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World Environment Day 2023: इस बार #BeatPlasticPollution के साथ मनाया जायेगा विश्व पर्यावरण दिवस, जानें इतिहास और महत्व

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है।

विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) हर साल 5 जून को मनाया जाता है। यह एक वैश्विक पर्यावरण संरक्षण अभियान है, जो पर्यावरण संरक्षण के महत्व को उजागर करने और लोगों को उसकी रक्षा करने के लिए जागरूक करता है। यह दिवस हर साल एक नए थीम के साथ मनाया जाता है।

विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम  

हर साल विश्व पर्यावरण दिवस की एक अलग थीम होती है, जो वैश्विक महत्व के लिए महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दे पर प्रकाश डालती है। इस बार विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम “#BeatPlasticPollution अभियान के तहत प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान” है।

विश्व पर्यावरण दिवस का मुख्य उद्देश्य

विश्व पर्यावरण दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों को पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूक करना है। जैसे प्रदूषण, जलसंकट, वनों का अपघात, जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या आदि के बारे में बताना है। इसके साथ ही व्यापक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के महत्व को उजागर करना है। इस दिन के माध्यम से लोगों को पर्यावरण की रक्षा के लिए जागरूक करके उन्हें उसकी रक्षा और सुरक्षा के लिए सक्रिय बनाने का प्रयास किया जाता है।

इस दिन पर्यावरण संरक्षा से सम्बंधित संदेशों को जनसंचार करने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए इस दिन विभिन्न संगठन, सरकारी निकाय, शैक्षिक संस्थान, गैर सरकारी संगठन आदि द्वारा कई पर्यावरणीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में जंगल संरक्षण, पौधरोपण, सफाई अभियान, जल संरक्षण, जैव विविधता की संरक्षा, पर्यावरण संबंधित शिक्षा आदि शामिल होते हैं। इससे लोगों को इस मुद्दे के बारे में जागरूकता प्राप्त होती है और वे अपने हर रोज के जीवन में पर्यावरण की रक्षा करने में सहयोग करने के लिए प्रेरित होते हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास

विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास 1972 से शुरू होता है, जब संयुक्त राष्ट्र ने स्टॉकहोम, स्वीडन में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCHE) का आयोजन किया था। यह सम्मेलन उस समय के पर्यावरणीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए विश्व नेताओं और पर्यावरण विशेषज्ञों की पहली वैश्विक सभा थी। सम्मेलन का उद्देश्य वायु और जल प्रदूषण, वनों की कटाई और जैव विविधता के नुकसान जैसी तत्काल पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करना था।

इस सम्मेलन के दौरान, पर्यावरण के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित एक विशेष दिवस की स्थापना के लिए एक प्रस्ताव रखा गया था। परिणामस्वरूप, सम्मेलन के अंतिम दिन, 5 जून, 1972 को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में नामित किया गया। जिसके बाद पहला विश्व पर्यावरण दिवस 1974 में मनाया गया था और तब से प्रतिवर्ष इसे मनाया जाता है।

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इन दस ख़ास पेड़ों की मांग करती है पूरी दुनिया, लाखों रुपये किलो बिकती है लकड़ी

दुनिया में आज पेड़-पौधों पर केवल पशु पक्षी ही नहीं बल्कि मानव जीवन भी पूरी तरह से निर्भर हो चुका है। आज हम आपको दुनिया में फर्नीचर से लेकर अन्य कीमती सामानों के लिए प्रयोग में लायी जा रही सबसे कीमती लकड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं।

आज हमारे जीवन में लकड़ी का उपयोग हर किसी के घर में होता है। शायद लकड़ी नहीं होने पर हमारा जीवन ही बेरंग हो जाता है। आज दुनिया के किसी भी घर की बात कर लें फिर वो किसी गरीब का घर हो या किसी करोड़पती का सभी के घर की रौनक लकड़ी के बने फर्नीचर या अन्य सामानों से होती है। दुनिया में आज कई देश तो ऐसे हैं जिनकी अर्थव्यवस्था ही लकड़ियों पर निर्भर होती है। आज हम आपको कुछ ऐसी लकड़ियों के बारे में बतायेंगे जिनकी कीमत दुनिया में सबसे ज्यादा है।

चंदन का पेड़ (Sandalwood Tree)

भारत में चन्दन की लकड़ी के बारे में तो हम सभी जानते ही हैं। इस लकड़ी से तेल के साथ-साथ कई तरह की दवाइयां बनाई जाती हैं. साथ ही भारत में इसका उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए भी किया जाता है। भारत में इस लकड़ी से इत्र भी तैयार किया जाता है। आज भारत में इस लकड़ी की तस्करी बहुत बड़ी मात्रा में हो रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह पेड़ सबसे पहले भारत में सबसे ज्यादा पाया जाता था लेकिन अब इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश आस्ट्रेलिया बन गया है। बाज़ार में इस लकड़ी की कीमत लाखों रुपये तक होती है। चन्दन के पेड़ की कई किस्में बाज़ार में अलग-अलग रेट में मिलती हैं।

अफ्रीकन ब्लैकवुड (African Blackwood)

इस पेड़ की लकड़ी भी बहुत कीमती होती है. इस पेड़ की लकड़ी बाज़ार में 7 लाख से 9 लाख रुपये प्रति किलो तक बिकती है। यही कारण है कि इस लकड़ी को भी दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी की लिस्ट में शामिल किया गया है. यह पेड़ दुनिया में अफ्रीका के सूखे इलाकों में पाए जाते हैं।

बोकोट ट्री (Bocot Tree)

