व्यवसाय शुरू करने के लिए आपको सरकार से लाइसेंस की आवश्यकता होती है. इसके लिए वाणिज्य और उघोग मंत्रालय के तहत ही तंबाकू बोर्ड से इसका लाइसेंस जारी किया जाता है. विभाग के द्वारा तंबाकू व्यवसाय के लाइसेंस की प्रक्रियाओं को आसान व सुविधाजनक बनाने के लिए एक देशव्यापी पोर्टल भी शुरु किया हुआ है, जिसके चलते तंबाकू का लाइसेंस लेने के लिए व्यक्ति को अधिक इंतजार न करना पड़े और इससे जुड़ी सभी जानकारी भी सरलता से मिल सके।
क्यों जारी किया जाता है तंबाकू का लाइसेंस
सरकार के द्वारा इस लाइसेंस को जारी करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि देशभर में कितनी संख्या में तंबाकू की बिक्री (Sale of Tobacco) व खरीद होती है। इसके हिसाब-किताब से लेकर अन्य जरूरी जानकारी जैसे कि- तंबाकू उत्पादों के निर्यातक, तंबाकू के निर्यातक, तंबाकू के विक्रेता, वर्जीनिया तंबाकू के प्रोसेसर, निर्माता वर्जीनिया तंबाकू, तंबाकू के पैकर्स आदि की सूचना मिल सके।
तंबाकू लाइसेंस के लिए जरूरी कागजात
बैंक खाता नंबर
GST नंबर
पैन कार्ड, आधार कार्ड आदि सरकारी आईडी
निवास प्रमाण पत्र
गोदाम के कागजात
मोबाइल नंबर
ऐसे बनवाएं तंबाकू का लाइसेंस
बता दें कि तंबाकू का लाइसेंस नगर पालिका, नगर निगम या नगर परिषद के द्वारा जारी किया जाता है। इसलिए ऊपर बताए गए इन सभी कागजात की फोटो कॉपी अपने नजदीकी नगर निगम में जमा करवाएं, ताकि वह इस बात की सुनिच्ति कर सकें कि आप जिस क्षेत्र में तंबाकू की दुकान या फिर फार्म को खोलने वाले हैं, वह उचित स्थान पर है कि नहीं। जांच पड़ताल होने के बाद ही विभाग के द्वारा ही आपको तंबाकू का बिजनेस शुरू करने के लिए लाइसेंस (License to start Tobacco Business) दिया जाएगा।
तंबाकू लाइसेंस के लिए आवेदन फीस
अगर आप तंबाकू की दुकानदार (Tambako Shop) फेरी के लिए ही लाइसेंस चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पंजीकरण के दौरान 7200 रुपए तक आवेदन शुल्क का भुगतान करना होगा।
इसके अलावा थोक दुकानदारों के लिए यह शुल्क 5,000 रुपए तय किया गया है।
मिली जानकारी के मुताबिक, इस लाइसेंस के लिए अस्थाई दुकान को हर साल पंजीकरण के लिए 200 रुपए का भुगतान करना होगाा और वहीं स्थाई दुकान के लिए हर साल 1000 रुपए है।
लाइसेंस न होने पर इतना देना होगा जुर्माना
अगर बाजार में किसी भी दुकानदार के पास तंबाकू बेचने का लाइसेंस (Tambaku Bechne ka licence) नहीं पाया जाता है, तो उसे कम से कम 2000 रुपए तक का जुर्माना देना होगा। वहीं दूसरे बार पकड़े जाने पर जुर्माने की राशि 5000 रुपए होगी और तीसरी बार पकड़े जाने पर राशि दूसरे जुर्माने की ही रहेगी और साथ ही तंबाकू की सभी सामाग्री भी जब्त कर ली जाएगी। इसके अलााव दुकानदार के खिलाफ केस भी दर्ज किया जाएगा।
अगर आप अपना तंबाकू का बिजनेस सुचारु रुप से चलाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको तंबाकू बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइटपर हमेशा अपडेट रहना होगा। क्योंकि सरकार के द्वारा इस व्यवसाय के लिए नियम में बदलाव भी किए जाते रहते हैं।
रोज एप्पल से किसान जबरदस्त कमाई कर सकते हैं. आइये इसके बारे में विस्तार से जानें.
रोज एप्पल दुनिया के चर्चित फलों में से एक है. इसका पेड़ 15 मीटर (50 फीट) तक ऊंचा होता है. इसमें सुगंधित फूल होते हैं जो आमतौर पर हल्के हरे या सफेद रंग के होते हैं. रोज एप्पल दिखने में बेल या नाशपाती के आकार के होते हैं. इसकी त्वचा पतली और मोमी होती है. रोज एप्पल रसदार और थोड़ा मीठा होता है. खास बात यह है कि इसकी बनावट तरबूज के समान होती है. इसे खाने पर ऐसा महसूस होता है जैसे कि हम नाशपाती, सेब और गुलाब जल को एकसाथ मिलाकर खा रहे हैं. रोज एप्पल किसानों के लिए आर्थिक रूप से काफी फायदेमंद साबित हो सकता है. तो आइये इसके बारे में विस्तार से जानें.
