KENNEDY SPACE CENTER, FLA.  -  In a plant growth chamber in the KSC Space Life Sciences Lab,  plant physiologist Ray Wheeler checks onions being grown using hydroponic techniques.  The other plants are Bibb lettuce (left) and radishes (right).  Wheeler and other colleagues are researching plant growth under different types of light, different CO2 concentrations and temperatures.  The Lab is exploring various aspects of a bioregenerative life support system. Such research and technology development will be crucial to long-term habitation of space by humans.

Hydroponic Farming: सुबह लगाते हैं सब्जी और शाम को छापते हैं नोट, बिना मिट्टी की खेती करने वाले इस किसान की जानिए कहानी

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के विशाल माने रोज सुबह अपने हाइड्रो पोनिक फार्म में सब्जियां लगाते नजर आते हैं। सब्जियों के पौधे को विशाल बिना मिट्टी वाली खेती के जरिए एक ग्रीन हाउस में उगाते हैं। विशाल ने अपने छोटे से हाइड्रो पोनिक फार्म में 50 अलग-अलग तरह की पत्तियों वाली सब्जी लगाई हुई है। विशाल माने ने अपने अपने साथ देश दुनिया के तमाम किसानों को हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के लिए ट्रेन करने के हिसाब से जगदंबा हाइड्रोपोनिक्स नाम की एक कंपनी बनाई है।

सब्जियों के पौधे को विशाल बिना मिट्टी वाली खेती के जरिए एक ग्रीन हाउस में उगाते हैं।

जगदंबा हाइड्रोपोनिक्स एंड एग्रीकल्चर सिस्टम नाम की यह कंपनी देश के किसी भी हिस्से में किसानों को बिना मिट्टी की खेती से संबंधित तकनीक, उपकरण और पूरा सेटअप लगाने में मदद करती है।

बिना मिट्टी के की जा रही खेती देश के कई इलाके के किसानों के लिए अब भी एक कौतूहल की तरह है। विशाल माने लोगों के पास जाकर ग्रीन हाउस और हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के फायदे समझा कर उन्हें अपना सेटअप बनाने में मदद करते हैं।

हाइड्रोपोनिक खेती या हाइड्रोकल्चर तरीके से खेती करके तेलंगाना के किसान हरिशचंद्र रेड्डी आज करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं। शुरुआत में उन्होंने हाइड्रोपोनिक खेती का प्रशिक्षण लिया और इसकी तकनीक का गहन अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने छह माह तक हाइड्रोपोनिक खेती के तरीके को समझा और इसके बाद हाइड्रोपोनिक तरीके से खेती करना शुरू किया।

किसान हरिशचंद्र रेड्डी ने कहा कि वह सस्ती कीमत पर लोगों को फल-सब्जियां खिलाना चाहते थे। बाजार में सब्जियों की मांग को देखते हुए उनका ध्यान हाइड्रोपोनिक खेती की ओर गया। उन्होंने कई जगह पर जाकर इसके बारे में जानकारी और प्रशिक्षण लेकर हाइड्रोपोनिक खेती करना शुरू किया।

शुरुआत में हाइड्रोपोनिक या प्राकृतिक खेती करने में लागत काफी आई, लेकिन उसके बाद लागत कम होती गई और उपज बढ़ती रही। इसका परिणाम यह हुआ कि आज वे इस प्रकार की खेती करके करीब 3 करोड़ तक की कमाई कर रहे हैं। ग्रीन हाउस हाइड्रोपोनिक तकनीक स्थापित करने में प्रति एकड़ के क्षेत्र में करीब 50 लाख रुपए तक का खर्च आता है।

हाइड्रोपोनिक एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब है बिना मिट्टी के सिर्फ पानी के जरिए खेती। यह एक आधुनिक खेती है, जिसमें पानी का इस्तेमाल करते हुए जलवायु को नियंत्रित करके खेती की जाती है। पानी के साथ थोड़े बालू या कंकड़ की जरूरत पड़ सकती है। इसमें तापमान 15-30 डिग्री के बीच रखा जाता है और आर्द्रता को 80-85 फीसदी रखा जाता है। पौधों को पोषक तत्व भी पानी के जरिए ही दिए जाते हैं।

हाइड्रोपोनिक फ़ार्मिंग में खेती पाइपों के जरिए होती है. इनमें ऊपर की तरफ से छेद किए जाते हैं और उन्हीं छेदों में पौधे लगाए जाते हैं. पाइप में पानी होता है और पौधों की जड़ें उसी पानी में डूबी रहती हैं। इस पानी में वह हर पोषक तत्व घोला जाता है, जिसकी पौधे को जरूरत होती है।

यह तकनीक छोटे पौधों वाली फसलों के लिए बहुत अच्छी है. इसमें गाजर, शलजम, मूली, शिमला मिर्च, मटर, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूजा, अनानास, अजवाइन, तुलसी, टमाटर, भिंडी जैसी सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं।

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Pet Insurance: पालतू जानवरों का करवाएं बीमा, मिलेगी कई तरह की खास सुविधाएं

अब इंसानों की तरह पालतू जानवरों का भी इंश्योरेंस किया जाएगा। जिसमें बीमा कंपनी की तरफ से कई सुविधाएं दी जाएंगी।

