दिल्ली और उत्तर भारत में टमाटर का भाव तेजी से बढ़ा है। इसकी कीमत 100 रुपये किलो तक पहुंच गई है. जानें भारत में सबसे ज्यादा कहां होता है टमाटर का उत्पादन।
टमाटर की कीमत में अचानक भारी उछाल देखने को मिल रहा है. दिल्ली और उत्तर भारत में इस समय टमाटर ((Tomato) का भाव 80 से 100 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। यह उछाल बीते दो दिनों में देखने को मिला है. इससे पहले, बाजार में टमाटर ((Tomato) की कीमत सिर्फ 25 से 30 रुपये प्रति किलो तक थी। मंडी में बढे भाव को लेकर नोएडा स्थित मंडी के सब्जी व्यापारी लालजी शाह का कहना है कि किसान ही उन्हें टमाटर ((Tomato) ज्यादा दाम में बेच रहे हैं। जिसकी वजह से उन्हें इसे महंगा बेचना पड़ रहा है।
इस साल यहां कम हुआ टमाटर का उत्पादन
वहीं, कृषि क्षेत्र से जुड़े विश्लेषकों ने कहा है कि पिछले दिनों देश के अधिकांश हिस्सों में देरी से बारिश व उच्च तापमान की वजह से टमाटर का उत्पादन बेहद कम हुआ था। जिसके चलते टमाटर की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिल रहा है. दरअसल, हरियाणा और यूपी में हर साल टमाटर का उत्पादन बेहतर होता रहा है। लेकिन इस साल खराब मौसम ने इन राज्यों में टमाटर की उपज को कम कर दिया है। जिसकी वजह से मंडियों में पर्याप्त मात्रा में टमाटर की पूर्ति नहीं हो पा रही है। ऐसे में सब्जी व्यापारी बंगलुरु व अन्य इलाकों से टमाटर मंगाने पर मजबूर हैं। आज हम बताएंगे कि भारत में सबसे ज्यादा टमाटर का उत्पादन कहां होता है।
यहां होता है सबसे ज्यादा उत्पादन
राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक, भारत में कुल सात राज्य टमाटर का सबसे अधिक उत्पादन करते हैं। जिनमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा, गुजरात और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। पूरे देश की 75 प्रतिशत टमाटर की उपज इन्हीं राज्यों में होती है। इसमें भी आंध्र प्रदेश नंबर वन पर काबिज है। यह राज्य अकेले लगभग 18 फीसदी टमाटर का उत्पादन करता है।
ऐसे होती है टमाटर की खेती
टमाटर की खेती के लिए भूमि की पीएच मान 6-7 होना चाहिए. इसके बाद, इसके बीजों को कुछ दूरी पर एक-दूसरे से अलग करके लगाएं ताकि पर्याप्त उपज हो सके। टमाटर के पौधों को बढ़ने के लिए उचित प्रकाश और नियमित रूप से पानी की आवश्यता होती है। वहीं, सबसे जरुरी बात यह है कि टमाटर के लिए उच्च तापमान का ध्यान देना आवश्यक है। अगर तापमान 35 डिग्री सेलसियस से अधिक हो जाता है तो इसकी प्रगति कम हो सकती है. ज्यादा तापमान के चलते ज्यादातर मामलों में पौधे खराब हो जाते हैं।
अगर आप बार-बार पेट की परेशानी का सामना करते रहते हैं, तो एक बार यह लेख जरूर पढ़ें। ताकि आप इस दिक्कत से मुक्ति पा सकें।
अक्सर शादी व पार्टी में अधिक खाना खाने के बाद कुछ लोगों के पेट खराब हो जाता है. कुछ लोगों को तो कब्ज जैसी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है. कब्ज की दिक्कत के चलते लोगों का बैठना व उठना तक मुश्किल हो जाता हैं।
ऐसे में व्यक्ति इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए दवा व अन्य कई चीजों का सेवन करता है, जो बाजार में उपलब्ध होती हैं. लेकिन फिर भी उन्हें इससे पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिलती है. लेकिन आज हम जिस चीज के बारे में बताने जा रहे हैं, उसका सेवन करने मात्र से ही आपको कब्ज से व पेट की जलन से पूरी तरह से मुक्ति मिल जाएगी।
सहजन का जूस(Drumstick juice)
सहजन के नाम से तो ज्यादातर लोग प्रचित होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे खाने से जितने फायदे मिलते हैं, ठीक उसी तरह से इसके जूस पीने से भी व्यक्ति के पेट से संबंधित कई बीमारी दूर हो जाती हैं. सहजन की फली का जूस जिद्दी से जिद्दी कब्ज की परेशानी से मिनटों में मुक्ति दिलाता है. आइए अब इसके जूस के फायदे के बारे में भी थोड़ा जान लेते हैं।
सहजन जूस बनाने की विधि (Drumstick juice recipe)
सबसे पहले आप सहजन की फलियों को सही तरीके से तोड़ लें और फिर इसे अच्छे से पानी से साफ करें. फिर आपको इसे गर्म पानी में बोइल करना है. इसके बाद आपको इसे मिक्सी मशीन में डालकर जूस बना लेना है. आप चाहे तो इसमें अपने स्वाद के अनुसार कुछ चीजों को भी शामिल कर सकते हैं. जैसे कि चीनी, नमक और पानी आदि लेकिन यह सब आपको बहुत ही थोड़ी मात्रा में डालनी हैं।
कब्ज से छुटकारा
अगर आप सहजन का जूस पीते हैं, तो आपको बार-बार होने वाली कब्ज की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। ताकि आप शादी-पार्टी में बने खाने का आनंद आसानी से उठा पाएं।
डायबिटीज (Diabetes)
यह जूस किसी आयुर्वेदिक औषधि से कम नहीं है। दरअसल, डॉक्टर भी सहजन की फली का जूस पीने की सलाह देते हैं, क्योंकि इसे डायबिटीज के रोगियों को लाभ मिलता है. यह शरीर में ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखने में मदद करता है।
हड्डियां मजबूत