इस पेड़ की लकड़ी आपको लगभग 2500 रुपये प्रति फीट के हिसाब से मिलती है। यह पेड़ अमेरिका, मैक्सिको जैसे देशों में पाए जाते हैं। इस लकड़ी की सबसे ख़ास बात यह है कि इस लकड़ी के तने को जब हम फर्नीचर या डेकोरेशन के लिए प्रयोग करते हैं तो इस तने में बहुत सी घुमावदार डिजायन सामने आती हैं। जो देखने में बहुत ही ज्यादा आकर्षक लगाती हैं। आप इस लकड़ी की कीमत जितनी सामान्य समझ रहे हैं उतनी है नहीं क्योंकि इसके बने हुए कई आइटम बाज़ार में लाखों की कीमत में बिकते हैं।

लिग्नम विटे (Lignum Vitae)

यह पेड़ अमेरिका के साथ-साथ कैरेबियन देशों में पाया जाता है। इसकी एक फीट लकड़ी की कीमत लगभग 7000 रूपये तक है। इस पेड़ की लकड़ी सबसे ज्यादा सख्त और आकर्षक है. इस लकड़ी की ख़ास बात यह है कि यह न ही जल्दी सड़ती है और न ही इस लकड़ी में किसी प्रकार का कोई कीड़ा लगता है। इस पेड़ की ख़ास बात यह है कि इस पेड़ में एक तरह का आयल होता है जो इस पेड़ को पानी से बचा के रखता है। यही कारण है कि यह पेड़ वाटरप्रूफ भी होता है। यह पेड़ लम्बाई में 6 मीटर से 10 मीटर तक होता है। यह पेड़ फर्नीचर जैसे कामों के साथ ही साथ दवा बनाने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। 

बुबिंगा (Bubinga)

यह पेड़ अंदरूनी तौर रेड कलर का होता है। इसकी एक फुट लकड़ी की कीमत लगभग 1400 रुपये तक होती है. यह पेड़ अफ्रीका में पाए जाते हैं साथ ही इनकी लम्बाई लगभग 100 फुट तक हो सकती है। इसकी लकड़ी को फर्नीचर से लेकर कई तरह के अन्य कामों में भी प्रयोग में लाया जाता है।

एमरंथ या पर्पल हार्ट (Amaranth or Purple Heart)

इस लकड़ी की कीमत भारत में लगभग 1000 रुपये प्रति फुट तक हो सकती है। यह पेड़ अफ्रीका, गुयाना, ब्राजील के साथ कैरेबियन देशों में पाया जाता है। इस पेड़ की लम्बाई की बात करें तो यह पेड़ 100 फीट से 170 फीट तक होती है।इस लकड़ी की सबसे ख़ास बात इसका रंग होता है। यह लकड़ी बैगनी रंग की होती है। इसके रंग के कारण ही यह लकड़ी  दुनियाभर में सबसे ज्यादा ख़ास हो जाती है।

पिंक आइवरी(Pink Ivory)

यह पेड़ साऊथ अफ्रीका के साथ जिम्बाम्बे जैसे देशों में पाया जाता है। इस पेड़ को इसके रंग के कारण सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। इसकी लकड़ी का रंग पिंक ब्राउन होता है साथ ही यह बहुत ही चमकीली होती है। इस लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर के साथ-साथ दैनिक चीजों में प्रयोग होने वाले सामानों के लिए भी किया जाता है। इस पेड़ की लकड़ी से गीटार से लेकर कई अन्य महंगे सामान तैयार किए जाते हैं।

एगरवुड ट्री (Agarwood Tree)

इस पेड़ की लकड़ी की कीम्मत सुन कर तो आपके भी होश उड़ जाएंगे। इसकी एक किलो लकड़ी को आप बाज़ार में 7 से 8 लाख रुपये तक में बेच सकते हैं। यह लकड़ी चीन, म्यामार, बाग्लादेश जैसे कई देशों में पाए जाती हैं. इसका उपयोग कई तरह के परफ्यूम बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही इस पेड़ से कई तरह की दवाइयां भी तैयार की जाती हैं। कई लोगों की माने तो इस पेड़ से तैयार किया तेल सोने से भी ज्यादा कीमती होता है।

एबनी ट्री (Ebony Tree)

इस पेड़ को मिलियन डॉलर ट्री भी कहा जाता है। इस पेड़ की खासियत घने काले और भूरे रंग की डिज़ाइन. यह पेड़ दुनिया में बहुत ही कम स्थानों पर पाया जाता है। यह लकड़ी शतरंज, गिटार जैसी चीजों के साथ सभी डेकोरेशन वाली चीजों को तैयार करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन पेड़ों का अस्तित्व खतरे में है। आज इन पेड़ों की तस्करी भी बड़ी मात्रा में की जा रही है। आपको बता दे कि यह पेड़ अफ्रीका के साथ भारत और श्रीलंका के कुछ सथानों पर भी पाए जाते हैं।

डालबर्गीया लैटिफ़ोलिया (Dalbergia Latifolia)

यह पेड़ दुनिया भर में पाया जाता है. 1500 रुपये प्रति फीट तक बिकने वाली यह लकड़ी आपको अपने देश में भी आसानी से मिल जाएगी. यह पेड़ फर्नीचर के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इस पेड़ की लकड़ी बहुत ही ज्यादा कठोर होती है यही कारण है कि इसको काटने में बहुत ही ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है।

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Apple farming in summer: गर्म जलवायु में सेब उगाने के टिप्स और ट्रिक्स

भारत की गर्म जलवायु में सेब की खेती के लिए अतिरिक्त ध्यान और देखभाल की आवश्यकता होती है। लेकिन आप कुछ बातों का ध्यान रखकर गर्म जलवायु में भी सेब उगा सकते हैं। किन बातों का ध्यान रखना है इस लेख में इसपर ही चर्चा करेंग।