पालतू जानवरों के लिए खरीदें बीमा पॉलिसी
पालतू जानवरों के लिए खरीदें बीमा पॉलिसी

अगर आप भी पालतू जानवरों को पालना पसंद करते हैं, तो इनसे जुड़ी कुछ जरूरी बातों का आपको ध्यान रखना चाहिए। जिस तरह से इंसानों के बेहतर भविष्य व परिवार के लिए इंश्योरेंस यानि की बीमा किया जाता है। ठीक उसी तरह से पालतू जानवरों का भी बीमा किया जाता है। लेकिन यह बात कुछ ही लोगों को पता होती है। इसलिए ज्यादातर लोग अपने जानवरों का बीमा नहीं करवा पाते हैं और फिर वह भविष्य में हानि का सामना करते हैं। तो आइए आज हम आपको पालतू जानवरों की बीमा पॉलिसी (Insurance Policy) के बारे में विस्तार से बताते हैं..

पेट इंश्योरेंस में मिलती हैं कई सुविधाएं

जैसे इंसानों की पॉलिसी में कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं, ठीक उसी तरह से जानवरों की पॉलसी (Animal Policy) में भी कई तरह की खास सुविधाएं दी जाती हैं। इसमें पेट के एक्सिडेंट से लेकर बीमारी और अन्य कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं।

बताया जा रहा है कि पेट इंश्योरेंस (Pet Insurance) में जानवर चोरी होने पर भी मालिक को लाभ दिया जाता है। इसके लिए बस पेट के मालिक को इंश्योरेंस प्लान की कुछ शर्तों का पालन करना होता है। साथ ही प्लान के बेहतर विकल्पों का चयन करना होता है। क्योंकि इंश्योरेंस में कई तरह के प्लान मौजूद हैं, उसी के मुताबिक आपको लाभ दिया जाता है।

पेट इंश्योरेंस से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

  • ध्यान रहे कि इंश्योरेंस2 महीने के पेट से लेकर 10 साल तक के लिए किया जाता है।
  • बीमा प्लान में गर्भावस्था या बच्चे के जन्म, ग्रूमिंग और कॉस्मेटिक सर्जरी की भी सुविधा है।
  • इसके लिए पेट के मालिक को हर महीने तय की गई प्रीमियम जो प्लान के मुताबिक बनती है। उसे भरना होगा।

कहां से मिलेगा पेट इंश्योरेंस प्लान

अगर आप भी अपने पेट का बीमा (Pet Insurance) करवाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको कहीं भी भटकने की जरूरत नहीं है। यह सभी प्लान के बीमा आपको न्यू इंडिया एश्योरेंस (New India Assurance), बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस (Bajaj Allianz General Insurance) और गो डिजिट जनरल इंश्योरेंस (Go Digit General Insurance) जैसी बीमा कंपनियां में मिल जाएगा। जहां से आप सरलता से आवेदन कर सकते हैं।

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मानसून में सब्जियां उगाने के लिए अपनाएं वर्टिकल फार्मिंग तकनीक, बारिश से नहीं होगी फसल खराब

किसान बहुत बेसब्री से मानसून का इंताजर करते हैं, ताकि वह पानी वाली फसलों की खेती आसानी से कर पाएं. मानसून सीजन खरीफ फसलों के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता है. इस दौरान किसान मुख्य रूप से धान की खेती को प्रमुखता देते हैं. धान के साथ-साथ सोयाबीन, मक्का, अरहर, दलहन-तिलहन फसलों की बुवाई करते हैं।

किसान बहुत बेसब्री से मानसून का इंताजर करते हैं, ताकि वह पानी वाली फसलों की खेती आसानी से कर पाएं. मानसून सीजन खरीफ फसलों के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता है. इस दौरान किसान मुख्य रूप से धान की खेती को प्रमुखता देते हैं. धान के साथ-साथ सोयाबीन, मक्का, अरहर, दलहन-तिलहन फसलों की बुवाई करते हैं. मगर कई बार कम या अधिक बारिश से सब्जियों की फसल में  रोग और कीट का प्रकोप हो जाता है. इस कारण किसानों को सब्जियों की खेती में भारी नुकसान उठाना पड़ता है. शायद यही वजह है कि किसान धान, मक्का. सोयाबीन जैसी फसलों की तरफ ज्यादा रूख करते हैं. ऐसे में आज कृषि जागरण अपने किसान भाईयों के लिए इस समस्या का समाधान लेकर आया है।

दरअसल, देश के अधिकतर राज्यों के बागवानी विभाग द्वारा सब्जियों की खेती के लिए कई उन्नत तकनीक को विकसित किया जा रहा है. इसमें वर्टिकल फार्मिंग तकनीक का नाम भी शमिल है. आजकल खेती में यह तकनीक वरदान बनती जा रही है. किसान इस तकनीक को अपनाकर खेती में काफी लाभ उठा रहे हैं. इसके तहत किसान खीरा, घीया, टमाटर, शिमला मिर्च, तोरई, करेला, सादा मिर्च और ऑफ सीजन धनिया भी उगा सकते हैं।

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क्या है वर्टिकल फार्मिंग  (What is vertical farming)