स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है रोज एप्पल
रोज एप्पल आम तौर पर ताजा खाया जाता है. इनका उपयोग जैम, जेली और डेजर्ट बनाने में भी किया जा सकता है. कुछ क्षेत्रों में, इसका रस निकालकर लिक्विड आइटम भी बनाने में उपयोग किया जाता है. रोज एप्पल विटामिन ए और सी के साथ-साथ फाइबर से भी भरपूर होते हैं. माना जाता है कि रोज एप्पल कई तरह से स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाते हैं. यह इम्यून सिस्टम और पाचन स्वास्थ्य को बेहतर करने में भी मदद करते हैं.
इन इलाकों में दिखते हैं रोज एप्पल के पेड़
भारत में रोज एप्पल मुख्य रूप से देश के दक्षिणी और उत्तरपूर्वी हिस्सों में पाए जाते हैं. जहां की जलवायु इनके विकास के लिए उपयुक्त है. इसका पेड़ ज्यादातर कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और केरल में नजर आते हैं. रोज एप्पल के पेड़ उष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपते हैं. वे 15 से 38 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान को झेल सकते हैं. इसके पेड़ अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी को पसंद करते हैं. रोज एप्पल के पेड़ों को धूप वाले जगहों पर लगाया जाना चाहिए. जहां पेड़ों के बीच पर्याप्त दूरी हो. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि रोज एप्पल की कटाई आम तौर पर तब की जाती है जब वे पूरी तरह से पक जाते हैं. क्योंकि तोड़ने के बाद वे आगे नहीं पकते हैं.
हर साल मिलता है इतना उत्पादन
रोज एप्पल के पेड़ों की उपज उम्र, विविधता और प्रबंधन जैसे कई कारकों पर निर्भर होती है. आम तौर पर, एक परिपक्व पेड़ हर साल लगभग 150 से 300 किलोग्राम फल दे सकता है. कहा जाता है कि पौधा लगाने के बाद लगभग एक साल बाद रोज एप्पल का पेड़ फल देने के लिए तैयार हो जाता है. इसका इस्तेमाल पहले तो फल के रूप में किया जाता है. इसके अलावा, इसे मिठाई, जैम और जेली जैसे विभिन्न प्रोडक्टस बनाने में किया जाता है. इसका रस वाइन या सिरके बनाने में भी उपयोग होता है.
वहीं, रोज एप्पल से निकाले रस की सुगंध काफी अच्छी होती है, जो गुलाबों की याद दिलाता है. इसे सुगंधित चिकित्सा, परफ्यूम और सुगंधित उत्पादों में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा, इस फल का इस्तेमाल कुछ दवाओं को बनाने में भी किया जाता है. रोज एप्पल के पेड़ की लकड़ी काफी मजबूत होती है. इसलिए इन्हें भी कई उपयोग में लाया जाता है. बाजार में एक किलोग्राम रोज एप्पल की कीमत लगभग 200 रुपये होती है. जिससे यह अंदाजा लगा सकते हैं कि इसके एक पेड़ से साल में कितनी कमाई हो सकती है.
भांग की खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। आइए जानें कैसे मिलेगा, इसके लिए लाइसेंस।
धान-गेहूं व फल-फूल की खेती से किसानों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है। ऐसे में भांग की खेती अन्नदाताओं के लिए लाभदायक साबित हो सकती है. लेकिन भांग व गांजा की खेती के लिए राज्य में प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है। सरकार की तरफ से लाइसेंस मिलने के बाद ही किसान भांग की खेती कर सकते हैं। तो आइए जानें भारत में बड़े पैमाने पर कहां-कहां होती है भांग की खेती व कैसे मिलता है लाइसेंस और कितना होता है मुनाफा।
कई राज्यों में भांग की खेती वैध
पहले पूरे देश में भांग की खेती पर प्रतिबंध था. हाल ही में कई राज्यों में भांग की खेती को वैध कर दिया गया है। फिर भी, इसकी खेती के लिए प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य है। लाइसेंस को लेकर हर राज्य में अलग-अलग नियम हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भांग की खेती शुरू करते समय स्थानीय समाचारों पर गौर करना आवश्यक है, क्योंकि प्रशासन आए दिन इसको लेकर नियम में बदलाव करता रहता है।
ऐसे मिलती है अनुमति
उत्तराखंड के किसान चंदन बताते हैं कि उनके राज्यों में भांग की खेती के लिए किसानों को सबसे पहले खेत का विवरण, क्षेत्रफल व भंडारण की व्यवस्था के बारे में लिखित रूप से डीएम को बताना होता है। उत्तराखंड में प्रति हेक्टेयर लाइसेंस शुल्क एक हजार रुपये है। वहीं, अगर दूसरे जिले से भांग का बीज लाना है, तब भी किसान को डीएम से अनुमति लेनी पड़ती है।