भारत में सेब की खेती ज्यादातर हिमाचल प्रदेश सहित पहाड़ी इलाकों में की जाती है। इसके पीछे का कारण ठंडा जलवायु और कम तापमान है। देश के गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में सेब की खेती करना किसी चुनौती से कम नहीं है। लेकिन सेब की उपयुक्त किस्मों और कुछ बातों का ध्यान रख गर्म जलवायु में भी सेब उगाना संभव है।

गर्म जलवायु के लिए सेब की किस्मों का चयन

गर्म जलवायू में सेब की खेती करने के लिए उन किस्मों का चयन करें जो गर्मी के प्रति उनकी सहनशीलता के लिए जानी जाती हैं। इसकी कुछ किस्में इस प्रकार हैं- अन्ना, डॉर्सेट गोल्डन और एचआरएमएन-99 जैसी सेब की किस्मों ने गर्म जलवायु में भी अच्छा प्रदर्शन कर भारतीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त बन गई हैं।

जगह का चुनाव

एक ऐसा स्थान खोजें जिसमें प्रति दिन कम से कम सीधी धूप पड़ती हो। पर्याप्त वायु महत्वपूर्ण है, इसलिए स्थिर हवा वाले क्षेत्रों में रोपण से बचें। ऊंचे या ढलान वाले क्षेत्र पेड़ों पर अत्यधिक गर्मी के तनाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।

मिट्टी की तैयारी

मिट्टी तैयार करते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि यह अच्छी तरह से जल निकासी वाली है और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर है। इसका पीएच स्तर 6 से 7 तक होना चाहिए. इसे निर्धारित करने के लिए मिट्टी का परीक्षण करें। मिट्टी के सुधार के लिए जैविक खाद या अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं।

सिंचाई कैसे करें

जब आप गर्म तापमान में सेब की खेती करते हैं तो सिंचाई महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसे में विशेष रूप से शुष्क अवधि के दौरान लगातार और पर्याप्त सिंचाई पौधे को प्रदान करें। मिट्टी को समान रूप से नम रखें लेकिन अधिक पानी देने से बचें। क्योंकि अधिक पानी की वजह से जड़ सड़ने का डर रहता है। पानी की बचत और सीधे जड़ तक पानी पहुंचाने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली पर विचार करें।

खरपतवार नियंत्रण

मिट्टी की नमी को बनाए रखने, मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करने और खरपतवार के विकास को रोकने के लिए सेब के पेड़ों के चारों ओर जैविक गीली घास की एक परत लगाएं। ये मिट्टी के कटाव को कम करता है और इससे खरपतवार भी नियंत्रित रहते हैं।

छंटाई और प्रशिक्षण तकनीकें

सेब के पेड़ों के स्वास्थ्य और उत्पादकता को बनाए रखने के लिए नियमित छंटाई जरूरी है। ऐसे में समय-समय पर मृत, रोगग्रस्त या अत्यधिक घने शाखाओं को हटा दें। उचित छंटाई तकनीकों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, जो बेहतर वायु प्रवाह और सूर्य के प्रकाश को प्रवेश करने के लिए अच्छा होता है।

कीट और रोग प्रबंधन

ख़स्ता फफूंदी, सेब की पपड़ी या अग्नि अंगमारी जैसे रोगों के संकेतों के लिए नियमित रूप से पेड़ों का निरीक्षण करें और उनके प्रभाव को कम करने के लिए तुरंत उचित उपाय करें।

फलों का पतला होना

फलों की गुणवत्ता और आकार बढ़ाने के लिए बढ़ते मौसम के दौरान अतिरिक्त फलों को हटा दें। ये बचे हुए फलों को पर्याप्त पोषक तत्व और धूप प्राप्त करने में मदद करेगा, जिसके परिणामस्वरूप स्वस्थ और स्वादिष्ट सेब बनते हैं। फलों के बीच उचित दूरी रखने का लक्ष्य रखें।

कटाई और भंडारण

कटाई के बाद सेब को ठंडे और अच्छी तरह हवादार क्षेत्र में स्टोर करें ताकि उनकी शेल्फ लाइफ को बढ़ाया जा सके।

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धान की नर्सरी लगाते वक्त रखें इन खास बातों का ध्यान, बाद में नहीं उठाना पड़ेगा नुकसान

खरीफ सीजन की सबसे मुख्य फसल धान की खेती का समय आ गया है। लेकिन उससे पहले किसान धान की नर्सरी तैयार कर रहे हैं। ऐसे में उनके लिए इस लेख में कुछ विशेष सलाह दी गई है।

भारत दुनिया का एक ऐसा देश है जहां सबसे बड़े क्षेत्रफल में धान की खेती की जाती है। धान की खेती बीजाई और पौधरोपण के जरिए की जाती है। लेकिन ज्यादातर किसान धान की खेती पौध तैयार करके करते हैं। इसके लिए किसान सबसे पहले धान की नर्सरी तैयार करते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं किसानों को धान की नर्सरी तैयार करते वक्त किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

जून महीने में किसान करें धान की नर्सरी की तैयारी

जैसा की खरीफ सीजन चल रहा है और इसी सीजन में धान की खेती की जाती है। लेकिन किसान धान की खेती के पहले इसकी नर्सरी की तैयारी करते हैं। जून के महीने की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में किसानों के लिए धान की खेती में नर्सरी तैयार करने का समय आ चुका है। बता दें कि जून महीने के पहले सप्ताह से लेकर अंतिम सप्ताह तक धान की नर्सरी के लिए बीज की बुवाई की जाती है। आमतौर पर धान की नर्सरी 21 से लेकर 25 दिनों में तैयार हो जाती है।