इस तकनीक में सब्जियों के पौधों को पॉली हाउस में ऊपर बांध दिया जाता है. इसके बाद बांस और बल्लियों के सहारे बेल को उपर चढ़ा देते हैं. इस तरह सब्जियां जमीन पर नहीं टिक पाती हैं औऱ पौधे ऊपर की तरफ बढ़ते रहते हैं. इस तरह सब्जियों की फसल बारिश, कीट, रोग आदि के प्रकोप से बची रहती हैं, साथ ही इससे उत्पादन भी अधिक मिलता है।

वर्टिकल फार्मिंग से फायदा (Benefit from vertical farming)

इस तकनीक में सब्जियों की फसलें जमीन को नहीं छू नहीं पाती हैं. इस कारण उनका आकार और रंग काफी साफ प्राप्त होता हैं. साफ शब्दों में कहें, तो फसल की गुणवत्ता काफी अच्छी मिलती है और बाजार में अच्छी कीमत में बिकती हैं।

वर्टिकल फार्मिंग पर सब्सिडी (Subsidy on vertical farming)

किसानों को इस तकनीक से सब्जियां उगाने पर बागवानी विभाग द्वारा सब्सिडी भी उपलब्ध कराई जाती है. राज्य सरकार अपने-अपने अनुसार इस तकनीक पर सब्सिडी देती हैं. इसको अपनाकर किसान फसलों का दोगुना उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. देश के कई राज्यों के किसान इसका लाभ उठा रहे हैं।

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World Day Against Child Labour 2023: बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस मनाने का उद्देश्य, इस बार की थीम और महत्व

World Day Against Child Labor 2023
World Day Against Child Labor 2023

बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस (World Day Against Child Labour) जागरूकता बढ़ाने और बाल श्रम के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए हर साल 12 जून को मनाया जाता है। यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक पहल है और दुनिया भर के विभिन्न संगठनों, सरकारों और व्यक्तियों द्वारा समर्थित है।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का उद्देश्य

बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस (विश्व बाल श्रम निषेध दिवस) का प्राथमिक उद्देश्य बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करना और विश्व स्तर पर बाल श्रम को खत्म करने के प्रयासों को बढ़ावा देना है। बाल श्रम से तात्पर्य ऐसे काम से है जो बच्चों के लिए मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या नैतिक रूप से हानिकारक हो और उनकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न करता हो। यह बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता और उनकी गरिमा से वंचित करता है और इसे उनके अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है।

इसलिए इस दिन बाल श्रम के परिणामों के बारे में जागरूकता फैलाने और बच्चों के अधिकारों की वकालत करने के लिए विभिन्न अभियान और  कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। गरीबी, शिक्षा की कमी और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा सहित बाल श्रम के मूल कारणों को दूर करने के लिए सरकारें, गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और कार्यकर्ता मिलकर काम करते हैं।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का महत्व

बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस व्यक्तियों, समुदायों और सरकारों को बच्चों की रक्षा करने और एक ऐसी दुनिया बनाने की उनकी जिम्मेदारी के लिए याद दिलाने का काम करता है, जहां हर बच्चा एक सुरक्षित और पोषण वाले वातावरण में विकसित हो सकता है। यह बाल श्रम को खत्म करने के लिए सहयोग और सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल देता है और बच्चों को वे अवसर प्रदान करता है जिससे वे बेहतर भविष्य के हकदार बन सकें।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 2023 की थीम

इस साल विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की थीम “सभी के लिए सामाजिक न्याय, बाल श्रम का खात्मा!”(Social Justice for All, End Child Labour!) है।

बाल श्रम कम करने के लिए निम्न पॉइंट्स पर गौर करने की जरूरत

बाल श्रम का मुकाबला करने के प्रयासों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच को बढ़ावा देना।

बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाले कानूनों और नीतियों को लागू करना।

श्रम मानकों में सुधार करना।

कमजोर परिवारों को सामाजिक सहायता प्रदान करना।

बाल श्रम से मुक्त नैतिक आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करने के लिए उपभोक्ताओं और व्यवसायों के बीच जागरूकता बढ़ाना।

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परम्परागत कृषि विकास योजना

PKVY) परम्परागत कृषि विकास योजना 2023 : ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन व लॉगिन केंद्र सरकार द्वारा परम्परागत कृषि विकास योजना की शुरुआत की गयी है। यह योजना में किसानों के विकास के लिए की गयी है। योजना के माध्यम से किसान भाईयों को जैविक खेती (organic farming) करने का लक्ष्य सरकार ने प्रदान किया है।

बारे में

योजना नामपरम्परागत कृषि विकास योजना
के द्वाराभारत सरकार
मंत्रालयकृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार
लाभ लेने वालेराज्य के किसान नागरिक
उद्देश्यजैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक
सहायता राशि प्रदान करना
साल2023
आवेदन प्रक्रियाऑनलाइन व ऑफलाइन मोड
सहायता राशि50 हजार रुपये
श्रेणीकेंद्र सरकारी योजना
आधिकारिक वेबसाइटpgsindia-ncof.gov.in

2015 में लॉन्च परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई), केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस), सतत कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसए) के तहत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एसएचएम) का एक विस्तारित घटक है। पीकेवीवाई का लक्ष्य जैविक खेती का समर्थन और प्रचार करना है, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।

