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हर समस्या का एक ही समाधान, इस औषधीय पौधे की खेती से हो सकते मालामाल !

देश में अब औषधीय पौधों की खेती का चलन बढ़ता ही जा रहा है। इस बीच आपको एक ऐसे औषधीय पौधे की जानकारी दे रहे हैं जो औषधीय गुणों का खजाना है जिसकी वजह से इसकी डिमांड भी ज्यादा है ये पौधा है भृंगराज का। जिसके इस्तेमाल से कई स्वास्थ्य समस्याएं ठीक होती हैं इसलिए इसकी खेती करना लाभदायक माना जाता हैं।

भृंगराज की खेती
भृंगराज की खेती

भृंगराज को हर समस्या का एक समाधान वाला औषधीय पौधा कहा जाता है. इस पौधे का हर भाग मानव शरीर के लिए बेहद उपयोगी होता है. बताया जाता है कि सदियों से भृंगराज से आयुर्वेदिक दवाइयां बनाई जा रही हैं. भृंगराज कई स्वास्थ्य लाभों के लिए काम करता है जैसे- बालों की समस्या के लिए तो चमत्कार से कम नहीं है।

रक्तचाप को नियंत्रित करना, त्वचा की समस्या का इलाज, माइग्रेन के दर्द से राहत देता है. साथ ही पीलिया का इलाज, नेत्र विकारों का भी इलाज करता है इसके अलावा अल्सर का इलाज करने के साथ हैजा में मददगार होता है और बिच्छू के काटने का भी तोड़ है. बता दें भृंगराज भारत और दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका का मूल निवासी पौधा है. औषधीय गुणों की वजह से खेती कर किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।

उपयोगी मिट्टी- यह एक सख्तजान फसल होती है, जो सभी तरह की मिट्टी में हो सकती है. हालांकि नमीयुक्त मिट्टी में अच्छी पैदावार होती है. कार्बनिक पदार्थ वाली  लाल दोमट मिट्टी खेती के लिए सबसे अच्छी मानी होती है।

अनुकूल जलवायु- भृंगराज के लिए सभी तरह की जलवायु अच्छी होती है. हालांकि तापक्रम 25 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए, इससे बढ़ोतरी और उपज ज्यादा होती है. इस फसल को बीज और कटिंग दो तरीके से लगाते हैं।

नर्सरी- नर्सरी तैयार करने के लिए सबसे पहले बेड़ के जगह की मिट्टी एक फीट तक खोदें फिर उसमें गोबर खाद 2 किग्रा प्रति sq ft के हिसाब से देते हैं, कुछ बालू मिट्टी भी मिलाते हैं. 15 सेमी ऊंचा बेड़ तैयार करते हैं, भृंगराज के बीजों को सेमी कतार में बोते हैं. इसके ऊपर बहुत पतली मिट्टी/ खाद की परत बिछाते हैं. स्प्रिंकलर या फिर झारे से पानी देते हैं बीजों की बुवाई डेढ़-दो माह बाद पौधों की प्रिकिंग खेत में लगाते हैं।

कटिंग से पौध तैयारी- इस पौधे के सिरे वाली कटिंग को लिया जाता है जिसमें 5 से 6 नोड्स और 10-15 सेमी लंबाई होना चाहिए. इन कटिंग्स को अच्छी तरह नर्सरी बेड्स या पॉलिथिन बेग्स में लगाते हैं। एक से डेढ़ महीने की अवधि के बीच इसकी जड़ें निकलने का काम पूरा हो जाता है, मुख्य पौधे खेत में तब लगा सकते हैं।

खेत की तैयारी- खेती के लिए खेत की जुताई कर पाटा चला देते हैं. रोपण से पहले खेत में एक बार पानी देते हैं ताकि नमी बने रहे।

पौधारोपण-  भृंगराज के नर्सरी में तैयार पौधों को 15 से 20 सेमी पर खेत में रोपा जाता है।

सिंचाई- रोपण के बाद एक महीने तक सप्ताह में 2 बार सिंचाई करना चाहिए. फिरा बारिश और मृदा में नमी की स्थिति को देखते हुए साप्ताहिक सिंचाई करना चाहिए।

निराई और गुड़ाई- पहली निराई पौधारोपण के 30 से 35 दिन बाद करते हैं, दूसरी खरपतवार की बढ़ोतरी को देखकर करना चाहिए. हर कटा /तुड़ाई के बाद निराई करना चाहिए, ताकि पौधों के बीच में खरपतवार न हो सके।

फसल कटाई- भृंगराज के पौधे को जड़ से उखाड़ा जाता है. फिर पौधे की जड़ को काटकर अलग कर देते हैं हरी पत्तियों को कभी एक जगह इकठ्ठा नहीं करना चाहिए, ना ही उन्हें बोरे में रखना चाहिए, पौधों को उचित साइज के टुकड़ो में काटकर अच्छी तरह दूर-दूर फैलाकर सुखाना चाहिए, इससे कीटाणु नहीं लगते और फसल सड़ती नहीं, फसल कटाई का सबसे अच्छा समय बीज काले होने पर होता है। बीजों को इकठ्ठा कर सुखाया जाता है।

उपज और आमदनी- भृंगराज की खेती से एक एकड़ में 2400 किग्रा सूखे पौधें मिलते हैं, भृंगराज का बाजार भाव 10 से 15 रूपये के बीच रहता है इस तरह प्रति एकड़ 25 हजार रूपये कमाई कर सकते हैं।

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