धान की नर्सरी तैयार करने के वक्त ध्यान रखने योग्य बातें

धान की नर्सरी के लिए दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।नर्सरी लगाने के पहले खेत की दो से तीन जुताई करके मिट्टी को समतल और भुरभुरा बना लें. ध्यान रहें खेत में पानी की निकासी के लिए उचित व्यवस्था हो। धान की नर्सरी क्यारियां बनाकर तैयार की जाती हैं। इसके लिए लगभग एक से डेढ़ मीटर चौड़ी क्यारियां बनानी चाहिए। धान की नर्सरी क्यारियां बनाकर तैयार की जाती हैं। इसके लिए लगभग एक से डेढ़ मीटर चौड़ी क्यारियां बनानी चाहिए।

धान की नर्सरी में खोखले बीजों को बाहर निकाल लें

धान की बीजों की बुवाई करने से पहले खोखले बीजों को बाहर निकाल लें। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका बीजों को 2 प्रतिशत नमक के घोल में डालकर उसे अच्छी तरह हिला लें। इससे खोखले बीज ऊपर तैरने लगेंगे और आप इसकी आसानी से छटाई कर सकते हैं। खोखले बीज की बुवाई करने से अच्छे पौध तैयार नहीं होंगे। इससे बाद में आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए खोखले बीजों को बाहर निकाल कर अच्छे बीजों की बुवाई करना उचित रहता है।

बीजों को उपचारित करना आवश्यक

जैसा की हमने बताया कि अच्छे बीजों से ही अच्छे पौध तैयार होते हैं। ऐसे में बीजों की बुवाई से पहले उसे उपचारित करना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। धान के बीज उपचारित करने के लिए आप फफूंदीनाशक दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए केप्टान, थाइरम, मेंकोजेब, कार्बंडाजिम और टाइनोक्लोजोल में से किसी एक दवा का इस्तेमाल किया जा सकता हैं।

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बदलते मौसम में किसान कैसे करें अपनी फसलों की रक्षा, मौसम विभाग ने दी सलाह

मौसम विभाग ने आगामी मौसम को लेकर बिहार के किसानों के लिए जरूरी कृषि एडवाइजरी जारी की है। इसमें मौसम के मद्देनजर फसलों की सुरक्षा कैसे करें, इसकी बेहतरीन जानकारी दी गई है।

देशभर के कई हिस्सों में इन दिनों मौसम बदल रहा है। अचानक से हो रही बारिश सें जहां गर्मी से राहत मिल रही है, तो वहीं किसानों के लिए ये मौसम कई मायनों में अच्छा तो कई मायनों में बुरा साबित हो रहा है। ऐसे में किसानों के लिए मौसम से जुड़े सभी अपडेट जानना बेहद जरूरी हो जाता है। तो चलिए मौसम विभाग द्वारा बिहार के किसानों के लिए जारी मौसम एडवाइजरी और कृषि एडवाइजरी दोनों इस लेख में जानते हैं।

बिहार के किसानों के लिए मौसम अपडेट

आगामी पांच दिनों के दौरान आसमान साफ रहेगा और बारिश की कोई संभावना नहीं है। इस दौरान हवा की गति लगभग 12-16 किमी/घंटा रहने का अनुमान है।

किसानों को चारे के लिए बुवाई करने की दी गई सलाह

किसानों को सलाह दी जाती है कि ज्वार (पीसी 6, पीसी 23, एमपी चरी, एसएसजी 998, 898, 555), मक्का (अफ्रीकन टॉल, विजय, मोती, जवाहर), लोबिया (यूपीसी 5287, 8705), बाजरा (एल 274, जायंट बाजरा), ग्वार (बुंदेल ग्वार1, 2, 3) की चारे के लिए बुवाई करें।

किसानों को सिंचाई के लिए दी गई ये सलाह :- खड़ी फसलों में हल्की और बार-बार सिंचाई करें। केवल शाम या सुबह के समय सिंचाई करें।

धान की खेती को लेकर सलाह जारी धान के किसानों को खरीफ चावल की किस्मों राजेंद्र श्वेता, राजेंद्र मसूरी-1, एमटीयू-709, स्वर्ण सब-1 आदि के प्रमाणित बीज बोने का सुझाव दिया जाता है। बीज का उपचार बाविस्टिन @ 2 ग्राम/किलोग्राम से किया जाना चाहिए। बीज दर @ 20 किग्रा/हेक्टेयर होना चाहिए। 100 वर्ग मीटर बीज क्यारी के लिए 1kg N, P और K का प्रयोग करें।

आम और लीची के किसानों के लिए सलाह आम और लीची उत्पादक किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अधिक मूल्य प्राप्त करने के लिए जल्द से जल्द परिपक्व फलों को तोड़ें और बाजार में बेचने जाएं।

किसानों को दी गई पौध संरक्षण की सलाह

कद्दू वर्गीय फसल में फल मक्खी के प्रकोप की निगरानी करने की सलाह दी जाती है। यदि इसका संक्रमण पाया जाता है, तो डाइमेथोएट 30 ईसी @ 2 मिली + 10 ग्राम चीनी/लीटर पानी का छिड़काव, साफ धूप वाले दिनों में करने की सलाह दी जाती है। Disclaimer– इस लेख में दी गई जानकारी मौसम विज्ञान केंद्र, पटना और आरएयू-पूसा (समस्तीपुर), एएमएफयू-अगवानपुर (सहरसा) एएमएफयू-सबौर (भागलपुर) के सहयोग से जारी कृषि एडवाइजरी द्वारा ली गई है। ये कृषि विशेष सलाह 31 मई 2023 से लेकर 4 जून 2023 तक के मौसम के मद्देनजर जारी की गई है। आपको यहां बता दें कि मौसम विभाग समय-समय पर अलग-अलग राज्यों के लिए कृषि विशेष सलाह जारी करता रहता है। इस कृषि विशेष सलाह से किसानों की फसलों को मौसम से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। हम आपके लिए मौसम विभाग द्वारा जारी कृषि एडवाइजरी की जानकारी और हर अपडेट लेकर आते रहते हैं। ऐसे में आप कृषि जागरण के साथ जुड़कर समय-समय पर कृषि विशेष सलाह की जानकारी ले सकते हैं।