यह योजना भारत के लिए भागीदारी गारंटी प्रणाली (पीजीएस) भारत (पीजीएस-इंडिया) को जैविक प्रमाणन के रूप में बढ़ावा देती है जो पारस्परिक ट्रस्ट पर बनाई गई है, स्थानीय रूप से प्रासंगिक है और प्रमाणन की प्रक्रिया में उत्पादकों और उपभोक्ताओं की भागीदारी को अनिवार्य है। पीजीएस – भारत “थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन” के ढांचे के बाहर काम करता है।

इस योजना के तहत क्रमशः केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा 60:40 के अनुपात में फंडिंग पैटर्न है। उत्तर पूर्वी और हिमालयी राज्यों के मामले में, केंद्रीय सहायता 90:10 (केंद्र: राज्य) और केंद्र शासित प्रदेशों के अनुपात में प्रदान की जाती है, सहायता 100% प्रदान की जाती है।

इस योजना का उद्देश्य 20 हेक्टेयर के 10,000 क्लस्टर बनाने और 2017-18 तक कार्बनिक खेती के तहत लगभग दो लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र लाने का लक्ष्य है।

परम्परागत कृषि विकास योजना से मिलने वाले लाभ व विषेशताएं

परम्परागत कृषि विकास योजना से मिलने वाले लाभ जानने के लिए दिए गए पॉइंट्स को पूरा पढ़े।

  • परम्परागत कृषि विकास योजना के तहत अच्छी क्वालिटी की मिटटी का उत्पाद होगी और अधिक फर्टिलिटी होगी।
  • योजना के तहत किसानों की आय में वृद्धि हो सकेगी।
  • आवेदक को योजना का लाभ लेने के लिए पंजीकरण करना आवश्यक है।
  • इस योजना से मिलने वाली आर्थिक सहायता राशि किसान भाइयों के बैंक खाते में भेजी जाएगी।
  • ऑनलाइन माध्यम से आवेदन करने पर आवेदक किसान के समय और पैसे दोनों बच सकेंगे।
  • आवेदक अपने मोबाइल व कंप्यूटर के माध्यम से योजना का आवेदन कर सकेंगे।
  • जैविक खेती को और अधिक बढ़ावा देने के किसानों आर्थिक सहायता राशि भी दी जाएगी।
  • आवेदक किसान के पास अपना स्वयं का बैंक खाता होना बहुत जरुरी है, जो की आधार कार्ड से होना बहुत जरुरी है।
  • योजना के माध्यम से सरकार किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

लक्ष्य

उद्देश्य पर्यावरण अनुकूल, कम लागत वाली प्रौद्योगिकियों को अपनाकर रसायनों और कीटनाशकों के अवशेषों से मुक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करना है। कार्बनिक खेती को बढ़ावा देने में पीकेवीवाई के प्रमुख जोर क्षेत्रों में निम्न शामिल हैं:

ग्रामीण युवाओं / किसानों / उपभोक्ताओं / व्यापारियों के बीच जैविक खेती को बढ़ावा देना जैविक खेती में नवीनतम तकनीकों का प्रसार करना.

भारत में सार्वजनिक कृषि अनुसंधान प्रणाली से विशेषज्ञों की सेवाओं का उपयोग करें.

एक गांव में कम से कम एक क्लस्टर प्रदर्शन आयोजित करें.

लाभार्थी:

किसान

लाभ:

पीकेवीवाई का लक्ष्य जैविक खेती का समर्थन और प्रचार करना है, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।

सेक्टर: कृषि

Paramparagat Krishi Vikas Yojana हेतु पात्रता

अगर आप भी योजना का आवेदन करना चाहते है तो आपको इसकी पात्रता का पता होना बहुत आवश्यक है जिसके बाद ही आप आवेदन कर सकेंगे। योजना हेतु पात्रता जानने के लिए दिए गए पॉइंट्स को पूरा पढ़े।

  1. केवल किसान नागरिक ही इस योजना का आवेदन कर सकेंगे।
  2. आवेदक किसान भारत राज्य का मूलनिवासी होना आवश्यक है।
  3. योजना का आवेदन 18 साल से ऊपर के किसान नागरिक कर सकते है।
  4. परम्परागत कृषि विकास योजना का आवेदन करते आवेदक के पास अपने सभी दस्तावेज होने जरुरी है।
आवश्यक दस्तावेज

योजना का आवेदन करने के लिए आवेदक को आवश्यक दस्तावेजों की जानकारी का पता होना बहुत जरुरी है। हम आपको आवश्यक दस्तावेजों के बारे में जानकारी बताने जा रहे है जो इस प्रकार से है:

आधार कार्डरजिस्टर्ड मोबाइल नंबरमूल निवास प्रमाणपत्र
जन्म प्रमाणपत्रआय प्रमाणपत्रआयु प्रमाणपत्र
बैंक पासबुकबैंक अकाउंट नंबर व IFSC कोडराशन कार्ड
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कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन में अंतर, जानकर करें इस्तेमाल

कीट नियंत्रण एक बार का उपचार है जबकि कीट प्रबंधन कीट के आने से पहले किया जा सकता है। इस लेख में हमने कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन के बीच विस्तार से अंतर बताया है।

pest control and pest management
pest control and pest management

खेती-बाड़ी में अक्सर दो शब्द कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन सुनने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते है कि इन दोनों में बहुत ही बड़ा अंतर होता है। कीट से संबंधित इन दोनों ही शब्दों का मतलब इतना बड़ा होता है कि इनके इस्तेमाल से ना सिर्फ आपकी फसलों पर बल्कि आने वाले कृषि क्षेत्र पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। ऐसे में हम आपके लिए इन दोनों में अंतर सहित इनके महत्व पर जानकारी साझा कर रहे हैं।