इस जूस को नियमित रुप से पीने से शरीर की हड्डियां मजबूत बनती हैं। अगर किसी व्यक्ति की हड्डिया कमजोर हैं, तो वह इस जूस का सेवन जरूर करें. क्योंकि इस जूस में एंटी-इंफ्लामेंट्री गुण व अन्य कई प्रोटीन पाएं जाते हैं।
अगर आप खेती करने की सोच रहे हैं तो ऐसे में आप ज्वार की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, यह फसल आपको अच्छी सेहत के साथ मोटा मुनाफा भी देगी।
ज्वार मुख्य रूप से खरीफ की एक प्रमुख मिलैट फसलों में से एक है। जिसे किसान भाई खाने के साथ-साथ चारे एवं दाने के रूप में उगाते हैं तथा ज्वार को मोटे अनाजों का राजा भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में ज्वार की फसल मुख्य रूप से चारे के लिये उगाई जाती है। ज्वार का इस्तेमाल चारे के रूप में किया जाता है। जानवरों को हरे चारे एंव सूखे चारे तथा साइलेज बनाकर खिलाया जाता है। इस प्रकार ज्वार जानवरों का महत्वपूर्ण एंव पौष्टिक चारा है। गेहूं की तरह ज्वार को भी आटे के रूप में प्रयोग करते हैं। ज्वार में शर्करा की काफी मात्रा पाई जाती है तथा ज्वार की अच्छी फसल के लिये मृदा का पी.एच. मान 5.5-8.5 होना चाहिये।
जलवायुः-ज्वार उष्ण जलवायु की फसल है परन्तु शीघ्र पकने वाली जातिया ठंडे प्रदेशों में भी गर्मीं के दिनों में उगाई जा सकती हैं। 25-30 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर उचित नमी की उपस्थिति में ज्वार की वृद्धि सबसे अच्छी होती है। फसल में बाली निकलते समय 30 डिग्री सेल्सियस सें अधिक तापक्रम, फसल के लिये हानिकारक होता है।
खेत का चुनाव तथा तैयारीः- बलुई दोमट अथवा ऐसी भूमि जहां जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो, ज्वार की खेती के लिये उपयुक्त होती है। मिटृी पलटने वाले हल से पहली जुताई तथा अन्य दो-तीन जुताई देशी हल से करके खेत को भाली भांति तैयार कर लेना चाहियें।
बुवाई का समयः-
खरीफ ज्वारः- ज्वार की बुवाई हेतु जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय अधिक उपयुक्त है।
रबी ज्वारः- रबी के मौसम में ज्वार की खेती महाराष्ट्र, कर्नाटक व आन्ध्रप्रदेश में की जाती है। यहां पर बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर से नवम्बर तक है।
उन्नतशील प्रजातियां:- ज्वार की संकर किस्मों में सी.एस.एच.-1 से सी.एस.एच.-8 तक तथा उच्च उपज वाली किस्में सी.एस.वी.-1 से सी.एस.एच.-7 तथा उ.प्र. में मऊ टा-1, 2, वर्षा, सी.एस.वी.-13, 15 एंव संकर सी.एस.एच.-9, 14 तथा रबी चारे के लिये एम.35-1 तथा चारे वाली किस्में एम-35-1, पूसा चरी, राजस्थान चरी, एस.एस.जी.-888 मीठी सुडान उपयुक्त किस्म है।
बीज की मात्राः-दाने के खेत की बुआई के लिए किसान भाईयों को 9-12 किलोग्राम/प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है तथा चारे के खेत की बुवाई के लिये किसान भाईयों को 35-40 किलोग्राम/प्रति हेक्टेयर है।
बीजोपचारः-किसान भाईयों का बोने से पूर्व एक किग्रा0 बीज को एक प्रतिशत पारायुक्त रसायन या थीरम के 2.5 ग्राम से शोधित कर लेना चाहियें। जिससे अच्छा जमाव होता है एवं कंडुवा रोग नहीं लगता है। दीमक के प्रकोप से बचने हेतु 25 मि0लीटर प्रति किग्रा0 बीज की दर से क्लोरोपायरीफास दवा से शोधित करना चाहियें।
पंक्तियों एंव पौधों की दूरीः-ज्वार की फसल की बुआई किसान भाईयों को 45 सेमी0 लाइन से लाइन की दूरी पर हल के पीछे करनी चाहियें। पौधे से पौध की दूरी 15-20 सेमी0 होनी चाहिये।
उर्वरक एंव खाद प्रबन्धः-किसान भाईयों को उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना श्रेयस्कर होगा। उत्तम उपज के लिये संकर प्रजातियों के लिये नत्रजन 80 फॅास्फारेस 40 एवं पोटाश 20 किग्रा0 एवं अन्य प्रजातियों हेतु नत्रजन 40 फास्फारेस 20 एवं पोटाश 20 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिये। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फोस्फोरस एंव पोटाश की पूरी मात्रा खेत में बुवाई के समय कूंडों में बीज के नीचे डाल देनी चाहियें तथा नत्रजन का शेष भाग बुवाई के लगभग 30-35 दिन बाद खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहियें।
सिंचाई प्रबन्धः-फसल में बाली निकलते समस और दाना भरते समय यदि खेत में नमी कम हो तो सिंचाई अवश्य कर दी जाए अन्यथा इसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव दिखाई पड़ता है।
खरपतवार नियन्त्रणः-ज्वार की फसल में किसान भाईयों को तीन सप्ताह बाद निराई एवं गुडाई कर देनी चाहियें। यदि खेत में पौधों की संख्या अधिक हो तो थिनिंग कर दूरी निश्चित कर ली जाय।
रसायन नियन्त्रण के लिये एट्राजिन 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के तुरन्त बाद 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव कर देना चाहियें।
कीट नियन्त्रणः- ज्वार की प्ररोह मक्खी (शूट फलाई):- यह घरेलू मक्खी से छोटे आकार की होती है। जिसका शिशु (मैगेट) जमाव के प्ररम्भ होते ही फसल को हानि पहुंचाता है। इसके उपचार हेतु मिथाइल ओडिमेटान 25 ई.सी. 1 लीटर अथवा मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिडकाव करें।
