पौराणिक साहित्यिक लेखों के अनुसार मिथिला नगर के शासक और माता-सीता के पिता राजा जनक एक विदित किसान हुआ करते थे। राजा जनक के समय में खेती मुख्य रूप से वैदिक पद्धतियों और पौराणिक आदान-प्रदान पर आधारित थी।
भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथो में से एक रामायण को हर कोई पढ़ता आ रहा है। रामायण कथा में एक ऐसे राजा का भी जिक्र किया गया है जिसने अपने खेतों में हल चलाया था। उसके बाद ही माता सीता का जन्म हुआ था. जी हाँ हम बात कर रहें है मिथिला शासक राजा जनक की। जिन्हें माता सीता के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि आखिर राजा जनक ने अपने खेतों में हल क्यों चलाया था? इस लेख में आज हम आपकों यही बताने जा रहें हैं। दरअसल पौराणिक साहित्यिक लेखों के अनुसार मिथिला नगर के शासक और माता सीता के पिता राजा जनक एक विदित किसान हुआ करते थे और वह भी खुद खेती किया करते थे। राजा जनक ने अपने राज्य में कृषि के क्षेत्र को विकसित करने हेतु कई तकनीकें अपनाई और किसानों से व्यक्तिगत रिश्ता बनानें के लिए वे खुद भी खेती किया करते थे।
अनाज, फल, सब्जियाँ उगाने में थे माहिर
राजा जनक विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती किया करते थे, जिनमें धान, अनाज, फल, सब्जियाँ आदि शामिल थीं। उन्होंने वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करके उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कृषि के नवाचारों को अपनाया था। इतना ही नहीं उन्होंने खेती की नीव को बड़ी ही बारीकी से समझा और वैदिक युग में कई ऐसी तकनीक ईजाद की जिनसे तत्कालीन किसान अपनी फसलों की रक्षा करने में सक्षम हो चुके थे।
राजा जनक शुद्ध बीज का संग्रह करने में थे माहिर
राजा जनक खेती व्यवस्था में सुगमता और प्रगति को मजबूती से ध्यान में रखा करते थे। वे बेहतरीन बीज उत्पादन तकनीकों को अपनाते थे। इतना ही नहीं वह बीज भण्डारण के लिए पूर्णतः प्राचीन तकनीक अपनाते थे। राजा जनक के समय में खेती मुख्य रूप से वैदिक पद्धतियों और पौराणिक आदान-प्रदान पर आधारित थी। वैदिक युग में धान, गेहूँ, जौ, बार्ली, तिल, मूँगफली, अदद, राजमांग, मूली, गाजर, शाक आदि प्रमुख फसलों की खेती हुआ करती थी।
हल चला कर जीता प्रजा का दिल
प्राचीन काल में किसानों की मुख्य आय स्रोत कृषि होती थी। उन्होंने धान, गेहूं, जौ, बाजरा, मूंगफली, तिल, आदि फसलें उगाई होती थीं. राजा जनक एक प्रभावशाली और बुद्धिमान राजा थे जो अपने राज्य के विकास और सुख-शांति के लिए प्रयासरत थे। हल चलाना एक कृषि प्रथा थी जिसके माध्यम से उन्होंने अपने भूमि को उपयोगी बनाया, जिससे उनके प्रजा को आवश्यक अन्न और संसाधन मिल सकें। इसके अलावा, हल चलाने से राजा जनक ने अपनी प्रजा के साथ सम्बंध भी मजबूत किए, जिससे उनके राज्य में एक अच्छा सामाजिक और आर्थिक संबंध बना रहा और इसी तरह अपने खेत में एक किसान कि भांति हल चलाने से बेटी के रूप में माता सीता की प्राप्ति हुई।
बुवाई से पहले देवताओं की पूजा का विशेष महत्त्व
राजा जनक ने अपनी कृषि क्षेत्र में विशेष दक्षता और गहरी समझ का उपयोग कर राज्य में कृषि के विकास में बड़ा योगदान दिया था। प्राचीन वैदिक और पौराणिक प्रमाणों के अनुसार राजा जनक के काल में कृषि और खेती संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। वैदिक साहित्य में खेती की शुरुआत करने से पहले देवताओं की पूजा और वृष्टि की जाती थी। इसके अलावा राजा जनक किसानों के लिए उपयुक्त खाद का भण्डारण भी करवाया करते थे। वैदिक काल में आदर्श समय पर सिंचाई को महत्वपूर्ण माना जाता था। इसके आलावा राजा जनक ने कीट-रोग नियंत्रण को लेकर औषधीय पौधों के उपयोग के बारे में किसानों को ज्ञान भी दिया था। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाता था कि उत्पादकता बढ़े और फसलों की गुणवत्ता उच्च हो।
किसानों के लिए विकसित किए कृषि संसाधन
राजा जनक ने जल संचय तकनीकों का उपयोग करके राज्य की सिंचाई व्यवस्था को विकसित किया। जिनमें तालाब, कुआं, बांध, नाले आदि का निर्माण करवाया गया था। राजा जनक जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए उचित खेती तकनीकों का उपयोग करते थे. किसानों की फसलों की सुरक्षा के लिए राजा जनक खेती में प्राकृतिक उपचार का प्रयोग करवाते थे। जो बीमारियों और कीटों के खिलाफ संघर्ष करने में मदद करते थे।
किसानों को मिलती थी बाज़ार की सुविधा
राजा जनक के शासन काल में बाजार व्यवस्था स्थानीय बाजारों पर आधारित हुआ करती थी. ये छोटे-मोटे बाजार शहरों या गांवों में स्थापित होते थे और विभिन्न फसलों और उत्पादों की व्यापारिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण होते थे। बाजार में व्यापारी की भूमिका महत्वपूर्ण थी। वे फसलों और उत्पादों को खरीदते और इसे उपभोक्ता तक पहुंचाते थे। व्यापारी बाजार में उत्पादों की खरीद-बिक्री करके लाभ कमाते थे। प्राचीन काल में व्यापार के माध्यम कच्चे और पके हुए उत्पादों की व्यापारिक आवश्यकताओं के आधार पर लेते थे। इसमें वस्त्र, खाद्य पदार्थ, गहने, सोने-चांदी, औषधियाँ, और अन्य आवश्यक वस्तुएं शामिल हो सकती थीं। व्यापारिक गतिविधियों के लिए मुख्य रूप से व्यापारिक मण्डल, हाट, या विशेष व्यापारिक स्थानों का उपयोग किया जाता था।
इस तरह, राजा जनक ने अपने समय में उत्पादक और पर्यावरण संरक्षण खेती की प्रगति के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया. राजा जनक किसान के महत्व की गहराई से अवगत थे, और वे उनके अनुभवों और दुःखों को समझते थे। इतना ही नहीं वह किसानों से जुड़ने के लिए स्वंय खेती किया करते थे और विभिन्न प्रयोग भी किया करते थे. उनकी खेती में रूचि और स्वयं खेती करना अति महत्वपूर्ण माना जाता था, जो वर्तमान में आधुनिक कृषि के नए आयामों की प्रेरणा देते हैं।
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