कीट नियंत्रण

कीट नियंत्रण कीट में शामिल प्रजातियों का प्रबंधन है। यह खेत में मौजूद अवांछित कीड़ों को प्रबंधित करने, नियंत्रित करने, कम करने और हटाने की प्रक्रिया है। कीट नियंत्रण दृष्टिकोण में एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) शामिल हो सकता है। कृषि में कीटों को रासायनिक, यांत्रिक, सांस्कृतिक और जैविक तरीकों से दूर रखा जाता है। बुवाई से पहले खेत की जुताई और मिट्टी की जुताई करने से कीटों का बोझ कम होता है और फसल चक्रण से बार-बार होने वाले कीट प्रकोप को कम करने में मदद मिलती है। कीट नियंत्रण तकनीक में फसलों का निरीक्षण, कीटनाशकों का प्रयोग और सफाई जैसी कई बातें शामिल हैं।

कीट नियंत्रण का महत्व

मानव स्वास्थ्य का संरक्षण: यह मच्छरों, टिक्स और कृन्तकों जैसे कीटों द्वारा होने वाली बीमारियों के प्रसार को कम करके मानव स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करता है।

संपत्ति का संरक्षण: कीटों को नियंत्रित करना संरचनाओं, फसलों और संग्रहीत उत्पादों को नुकसान से बचाता है, संपत्ति को संक्रमण से संबंधित विनाश से बचाता है।

खाद्य सुरक्षा: कृषि सेटिंग्स में फसल उत्पादकता को बनाए रखने और भोजन की सुरक्षा व गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कीट नियंत्रण उपाय आवश्यक हैं।

आर्थिक प्रभाव: प्रभावी कीट नियंत्रण क्षतिग्रस्त फसलों और संपत्ति की क्षति के कारण होने वाली वित्तीय हानियों को रोक सकता है।

कीट प्रबंधन

कीट प्रबंधन को अवांछित कीटों को खत्म करने और हटाने की एक विधि के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें रासायनिक उपचारों का उपयोग शामिल हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। प्रभावी कीट प्रबंधन का उद्देश्य कीटों की संख्या को एक सीमा तक कम करना है।

कीट प्रबंधन का महत्व

रसायनों पर कम निर्भरता: यह जैविक नियंत्रण और सांस्कृतिक प्रथाओं जैसे वैकल्पिक तरीकों के उपयोग पर जोर देता है, रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करता है और उनके संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम करता है।

पर्यावरणीय स्थिरता: कीट प्रबंधन पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और स्थिरता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।

एकीकृत कीट प्रबंधन: कीट प्रबंधन में निगरानी, ​​निवारक उपाय और आवश्यक होने पर कीटनाशकों का लक्षित उपयोग शामिल है, जिससे अधिक प्रभावी और टिकाऊ कीट नियंत्रण होता है।

दीर्घकालिक रोकथाम: कीट प्रबंधन का उद्देश्य कीट समस्याओं के मूल कारणों को दूर करना और भविष्य में होने वाले संक्रमण को कम करने के लिए निवारक उपायों को लागू करना है, जिससे लगातार और गहन कीट नियंत्रण उपचार की आवश्यकता कम हो जाती है।

कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन में अंतर

कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन में अंतर बताने के लिए हमने कुछ प्वाइंट्स पर गौर करते हुए उसमें अंतर बताया है…

लक्ष्य

  • कीट नियंत्रण- विभिन्न तरीकों से कीटों को खत्म करना या कम करना
  • कीट प्रबंधन- पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को कम करते हुए या उनकों ध्यान में रखते हुए कीटों को नियंत्रित करना

दृष्टिकोण

  • कीट नियंत्रण- कीटों के तत्काल उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करना
  • कीट प्रबंधन- दीर्घकालिक रोकथाम और नियंत्रण रणनीतियों पर जोर देना

तरीका

  • कीट नियंत्रण- कीटनाशकों पर बहुत अधिक निर्भरता
  • कीट प्रबंधन- जैविक नियंत्रण, सांस्कृतिक प्रथाओं और रासायनिक नियंत्रण सहित विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल करना

दायरा

  • कीट नियंत्रण- मुख्य रूप से मौजूदा कीट संक्रमणों को कम करना या खत्म करना
  • कीट प्रबंधन- वर्तमान संक्रमण और भविष्य के संभावित खतरों दोनों को खत्म या कम करना.
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Top 5 Expensive Tractors: भारत के 5 सबसे महंगे ट्रैक्टर, अपने दमदार शक्ति और भार क्षमता के लिए लोकप्रिय

ट्रैक्टर अलग-अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न फिचर्स के साथ आता है. इस लेख में हम भारत में वर्ष 2023 के पांच सबसे महंगे ट्रैक्टरों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है. इन ट्रैक्टरों ने अपनी प्रभावशाली विशेषताओं, विश्वसनीयता और प्रतिस्पर्धी कीमतों के कारण लोकप्रियता हासिल की है।