तनाछेदक कीटः- इस कीट की सुंडियां तनें में छेद करके अन्दर ही अन्दर खाती रहती है। जिससे बीज का गोभ सूख जाता है। इसके उपचार हेतु क्विनालफास 25 प्रतिशत ई.सी. 1.50 लीटर को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।
ईयर हेड मिजः- प्रौढ मिज लाल रंग की होती है और यह पुष्प पत्र पर अण्डे देती है। लाल मैगेट्स दानों के अन्दर रहकर उसका रस चूस लेती है, जिससे दाने सूख जाते हैं। इसके उपचार के लिये किसान भाई इन्डोसल्फान 35 ई.सी. का 1.5 लीटर अथवा कार्बराइल (50 प्रतिशत घूलनशील चूर्ण) 1.25 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।
ईयर हेड कैटर पिलरः-इसकी गिडारें मुलायम दाने को खाकर नष्ट कर देती हैं तथा भुटृों में जाला बना देती है। इस रोग के उपचार के लिये इन्डोसल्फान 35 ई.सी का 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का घोल बनाकर छिडकाव करें।
ज्वार का माइटः-यह बहुत ही छोटा होता है, जो पत्तियों की निचली सतह पर जाले बुनकर उन्ही के अन्दर रहकर रस चूसता रहता है। ग्रसित पत्ति लाल रंग की दिखाई पडनें लगती है तथा सूख जाती है। इस रोग के रोकथाम के लिये किसान भाईयों को डाइमेथोएट 30 ई.सी. का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा डायजिनान 20 ई.सी का 1.5 लीटर से 2 लीटर प्रति हेक्टेयर छिडकाव करें।
फसल की कटाईः-ज्वार के पौधे 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है। जब पौधों पर लगी पत्तिया सूखी दिखाई देने लगे उस दौरान पौधों की कटाई कर लें। इसके फसल की कटाई दो से तीन बार तक की जा सकती है। ज्वार के पौधों को भूमि की सतह के पास से काटा जाता है तथा फसल कटाई के पश्चात् दानों को अलग कर लिया जाता है, और उन्हें ठीक से सूखा लिया जाता है। इसके बाद मशीन के माध्यम से दानों को अलग कर लें।
फसल की पैदावार और लाभः-एक हेक्टेयर के खेत से हरे चारे के रूप में 600 से 700 क्विंटल तक फसल प्राप्त हो जाती है, तथा सूखे चारे के रूप में 100 से 150 क्विंटल का उत्पादन मिल जाता है जिसमे से 25 क्विंटल तक ज्वार के दाने मिल जाते है। ज्वार के दानों का बाजारी भाव ढाई हजार रूपए प्रति क्विंटल होता है। इस हिसाब से किसान भाई ज्वार की एक बार की फसल से 60 हजार रूपए तक की कमाई प्रति हेक्टेयर के खेत से कर सकते हैं।
किसानों की सुविधा और उनकी उन्नति के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर कृषि मशीनें खरीदने पर सब्सिडी उपलब्ध करवाती हैं। इस लेख में हम अलग-अलग राज्यों द्वारा कृषि यंत्र पर मिलने वाली सब्सिडी पर चर्चा करेंगे और बतायेंगे कि किसानों को किस राज्य में कितने प्रतिशत सब्सिडी उपलब्ध करवाई जाती है।
कृषि मशीनरी किसानों के लिए काम का बोझ कम करने और उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन मशीनों के महत्व को देखते हुए भारत के कई राज्यों में किसानों को कृषि यंत्र खरीदने पर सब्सिडी दी जाती है। यहां हम विभिन्न राज्यों में कृषि मशीनरी पर दी जा रही सब्सिडी की जानकारी दे रहे हैं। जिससे किसानों को आधुनिक तकनीकों को अपनाने और उनकी फसल की खेती को बढ़ाने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है।
कृषि यंत्र पर राज्यवार सब्सिडी इस प्रकार हैं-
1. तमिलनाडु
तमिलनाडु का कृषि मशीनीकरण कार्यक्रम विभिन्न मशीनों के लिए सब्सिडी प्रदान करता है. जिसमें पावर टिलर, धान ट्रांस-प्लांटर्स, रोटावेटर, सीड-ड्रिल, जीरो-टिल सीड फर्टिलाइजर ड्रिल, पावर स्प्रेयर और ट्रैक्टर द्वारा संचालित मशीनें जैसे स्ट्रॉ बेलर, पावर वीडर और ब्रशकटर्स शामिल हैं. सामान्य किसानों को 40% सब्सिडी मिलती है, जबकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसानों को 50% सब्सिडी मिलती है।
2. तेलंगाना
तेलंगाना की यंत्र लक्ष्मी योजना ट्रैक्टर खरीद पर 50% सब्सिडी प्रदान करती है. कृषि मशीनीकरण योजना के तहत, यह अन्य कृषि उपकरण खरीदने के लिए भी सहायता प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसान 100% सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं. योग्य स्नातक बीमा और संपार्श्विक सुरक्षा (collateral security) के साथ एसबीआई से ऋण के लिए आवेदन कर सकते हैं।
3. महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में फार्म मशीनीकरण योजना के तहत छोटे, सीमांत और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसानों को ट्रैक्टर के लिए 35% और अन्य मशीनों के लिए 50% सब्सिडी प्रदान किया जाता है. सामान्य श्रेणी के किसानों को ट्रैक्टर के लिए 25% और अन्य मशीनों के लिए 40% अनुदान मिलता है. ऋण 5-9 वर्ष की पुनभुगतान अवधि के साथ सावधि ऋण के रूप में उपलब्ध हैं और 1 लाख रुपये से कम के ऋण के लिए किसी मार्जिन की आवश्यकता नहीं है।
4. उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश की कृषि यंत्र योजना ट्रैक्टर खरीद के लिए लागत का 25% या 45,000 रुपये (जो भी कम हो) की सब्सिडी प्रदान करता है. इसके लिए प्रथमा बैंक महिंद्रा, स्वराज और सोनालिका के सहयोग से ट्रैक्टर ऋण प्रदान करता है।
5. राजस्थान और हरियाणा
राजस्थान और हरियाणा दोनों ही फार्म मशीनीकरण योजना के तहत काम करते हैं. इसके लिए हरियाणा में सर्व हरियाणा बैंक और राजस्थान में एयू बैंक ऋण प्रदान करते हैं. योजनाएं उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाने को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
6. गुजरात
गुजरात में सरकार सामान्य श्रेणी के लिए 25% से अधिक और विशेष श्रेणियों के लिए 35% की ट्रैक्टर सब्सिडी प्रदान करती है. कृषि मशीनरी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं. इसके लिए गुजरात ग्रामीण बैंक से ऋण आसानी से मिलती हैं।
7. कर्नाटक
कर्नाटक राज्य सरकार का उद्देश्य खेती में समयबद्धता, उत्पादकता और कम श्रम को बढ़ावा देना है. इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, सरकार “उबर फॉर एग्रीकल्चर सर्विसेज” योजना के माध्यम से किराये के आधार पर आवश्यक मशीनरी प्रदान करने की योजना बना रही है. किसान वीएसटी टिलर्स, जॉन डीरे और महिंद्रा जैसे सहयोगी ऑटोमोबाइल निर्माताओं से मशीनरी तक पहुंच सकते हैं. ऋण 9 वर्ष तक की चुकौती अवधि के साथ, कृषि सावधि ऋणों के समान ब्याज दर पर उपलब्ध हैं।
8. केरल
केरल सरकार ने फार्म मशीनीकरण प्रणाली (FMS) की शुरुआत की है, एक सॉफ्टवेयर प्रणाली जो मशीनरी वितरण में पारदर्शिता सुनिश्चित करती है. ट्रैक्टर की खरीद 25% सब्सिडी के लिए पात्र हैं, जबकि अन्य उपकरण जैसे कि टिलर और रोटावेटर के लिए ऋण उपलब्ध हैं. गर्भावस्था अवधि को छोड़कर, ऋण चुकौती अवधि 5 से 10 वर्ष तक होती है।
9. आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश में ट्रैक्टरों का वितरण रायथु राधम योजना के तहत किया जाता है. योग्यता मानदंड के लिए किसान कम से कम एक एकड़ जमीन का मालिक होना चाहिए. इसके लिए आईसीआईसीआई बैंक 5 साल की चुकौती समय सीमा के साथ ऋण प्रदान करता है।
10. मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश मैक्रो-मैनेजमेंट स्कीम के माध्यम से छोटे ट्रैक्टरों के लिए सब्सिडी प्रदान करता है. यह योजना, राज्य और केंद्र सरकारों के सहयोग से किसानों को उनकी मशीनरी खरीद में सहायता करने के लिए ऋण भी उपलब्ध कराता हैं।
11. असम
असम में मुख्यमंत्री समग्र ग्राम्य उन्नयन योजना (CMSGUY) ट्रैक्टरों के लिए 70% (5.5 लाख रुपये तक) की सब्सिडी प्रदान करती है. पात्र किसानों के पास न्यूनतम 2 एकड़ भूमि होनी चाहिए. इसका 8-10 किसानों के समूह भी लाभ उठा सकते हैं. एसबीआई मशीनों की खरीद के लिए ऋण प्रदान करता है।
12. ओडिशा
ओडिशा की पूंजी निवेश और फार्म मशीनीकरण योजनाएं टिलर के लिए 50% सब्सिडी और ट्रैक्टर के लिए 40% सब्सिडी प्रदान करती हैं. ओडिशा ग्राम्य बैंक कृषि वाहनों की खरीद के लिए ऋण प्रदान करता है, जो 15% मार्जिन के साथ लागत का 85% कवर करता है।
13. पंजाब
पंजाब में पंजाब नेशनल बैंक से ऋण उपलब्ध होने के साथ-साथ किसान दोस्त वित्त योजना (Kisan Dost Finance scheme) भी चलाई जा रही है. इन पहलों का उद्देश्य पंजाब में किसानों को कृषि मशीनरी और उपकरण खरीदने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
14. पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल एक एचडीएफसी ऋण और एक ट्रैक्टर प्लस सुरक्षा योजना प्रदान करता है. ये कार्यक्रम पश्चिम बंगाल में ट्रैक्टर और अन्य कृषि मशीनरी की खरीद के लिए किसानों को वित्तीय सहायता और बीमा कवरेज प्रदान करते हैं।
15. अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश कृषि मशीनरी की खरीद में किसानों का समर्थन करने के लिए आईसीआईसीआई बैंक के माध्यम से ऋण प्रदान करता है. ये ऋण राज्य में किसानों को उपकरणों की खरीद के लिए आवश्यक धन का उपयोग करने में सक्षम बनाते हैं, जिससे यंत्रीकृत कृषि पद्धतियों की सुविधा मिलती है।
16. हिमाचल प्रदेश और मेघालय
हिमाचल प्रदेश और मेघालय भी कृषि मशीनीकरण योजना और एसएमएएम (कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन) योजना का पालन करते हैं. इन पहलों का उद्देश्य कृषि में आधुनिक मशीनरी और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देना है, जिससे इन राज्यों में किसानों को अपनी कृषि पद्धतियों और उत्पादकता को बढ़ाने में सक्षम बनाया जा सके।
इन राज्यों की पहल कृषि क्षेत्र में उन्नत मशीनरी और प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता और समर्थन प्रदान करती हैं। इन सब्सिडी और ऋणों का लाभ उठाकर, देश भर के किसान अपने कृषि कार्यों को आसानी से कर सकते हैं। साथ ही कृषि में उत्पादकता और स्थिरता बढ़ाने में योगदान कर सकते हैं।