।अधिकारी को कभी-कभी फसल का सैंपल भी देना होता है. इसके अलावा, अगर भांग की फसल तय जमीन से ज्यादा इलाके में लगाई गई तो प्रशासन की तरफ से उस फसल को नष्ट कर दिया जाता है। वहीं, मानकों का उल्लघंन करने पर भी फसल को तबाह कर दिया जाता है। सरकार की तरफ से इसके लिए कोई मुआवजा भी नहीं मिलता है।
यहां होती है बड़े पैमाने पर खेती
बता दें कि भारत में बड़े पैमाने पर भांग की खेती उत्तर प्रदेश (मुरादाबाद, मथुरा, आगरा, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी, फैजाबाद और बहराइच), मध्य प्रदेश (नीमच, उज्जैन, मांडसौर, रतलाम और मंदल), राजस्थान (जयपुर, अजमेर, कोटा, बीकानेर और जोधपुर), हरियाणा (रोहतक, हिसार, जींद, सिरसा और करनाल) और उत्तराखंड (देहरादून, नैनीताल, चमोली और पौड़ी) में होती है।
भांग का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। इससे कई दवाइयां बनाई जाती हैं। इसे मस्तिष्क संबंधी विकारों, निद्रा विकारों और श्वसन संबंधी समस्याओं का इलाज करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा भांग को पारंपरिक औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसे जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर दवा तैयार किया जाता है। जिसका अलग-अलग रोगों के इलाज में प्रयोग होता है। इससे आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि भांग की खेती किसानों के लिए कितनी फायदेमंद साबित हो सकती है।
पशुपालक किसानों के लिए अच्छी नस्ल के गाय-भैंस का व्यवसाय करना बेहद मुश्किल है। इसलिए कई बारपालकों को इसका नुकसान भी झेलना पड़ता है। ऐसे में हम इस लेख के माध्यम से पशुपालकों को हो रही सबसे बड़ी समस्याओं और उनके समाधान पर चर्चा करेंगे।
फर्म एक ऐसा सेक्टर है, जो भारत के 8 करोड़ परिवारों को डायरेक्ट और शोरूम के रूप में बनाती है। यही नहीं नामित क्षेत्र देश की जाति में लगभग पांच प्रतिशत योगदान देता है।
दुग्ध उत्पाद में भारत ग्लोबल लीडर
देश में ग्लोबल प्रोडक्शन का एक बड़ा कारण यह भी है कि भारत में ग्लोबल प्रोडक्शन के मामले में यह एक बड़ा कारण है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में विश्व में कुल दुग्ध उत्पादन 24 प्रतिशत प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर है। ये तो पहले नाम का क्षेत्र होने वाले फायदे हैं, लेकिन नामचीन क्षेत्र का एक और नाम है जिस पर शायद किसी का ध्यान जाता है।
नामांकित क्षेत्र में होने वाले नुकसान के बड़े का
देश के किसान बिजनेस से जुड़े फायदे की वजह से इस ओर सबसे ज्यादा रुझान है। लेकिन हाल के दिनों में डेनमार्क क्षेत्र से होने वाले उत्पादन में काफी हद तक कमी देखी जा रही है, जिससे कई पशुपालकों को नुकसान भी झेलना पड़ रहा है। हम अक्सर किसानों की कहानियां सुनाते हैं लेकिन ऐसे कई किसान भी नुकसान झेलना पड़ रहे हैं या पड़ रहे हैं। इसका समाधान हम इसी लेख में आपके साथ साझा करेंगे लेकिन पहले नुकसान के बड़े पहलुओं पर नजर डालते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
उत्पादन बढ़ाने के लिए सरल पशुधन का ना मिलना
अच्छी नस्ल की गाय-भैंस की कमी की समस्या
पशुधन व्यापार में सीमन भ्रूणहत्या की समस्या
गार्बहिन शटर की सही तरीके से देखभाल नहीं हो पाती
पशुओं में होने वाले जानवरों का सही तरीके से इलाज नहीं हो पाना
जैसे सभी को पता है कि अच्छी नस्ल के गाय-भैंस अधिक मात्रा में दुग्ध उत्पादन करते हैं। लेकिन देश के किसानों को अच्छी नस्ल की दुधारू पशुओं की कमी के कारण काफी नुकसान हुआ है। क्योंकि आकडों को देखने के लिए भारतीय दुधारू पत्थरों की श्रृंखला दुनिया के सबसे अधिक उत्पादक देशों की तुलना में कम है। कम डेज़ी के कारण किसानों को दूधारू पालने से आय नहीं हो रही है। जब देश में ही दुधारू जनजाति की दुकानें कम होती हैं तो यहां के किसानों के लिए अच्छी नस्ल और ज्यादा दूध देने वाली गाय-भाइयों को खरीदना बेहद मुश्किल हो जाता है। किसानों को इसके लिए अपने क्षेत्र में जानवरों के लिए लाईव वाले मेले का इंतजार करना पड़ता है और इसमें भी किसानों को बढ़िया नस्ल और अच्छी नस्ल के जानवर ही मिले इसकी कोई सार्थकता नहीं है।