कृषि क्षेत्र सहित विभिन्न कार्यों को करने में ट्रैक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऐसे में हम अपने लेख के जरिए अलग-अलग ट्रैक्टरों की जानकारी लेकर आते रहते हैं. इसी कड़ी में हम आपके लिए इस साल के भारत के 5 सबसे महंगे ट्रैक्टरों की जानकारी लेकर आए हैं. इन ट्रैक्टरों को भारी भार को कुशलतापूर्वक संभालने और बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है. अधिक जानकारी के लिए लेख पढ़ना जारी रखें।

Swaraj 855 FE
Swaraj 855 FE

स्वराज 855 एफई (Swaraj 855 FE)

स्वराज 855 एफई एक शक्तिशाली ट्रैक्टर है जो एक मजबूत इंजन और उन्नत सुविधाओं से लैस है. यह एक 3-सिलेंडर इंजन द्वारा संचालित है, जो विभिन्न कृषि कार्यों के लिए कुशल प्रदर्शन और विश्वसनीय बिजली उत्पादन प्रदान करता है. स्वराज ट्रैक्टर के अटैचमेंट्स को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है, जो किसानों के उत्पादकता बढ़ाने के लिए कल्टीवेटर, हल और हार्वेस्टर जैसे उपकरणों को आसानी से जोड़ने और उपयोग करने में मददगार है. अगर इसके वजन की बात करें तो स्वराज 855 एफई का कुल वजन 2440 किलोग्राम है जो भारी भरकम वजन उठाने में भी सक्षम है. ट्रैक्टर में 8 आगे और 2 रिवर्स गियर हैं, जो कई दिशाओं में घूमने के लिए सक्षम है. इसके अलावा इसमें पावर स्टीयरिंग की सुविधा है, जो सहज गतिशीलता प्रदान करता है और लंबे समय तक उपयोग के दौरान थकान को कम करता है. भारत में स्वराज 855 FE की कीमत 7.90-8.40 लाख रुपये के बीच है।

Swaraj 744 FE
Swaraj 744 FE

स्वराज 744 एफई (Swaraj 744 FE)

स्वराज 744 एफई तेल में डूबे ब्रेक वाला 48 एचपी ट्रैक्टर है. स्वराज 744 FE ट्रैक्टर को विभिन्न अटैचमेंट्स को समायोजित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो इसे विभिन्न कृषि कार्यों के लिए बहुमुखी बनाता है।

इस स्वराज ट्रैक्टर का अधिकतम कुल वजन 2345 किलोग्राम है जो संचालन के दौरान स्थिरता प्रदान करता है और विभिन्न इलाकों में आसानी से नेविगेट करने के लिए पर्याप्त फुर्तीला रहता है. ये ट्रैक्टर 8F+2R के साथ आता है, जिससे ऑपरेटर आसानी से कई दिशाओं में जा सकते हैं. इसमें 3 चरणों वाले वेट एयर क्लीनर के साथ 2000 इंजन रेटेड RPM है. स्वराज 744 एफई ट्रैक्टर में पावर स्टीयरिंग है, जो सटीक और सहज चालन को सक्षम बनाता है. भारत में स्वराज 744 FE की कीमत 6.90-7.40 लाख रुपये के बीच है।

Kubota MU 4501 2WD

कुबोटा एमयू 4501 2डब्ल्यूडी (Kubota MU 4501 2WD)

Kubota MU 4501 2WD ट्रैक्टर एक विश्वसनीय और कुशल मशीन है जिसे विभिन्न कृषि कार्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक शक्तिशाली इंजन है जो असाधारण प्रदर्शन और ईंधन दक्षता सुनिश्चित करता है. ट्रैक्टर में 4-सिलेंडर इंजन है. इस Kubota ट्रैक्टर मॉडल को आसानी से हल, कल्टीवेटर, लोडर जैसे उपकरणों के साथ लगाया जा सकता है, जिससे खेत में इसकी बहुमुखी प्रतिभा और उत्पादकता का विस्तार होता है।

अगर इसके वजन की बात करें तो ट्रैक्टर 1850 किलोग्राम के कुल वजन के साथ शक्ति और गतिशीलता के बीच संतुलन बनाता है. ट्रैक्टर क्रमशः 8 और 4 के फॉरवर्ड और रिवर्स गियर के साथ आता है जो कई दिशाओं में घूमने के लिए सक्षम है. इसमें 5000 घंटे या 5 साल की वारंटी के साथ तेल में डूबे हुए डिस्क ब्रेक हैं. भारत में Kubota MU 4501 2WD की कीमत 7.69-7.79 लाख रुपये के बीच है।

Powertrac Euro 50
Powertrac Euro 50

पॉवरट्रैक यूरो 50 (Powertrac Euro 50)

पॉवरट्रैक यूरो 50 ट्रैक्टर एक मजबूत और कुशल मशीन है जिसे कृषि कार्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक उच्च-प्रदर्शन इंजन है जो विश्वसनीय शक्ति और ईंधन दक्षता प्रदान करता है. ट्रैक्टर में 3-सिलेंडर इंजन है, जो खेती के विभिन्न कार्यों के लिए सुचारू और कुशल संचालन सुनिश्चित करता है।