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Cyclone Alert: उत्तर भारत के इन राज्यों में सुपर साइक्लोन का अलर्ट जारी

मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, आज से लेकर आने वाले कुछ दिनों तक भारत के विभिन्न शहरों में सुपर साइक्लोन का अलर्ट जारी किया गया है।

मई का महीना खत्म होने में बस एक ही दिन बचा है, लेकिन देशभर में मानसून की बारिश का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। देखा जाए तो हर दिन हो रही बारिश लोगों को भीगा रही है और साथ ही इनके लिए मुश्किलें भी पैदा कर रही है। दूसरी और बारिश होने से दिल्ली और अन्य कई शहरों में भीषण गर्मी से लोगों को काफी राहत मिली है। आइए जानते हैं देशभर में मौसम की स्थिति आज कैसी रहने वाली है।

चक्रवात चेतावनी (Cyclone Alert)

बीते कल यानी 29 मई, 2023 के दिन उत्तर-भारत में तूफान ने मौसम (Weather) के रुख को बदल दिया है। मौसम विभाग की मानें तो बीते 2-3 दिनों में चले सुपर साइक्लोन (Super Cyclone) की अधिकतम रफ्तार 50 से 70 किमी प्रति घंटे तक रही थी। वहीं अब अनुमान है कि आने वाला तूफान करीब 90 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से आ सकता है। इसके लिए IMD ने चेताया है कि सभी लोग जितना हो सकें अपने टीन शेड को मजबूती से बांध लें। जो भी उड़ने वाली चीज हैं उसे सुरक्षित रख लें। हर परिस्थिति में सावधानी बरतें। अनुमान है कि आगामी दिनों में बिजली की आपूर्ति भी ठप हो सकती है। इसलिए जो भी घरेलू जरूरत जैसे- आटा, पानी को स्टॉक में रखें। आगामी 31 मई, 2023 तक मौसम किसी भी रूप में बदल सकता है।

अगले 5 दिनों के दौरान देशभर में पूर्वानुमान और चेतावनी

उत्तर पश्चिमी भारत में आज और 31 मई, 2023 तक गरज, बिजली और तेज हवाएं, तूफान 40-50 से 60 किमी प्रति घंटे से चलने की संभावना है। मौसम विभाग ने 30 तारीख यानी आने वाला कल उत्तरी राजस्थान, जम्मू संभाग, हिमाचल प्रदेश में ओलावृष्टि की संभावना है। अनुमान है कि 01 जून से धीरे-धीरे हवाएं कम हो सकती हैं। अगले 5 दिनों के दौरान दक्षिण आंतरिक कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में छिटपुट वर्षा को लेकर चेतावनी जारी की गई है।

अधिकतम तापमान का पूर्वानुमान

अगले 4 दिनों के दौरान उत्तर पश्चिम भारत में अधिकतम तापमान में कोई खास बदलाव नहीं होने की आशंका है। उसके बाद अगले 5 दिनों के दौरान पूर्वी भारत और महाराष्ट्र में अधिकतम तापमान में 2-4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है।

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हर गांव मे अब लगेगा नमो चौपाल, कृषि वैज्ञानिक किसानों को देंगे विशेष सलाह

किसानों के विकास के लिए सरकार आए दिन कुछ ना कुछ करती रहती है। इसी कड़ी में अब मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने हर गांव में नमो चौपाल की शुरुआत की है। इससे गांव-गांव जाकर कृषि वैज्ञानिक खेती-बाड़ी की जानकारी देंगे।

भारत के किसानों की तरक्की के लिए केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है। सरकार किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों से जोड़कर उनका विकास करना चाहती है। इसके मद्देनजर हाल में सरकार ने अलग-अलग जगहों पर कृषि क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों की जानकारी किसानों को उपलब्ध कराने के लिए कृषि मेला आयोजित करने का फैसला लिया है। इसी कड़ी में मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में कृषि मेले का आयोजन किया जा रहा है।

हर गांव में नमो चौपाल का होगा निर्माण

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में उज्जैन में कृषि मेला आयोजित किया गया था, जिसका शुभारंभ किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री कमल पटेल द्वारा किया गया। इस दौरान कृषि मंत्री कमल पटेल ने हर गांव में नमो चौपाल के निर्माण की घोषणा की. उन्होंने कहा कि प्रत्येक ग्राम पंचायत मुख्यालय पर नमो चौपाल का निर्माण किया जाएगा।

क्या है नमो चौपाल :- नमो चौपाल, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही यह एक ऐसी समाजिक पहल है, जो एक ही मंच पर किसानों, ग्रामीणों और कृषि वैज्ञानिकों को लेकर आता है। कृषि मंत्री कमल पटेल ने नमो चौपाल के बारे में कहा कि नमो चौपाल पर किसान, ग्रामीण और कृषि वैज्ञानिक खेती-किसानी पर सामूहिक चर्चा करेंगे।