जैसे कि अगर कोई किसान बिहार का है और हरियाणा से अच्छी नस्ल का कोई गाय-भैंस खरीदना चाहता है तो उसके लिए पहले वहां जाना बेहद मुश्किल होगा और अगर वह भी चला गया, तो वहां से सबसे अच्छा पैसा खर्च कर ऐसे जानवरों को दूर ले जाना बेहद मुश्किल और महंगा होगा। ऐसा ही है दुधारू उद्योग को बेचने वाले किसानों के साथ भी। अगर कोई किसान अपने जानवर को बेचकर पैसा कमाना चाहता है तो उसे भी इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पशुपालक किसानों को सीमन भ्रूणहत्या की चोरी और भी बिल्कुल ऐसी ही आशंकाओं से जूझना है। अच्छी नस्ल के सीमन और भ्रूण भ्रूण हत्या क्षेत्र के विस्तार के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं। हालाँकि सभी इंडस्ट्रीज़ के समाधान हमारे पास हैं।
पशुपालकों की ऑनलाइन समाधान
असल में, केंद्र सरकार पशुधन व्यापार से जुड़े किसानों को हो रही कठिनाई के परिदृश्य को देखते हुए ऑफ़लाइन पोर्टल और ऑफ़लाइन ऐप चलाती है। ये पोर्टल और ऐप सीताफल के पशुपालक किसानों के लिए किसी भी तरह की चमक से कम नहीं है, क्योंकि इसका इस्तेमाल कर किसान घर बैठे दूधारू की खरीद और ब्रिकी कर सकते हैं। ना सिर्फ किराए को बल्कि सीमन, भ्रूण हत्या पशुधन की सभी जरूरी चीजों को भी खरीद और बेच सकते हैं। ऐसे में आइए इस ऑनलाइन पोर्टल और ऐप के बारे में जानते हैं-
अगर आप अपने बगीचे में किसी नए पौधे को ग्राफ्टिंग के तहत उगाना चाहते हैं तो आपको इसके लिए इसकी पूरी जानकारी होना बहुत जरुरी हो जाता है। अगर आपको इसकी जानकारी नहीं है तो आपके द्वारा लगाया गया पौधा कुछ ही दिनों में सूख जाएगा।
हम हमेशा चाहते हैं कि हमारे छोटे से बाग़ में बहुत से फल-फूल के पौधे हों लेकिन जगह की कमी के कारण आप कुछ ही पौधों को अपने बगीचे में जगह दे पाते हैं। लेकिन ग्राफ्टिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके चलते हम एक ही फल की बहुत सी किस्मों को एक ही पौधे में लगा सकते हैं इससे हमको कम जगह में बहुत से फलों का स्वाद एक ही बगीचे से मिल जाता है।
वेनरी ग्राफ्टिंग (Veneer Grafting): इस तकनीक में हम आम के पौधे में छेद करते हैं। जिसके बाद दूसरे पेड़ की कलम को कुछ इस प्रकार सेट करते हैं कि वह उस किए गए छेद में पूरी तरह से फिट हो जाए। पूरी तरह से सेट हो जाने के बाद आपको इसको उस छेद के आस-पास अच्छी तरह से बंद कर देना है। कुछ ही दिनों में आप इसमें एक नए किस्म के आम को देख पाओगे ।
विप ग्राफ्टिंग (Whip Grafting): इस तकनीक में आपको एक पेड़ की छाल को छील कर ग्राफ्टिंग करनी पड़ती है। जिसके लिए आपको पूरी सावधानी के साथ काम करना होता है। आपको इस ग्राफ्टिंग में सबसे पहले एक आम के पेड़ की छाल को थोड़ा छील कर उसमें दूसरे आम के पौधे की जड़ समेत कुछ इस तरह से बांधना होता है कि उसमें बाहरी हवा भी न लगे। सही तरीके से बांधे गए पौधों को कुछ ही समय बाद आप अच्छी तरह से बढ़ता हुआ देखेंगे।
बड ग्राफ्टिंग (Bud Grafting): इस तकनीक में हमको सबसे ज्यादा मौसम का ध्यान देना होता है। यह ग्राफ्टिंग मुख्य रूप से जुलाई से सितंबर के मध्य की जाती है। इसमें दूसरे पौधे की कलम से सभी पत्तियों को हटा कर इसमें सेट करके बाँध दिया जाता है। इसकी देखभाल भी आपको समय-समय पर करते रहना होगा।
साइअन ग्राफ्टिंग (Scion Grafting): इस तकनीक में, एक प्रजननी पौधे (स्कूटल) का चयन किया जाता है। और इसका ऊपरी हिस्सा काट दिया जाता है। जिसके बाद हम एक अन्य पौधे की ग्राफ्टिंग उस कटे हुए स्थान पर करते हैं। साथ ही इसको सही तरीके से बांध देते है।
टॉप वेनीर ग्राफ्टिंग (Top Veneer Grafting): यह ग्राफ्टिंग करने के बाद पुराने पौधे के स्थान पर एक नए पौधे को स्थापित कर दिया जाता है. लेकिन यह प्रक्रिया पूरी तरह से ग्राफ्टिंग पर ही आधारित होती है। जिसमें कुछ समय बाद पुराने पेड़ को हटा दिया जाता है और उसके स्थान पर नए पेड़ को ग्राफ्टिंग की सहयता से बड़ा किया जाता है।
ये थीं कुछ आम ग्राफ्टिंग विधियाँ जो आम के पेड़ों में प्रयोग होती हैं। ग्राफ्टिंग के अलावा भी अन्य विधियाँ भी मौजूद हैं, जो आम के पेड़ों के लिए विशेष आवश्यकताओं और परिस्थितियों पर आधारित हो सकती हैं।
आलू की खेती सबसे पहले पेरू देश में शुरु की गई थी। इसको भारत में अंग्रजों द्वारा जहांगीर के शासन काल में लाया गया था।
History of Potato: आलू का इस्तेमाल हम हर सब्जियों में करते हैं लेकिन क्या आपको आलू के इतिहास के बारे में पता है. भारत में रहने वाले ज्यादातर लोगों की पसंदीदा सब्जी आलू है। आज हम बात इसके इतिहास के बारे में करेंगे और बताएंगे कि कैसे आलू अमेरिका तथा यूरोप के रास्ते भारत में पहुंचा। गेहूं, चावल तथा मक्का के बाद यह चौथी ऐसी फसल है जिसकी सबसे अधिक पैदावार होती है। आज भारत वैश्विक स्तर पर आलू के उत्पादन में चौथे स्थान पर है।