यह पॉवरट्रैक मॉडल आसानी से हल, कल्टीवेटर, हैरो आदि जैसे उपकरणों से जुड़ सकता है, जिससे खेत में इसकी बहुमुखी प्रतिभा और उत्पादकता में वृद्धि होती है. इस ट्रैक्टर में 50 एचपी है और यह मल्टी प्लेट तेल में डूबे डिस्क ब्रेक के साथ आता है. इसका कुल वजन 2140 किलोग्राम और 2040 एमएम का कुल व्हीलबेस है. पॉवरट्रैक यूरो 50 ट्रैक्टर एक विश्वसनीय और बहुमुखी मशीन है, जो विभिन्न कृषि अनुप्रयोगों में किसानों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शक्ति, दक्षता और आराम का संयोजन करती है. भारत में पॉवरट्रैक यूरो 50 की कीमत 7.31-7.75 लाख रुपये के बीच है।

John Deere 5050 D
John Deere 5050 D

जॉन डीरे 5050 डी (John Deere 5050 D)

जॉन डियर 5050 डी एक उच्च प्रदर्शन वाला ट्रैक्टर है जो अपनी गुणवत्ता और टिकाऊपन के लिए जाना जाता है. यह एक मजबूत इंजन से लैस है जो उत्कृष्ट शक्ति और दक्षता प्रदान करता है. ट्रैक्टर में 3-सिलेंडर इंजन है, जो कृषि कार्यों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए बेहतर प्रदर्शन और विश्वसनीय संचालन प्रदान करता है.

यह आसानी से हल, कल्टीवेटर, सीडर्स जैसे अन्य उपकरणों से जुड़ सकता है, जिससे किसानों को अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक करने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है. इसका वजन लगभग 1870 किलोग्राम है जो ऑपरेशन के दौरान स्थिरता सुनिश्चित करता है और विभिन्न इलाकों में आसानी से नेविगेट करने के लिए फुर्तीला है. ये 8 आगे और 4 रिवर्स गियर के साथ आता है, जिससे ऑपरेटर आसानी से कई दिशाओं में जा सकते हैं. यह तेल में डूबे हुए डिस्क ब्रेक के साथ 60 लीटर की ईंधन टैंक क्षमता के साथ आता है. भारत में जॉन डीरे 5050 डी की कीमत 7.99-8.70 लाख रुपये के बीच है।

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Early Blight: जानें आलू की फसल में लगने वाली बीमारियां, आलू के दाग रोग के लिए अपनाएं यह तरीके

किसानों की आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि अच्छी फसल होने के बाद भी किसी न किसी फसल के रोग के कारण फसल का उत्पादन कम हो जाता है। आज हम आपको आलू में लगने वाले एक ऐसे ही रोग से सुरक्षा के प्रबंधन की जानकारी देगें।

Beware of diseases in crops
Beware of diseases in crops

भारत एवं अन्य देशों में भी आलू एक प्रमुख सब्जी के रूप में उत्पादित की जाती है। भारत में आलू की फसल कई राज्यों की अहम फसल होती है। साथ ही उत्तर भारत में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में सबसे ज्यादा उत्पादित की जाने वाली सब्जी के रूप में होती है। आलू के विभिन्न रोगों में से कुछ प्रमुख रोग आलू के दाग रोग (Early Blight), लेटल ब्लाइट (Late Blight), वायरस से होने वाले रोग (Viral Diseases), आलू का रूईदार रोग (Potato Cyst Nematode) आदि होते हैं। आज हम आपको इनमें से आलू की पत्तियों में होने वाले दाग रोग के बारे में बताने जा रहे हैं। आलू के दाग रोग (Early Blight) एक प्रमुख पत्तियों का रोग है ,जो आलू के पौधों को प्रभावित करता है। यह रोग प्रकृति में मौजूद कई प्रकार के फंगस से हो सकता है, जिनमें Alternaria solani और Alternaria alternata फंगस प्रमुख होते हैं। इस रोग के कारण पत्तियों पर गहरे बौने या काले रंग के दाग बन जाते हैं। यह दाग सामान्यतः पत्ती की परिधि से शुरू होते हैं और धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं।

आलू के दाग रोग के प्रमुख लक्षण

  • पत्तियों पर गहरे बौने या काले रंग के दाग
  • दागों के आसपास पत्ती की परिधि पर पतला पीला या सफेद रंग का रिंग
  • पत्तियों की आकार में कमी और सूखे हुए रंग की उपस्थिति
  • पत्तियों का पतला होना और पत्ती में कटाव की उपस्थिति
  • आलू के दाग रोग से सुरक्षा के उपाय
  • स्वच्छ बीज चुनना: स्वच्छता के माध्यम से रोगों का प्रसार कम होता है, इसलिए रोगमुक्त बीजों का उपयोग करना चाहिए।
  • रोगप्रतिरोधी प्रजातियों का चयन करना: रोगप्रतिरोधी प्रजातियों को चुनकर आलू की खेती करनी चाहिए, जो दाग रोग के प्रति प्रतिरोधी हो सकती हैं।
  • संक्रमित पौधों का निकालना: जब भी संक्रमित पौधे या पत्तियां होती हुई दिखें तो उन्हे तुरंत निकाल देना चाहिए ताकि रोग का प्रसार रोका जा सके।
  • कीटनाशकों का उपयोग करना: गंभीर संक्रामण के मामलों में कीटनाशकों का उपयोग करना जरूरी हो सकता है।
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किसानों को इस काम के लिए मिल रही है 48 हजार रुपये तक सब्सिडी, तुरंत उठाएं लाभ