नमो चौपाल का उद्देश्य :- इसका उद्देश्य किसानों की समस्याओं को सुनना और उसका कृषि वैज्ञानिकों द्वारा हल निकालना है।इस मंच से किसानों को उन्नत खेती के तरीके, नवीनतम खेती के तकनीक, आधुनिक कृषि पद्दति, जैविक खेती सहित सभी अहम जानकारी मिलेगी।जैसा की राज्य के प्रत्येक ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर नमो चौपाल का निर्माण किए जाने की योजना बनाई गई है। यहां सभी किसान भाई कृषि विशेषज्ञों के साथ मिलकर अपनी समस्याओं का समाधान और विकास करने की योजना बनाएंगे। इससे ग्रामीण क्षेत्रों के किसान भी खेती-बाड़ी में आधुनिक तकनीक अपनाकर ज्यादा मुनाफा कमाने में सक्षम हो सकेंगे।

जैविक खेती को अपनाने की अपील:- उज्जैन में आयोजित कृषि मेले में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने किसानों से जैविक खेती की ओर आगे बढ़ने की अपील की। उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. यादव ने कहा कि किसान अधिक से अधिक जैविक खेती करें।

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हर खेत तक पहुंचेगा पानी, सरकार सिंचाई पर दे रही है भारी सब्सिडी, ऐसे उठायें लाभ

किसानों के लिए सरकार हर दिन कोई नया कदम उठाती है, अब कृषकों को सिंचाई पर भी बंपर सब्सिडी देने का ऐलान किया गया है.लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सहित तमाम राज्यों की सरकारें अन्नदाताओं को खुश करने की कवायद में जुट गई हैं. वह आए दिन कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए नई योजनाओं का ऐलान कर रही हैं. अगर खेती की बात करें तो कुछ ही समय बाद खरीफ फसलों की बुवाई होगी. ऐसे में किसान इसकी तैयारी में लग गए हैं. खरीफ फसलों को सिंचाई की ज्यादा जरुरत होती है. ऐसे में पानी की खपत भी बढ़ जाती है. जिससे किसान को अपनी जेब ज्यादा करनी पड़ती है. इस समस्या को देखते हुए एक राज्य सरकार ने सिंचाई पर बड़ी सब्सिडी देने का ऐलान किया है.

आइए, जानें किस राज्य में मिल रही है सिंचाई पर सब्सिडी।कम खर्च में ज्यादा उत्पादन :- बिहार सरकार सूक्ष्म सिंचाई पर किसानों को इन दिनों अनुदान दे रही है. दरअसल, इस तकनीक से सिंचाई करने पर फसलों को जरुरत के हिसाब से पानी मिलता है. माना जाता है कि सूक्ष्म सिंचाई में खर्च कम व उत्पादन ज्यादा होता है. जिससे किसानों की आमदनी बढ़ जाती है. इसके अलावा, इस तकनीक से खेती करने में भारी मात्रा में पानी की भी बचत होती है. सूक्ष्म सिंचाई में ड्रिप व स्प्रिंकल इरिगेशन शामिल होते हैं।

पानी की भारी बचत :- कृषि विभाग राज्य में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर दोनों ही सिंचाई के लिए 90 प्रतिशत का अनुदान दे रहा है. बता दें कि इस तकनीक से सिंचाई करने पर लगभग 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है. इसमें किसानों का समय व मेहनत दोनों बचता है. इसके अलावा, स्प्रिंकलर सिंचाई से लंबे दिनों तक मिट्टी में नमी बनी रही है. जिससे फसल खराब नहीं होती.इस सब्सिडी को पाने के लिए किसानों को आवेदन करना होगा. उससे पहले कृषि विभाग के ऑफिशियल साइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन करना होगा. इसके अलावा, किसान सिंचाई उपकरणों को भी खरीदने के लिए सरकार की सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं. वहीं, दस्तावेज व प्रक्रिया से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विभाग में संपर्क किया जा सकता है

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Drip Irrigation: स्मार्ट सिंचाई और सुंदर उत्पादन के लिए करें टपक सिंचाई का प्रयोग

हमारे ग्रह पर 10 अरब लोग रहेंगे, और पर्याप्त कैलोरी उगाने के लिए प्रति व्यक्ति 20% कम कृषि योग्य भूमि होगी. पानी की कमी के कारण हमें कृषि उत्पादकता और संसाधन दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता है।टपक सिंचाई एक प्रकार की सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली है, जिसमें जल को मंद गति से बूँद-बूँद के रूप में फसलों के जड़ क्षेत्र में प्रदान किया जाता है।

इस सिंचाई विधि का आविष्कार सर्वप्रथम इसराइल में हुआ था जिसका प्रयोग आज दुनिया के अनेक देशों में हो रहा है।इस विधि में जल का उपयोग अल्पव्ययी तरीके से होता है जिससे सतह वाष्पन एवं भूमि रिसाव से जल की हानि कम से कम होती है।

ड्रिप इरिगेशन को कभी-कभी ट्रिकल इरिगेशन कहा जाता है, और इसमें एमिटर या ड्रिपर्स नामक आउटलेट से लगे छोटे व्यास के प्लास्टिक पाइप की एक प्रणाली से बहुत कम दरों (2-20 लीटर / घंटा) पर मिट्टी पर टपकता पानी शामिल होता है।दुनिया को ड्रिप सिंचाई की आवश्यकता क्यों है2050 तक, हमारे ग्रह पर 10 अरब लोग रहेंगे, और पर्याप्त कैलोरी उगाने के लिए प्रति व्यक्ति 20% कम कृषि योग्य भूमि होगी. पानी की कमी के कारण हमें कृषि उत्पादकता और संसाधन दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता है. यहीं पर ड्रिप सिंचाई फिट बैठती है, जिससे किसानों को प्रति हेक्टेयर और घन मीटर पानी में अधिक कैलोरी का उत्पादन किया जा सकता है.