आलू का इतिहास
वैज्ञानिकों के अनुसार आलू की खोज आज से करीब आठ हजार वर्ष पहले की गई थी। इसको सबसे पहले दक्षिण अमेरिका के पेरू देश के किसानों ने उगाया था। इसके बाद यह धीरे-धीरे सोलहवीं सदी में यूरोप के स्पेन देश में पहुंचा। स्पेन में आलू दक्षिण अमेरिका के उपनिवेशिक देशों में पहुंचा और फिर धीरे-धीरे ब्रिटेन सहित यूरोप के सभी देशों में इसकी फसल उगाई जाने लगी। यूरोप पहुंचने के बाद आलू सभी उपनिवेशिक देशों तक पहुंचने लगा और धीर-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया।
भारत में कब आया
भारत में पहली बार आलू जहांगीर के शासन के समय में आया था। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों ने आलू को भारत देश में लाने का काम किया और फिर पूरे देश में इसको फैलाया गया था। इस तरह धीरे-धीरे यह दुनियाभर में लोकप्रिय बन गया। वर्तमान समय में आयरलैंड और रूस जैसे देश के लोग आलू पर सबसे ज्यादा निर्भर हैं। हमारे देश में आलू से वड़ापाव, चाट, चिप्स, पापड़, फ्रेंचफ्राइस, समोसा, टिक्की, चोखा और तमाम प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं।
भारत के लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है. भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में इसकी पैदावार सबसे ज्यादा होती है। यह जमीन के नीचे उगने वाली एक फसल है। भारत, चीन और रूस के बाद आलू की सबसे ज्यादा पैदावार करता है। ऐसा बताया जाता है कि भारत में आलू को तब के गवर्नर जनरल वारेन हिस्टिंग्स लेकर आए थे।
प्रदेश के किसानों की भलाई के लिए राजस्थान सरकार ने एक और प्रस्ताव को हाल ही में मंजूरी दे दी है जिसके तहत हजारों की आय में बढ़ोतरी होगी।
राजस्थान सरकार ने राज्य के किसानों की आय को डबल करने के लिए एक नई पहल की शुरुआत की है, जिसके तहत प्रदेश के हजारों किसानों को लाभ दिया जाएगा। दरअसल, राज्य सरकार किसानों को मछली पालन के व्यवसाय (Fishing Business) की तरफ प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए सरकार किसानों को मछली का बीज (Fish Seed) भी नि:शुल्क उपलब्ध करवा रही है। ताकि किसान सरलता से मछली पालन (Fish farming) से जुड़ी अपनी परेशानी को हल कर अच्छा लाभ पा सके।
कितने किसानों को मिलेगी सुविधा
राज्य सरकार के द्वारा जारी की गई सूचना के द्वारा नि:शुल्क मछली का बीज (Free Fish Seed) प्रदेश के 20 हजार किसानों तक पहुंचाया जाएगा। इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2 करोड़ रुपए की राशि व्यय करने की भी मंजूरी दी है।
किसानों को मिलेंगे यह बीज
मत्स्य विभाग के प्रस्ताव के अनुसार राज्य के हर एक किसान भाई को डिग्गी भारतीय मेजर कॉर्प प्रजाति (Diggy Indian Major Corp Species) रोहू, कतला एवं म्रिगल के 1 हजार आंगुलिका (फिंगरलिंग) आकार के मत्स्य बीज (Fish seed) की सुविधा मिलेगी। जैसा कि आप सभी को ऊपर बताया गया कि इस कार्य के लिए कृषक कल्याण कोष से लगभग 2 करोड़ की राशि व्यय की जाएगी। ताकि किसानों तक बीज सरलता से पहुंच सकें।
किसानों को जिला स्तर पर मिलेगा प्रशिक्षण
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट वर्ष 2023-24 में मत्स्य पालन (Fisheries) व अन्य कई योजनाओं की घोषणा की थी। बताया जा रहा है कि सरकार के इस कार्य के लिए चयनित किसानों को जिला स्तर पर प्रशिक्षण भी मिलेगा।
मत्स्य विभाग के जिला स्तरीय अधिकारियों, कृषि विभाग के ब्लॉक स्तरीय अधिकारियों के द्वारा राज्य के किसान भाइयों की समस्याओं के निराकरण और नई आधुनिक तकनीकी को लेकर मार्गदर्शन प्रदान करेंगे. ताकि किसान आत्मनिर्भर के साथ-साथ सशक्त भी बन सकें।
2022-23 से 2024-25 तक 3 वर्ष के लिए 3,68,676.7 करोड़ रुपये urea subsidy के लिए आवंटित किए. Wealth from Waste Model के तौर पर Market Development Assistance (MDA) स्कीम हेतु 1451 करोड़ रुपये मंजूर किए गए।