नई दिल्ली: देश के किसानों की बदहाली और आत्महत्या की खबरें आप बहुत पढ़ते होंगे। हम आपको अपनी खेती किसानी सीरीज में उन किसानों के बारे में बता रहे हैं जो अपने इनोवेटिव आइडिया और आधुनिक तकनीक की मदद से काफी कमाई कर रहे हैं। आज हम आपको बिहार के समस्तीपुर के एक किसान सुधांशु कुमार की कहानी बता रहे हैं। सुधांशु कुमार अपने आसपास के ही नहीं बल्कि देश के करोड़ों किसानों के लिए एक मिसाल बन गए हैं।
सुधांशु आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए देश भर में मशहूर हैं।
अपने तकनीक की मदद से सुधांशु अपने बगीचे में तापमान नियंत्रित रखने में मदद हासिल करते हैं। 70 बीघे में लगे फसल की निगरानी, सिंचाई और खेत में लगे पौधों तक पानी-खाद पहुंचाने के लिए सुधांशु कुमार ने अपने खेत को वायरलेस ब्रॉडबैंड इंटरनेट से जोड़ दिया है।
खेत में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं जिसे स्मार्ट फोन और लैपटॉप से जोड़कर सिंचाई प्रणाली को कहीं से भी नियंत्रित किया जा सकता है। अपने खेत में समय पर सिंचाई और आधुनिक तकनीक से खाद देकर इलाके के किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं।
सुधांशु कुमार आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए देश भर में मशहूर हो रहे हैं। 70 बीघे के खेत में उन्होंने 27000 फलों के पेड़ लगाए हैं। इनमें आम, लीची, अमरूद, केला, मौसमी, शरीफा और नींबू के पेड़ शामिल है।
प्रयोग के रूप में सुधांशु में जामुन, बेर, बेल, कटहल, चीकू और मीठी इमली की भी खेती कर रहे हैं। लीची की बिक्री से सुधांशु 22 लाख रुपए सालाना कमाते हैं. आम का बाग उन्होंने 13 लाख रुपए में बेचा है। इसी तरह 16 बीघा में केले लगाए थे। छठ पूजा से ठीक पहले 35 लाख रुपए के केले की बिक्री हुई थी। कुल मिलाकर देखा जाए तो आधुनिक तकनीक से फल की खेती करने में किसान को काफी कमाई हो सकती है।
किसान सुधांशु कुमार ने खेती के साथ ही कड़कनाथ मुर्गी पालन शुरू किया है। इसके अलावा वे डेरी का भी कारोबार करते हैं. अपने खेत में ही कुमार ने कड़कनाथ मुर्गे के 500 चूजे पाले हैं। अलग-अलग नस्ल की गाय को पाल कर वे डेयरी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।
सुधांशु कुमार को उन्नत खेती के लिए कई अवार्ड मिल चुके हैं। सुधांशु कुमार ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद केरल में टाटा टी के गार्डन में असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी की, लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और नौकरी छोड़कर गांव चले आए। इसके बाद उन्होंने आधुनिक तरीके से खेती शुरू की। सुधांशु साल 1990 से खेती कर रहे हैं और आर्थिक लाभ बढ़ाने के लिए सुधांशु हमेशा वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के विशाल माने रोज सुबह अपने हाइड्रो पोनिक फार्म में सब्जियां लगाते नजर आते हैं। सब्जियों के पौधे को विशाल बिना मिट्टी वाली खेती के जरिए एक ग्रीन हाउस में उगाते हैं। विशाल ने अपने छोटे से हाइड्रो पोनिक फार्म में 50 अलग-अलग तरह की पत्तियों वाली सब्जी लगाई हुई है। विशाल माने ने अपने अपने साथ देश दुनिया के तमाम किसानों को हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के लिए ट्रेन करने के हिसाब से जगदंबा हाइड्रोपोनिक्स नाम की एक कंपनी बनाई है।
सब्जियों के पौधे को विशाल बिना मिट्टी वाली खेती के जरिए एक ग्रीन हाउस में उगाते हैं।
जगदंबा हाइड्रोपोनिक्स एंड एग्रीकल्चर सिस्टम नाम की यह कंपनी देश के किसी भी हिस्से में किसानों को बिना मिट्टी की खेती से संबंधित तकनीक, उपकरण और पूरा सेटअप लगाने में मदद करती है।
बिना मिट्टी के की जा रही खेती देश के कई इलाके के किसानों के लिए अब भी एक कौतूहल की तरह है। विशाल माने लोगों के पास जाकर ग्रीन हाउस और हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के फायदे समझा कर उन्हें अपना सेटअप बनाने में मदद करते हैं।
हाइड्रोपोनिक खेती या हाइड्रोकल्चर तरीके से खेती करके तेलंगाना के किसान हरिशचंद्र रेड्डी आज करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं। शुरुआत में उन्होंने हाइड्रोपोनिक खेती का प्रशिक्षण लिया और इसकी तकनीक का गहन अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने छह माह तक हाइड्रोपोनिक खेती के तरीके को समझा और इसके बाद हाइड्रोपोनिक तरीके से खेती करना शुरू किया।
किसान हरिशचंद्र रेड्डी ने कहा कि वह सस्ती कीमत पर लोगों को फल-सब्जियां खिलाना चाहते थे। बाजार में सब्जियों की मांग को देखते हुए उनका ध्यान हाइड्रोपोनिक खेती की ओर गया। उन्होंने कई जगह पर जाकर इसके बारे में जानकारी और प्रशिक्षण लेकर हाइड्रोपोनिक खेती करना शुरू किया।
शुरुआत में हाइड्रोपोनिक या प्राकृतिक खेती करने में लागत काफी आई, लेकिन उसके बाद लागत कम होती गई और उपज बढ़ती रही। इसका परिणाम यह हुआ कि आज वे इस प्रकार की खेती करके करीब 3 करोड़ तक की कमाई कर रहे हैं। ग्रीन हाउस हाइड्रोपोनिक तकनीक स्थापित करने में प्रति एकड़ के क्षेत्र में करीब 50 लाख रुपए तक का खर्च आता है।