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित फायदे तथा उपयोग है-

•खाद्य उत्पादन पर सूखे और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना•उर्वरक लीचिंग के कारण भूजल और नदियों के दूषित होने से बचेंग्रामीण समुदायों का समर्थन करें,

•गरीबी कम करें, शहरों की ओर पलायन कम करेंउपयोग

•ड्रिप सिंचाई का उपयोग खेतों, वाणिज्यिक ग्रीनहाउस और आवासीय उद्यानों में किया जाता है।

पानी की तीव्र कमी वाले क्षेत्रों में और विशेष रूप से नारियल, कंटेनरीकृत लैंडस्केप पेड़, अंगूर, केला, बेर, बैंगन, साइट्रस, स्ट्रॉबेरी, गन्ना, कपास, मक्का और टमाटर जैसे फसलों और पेड़ों के लिए ड्रिप सिंचाई को बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है।

•घर के बगीचों के लिए ड्रिप सिंचाई किट लोकप्रिय हैं और इसमें टाइमर, नली और एमिटर शामिल हैं।

4 मिमी (0.16 इंच) व्यास वाले होसेस का उपयोग फूलों की सिंचाई के लिए किया जाता है।टपक सिंचाई के लाभ हैं:

•स्थानीय अनुप्रयोग और लीचिंग कम होने के कारण उर्वरक और पोषक तत्वों की हानि कम से कम होती है।•मिट्टी का कटाव कम होता है।

•पत्ते सूखे रहते हैं, जिससे बीमारी का खतरा कम हो जाता है।

•आमतौर पर अन्य प्रकार की दबाव वाली सिंचाई की तुलना में कम दबाव पर संचालित होता है, जिससे ऊर्जा लागत कम होती है।

•उर्वरकों की न्यूनतम बर्बादी के साथ फर्टिगेशन को आसानी से शामिल किया जा सकता है।

खरपतवार की वृद्धि कम होती है.जल वितरण अत्यधिक समान है, प्रत्येक नोजल के आउटपुट द्वारा नियंत्रित किया जाता है.अन्य सिंचाई विधियों की तुलना में श्रम लागत कम होती है.वाल्व और ड्रिपर्स को विनियमित करके आपूर्ति में बदलाव को नियंत्रित किया जा सकता है.यदि सही तरीके से प्रबंधित किया जाए तो जल अनुप्रयोग दक्षता अधिक होती है.फील्ड लेवलिंग जरूरी नहीं है.अनियमित आकार वाले खेतों को आसानी से समायोजित किया जा सकता है.पुनर्नवीनीकरण गैर-पीने योग्य पानी का सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा सकता है.ड्रिप सिंचाई के नुकसान हैं:-

•यदि पानी को ठीक से फ़िल्टर नहीं किया जाता है तो उपकरण को ठीक से बनाए नहीं रखा जा सकता है.प्रारंभिक लागत ओवरहेड सिस्टम से अधिक हो सकती है.

•सूरज की रोशनी ड्रिप सिंचाई के लिए उपयोग की जाने वाली नलियों को प्रभावित कर सकता है, जिससे उनका जीवनकाल छोटा हो जाता है.

•यदि जड़ी-बूटियों या शीर्ष ड्रेसिंग उर्वरकों को सक्रियण के लिए छिड़काव सिंचाई की आवश्यकता होती है तो ड्रिप सिंचाई असंतोषजनक हो सकती है.

•ड्रिप टेप फसल के बाद, अतिरिक्त सफाई लागत का कारण बनती है.

•उपयोगकर्ताओं को ड्रिप टेप वाइंडिंग, निपटान, पुनर्चक्रण या पुन: उपयोग की योजना बनाने की आवश्यकता होती है.

•इन प्रणालियों में भूमि स्थलाकृति, मिट्टी, पानी, फसल और कृषि-जलवायु परिस्थितियों, और ड्रिप सिंचाई प्रणाली और इसके घटकों की उपयुक्तता जैसे सभी प्रासंगिक कारकों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने की आवश्यकता होती है.हल्की मिट्टी में उपसतह ड्रिप अंकुरण के लिए मिट्टी की सतह को गीला करने में असमर्थ हो सकती है.

•स्थापना गहराई पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है.

•अधिकांश ड्रिप सिस्टम उच्च दक्षता के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, जिसका अर्थ है कि बहुत कम या कोई लीचिंग अंश नहीं है.

•पर्याप्त लीचिंग के बिना, सिंचाई के पानी के साथ लगाए गए लवण जड़ क्षेत्र में जमा हो सकते हैं.ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग रात के पाले से होने वाले नुकसान को नियंत्रित करने के लिए नहीं किया जा सकता है (जैसे स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली के मामले में)

सिस्टम डैमेज से बचें :- ड्रिप सिंचाई सीमाओं से अवगत होने के कारण आप कई वर्षों तक अपने सिस्टम को संरक्षित कर सकते हैं. अपने ड्रिप टयूबिंग के आसपास बिजली उपकरण, जैसे कि एडगर और लॉनमूवर का उपयोग न करेंटयूबिंग को लगातार गीली घास से ढंकने पर इसकी उम्र भी बढ़ जाती है. सूर्य के प्रकाश से उसका जीवनकाल लगभग पांच वर्ष तक कम हो जाता है. हालाँकि, ढकी हुई टयूबिंग 20 साल तक चल सकती है

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नारियल पाम बीमा योजना

नारियल की खेती बारहमासी है, और इसमें जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, कीट और कीटों के हमले जैसे कई जोखिम शामिल हैं। कई बार यह प्रभावित क्षेत्र में खेती को पूरी तरह से मिटा सकता है और किसानों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा गठित एक सांविधिक निकाय, नारियल विकास बोर्ड, छोटे और मध्यम नारियल उत्पादकों को नुकसान से उबरने में मदद करने के लिए बीमा योजनाओं को लागू कर रहा है। इस लेख में, आइए नारियल ताड़ बीमा योजना (सीपीआईएस) के लाभों पर एक नजर डालते हैं।

