कुछ औषधीय पौधे इतने ज्यादा जरुरी होते हैं कि इनको हमेशा ही अपने पास रखना चाहिए। यह किसी भी समय आपकी जान बचाने में सहायक हो सकते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही पौधे के बारे में बताने जा रहे हैं तो आइये जानते हैं इस पौधे के बारे में पूरी जानकारी।
द्रोणपुष्पी (Dronapushpi) या लेपिडियम सतीवम (Lepidium sativum) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जो भारतीय औषधीय पद्धति और आयुर्वेद में प्रयोग होता है. इसे भारतीय सब्जियों के रूप में भी जाना जाता है. यह एक छोटा पौधा है जिसकी पत्तियाँ चौकोर आकार की होती हैं और पहले हरी और बाद में लाल रंग की होती हैं.
औषधीय पौधे के रूप में भी होता है उपयोग
द्रोणपुष्पी का उपयोग प्राकृतिक चिकित्सा में बहुत समय से किया जाता आयुर्वेदिक हृदय रोगों, दिल की कमजोरी, डायाबिटीज, मसूड़ों की समस्याओं, मस्तिष्क संबंधी समस्याओं, बालों की समस्याओं, पाचन संबंधी समस्याओं, गुर्दे की समस्याओं, श्वसन की समस्याओं, बुखार और सामान्य कमजोरी के उपचार के लिए किया जाता है।
इसमें हैं लाभकारी पोषक तत्व
द्रोणपुष्पी में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, जैसे कि प्रोटीन, विटामिन C, विटामिन ए, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फाइबर और फोलिक एसिड. इसमें अन्य प्रभावी तत्वों में विटामिन बी, कार्बोहाइड्रेट्स, और एंटीऑक्सीडेंट्स भी होते हैं. ये सभी तत्व संग्रहण करके द्रोणपुष्पी को एक प्राकृतिक औषधि बनाते हैं जिसके बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ होते हैं।
समस्या के अनुसार करें सेवन
द्रोणपुष्पी का सेवन करने के विभिन्न तरीके हो सकते हैं। इसे रस के रूप में पीने से श्वसन तंत्र को मजबूती मिलती है और फेफड़ों की समस्याओं को कम करता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है और पेट संबंधी समस्याओं को दूर करता है। इसे खाने में उपयोग करके बालों की समस्याओं को कम किया जा सकता है। द्रोणपुष्पी की चटनी, सलाद या सब्जी के रूप में भी सेवन किया जाता है।
सर्प दंश (Snakebite) के उपचार में भी है उपयोगी
द्रोणपुष्पी (Dronapushpi) का उपयोग सर्प दंश (Snakebite) के उपचार में भी किया जाता है। जब किसी विषैले सर्प द्वारा इंसान पर जलन, दर्द, सूजन, रक्तस्राव, छाती में दबाव, नीली त्वचा, चक्कर आना, सांस लेने में कठिनाई और न्यूरोलॉजिकल लक्षणों में बदलाव आने लगता है।
ऐसे में द्रोणपुष्पी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स, एंटीइंफ्लेमेटरी तत्व, और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने वाले तत्व शामिल होते हैं। इसके सेवन से संक्रमण के बढ़ने को रोकने, जलन और सूजन को कम करने और विष निकालने में मदद मिलती है।
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