हाइड्रोपोनिक एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब है बिना मिट्टी के सिर्फ पानी के जरिए खेती। यह एक आधुनिक खेती है, जिसमें पानी का इस्तेमाल करते हुए जलवायु को नियंत्रित करके खेती की जाती है। पानी के साथ थोड़े बालू या कंकड़ की जरूरत पड़ सकती है। इसमें तापमान 15-30 डिग्री के बीच रखा जाता है और आर्द्रता को 80-85 फीसदी रखा जाता है। पौधों को पोषक तत्व भी पानी के जरिए ही दिए जाते हैं।
हाइड्रोपोनिक फ़ार्मिंग में खेती पाइपों के जरिए होती है. इनमें ऊपर की तरफ से छेद किए जाते हैं और उन्हीं छेदों में पौधे लगाए जाते हैं. पाइप में पानी होता है और पौधों की जड़ें उसी पानी में डूबी रहती हैं। इस पानी में वह हर पोषक तत्व घोला जाता है, जिसकी पौधे को जरूरत होती है।
यह तकनीक छोटे पौधों वाली फसलों के लिए बहुत अच्छी है. इसमें गाजर, शलजम, मूली, शिमला मिर्च, मटर, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूजा, अनानास, अजवाइन, तुलसी, टमाटर, भिंडी जैसी सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं।
कीट नियंत्रण एक बार का उपचार है जबकि कीट प्रबंधन कीट के आने से पहले किया जा सकता है। इस लेख में हमने कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन के बीच विस्तार से अंतर बताया है।
खेती-बाड़ी में अक्सर दो शब्द कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन सुनने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते है कि इन दोनों में बहुत ही बड़ा अंतर होता है। कीट से संबंधित इन दोनों ही शब्दों का मतलब इतना बड़ा होता है कि इनके इस्तेमाल से ना सिर्फ आपकी फसलों पर बल्कि आने वाले कृषि क्षेत्र पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। ऐसे में हम आपके लिए इन दोनों में अंतर सहित इनके महत्व पर जानकारी साझा कर रहे हैं।
कीट नियंत्रण
कीट नियंत्रण कीट में शामिल प्रजातियों का प्रबंधन है। यह खेत में मौजूद अवांछित कीड़ों को प्रबंधित करने, नियंत्रित करने, कम करने और हटाने की प्रक्रिया है। कीट नियंत्रण दृष्टिकोण में एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) शामिल हो सकता है। कृषि में कीटों को रासायनिक, यांत्रिक, सांस्कृतिक और जैविक तरीकों से दूर रखा जाता है। बुवाई से पहले खेत की जुताई और मिट्टी की जुताई करने से कीटों का बोझ कम होता है और फसल चक्रण से बार-बार होने वाले कीट प्रकोप को कम करने में मदद मिलती है। कीट नियंत्रण तकनीक में फसलों का निरीक्षण, कीटनाशकों का प्रयोग और सफाई जैसी कई बातें शामिल हैं।
कीट नियंत्रण का महत्व
मानव स्वास्थ्य का संरक्षण: यह मच्छरों, टिक्स और कृन्तकों जैसे कीटों द्वारा होने वाली बीमारियों के प्रसार को कम करके मानव स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करता है।
संपत्ति का संरक्षण: कीटों को नियंत्रित करना संरचनाओं, फसलों और संग्रहीत उत्पादों को नुकसान से बचाता है, संपत्ति को संक्रमण से संबंधित विनाश से बचाता है।
खाद्य सुरक्षा: कृषि सेटिंग्स में फसल उत्पादकता को बनाए रखने और भोजन की सुरक्षा व गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कीट नियंत्रण उपाय आवश्यक हैं।
आर्थिक प्रभाव: प्रभावी कीट नियंत्रण क्षतिग्रस्त फसलों और संपत्ति की क्षति के कारण होने वाली वित्तीय हानियों को रोक सकता है।
कीट प्रबंधन
कीट प्रबंधन को अवांछित कीटों को खत्म करने और हटाने की एक विधि के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें रासायनिक उपचारों का उपयोग शामिल हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। प्रभावी कीट प्रबंधन का उद्देश्य कीटों की संख्या को एक सीमा तक कम करना है।
कीट प्रबंधन का महत्व
रसायनों पर कम निर्भरता: यह जैविक नियंत्रण और सांस्कृतिक प्रथाओं जैसे वैकल्पिक तरीकों के उपयोग पर जोर देता है, रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करता है और उनके संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम करता है।
पर्यावरणीय स्थिरता: कीट प्रबंधन पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और स्थिरता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
एकीकृत कीट प्रबंधन: कीट प्रबंधन में निगरानी, निवारक उपाय और आवश्यक होने पर कीटनाशकों का लक्षित उपयोग शामिल है, जिससे अधिक प्रभावी और टिकाऊ कीट नियंत्रण होता है।
दीर्घकालिक रोकथाम: कीट प्रबंधन का उद्देश्य कीट समस्याओं के मूल कारणों को दूर करना और भविष्य में होने वाले संक्रमण को कम करने के लिए निवारक उपायों को लागू करना है, जिससे लगातार और गहन कीट नियंत्रण उपचार की आवश्यकता कम हो जाती है।
ट्रैक्टर अलग-अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न फिचर्स के साथ आता है. इस लेख में हम भारत में वर्ष 2023 के पांच सबसे महंगे ट्रैक्टरों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है. इन ट्रैक्टरों ने अपनी प्रभावशाली विशेषताओं, विश्वसनीयता और प्रतिस्पर्धी कीमतों के कारण लोकप्रियता हासिल की है।