किसानों को एक सब्सिडी के तहत 48 हजार रुपये मिल रहे हैं। आइए जानें कैसे अन्नदाता उठा सकते हैं लाभ।

किसानों को इस काम के लिए मिल रही है बड़ी सब्सिडी
किसानों को इस काम के लिए मिल रही है बड़ी सब्सिडी

अन्नदाताओं को खुश करने के लिए सरकार आए दिन एक से बढ़कर एक योजनाएं पेश करती है। इस वक्त किसानों के लिए एक और अच्छी खबर सामने आई है। एक राज्य सरकार खास योजना के तहत कृषकों को 48 हजार रुपये तक की सब्सिडी दे रही है। इस अनुदान का लाभ उठाने के लिए किसान तुरंत आवेदन कर सकते हैं। तो आइए जानें किस योजना के तहत कहां मिल रही है किसानों को सब्सिडी और कैसे उठा सकते हैं इसका लाभ।

आवारा पशुओं से बचाव के लिए शुरू की गई योजना

दरअसल, राजस्थान में किसानों को एक खास काम के लिए सब्सिडी देने का ऐलान किया गया है। राज्य सरकार चूरू जिले के कृषकों तारबंदी योजना के तहत अनुदान दे रही है। इसको लेकर अधिकारियों का कहना है कि फसलों को आवारा जानवरों व नीलगाय से हो रहे नुकसान को ध्यान में रखते हुए इस योजना का ऐलान किया गया है। इसका लाभ जिले के लगभग 5800 किसान उठा सकेंगे।


इन किसानों को मिलेगी इतनी सब्सिडी

वैसे तो हर श्रेणी के किसानों को इसका फायदा मिलेगा। लेकिन सामान्य श्रेणी के किसानों को 40 हजार रुपए का अनुदान दिया जाएगा। वहीं, लघु एवं सीमांत श्रेणी के किसानों को इस सब्सिडी के तहत 48 हजार रुपये मिलेंगे। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस योजना का लाभ उन्हीं किसानों को मिलेगा, जो कम से कम 1.5 हैक्टेयर जमीन में तारबंदी कराएंगे।

ऐसे करें आवेदन

राजस्थान सरकार की इस योजना का लाभ उठाने के लिए अन्नदाताओं को राज किसान पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके लिए उन्हें कुछ दस्तावेज भी जमा करने होंगे, जिसके बारे में वेबसाइट पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। बता दें कि राजस्थान के अलावा भारत के अन्य राज्यों में भी तारबंदी को लेकर सरकारें भारी सब्सिडी दे रही हैं। कुछ राज्यों में सरकार किसानों को इसके लिए 60-70 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है।

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Most Profitable Farming: भारत में सबसे अधिक मुनाफे वाले कृषि व्यवसाय

देश के कई किसान इन दिनों कृषि से जुड़े अनेकों बिजनेस की शुरुआत कर काफी अच्छा पैसा कमा रहे हैं। ऐसे में हम आपको यहां भारत के कुछ सबसे मुनाफे वाले कृषि व्यवसायों के बारे में बता रहे हैं, जिसकी शुरुआत कर किसान भाई बेहतर से भी बेहतरिन मुनाफा कमा सकते हैं।

Most Profitable Business idea for farmers in india

भारत के किसान अब पारंपरिक खेती के आलावा कई और कृषि क्षत्रों में भी अपना हाथ आजमा रहे हैं। बड़ी संख्या में किसान अब डेयरी फार्मिंग,बागवानी, मछली पालन से लेकर मधुमक्खी पालन तक कई बिजनेस की शुरुआत कर रहे हैं। तभी तो आज के वक्त में आपको देश में कई अमीर किसान मिल जायेंगे। ऐसे में आपको इस लेख में कुछ बिजनेस आइडिया के बारे में बताने जा रहे हैं, जो किसानों के लिए सफल साबित हो रहे हैं।

मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी पालन से अनेक उत्पाद जैसे शहद, मधुमक्खी का मोम, पराग, प्रापलिस, रॉयल जैली और विष मिलता है। ऐसे में ये व्यवसाय कृषकों के लिए अनेकों द्वारा खोलता है। इस बिजनेस को छोटे निवेश के साथ भी शुरू कर सकते हैं।

मछली पालन

मत्स्य पालन का बिजनेस इन दिनों उभरता जा रहा है। मत्स्य पालन का बिजनेस शुरू करने के लिए सरकार से आवश्यक लाइसेंस प्राप्त करने के साथ-साथ नावों, जालों और उपकरणों में निवेश की आवश्यकता होती है।

बागवानी

बागवानी उद्योग में फलों, सब्जियों और फूलों की खेती शामिल है. इसकी बढ़ती मांग की वजह से ये क्षेत्र अपार संभावनाएं प्रदान करता है। बागवानी में रुचि रखने वाले उद्यमियों को अपने क्षेत्र और बाजार के लिए उपयुक्त फसलों का चयन करने के साथ ही भूमि, सिंचाई और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे में निवेश करने की आवश्यकता है।

डेरी फार्मिंग

भारत का डेयरी उद्योग किसानों के लिए एक सबसे मुनाफे वाला बिजनेस बनता जा रहा है। इसे स्थापित करने के लिए भूमि, पशुधन और उपकरणों में निवेश आवश्यक है। कई ऐसे किसान हैं जो डेरी फार्म से लाखों रुपये महीना कमा रहे हैं