योजना का उद्देश्ययोजना का उद्देश्य है:• प्राकृतिक और जलवायु संबंधी आपदाओं के खिलाफ नारियल उत्पादकों को उनके नारियल ताड़ के बीमा के लिए वित्तीय सहायता देना।• विशेष रूप से विनाशकारी वर्षों के दौरान नारियल उत्पादकों की आय को स्थिर करने में मदद करें।• जोखिम न्यूनीकरण सुनिश्चित करेंकिसानों के बीच नारियल ताड़ के पुनर्रोपण को प्रोत्साहित करें• नारियल की खेती को पुनर्स्थापित करें।

पात्रता की शर्तेंमानदंड जिसके आधार पर बीमा कवर किया जाता है ।

योजना के तहत हैं।

1. नारियल उत्पादकों के पास किसी भी संक्रामक क्षेत्र में कम से कम पाँच स्वस्थ अखरोट वाले ताड़ होने चाहिए

2. बौने और संकर खजूर के पेड़ जो 4-60 वर्ष की आयु वर्ग ।

3. 7-60 वर्ष की आयु के अंतर्गत आने वाले ताड़ के लंबे पेड़ कवरेज के लिए पात्र हैं।

4. अस्वस्थ व वृद्धावस्था के पात्र नहीं होंगेकवरेज।

5. आयु वर्ग के भीतर सभी स्वस्थ हथेलियां हैंबीमा के लिए पात्र।

6. संक्रामक क्षेत्र में वृक्षारोपण के आंशिक बीमा की अनुमति नहीं है।

7. बीमा कवरेज चौथे/सातवें वर्ष से 60वें वर्ष तक है।प्रीमियम और बीमित राशि तय करने के लिए बीमा को दो आयु समूहों में विभाजित किया गया है जो चार से पंद्रह वर्ष और सोलह और साठ वर्ष के बीच आते हैं।

योजना के अंतर्गत आने वाले जोखिमयोजना में शामिल जोखिम हैं:• तूफ़ान, ओलावृष्टि, आंधी, चक्रवात, बवंडर,बाढ़ और भारी बारिश• कीट का हमला जिसके कारण नारियल ताड़ को अपूरणीय क्षति होती है• जंगल की आग, झाड़ी की आग, आकस्मिक आग और बिजली जो हथेली को पूरी तरह से नष्ट कर देती हैभूकंप, सुनामी और भूस्खलन• गंभीर सूखा जो मृत्यु का कारण बन सकता है, हथेली को अनुत्पादक बना देता है• चोरी, युद्ध, विद्रोह क्रांति, प्राकृतिक विनाश या अपरो के कारण हुए नुकसान योजना के तहत कवर नहीं किए गए हैं।

योजना के तहत बीमा राशिहथेलियों के लिए बीमित राशि और देय प्रीमियम नीचे सूचीबद्ध आयु समूह के अनुसार अलग-अलग होते हैं।• 4 से 15 वर्ष के ताड़ के आयु वर्ग के लिए, बीमित राशि प्रति ताड़ 900 होगी और प्रति पौधा प्रति वर्ष देय प्रीमियम 9 रुपये है।16 से 60 वर्ष के बीच की आयु वर्ग के लिए, बीमित राशि प्रति पेड़ 1750 होगी और प्रति पौधा प्रति वर्ष देय प्रीमियम 14 रुपये है।

1.आवंटित बीमा राशि में से प्रीमियम आवंटनयोजना, प्रीमियम सब्सिडी साझा की जाएगी औरनिम्नानुसार भुगतान किया गया:नारियल विकास बोर्ड (सीडीबी) द्वारा 1.50%,

2. राज्य सरकार द्वारा 25%

3. किसान/उत्पादक शेष 25% का भुगतान करेंगे

4. प्रीमियम सब्सिडी राशि जारी की जाएगीभारतीय कृषि बीमा निगम लिमिटेड (एआईसी) को अग्रिम रूप से, जिसे तिमाही/वार्षिक आधार पर भर दिया जाएगा/समायोजित किया जाएगा।

किसी भी विवाद की स्थिति में और यदि राज्य सरकार प्रीमियम का 25% हिस्सा वहन करने के लिए सहमत नहीं है, तो किसानों/उत्पादकों को बीमा योजना में उनके ब्याज पर प्रीमियम का 10% भुगतान करना चाहिए।बीमा अवधिबोर्ड बीमा के प्रायोगिक चरण के दौरान सालाना प्रीमियम का संवितरण करता है। सभी पात्र किसान/किसान हर साल 31 मार्च तक नामांकन कर सकते हैं। मार्च के दौरान नामांकन विफल होने पर बाद के महीनों के दौरान साइन अप कर सकते हैं और योजना से लाभान्वित हो सकते हैं। जोखिम के मामले में, बीमा अगले महीने के पहले दिन से कवर किया जाएगा।

नियम और शर्तें :-

बोर्ड नारियल ताड़ के नुकसान का आकलन करता है और दावा जारी करने से पहले इसे रिकॉर्ड करता है। यदि किसी सन्निकट क्षेत्र में बीमित ताड़ की संख्या खतरों के कारण क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो सूचीबद्ध मानदंडों के तहत अनुमति दी जाएगी,• बीमित योजना के लिए दस से तीस खजूर के बीच के वृक्षों के लिए एक ताड़ के दावे की अनुमति होगी।• इकतीस और के बीच बीमित योजना के लिएसौ खजूर के पेड़, दो खजूर होंगेदावे के लिए अनुमत।• बीमित योजना के लिए सौ से अधिक, तो तीन ताड़ के दावे की अनुमति होगी।