Cabinet Committee on Economic Affairs (CCEA) ने किसानों के उत्थान के लिए, भूमि की उत्पादकता को फिर से जीवंत करने और खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाओं को मंजूरी दी है. CCEA ने urea subsidy scheme को जारी रखने को मंजूरी दी; 2022-23 से 2024-25 तक 3 वर्ष के लिए 3,68,676.7 करोड़ रुपये urea subsidy के लिए आवंटित किए. Wealth from Waste Model के तौर पर Market Development Assistance (MDA) स्कीम हेतु 1451 करोड़ रुपये मंजूर किए गए. Soil को समृद्ध करने और पर्यावरण को सुरक्षित एवं स्वच्छ रखने के लिए पराली और गोबरधन संयंत्रों से organic fertilizer का प्रयोग किया जाएगा. Soil की सल्फर की कमी को दूर करने और किसानों के लिए इनपुट लागत को कम करने के लिए ‘Urea Gold’ (Sulphur-Coated Urea) की शुरूआत।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में Cabinet Committee on Economic Affairs (CCEA) ने आज किसानों के उत्थान के लिए 3,70,128.7 करोड़ रुपये के एक विशेष पैकेज को मंजूरी दी. माननीय प्रधानमंत्री जी ने किसानों के समग्र कल्याण और आर्थिक बेहतरी के लिए देश के किसानों को योजनाओं की यह सौगात भेंट की है. इन पहलों से किसानों की आय बढ़ेगी, प्राकृतिक/ ऑर्गेनिक खेती को मजबूती मिलेगी, भूमि की उत्पादकता का कायाकल्प होगा और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी. CCEA ने urea subsidy scheme को जारी रखने को मंजूरी दे दी ताकि किसानों को 266.70 रुपये प्रति 45 किलोग्राम यूरिया की बोरी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके. इस पैकेज में तीन साल तक (2022-23 से 2024-25) के लिए urea subsidy के लिए 3,68,676.7 करोड़ रुपये निर्धारित किये गये हैं।
यह पैकेज हाल ही में अनुमोदित 2023-24 के खरीफ मौसम के लिए 38,000 करोड़ रुपये की NBS के अतिरिक्त है. किसानों को यूरिया की खरीद के लिए अतिरिक्त खर्च करने की आवश्यकता नहीं होगी और इससे उनकी आदान लागत को कम करने में मदद मिलेगी. वर्तमान में, यूरिया की MRP 266.70 रुपये प्रति 45 किलोग्राम यूरिया की बोरी है जबकि बैग की वास्तविक कीमत लगभग रु. 2200 है. यह योजना पूरी तरह से भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है. urea subsidy scheme को जारी रखने से यूरिया का स्वदेशी उत्पादन भी अधिकतम होगा. लगातार बदलती भू-राजनीतिक स्थिति और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के कारण, वर्षों से इंटरनेशनल लेवल पर फर्टिलाइजर की कीमतें कई गुना बढ़ रही हैं. लेकिन भारत सरकार ने फर्टिलाइजर सब्सिडी बढ़ाकर अपने किसानों को फर्टिलाइजर कीमतों में भारी वृद्धि होने से बचाया है. हमारे किसानों की सुरक्षा के प्रयास में, भारत सरकार ने फर्टिलाइजर सब्सिडी 2014-15 में ₹ 73,067 करोड़ से 2022-23 में ₹ 2,54,799 करोड़ बढ़ाई है।
नैनो यूरिया ecosystem सुदृढ़ीकरण
2025-26 तक, 195 LMT पारंपरिक यूरिया के बराबर 44 करोड़ बोतलों की उत्पादन क्षमता वाले आठ नैनो यूरिया Plant चालू हो जाएंगे।
Nano Urea Table
Nano Fertilizer पोषकतत्वों को नियंत्रित तरीके से रिलीज करता है जो उच्च पोषकतत्व उपयोग दक्षता में योगदान करता है और किसानों को कम लागत आती है. नैनो यूरिया के उपयोग से फसल उपज में वृद्धि हुई है. देश 2025-26 तक यूरिया के मामले में आत्मनिर्भर बनने की राह पर वर्ष 2018 से 6 यूरिया उत्पादन यूनिट
चंबल फर्टिलाइजर लिमिटेड, कोटा राजस्थान
मैटिक्स लिमिटेड पानागढ़, पश्चिम बंगाल,
रामागुंडम-तेलंगाना,
गोरखपुर-उत्तर प्रदेश,
सिंदरी-झारखंड और
बरौनी-बिहार
इनकी स्थापना और पुनरुद्धार से देश को यूरिया उत्पादन और उपलब्धता के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिल रही है. यूरिया का स्वदेशी उत्पादन 2014-15 के 225 LMT के स्तर से बढ़कर 2021-22 के दौरान 250 LMT हो गया है. 2022-23 में उत्पादन क्षमता बढ़कर 284 LMT हो गई है. नैनो यूरिया प्लांट के साथ मिलकर ये यूनिट यूरिया में हमारी वर्तमान आयात पर निर्भरता को कम करेंगे और 2025-26 तक हमें आत्मनिर्भर बनाएंगे।