कृषि क्षेत्र सहित विभिन्न कार्यों को करने में ट्रैक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऐसे में हम अपने लेख के जरिए अलग-अलग ट्रैक्टरों की जानकारी लेकर आते रहते हैं. इसी कड़ी में हम आपके लिए इस साल के भारत के 5 सबसे महंगे ट्रैक्टरों की जानकारी लेकर आए हैं. इन ट्रैक्टरों को भारी भार को कुशलतापूर्वक संभालने और बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है. अधिक जानकारी के लिए लेख पढ़ना जारी रखें।
स्वराज 855 एफई (Swaraj 855 FE)
स्वराज 855 एफई एक शक्तिशाली ट्रैक्टर है जो एक मजबूत इंजन और उन्नत सुविधाओं से लैस है. यह एक 3-सिलेंडर इंजन द्वारा संचालित है, जो विभिन्न कृषि कार्यों के लिए कुशल प्रदर्शन और विश्वसनीय बिजली उत्पादन प्रदान करता है. स्वराज ट्रैक्टर के अटैचमेंट्स को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है, जो किसानों के उत्पादकता बढ़ाने के लिए कल्टीवेटर, हल और हार्वेस्टर जैसे उपकरणों को आसानी से जोड़ने और उपयोग करने में मददगार है. अगर इसके वजन की बात करें तो स्वराज 855 एफई का कुल वजन 2440 किलोग्राम है जो भारी भरकम वजन उठाने में भी सक्षम है. ट्रैक्टर में 8 आगे और 2 रिवर्स गियर हैं, जो कई दिशाओं में घूमने के लिए सक्षम है. इसके अलावा इसमें पावर स्टीयरिंग की सुविधा है, जो सहज गतिशीलता प्रदान करता है और लंबे समय तक उपयोग के दौरान थकान को कम करता है. भारत में स्वराज 855 FE की कीमत 7.90-8.40 लाख रुपये के बीच है।
स्वराज 744 एफई (Swaraj 744 FE)
स्वराज 744 एफई तेल में डूबे ब्रेक वाला 48 एचपी ट्रैक्टर है. स्वराज 744 FE ट्रैक्टर को विभिन्न अटैचमेंट्स को समायोजित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो इसे विभिन्न कृषि कार्यों के लिए बहुमुखी बनाता है।
इस स्वराज ट्रैक्टर का अधिकतम कुल वजन 2345 किलोग्राम है जो संचालन के दौरान स्थिरता प्रदान करता है और विभिन्न इलाकों में आसानी से नेविगेट करने के लिए पर्याप्त फुर्तीला रहता है. ये ट्रैक्टर 8F+2R के साथ आता है, जिससे ऑपरेटर आसानी से कई दिशाओं में जा सकते हैं. इसमें 3 चरणों वाले वेट एयर क्लीनर के साथ 2000 इंजन रेटेड RPM है. स्वराज 744 एफई ट्रैक्टर में पावर स्टीयरिंग है, जो सटीक और सहज चालन को सक्षम बनाता है. भारत में स्वराज 744 FE की कीमत 6.90-7.40 लाख रुपये के बीच है।
कुबोटा एमयू 4501 2डब्ल्यूडी (Kubota MU 4501 2WD)
Kubota MU 4501 2WD ट्रैक्टर एक विश्वसनीय और कुशल मशीन है जिसे विभिन्न कृषि कार्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक शक्तिशाली इंजन है जो असाधारण प्रदर्शन और ईंधन दक्षता सुनिश्चित करता है. ट्रैक्टर में 4-सिलेंडर इंजन है. इस Kubota ट्रैक्टर मॉडल को आसानी से हल, कल्टीवेटर, लोडर जैसे उपकरणों के साथ लगाया जा सकता है, जिससे खेत में इसकी बहुमुखी प्रतिभा और उत्पादकता का विस्तार होता है।
अगर इसके वजन की बात करें तो ट्रैक्टर 1850 किलोग्राम के कुल वजन के साथ शक्ति और गतिशीलता के बीच संतुलन बनाता है. ट्रैक्टर क्रमशः 8 और 4 के फॉरवर्ड और रिवर्स गियर के साथ आता है जो कई दिशाओं में घूमने के लिए सक्षम है. इसमें 5000 घंटे या 5 साल की वारंटी के साथ तेल में डूबे हुए डिस्क ब्रेक हैं. भारत में Kubota MU 4501 2WD की कीमत 7.69-7.79 लाख रुपये के बीच है।
पॉवरट्रैक यूरो 50 (Powertrac Euro 50)
पॉवरट्रैक यूरो 50 ट्रैक्टर एक मजबूत और कुशल मशीन है जिसे कृषि कार्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक उच्च-प्रदर्शन इंजन है जो विश्वसनीय शक्ति और ईंधन दक्षता प्रदान करता है. ट्रैक्टर में 3-सिलेंडर इंजन है, जो खेती के विभिन्न कार्यों के लिए सुचारू और कुशल संचालन सुनिश्चित करता है।
यह पॉवरट्रैक मॉडल आसानी से हल, कल्टीवेटर, हैरो आदि जैसे उपकरणों से जुड़ सकता है, जिससे खेत में इसकी बहुमुखी प्रतिभा और उत्पादकता में वृद्धि होती है. इस ट्रैक्टर में 50 एचपी है और यह मल्टी प्लेट तेल में डूबे डिस्क ब्रेक के साथ आता है. इसका कुल वजन 2140 किलोग्राम और 2040 एमएम का कुल व्हीलबेस है. पॉवरट्रैक यूरो 50 ट्रैक्टर एक विश्वसनीय और बहुमुखी मशीन है, जो विभिन्न कृषि अनुप्रयोगों में किसानों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शक्ति, दक्षता और आराम का संयोजन करती है. भारत में पॉवरट्रैक यूरो 50 की कीमत 7.31-7.75 लाख रुपये के बीच है।
जॉन डीरे 5050 डी (John Deere 5050 D)
जॉन डियर 5050 डी एक उच्च प्रदर्शन वाला ट्रैक्टर है जो अपनी गुणवत्ता और टिकाऊपन के लिए जाना जाता है. यह एक मजबूत इंजन से लैस है जो उत्कृष्ट शक्ति और दक्षता प्रदान करता है. ट्रैक्टर में 3-सिलेंडर इंजन है, जो कृषि कार्यों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए बेहतर प्रदर्शन और विश्वसनीय संचालन प्रदान करता है.