धरती माता ने हमेशा मानव जाति को भरपूर मात्रा में जीविका के स्रोत प्रदान किए हैं. यह समय की मांग है कि खेती के अधिक प्राकृतिक तरीकों और रासायनिक उर्वरकों के संतुलित/सतत उपयोग को बढ़ावा दिया जाए. प्राकृतिक/ऑर्गेनिक खेती, वैकल्पिक फर्टिलाइजर, नैनो फर्टिलाइजर और जैव फर्टिलाइजर को बढ़ावा देने से हमारी धरती माता की उर्वरता को बहाल करने में मदद मिल सकती है. इस प्रकार, बजट में यह घोषणा की गई थी कि वैकल्पिक फर्टिलाइजर और रासायनिक फर्टिलाइजर के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए “ Promotion of Alternate Nutrients for Agriculture Management Yojana- PM PRANAM” शुरू किया जाएगा. गोबरधन संयंत्रों से organic fertilizers को बढ़ावा देने के लिए Market Development Assistance (MDA) के लिए 1451.84 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं. आज के अनुमोदित पैकेज में धरती माता की उर्वरता की बहाली, पोषण और बेहतरी के लिए गोबरधन पहल के तहत Compressed Bio-Gas (CBG) Plants से organic fertilizers अर्थात Fermented Organic Manure (FOM)/Liquid FOM/Phosphate Enriched Organic Manure (PROM) के लिए 1500 रुपये प्रति मीट्रिक टन के रूप में MDA Scheme शामिल है।
यह एक तरफ फसल के बाद बचे अवशेषों का प्रबंध करने और पराली जलाने की समस्याओं का समाधान करने में सुविधा प्रदान करेगा, पर्यावरण को स्वच्छ और सुरक्षित रखने में भी मदद करेगा और साथ ही किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करेगा। ये ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर किसानों को कम कीमतों पर मिलेंगे। यह पहल गोबरधन स्कीम के तहत 500 नए Waste to Wealth Plants की स्थापना की बजट घोषणा के Implementation की सुविधा प्रदान करेगी। कृषि में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से Soil Health बेहतर हो रही है। और किसानों को कृषि में लगने वाली लागत कम हो रही है।
425 कृषि विज्ञान केन्द्रों ने प्राकृतिक कृषि पद्धतियों का प्रदर्शन किया है और 6.80 लाख किसानों को शामिल करते हुए 6,777 जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं। जुलाई-अगस्त 2023 के शैक्षणिक सत्र से B.SC तथा M.SC में प्राकृतिक खेती के लिए पाठ्यक्रम भी तैयार की गयी है। Soil की सल्फर की कमी को दूर करने और किसानों के लिए इनपुट लागत को बचाने के लिए Sulphur Coated Urea (Urea Gold) की शुरूआत. देश में पहली बार सल्फर लेपित यूरिया (यूरिया गोल्ड) शुरू किया जा रहा है. यह देश में Soil में सल्फर की कमी को दूर करेगा।
Comparative Table
यह किसानों के लिए इनपुट लागत भी बचाएगा और उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि के साथ किसानों की आय भी बढ़ाएगा।
प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केन्द्र (PMKSK) ने एक लाख का आंकड़ा छुआ।
देश में लगभग एक लाख प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केन्द्र (PMKSK) पहले ही लगाए जा चुके हैं।
किसानों की सभी जरुरतों के लिए एक ही जगह पर उनकी हर समस्या के स्टॉप समाधान के रूप में यह केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।
लाभ
आज की अनुमोदित योजनाएं Chemicals Fertilizers का सही उपयोग करने में मदद करेंगी, जिससे किसानों के लिए खेती की लगने वाली लागत कम हो जाएगी। प्राकृतिक/ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए नैनो फर्टिलाइजर और ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर से हमारी धरती माता की उर्वरता बहाल करने में मदद मिलेगी। बेहतर soil Health से पोषकतत्व दक्षता बढ़ती है तथा soil एवं जल प्रदूषण में कमी होने से पर्यावरण भी सुरक्षित होता है। सुरक्षित तथा स्वच्छ पर्यावरण से मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। फसल के अवशेष जैसे पराली जलाने से वायु प्रदूषण का मसला हल होगा तथा स्वच्छता में सुधार होगा और पर्यावरण बेहतर होगा तथा साथ ही waste को wealth में बदलने में भी सहायता मिलेगी। किसान ज्यादा लाभ प्राप्त करेंगे – यूरिया के लिए उन्हें कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं करना होगा क्योंकि कम कीमतों पर उपलब्ध होता रहेगा।
Organic Fertilizers (FOM/PROM) भी सस्ती कीमतों पर उपलब्ध होंगे। कम कीमत वाली नैनो यूरिया तथा रासायनिक Fertilizers के कम प्रयोग और ऑर्गेनिक Fertilizers के बढ़ते प्रयोग से किसानों के लिए input लागत भी कम हो जाएगी। कम इनपुट लागत के साथ स्वस्थ soil तथा पानी से फसलों का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ेगी. किसानों को उनके उत्पाद के लिए बेहतर लाभ मिलेगा।
आज से कुछ दिन बाद बकरीद मनाया जाएगा। जिसको देखते हुए बाजार में उन नस्ल के बकरों की मांग बढ़ गई है, जिनका वजन 55 से 60 किलोग्राम तक है।