यह आसानी से हल, कल्टीवेटर, सीडर्स जैसे अन्य उपकरणों से जुड़ सकता है, जिससे किसानों को अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक करने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है. इसका वजन लगभग 1870 किलोग्राम है जो ऑपरेशन के दौरान स्थिरता सुनिश्चित करता है और विभिन्न इलाकों में आसानी से नेविगेट करने के लिए फुर्तीला है. ये 8 आगे और 4 रिवर्स गियर के साथ आता है, जिससे ऑपरेटर आसानी से कई दिशाओं में जा सकते हैं. यह तेल में डूबे हुए डिस्क ब्रेक के साथ 60 लीटर की ईंधन टैंक क्षमता के साथ आता है. भारत में जॉन डीरे 5050 डी की कीमत 7.99-8.70 लाख रुपये के बीच है।
आजकल सभी किसान अपनी आय को बढ़ाने के लिए धान, गेहूं के साथ अन्य फसलों की खेती भी कर रहे हैं। कई लोगों को इससे बड़ा मुनाफा हुआ है। आज हम आपको खेती की तीन ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं। जो आपको चंद दिनों में करोड़पति बना देंगी।
आज के समय में लगभग सभी किसान अपनी आय को मजबूत करने के लिए खेतों में धान-गेहूं के अलावा भारी मात्रा में अन्य फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। जिनमें कई किसान बढ़िया मुनाफा कमाने में भी सफल हैं। वैसे तो खेती से जुड़े व्यवसाय के बारे में हम आपको पहले भी बता चुके हैं। लेकिन आज जिन फसलों व खेती से जुड़े व्यापार के बारे में बताने जा रहे हैं। उससे किसान चंद दिनों में करोड़पति बन सकते हैं। वहीं, उनमें लागत भी बहुत कम है. तो आइए खेती से जुड़े चार व्यवसाय पर एक नजर डालें।
मशरूम की खेती
मशहूर की खेती से किसान जबरदस्त कमाई कर सकते हैं। भारत में मुख्य तौर पर तीन तरह के मशरूम की खेती होती है. जिनमें बटन मशरूम, ओएस्टर मशरूम व मिल्की मशरूम शामिल हैं। इनमें भी बटन मशरूम का उत्पादन सबसे अधिक होता है। अगर एक एकड़ बटन मशरूम की खेती की बात करें तो उसमें लागत कम से कम 70 हजार रुपये आता है। जिससे महज तीन महीने में लगभग तीन लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। बता दें कि बटन मशरूम की खेती सितंबर व अक्टूबर में होती है। वहीं, यह महज एक महीने में तैयार हो जाते हैं। इसकी खेती के लिए शेड की व्यवस्था करना बहुत जरूरी है। क्योंकि तैयार होने के बाद खुले में मशरूम खराब होने लगते हैं।
मधुमक्खी पालन
अगर कम लागत में खेती से जुड़े व्यवसाय करके ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं तो मधुमक्खी पालन भी बढ़िया ऑप्शन है। इस बिजनेस को शुरू करने से पहले ट्रेनिंग लेना बहुत जरुरी है। इसकी ट्रेनिंग लगभग 30 दिनों तक होती है। इस व्यवसाय को शुरू करने में किसानों को लगभग दो लाख रुपये तक खर्च करना पड़ सकता है। वहीं, शहद बेचकर साल में इससे पांच से छह लाख रुपये तक कमाई आसानी से हो सकती है।
एक्जोटिक वेजिटेबल की खेती
गांव से लेकर शहरों तक एक्जोटिक वेजिटेबल की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है। इनमें चेरी टमाटर, लाल शिमला मिर्च, धनिया, लाल गोभी आदि शामिल हैं। बाजार में इन सब्जियों का भाव भी काफी अच्छा मिलता है। वहीं, इनकी खेती में लागत भी बहुत कम आती है। किसान बताते हैं कि इन सब्जियों को उगाने में एक से दो महीने का समय लगता है। वहीं, साल भर में इन सब्जियों से लगभग पांच लाख रुपये तक का फायदा मिल जाता है।
आज देश के कई राज्यों में भीषण गर्मी पड़ने के आसार हैं। आइये जानें कैसा रहेगा आज मौसम का हाल।
दिल्ली और आसपास के इलाकों में कुछ दिन पहले तक बारिश के चलते मौसम सुहाना रहा। लोगों को गर्मी से राहत मिली। लेकिन अब फिर उन्हें भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। मौसम विभाग द्वारा जारी किए गए पूर्वानुमानों में बताया गया है कि अगले पांच दिनों तक दक्षिण भारत के कई इलाकों में बारिश हो सकती है। अगर आज की बात करें तो केरल, लक्षद्वीप, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में छिटपुट बारिश का अनुमान है। वहीं, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कुछ जगहों पर आज भारी बारिश हो सकती है।
इन इलाकों में भारी बारिश
वहीं, अगर पूर्वोत्तर भारत की बात करें तो आज मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय में अलग-अलग जगहों पर भारी बारिश हो सकती है। बुधवार को बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के अलग-अलग इलाकों में लू की गंभीर स्थिति बनी रही। इन क्षेत्रों में लगातार 8वें दिन लू का कहर जारी रहा। वहीं, आज भी मौसम विभाग ने बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, आंध्र प्रदेश, यनम, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के अधिकांश इलाकों में लू चलने की संभावना जताई है।
यहां चलेगी आंधी
आज राजस्थान के कई जगहों पर गरज-चमक के साथ धुल भरी आंधी चलने की संभावना है। वहीं, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में तापमान सामान्य रहने का अनुमान है। इसके अलावा, आज गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मौसम साफ रहने वाला है। इन राज्यों के लोग आज भीषण गर्मी का सामना कर सकते हैं।
वहीं, आज अरब सागर और आस-पास के क्षेत्रों में 170 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलने की संभावना है। ऐसे में मछुआरों को अरब सागर से सटे इलाकों से दूर रहने की सलाह दी गई है।