आज से कुछ दिन बाद यानि कि 29 जून को देशभर में बकरीद मनाया जाएगा। इस्लाम धर्म में इस पर्व का काफी महत्व है। मुस्लिम समुदाय में बकरीद को सबसे पवित्र त्योहारों में से एक माना जाता है। हर साल लोग इसे धूमधाम से सेलिब्रेट करते हैं। बकरीद में बकरे की भूमिका अहम होती है। क्योंकि इस त्योहार में बकरे की ही कुर्बानी दी जाती है। ऐसे में बाजार में इस वक्त वैसे नस्ल के बकरों की मांग काफी बढ़ गई है। जिनका वजन 55 से 60 किलोग्राम तक होता है। लोग ऐसे बकरों के लिए मुंह मांगी कीमत तक देने को तैयार हैं। तो आइये बकरों के कुछ खास नस्लों पर एक नजर डालें।
बांटने के लिए ज्यादा वजन वाले बकरों की डिमांड
आम दिनों में बकरे बाजार में 20 से 25 किलोग्राम तक के उपलब्ध होते हैं। लेकिन बकरीद में कुर्बानी के बाद कई लोगों के बीच बकरे की मीट को बांटा जाता है। ऐसे में लोग इस त्योहार में बड़े से बड़ा व मोटा ताजा बकरा खरीदना पसंद करते हैं। ताकि कम खर्च में वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को मीट बांट सकें। वहीं, बकरीद में बकरे की कीमत भी आसमान छूने लगती हैं। बता दें कि बकरे के ऐसे कई नस्ल हैं, जिनका वजन आम तौर पर 40 से 55 किलोग्राम तक होता है। वहीं, दो से तीन नस्ल ऐसे भी होते हैं, जिनका वजन 60 किलो के पार होता है। इस नस्ल के बकरों को बकरीद के मौके पर काफी पसंद किया जाता है।
इस नस्ल के बकरे की खासियत
इस वक्त बाजर में गोहिलवाड़ी नस्ल के बकरों की खूब डिमांड है। क्योंकि इस नस्ल के बकरों का वजन 50 से 55 किलोग्राम तक होता है. यह ज्यादातर गुजरात में पाए जाते हैं। इस नस्ले के बकरों की संख्या काफी कम है. यह काले रंग के होते हैं। खास बात यह है कि इनके सींग देखने में मोटे व मुड़े हुए होते हैं।
प्राचीन चीन में काले चावल को खाने में मनाही थी। लेकिन चीन के कुछ लोग इसका सेवन गुर्दे, पेट सम्बंधित बीमारियों को ठीक करने के लिए करते थे।
प्राचीन चीन में काले चावल को खाने में मनाही थी। लेकिन चीन के कुछ लोग इसका सेवन गुर्दे, पेट सम्बंधित बीमारियों को ठीक करने के लिए करते थे. जब इसके सेवन से शरीर को लाभ मिलने लगा तो कुछ महान चीनी पुरुषों ने इस चावल को अनाज में शामिल कर लिया और इसकी सार्वजनिक खपत को रोक दिया.जिसके बाद से, काले चावल केवल अमीर और कुलीन वर्गों की संपत्ति बन गया,वह भी सीमित मात्रा में और जांच के दायरे में। आम लोगों को इसका उपभोग करने की अनुमति नहीं थी। लेकिन अब समय के साथ, काले चावल का सेवन सभी लोग करने लगे हैं।
भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर पूर्व क्षेत्र और दक्षिणी भागों में की जाती है. यह चावल औषधीय गुणों से पूरी तरह भरपूर हैं। इसकी खुशबू झारसुगुड़ा तक पहुंच गई है.ओडिशा में इस प्रजाति के धान की खेती संबलपुर, सुंदरगढ़, और कंधमाल, कोरापुट आदि जिलों में की जाती है।
काले चावल क्या है ? (What is Black Rice?)
काले चावल सामान्य रूप से आम चावल की तरह ही होता है। इसकी शुरूआत में खेती चीन में हुई थी और फिर इसकी खेती भारत के असम और मणिपुर में शुरू हुई।
पौष्टिकतत्वोंसेभरपूर
इस धान से निकले चावल में भरपूर मात्रा में विटामिन बी, ई के अलावा कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन तथा जिंक आदि तत्व शामिल होते है। जोकि मानव शरीर में जाकर एंटी ऑक्सीडेंट का काम करते है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह चावल कैंसर व डायबिटीज रोगियों के लिए काफी उपयोगी होता है। इसका सेवन करने से रक्त शुद्ध होता है और साथ ही चर्बी कम कर ये आपके पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है।
काले चावलखानेकेफायदे (Benefits of Black Rice)
1) मोटापे को दूर रखता है
2) पाचन तंत्र मजबूत बनाता है
3) डायबिटीज में फायदेमंद
4)हृदय सम्बंधित समस्या में सहायक
5)शारीरिक कमजोरी को दूर करता है
6)एंटी-ऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर
ब्लैकराइससलादबनानेकीविधि:
सबसे पहले पैन में पानी गर्म करें फिर उसमें चावल, अदरक के छोटे टुकड़े डाले और अच्छे से उबाल ले जब तक अच्छे से चावल पक न जाए।
एक बार पक जाने के बाद, थोड़ी देर ठंडा होने के लिए छोड़ दें. एक मापने वाले कप में नींबू,अदरक और सिरके को अच्छे से मिलाए.यह सब मिश्रण करने के लिए स्टिक ब्लेंडर का उपयोग करें।
फिर एक कटोरे में चावल, आम, तुलसी और लाल मिर्च को एक साथ रखें. उसके बाद सिरके वाले मिश्रण को चावलों के ऊपर डाले. अब आपका ब्लैक राइस खाने के लिए तैयार है।